अनुवाद

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

जापानी भाषा कैसे सक्षम बनी ?–डॉ. मधुसूदन


यह आलेख डॉ. मधुसूदन ज़वेरी जि ने लिखा है और उनकी अनुमति से यहाँ प्रकाशित किया गया है.
डॉ. ज़वेरी ने अभियांत्रिकी  (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय में  निर्माण अभियांत्रिकी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।




ॐ –जापानी भाषा कैसे विकसी ?
ॐ –जापान को देवनागरी की  सहायता.
ॐ जापानी, हमारी भाषा से कमज़ोर थी.
ॐ अनुवाद करो या बरखास्त हो जाओ की नीति अपनायी .

(१) जापान और दूसरा इज़राएल.
मेरी सीमित जानकारी में, संसार भर में दो देश ऐसे हैं, जिनके आधुनिक इतिहास से हम भारत-प्रेमी अवश्य सीख ले सकते हैं; एक है जापान और दूसरा इज़राएल.
आज जापान का उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ. जापान की जनता सांस्कृतिक दृष्टि से निश्चित कुछ अलग है, वैसे ही इज़राएल की जनता भी. इज़राएल की जनता, वहाँ अनेकों देशों से आकर बसी है, इस लिए बहु भाषी भी है.
मेरी दृष्टि में, दोनों देशों के लिए, हमारी अपेक्षा  कई अधिक, कठिनाइयाँ रही होंगी. जापान का, निम्न इतिहास  पढने पर, आप मुझ से निश्चित ही, सहमत होंगे; ऐसा मेरा विश्वास है. 
(२) कठिन काम. 
जापान के लिए जापानी भाषा को समृद्ध और सक्षम करने का काम हमारी हिंदी की अपेक्षा, बहुत बहुत कठिन मानता हूँ,  इस विषय में, मुझे तनिक भी, संदेह नहीं है. क्यों? क्यों कि  जापानी भाषा चित्रलिपि वाली चीनी जैसी भाषा है. कहा जा सकता है, (मुझे कुछ आधार मिले हैं  उनके बल पर) कि जापान ने परम्परागत चीनी भाषा में सुधार कर उसीका विस्तार किया, और उसीके आधार पर, जपानी का विकास किया.
(३)जापानी भाषा कैसे विकसी ? 
जापान ने, जापानी भाषा कैसे बिकसायी ? जापान की अपनी लिपि चीनी से ली गयी, जो मूलतः चित्रलिपि है. और चित्रलिपि,जिन वस्तुओं का चित्र बनाया जा सकता है, उन वस्तुओं को दर्शाना ठीक ठीक जानती है. पर, जो मानक चित्र बनता है, उसका उच्चारण कहीं भी चित्र में दिखाया नहीं जा  सकता. यह उच्चारण उन्हें अभ्यास से ही कण्ठस्थ करना पडता है. इसी लिए उन्हों ने भी, हमारी देवनागरी का उपयोग कर अपनी वर्णमाला को सुव्यवस्थित किया है.
(४) जापान को देवनागरी की  सहायता.  
जैसे उपर बताया गया है ही, कि, जपान ने भी देवनागरी का अनुकरण कर अपने उच्चार सुरक्षित किए थे.“आजका जापानी ध्वन्यर्थक उच्चारण शायद अविकृत स्थिति में जीवित ना रहता, यदि जापान में संस्कृत अध्ययन की शिक्षा प्रणाली ना होती. जापान के प्राचीन संशोधको ने देवनागरी की ध्वन्यर्थक रचना के आधार पर उनके अपने उच्चारणों की पुनर्रचना पहले १२०४ के शोध पत्र में की थी. जपान ने उसका उपयोग कर, १७ वी शताब्दि में, देवनागरी उच्चारण के आधारपर अपनी मानक लिपि का अनुक्रम सुनिश्चित किया, और उसकी पुनर्रचना की. —(संशोधक) जेम्स बक.
लेखक: देवनागरी के कारण जपानी भाषा के उच्चारण टिक पाए. नहीं तो, जब  जापानी  भाषा चित्रमय ही है, तो उसका उच्चारण आप कैसे बचा के रख सकोगे ? देखा हमारी देवनागरी का प्रताप? और पढत मूर्ख रोमन लिपि अपनाने की बात करते हैं.
(५) जापान की कठिनाई.  
पर जब आदर, प्रेम,  श्रद्धा, निष्ठा, इत्यादि जैसे भाव दर्शक शब्द, आपको चित्र बनाकर दिखाने हो, तो कठिन ही होते होंगे . उसी प्रकार फिर विज्ञान, शास्त्र, या अभियान्त्रिकी की शब्दावलियाँ भी कठिन ही होंगी.
और फिर संकल्पनाओं की व्याख्या करना भी  उनके लिए कितना कठिन हो जाता होगा, इसकी कल्पना हमें सपने में भी नहीं हो सकती.
इतनी जानकारी ही मुझे जपानियों के प्रति आदर से नत मस्तक होने पर विवश करती है;  साथ, मुझे मेरी दैवी  ’देव नागरी’ और ’हिंदी’ पर गौरव का अनुभव भी होता है. 
ऐसी कठिन समस्या को भी जापान ने सुलझाया, चित्रों को जोड जोड कर; पर अंग्रेज़ी को स्वीकार नहीं किया.

(६)संगणक पर, Universal Dictionary. 
मैं ने जब संगणक पर, Universal Dictionary पर जाकर कुछ शब्दों को देखा तो, सच कहूंगा, जापान के अपने भाषा प्रेम से, मैं  अभिभूत हो गया.  कुछ उदाहरण  नीचे देखिए. दिशाओं को जापानी कानजी परम्परा में कैसे लिखा जाता है, जानकारी के लिए दिखाया है.
निम्न जालस्थल पर, आप और भी  उदाहरण देख सकते हैं. पर उनके उच्चारण तो  वहां भी लिखे नहीं है.
上     up =ऊपर—- 下     down=नीचे —-
左     left=बाएँ——右 right= दाहिने—
中     middle = बीचमें —前     front =सामने
後     back = पीछे —–内     inside = अंदर
外     outside =बाहर —東     east =पूर्व
南     south =    दक्षिण —西     west =पश्चिम
北     north = उत्तर 



(७) डॉ. राम मनोहर लोहिया जी का आलेख:
डॉ. राम मनोहर लोहिया जी के आलेख से निम्न उद्धृत करता हूँ; जो आपने प्रायः ५० वर्ष पूर्व लिखा था; जो आज भी उतना ही,  सामयिक मानता हूँ.
लोहिया जी कहते हैं==>”जापान के सामने यह समस्या आई थी जो इस वक्त हिंदुस्तान के सामने है. ९०-१००  बरस पहले जापान की भाषा हमारी भाषा से भी कमज़ोर थी. १८५०-६०  के आसपास गोरे लोगों के साथ संपर्क में आने पर जापान के लोग बड़े घबड़ाए. उन्होंने अपने लड़के-लड़िकयों को यूरोप भेजा कि जाओ, पढ़ कर आओ, देख कर आओ कि कैसे ये इतने शक्तिशाली हो गए हैं? कोई विज्ञान पढ़ने गया, कोई दवाई पढ़ने गया, कोई इंजीनियरी पढ़ने गया और पांच-दस बरस में जब पढ़कर लौटे तो अपने देश में ही अस्पताल, कारखाने, कालेज खोले.
पर,  जापानी लड़के जिस भाषा में पढ़कर आए थे उसी भाषा में काम करने लगे. (जैसे हमारे नौकर दिल्ली में करते हैं,–मधुसूदन)  जब जापानी सरकार के सामने यह सवाल आ गया. सरकार ने कहा, नहीं तुमको अपनी रिपोर्ट जापानी में लिखनी पड़ेगी.

उन लोगों ने कोशिश की और कहा कि नहीं, यह हमसे नहीं हो पाता क्योंकि जापानी में शब्द नहीं हैं, कैसे लिखें? तब जापानी सरकार ने लंबी बहस के बाद यह फैसला लिया कि तुमको अपनी सब रिपोर्टैं जापानी में ही लिखनी होंगी. अगर कहीं कोई शब्द जापानी भाषा में नहीं मिलता हो तो जिस भी भाषा में सीखकर आए हो उसी में लिख दो. घिसते-घिसते ठीक हो जाएगा. उन लोगों को मजबूरी में जापानी में लिखना पड़ा.”
(८) संकल्प शक्ति चाहिए.
आगे लोहिया जी लिखते हैं,
“हिंदी या हिंदुस्तान की किसी भी अन्य भाषा के प्रश्न का संबंध केवल संकल्प से है. सार्वजनिक संकल्प हमेशा राजनैतिक हुआ करते हैं. अंग्रेज़ी हटे अथवा न हटे, हिंदी आए अथवा कब आए, यह प्रश्न विशुद्ध रूप से राजनैतिक संकल्प का है. इसका विश्लेषण या वस्तुनिष्ठ तर्क से कोई संबंध नहीं.”
(९)हिंदी किताबों की कमी?  
लोहिया जी आगे कहते हैं; कि,
“जब लोग अंग्रेज़ी हटाने के संदर्भ में हिंदी किताबों की कमी की चर्चा करते हैं, तब हंसी और गुस्सा दोनों आते हैं, क्योंकि यह मूर्खता है या बदमाशी? अगर कॉलेज के अध्यापकों के लिए गरमी की छुट्टियों में एक पुस्तक का अनुवाद करना अनिवार्य कर दिया जाए तो मनचाही किताबें तीन महीनों में तैयार हो जाएंगी. हर हालत में कॉलेज के अध्यापकों की इतनी बड़ी फौज़ से, जो करीब एक लाख की होगी, कहा जा सकता है कि अनुवाद करो या बरखास्त हो जाओ.

संदर्भ: डॉ. लोहिया जी का आलेख,  Universal Dictionary, डॉ. रघुवीर

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

निर्यात कैसे करें: आयात कैसे करें



प्रस्तावना
विदेशी व्यापार का महत्व आज के भूमंडलीकृत विश्व में पहले से कहीं अधिक है। पिछले दो दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था के खुलने के साथआयात और निर्यात में काफी तेजी आई है और विदेशी व्यापार करने वाले व्यक्तियोंकंपनियों तथा संगठनों को सरकार पर्याप्त नीतिगत ढांचासहायता और प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। सरकार व्यापार बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा मुहैया करानेविदेशी सरकारों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठनों को इसमें शामिल करने में अहम भूमिका निभा रही हैजिससे भारतीय व्यापारियों को व्यापार के लिए समान स्तर व अवसर मिल सकें।
आयात क्या होता है और आयातक कौन होता हैं ?
सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के अनुसारइसके व्याकरण संबंधी भिन्नता और भाव के अनुसार, "आयात" का मतलबभारत से बाहर किसी स्थान से भारत में लानाहै। "आयातित वस्तु" का मतलब कोई वस्तु या सामान जो भारत के बाहर किसी स्थान से भारत में लाना हैलेकिन इसमें वे वस्तुएं शामिल नहीं हैं जो घरेलू उपभोग के लिए स्वीकृत हैं। और "आयातक" का अर्थ (किसी वस्तु के आयात और उसके घरेलू उपभोग की स्वीकृति तक) उस वस्तु को ग्रहण या रखने वाले व्यक्ति से है।
निर्यात क्या होता है और निर्यातक कौन होता है ?
सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के अनुसारइसके व्याकरण संबंधी भिन्नता और भाव के अनुसार, "निर्यात" का मतलब - भारत से किसी दूसरे स्थान जो भारत से बाहर होतक ले जाना है व "निर्यात वस्तु" का मतलब किसी वस्तु को भारत से किसी दूसरे स्थान जो भारत से बाहर होतक ले जाना है। "निर्यातक" का मतलब ऐसे व्यक्ति से है जो उस वस्तु का उसके निर्यात शुरू होने और उसके निर्यातित हो जाने तक उसका मालिक हो या जो उसे रखता हो।
नीचे दी गई सूचना का उद्देश्य आयातकों और निर्यातकों को विदेशी व्यापार शुरू करने और उसे चलाने में मदद करना है। इसका वर्गीकरण इस प्रकार है:-
आयातकों हेतु सूचना

माल का आयातवस्तुओं की कमी को दूर करते हुए और उत्पादन की गुणवत्ता को बढ़ाते हुएबुनियादी ढांचे या औद्योगिक विकास के लिए जरूरी वस्तुओं को उपलब्ध कराकर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद करता है। देश में जिन वस्तुओं की कमी हैउन वस्तुओं और सामानों को उपलब्ध कराकर यह लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाता है। भारत में प्रयोज्य आय के बढ़ने के साथ हीआयातित माल के लिए बाजार में भी वृद्धि हो रही है। वस्तुओं को आयात करने का व्यापार एक लाभदायक प्रयास हो सकता हैलेकिन इसके लिए ऐसे व्यापार और दोनों देशों के बाजार से संबंधित नियम और अधिनियमतथा संबंधित देश के व्यापार समझौतों को अच्छी तरह जानना और समझाना बहुत जरूरी है।


बाजार सर्वेक्षण
एक आयातक के लिए पहला कदम यह हो सकता है कि वह बाजार का सर्वेक्षण करेजिससे यह निर्धारित हो सके कि कौन सी वस्तु आयात करना सही रहेगा। उसे अपने देश में ऐसी वस्तुओं के बाजार का अध्ययन करना चाहिए जिनकी मांग ज्यादा है या जिनकी मांग बढ़ने की सम्भावना है। आयात की जाने वाली वस्तुओं में उपभोक्ताओं या छोटे बाजारों के लिए तैयार माल या अन्य उद्योगों के लिये सहायक वस्तुएं हो सकती हैं। ऐसे अध्ययन के लिए नीचे दिए गए कुछ डाटा/जानकारी के स्रोतों को देखा जा सकता है -
आयात की नीतियोंप्रक्रियाओं और समझौतों की जानकारी
आयात का कारोबार शुरू करने से पहले इससे सम्बंधित नीतियोंनियम और प्रक्रियाओं के साथ ही भारत और अन्य देशों के बीच व्यापार समझौतों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के बारे में जानकारी हासिल कर लेना बहुत जरूरी है।
पंजीकरण
यह कारोबार शुरू करने से पहले आपको विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) में पंजीकरण तथा आयात निर्यात कोड संख्या (आईईसी) प्राप्त करना आवश्यक है। आईईसी कोड एक अनूठा दस अंको वाला नंबर है जो डीजीएफटी द्वारा भारतीय कंपनियों को जारी किया जाता है। भारत से आयात या निर्यात करने के लिए यह एक अनिवार्य कदम है।
स्रोत की पहचान
आयात की जाने वाली संभावित वस्तु की पहचान के बाद उसके स्रोत की पहचान करना होता है। यह करने के लिए दोनों देशों मेंचयनित वस्तु के व्यापार का कानूनी प्रभाव का पता लगाने के साथ ही विदेशी आपूर्तिकर्ताओं की विश्वसनीयता आवश्यक है। इसकी सहायता विदेशों में स्थित भारतीय वाणिज्यिक मिशन औरअंतर्राष्ट्रीय व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) द्वारा भारत और विदेश में आयोजित विभिन्न प्रदर्शनियों और व्यापार मेलों के माध्यम से प्रदान की जाती है। डीजीएफटी द्वारा आयात से सम्बंधित जारी महत्वपूर्ण अधिसूचनाओं की जानकारी रखना आवश्यक है। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा आयात की जाने वाली वस्तु के मानक से सम्बंधित नवीनतम सूचना का ध्यान रखना भी अत्यंत आवश्यक है।
वस्तुओं की श्रेणी
आयात की जाने वाली वस्तुएं निम्नलिखित श्रेणी में आती हैं:
  • मुक्त आयात के योग्य: अधिकांश माल/वस्तुएं इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। इसके लिए आयात लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
  • लाइसेंस वस्तुएं: ऐसी कई वस्तुएं हैं जो केवल एक आयात लाइसेंस के तहत ही मंगाई जा सकती है। इन वस्तुओं में कुछ उपभोक्ता वस्तुएंकीमती और कम कीमती पत्थरसुरक्षा से संबंधित उत्पादबीजपौधे और जानवरकुछ कीटाणुनाशकदवा और रासायनिककुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और अन्य कई वस्तुएं जो केवल छोटे स्तर के उद्योगों द्वारा ही बनाने हेतु आरक्षित होते हैंशामिल हैं । इन सभी वस्तुओं को मंगाने के लिए लाइसेंस  विदेश व्यापार      महानिदेशालय द्वारा जारी किया जाता है।
  • सारणीबद्ध वस्तुएं: ये वस्तुएं केवल राज्य व्यापार निगम (एसटीसी) जैसे निर्दिष्ट चैनल या सरकारी एजेंसियों द्वारा आयात किए जा सकते हैं।
  • प्रतिबंधित वस्तुएं: वसापशुओं की रानीट वस्तुएंजंगली जानवर और गैरप्रसंस्करित हाथीदांत का आयात प्रतिबंधित है।
नमूनों का आयात
'वाणिज्यिक नमूनेआयात किए जाने वाले माल का ऐसा नमूना होता है जो भारतीय व्यापारियों द्वारा इसके विशेषताओं और उपयोग तथा भारत में इसकी बिक्री का अनुमान लगाने के लिए आयात मंगाए जाते हैं। व्यापार के लिए असली नमूने बिना किसी शुल्क के आयात किए जा सकते हैं। ऊपर दिए गए प्रतिबंधित वस्तुओं के नमूने आयात नहीं किए जा सकते हैं। नमूना आयात करने से सम्बंधित अन्य जानकारी यहां से प्राप्त की जा सकती है।
आयात शुल्क
व्यापार के उद्देश्य से आयातित अधिकतर वस्तुओं पर सरकार आयात शुल्क लगाती है। ये शुल्क विभिन्न प्रकार के होते हैंजैसे - बुनियादी शुल्कअतिरिक्त सीमा शुल्कट्रू काउंटरवेलिंग ड्यूटीएंटी डम्पिंग या सेफगार्ड ड्यूटी और शिक्षा उपकर आदि। शुल्क से सम्बंधित विवरण यहां से प्राप्त किए जा सकते हैं।
आयात शुल्क का भुगतान
बैंक का प्रोविजनल डिपोजिट अकाउंट : सीमा शुल्क द्वारा नामित बैंकों से शुल्क सीधे काटने की सुविधा उपलब्ध है। यह सुविधा आयातकों से सीमा शुल्क प्राप्ति में होने वाले देरी तथा दो दिन बाद शुल्क के ब्याज के भुगतान को कम करती है। आयातकों को नामित बैंक में एक डिपोजिट अकाउंट खुलवाना होता है और बैंक के निर्देशानुसार उसमे न्यूनतम निर्धारित रकम रखना होता है। प्रविष्टियों के मूल्यांकन के पूरा होने परआयातक प्राधिकार स्लिप के अनुसार सीमा शुल्क राशि काटने का अधिकार दे सकता है।
  • ड्राफ्ट / बैंकर्स चैक द्वारा भुगतान : भारतीय रिजर्व बैंक ने नामित बैंकों को केवल राष्ट्रीयकृत बैंकों से स्वीकृत लेखपत्र के अनुसार ही भुगतान के नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
  • ब्याज : दिनों के भीतर शुल्क का भुगतान ना किए जाने के बाद ब्याज लगाया जाता है।
प्रविष्टि के बिल
यह एक दस्तावेज होता है जो सत्यापित करता है कि निर्दिष्ट विवरण और मूल्य की वस्तु विदेश से देश में प्रवेश कर रही है। अगर माल इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज (ईडीआई) प्रणाली के माध्यम से आगे बढ़ा दिया गया है तो कोई औपचारिक प्रविष्टि दायर नहीं करना पड़ता है क्योंकि यह पहले से ही कंप्यूटर द्वारा बनाया जा चुका होता हैलेकिन आयातक को कस्टम क्लियरेंस की एंट्री के लिए दिए गए विवरण के साथ एक कार्गो घोषणा दायर करनी होती है।
प्रविष्टि के बिल कई प्रतियों में अलग-अलग उद्देश्य के लिए और अलग-अलग रंगों के साथ दायर की जानी होती है। प्रविष्टि के बिल तीन प्रकार के होते हैं :- 
  • घरेलू खपत के लिए प्रविष्टि बिल
  • भंडारगृहों के लिए प्रविष्टि बिल
  • बॉण्ड पूर्व क्लीयरेंस के लिए एंट्री का बिल
ग्रीन चैनल सुविधा
कुछ बड़े आयातकों को ग्रीन चैनल क्लियरेंस की सुविधा प्रदान की गई है। इस सुविधा के अंतर्गत वस्तुओं की निकासी रुटीन परीक्षण के बगैर ही कर दी जाती है। ऐसे आयातकों को बिल ऑफ़ एंट्री का फॉर्म भरते समय एक घोषणा करनी पड़ता है जिसमे वस्तुओं का मूल्यांकन सामान्य तौर पर ही किया जाता है सिवाय इसके कि उनका भौतिक परीक्षण नहीं किया जाता है। ऐसे मामलों में केवल चिन्ह और संख्या की जांच की जाती है। हालांकि कुछ मामलों में जब वस्तु के विवरण और मात्रा में संदेह हो तब भौतिक परीक्षण के भी आदेश दिए जाते हैं।

इस सुविधा का लाभ ऐसे आयातक उठा सकते हैं जो सीमा शुल्क विभाग द्वारा इस सुविधा के लिये योग्य पाए गए हैं। जिन आयातकों की छवि साफ सुथरी रही हैवे कस्टम्स (ईडीआई) को एक पत्र और एक वर्ष में किए गए शुल्क भुगतान को प्रदर्शित करने वाली बैलेंस शीट की प्रति के साथ ग्रीन चैनल सुविधा के लिये आवेदन कर सकते हैं।
डंपिंग
डंपिंग तब होती है जब कोई निर्यातक किसी वस्तु को बाजार मूल्य से कम दाम पर भारत को बेचता है। फिर भी डंपिंग निंदनीय नहीं है क्योंकि यह पाया गया है की उत्पादक अपने सामान को विभिन्न बाजारों में अलग अलग दर पर बेचते हैं। हालांकि जब डंपिंग भारतीय उद्योग को कोई खतरा पैदा करता है या नुकसान पहुंचाता है तब सम्बंधित अधिकारी जांच के लिए आवश्यक कार्रवाई शुरू करता है और उसके बाद एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया जाता है।

माल के आयात के समय भारत सरकार द्वारा जारी एंटी डम्पिंग निर्देशों को समझना और उनका अनुपालन करना अत्यंत आवश्यक होता है।
अन्य प्रोत्साहन और सुविधाएं
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ऑनलाइन सेवाएं
फॉर्म
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डीजीएफटी
  • एएनएफ 1  आयातक/निर्यातक का प्रोफाइल
  • एएनएफ  आयातक निर्यातक कोड नंबर (आईईसी) 4
  • एएनएफ बी प्रतिबंधित आइटम के लिए आयात लाइसेंस
  • एएनएफ सी भारत और अमेरिका ज्ञापन के तहत आयात प्रमाणपत्र
  • एएनएफ एफ आवेदन शुल्क की वापसी
  • एएनएफ  स्थिति प्रमाणपत्र का अनुदान
  • एएनएफ डी फोकस मार्केट योजना (एफएमएस)
  • एएनएफ  फोकस प्रोडक्ट योजना (एफपीएस)
  • एएनएफ जी विशेष कृषि और ग्राम उद्योग (व़ीकेजीयूवाई) योजना - पैरा 3.8.6 आवेदन
  • एएनएफ  अग्रिम प्राधिकार (वार्षिक आवश्यकता के लिए अग्रिम प्राधिकरण सहित) / अग्रिम रिलीज आदेश (एआरओ) / रद्द पत्र
  • एएनएफ बी निर्धारित/संशोधन मानक इनपुट आउटपुट मानदंड (एसआईओएन)
  • एएनएफ 4 सी डीईपीबी दर / ईंधन की दर का निर्धारण
  • एएनएफ डी अग्रिम प्राधिकार को एक साथ मिलाना
  • एएनएफ  सीआईएफ / एफओबी मूल्य या पुनर्मूल्यन या प्राधिकार के ईओ विस्तार में संवर्धन
  • एएनएफ एफ मुक्ति / अग्रिम प्राधिकार के खिलाफ नो बॉण्ड सर्टिफिकेट
  • एएनएफ जी  ड्यूटी एन्ताइतल्मेन्त पास बुक (डीईपीबी) आवेदन
  • एएनएफ एच शुल्क मुक्त आयात प्राधिकार (डीएफआईए) आवेदन
  • एएनएफ आई जीईएम आरईपी प्राधिकार
  • एएनएफ 8 सभी उद्योग किराये पर ड्यूटी ड्राबैक/ शुल्क वापसी का निर्धारण / टर्मिनल उत्पाद शुल्क की वापसी का दावा करने के लिए
सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क
आरबीआई फॉर्म
निर्यातकों के लिए सूचना
किसी वस्तु/सामान को किसी दूसरे देश को बेचना निर्यात कहा जा सकता है। भारतीय विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम (1992)के धारा 2 (ई) के तहत निर्यात शब्द का अर्थ किसी वस्तु को उचित मूल्य के लेनदेन के बदलेसड़कसमुद्री या हवाई मार्ग से भारत से बाहर ले जाने से है।

किसी उत्पाद को निर्यात करना एक लाभदायक तरीका है जो व्यापार को बढ़ाता है और क्षेत्रीय बाजारों पर निर्भरता को कम करता है। निर्यात का पहला प्रयोजन विदेशी मुद्रा अर्जित करना होता हैजो ना केवल निर्यातक को फायदा पहुचाता है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी लाभ प्रदान करता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एक निर्यातक को अधिक प्रतियोगी और कम असुरक्षित बनाता है।

भारत सरकार प्रोत्साहन और योजनाओं तथा विदेशी सरकार और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के साथ लाभदायक व्यापारिक समझौतों के द्वारा भारतीय निर्यात को बढ़ावा देती है।
शुरुआती कार्यवाही
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बाजार सर्वेक्षण
एक निर्यातक के लिए पहला कदम यह है कि वह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपने द्वारा निर्यात किए जाने वाले वस्तु के लिए उपयुक्त बाजार का सर्वेक्षण करे। उसके पश्चातवह एक खास बाजार का अध्ययन कर सकता है जहां पर किसी विशेष वस्तु का निर्यात किया जा सकता है। एक निर्यातक को वर्तमान प्रतिस्पर्धा और भविष्य की संभावनाओं का भी अध्ययन करना चाहिए। ऐसे अध्ययन के लिये नीचे कुछ डाटा/सूचना के स्रोत दिए गए हैं।
नीतियोंप्रक्रियाओं और समझौतों की जानकारी
यह कारोबार शुरू करने से पहले विदेशी व्यापार से सम्बंधित नीतियोंनियमों और प्रक्रियाओंतथा भारत का दूसरे देश और अन्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठनों के साथ विदेशी व्यापार समझौतों की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। सम्बंधित देशों के नियमोंस्तर और व्यापारिक आकड़ों की जानकारी के लिए विदेशों में स्थित भारतीय वाणिज्य मिशन की सहायता ली जा सकती है।
निर्यातकों को नॉन टैरिफ मेजर्स (एनटीएम) से भी परिचित होना चाहिये जो कि सामान्य शुल्कों से भिन्न होते हैं जैसे - व्यापार सम्बंधित प्रक्रियानियममानकलाइसेंस प्रणालियांऔर व्यापार सुरक्षा उपाय जैसे - एंटी डंपिंग ड्यूटी जो देशों के बीच में व्यापार को रोक सकती है। पूरे विश्व में किराया कम करने के वजह से एनटीएम ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं जिसे इसके सदस्य सामान और सेवाओं के लिए प्रवेश बाधा हटाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां पर देश वार और उत्पाद वार एनटीएम से सम्बंधित डाटाबेस दी गई है।
पंजीकरण
व्यापार शुरू करने से पहलेआपको विदेशी व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) में पंजीकरण और आयात निर्यात कोड संख्या प्राप्त करना आवश्यक है। आईई कोड दस अंको वाला एक अनूठा नंबर है जो डीजीएफटी द्वारा भारतीय कंपनियों को जारी की जाती है। भारत से आयात या निर्यात करने के लिये यह एक जरूरी कदम है। निर्यातकों को निर्यात किए जाने वाले सामान की निकासी की अनुमति हेतु शिपिंग बिल दायर करने से पहले विदेशी व्यापार महानिदेशालय के तरफ से जारी किए जाने वाले स्थाई खाता संख्या आधारित व्यापार पहचान संख्या (बीआईएन) को प्राप्त करना आवश्यक है।
निर्यात के अवसरों की खोज
सरकार व्यापार संवर्धन कार्यक्रमों और योजनाओं की सहायता से और व्यापार संवर्धन सहायता प्रदान करके निर्यातकों की तत्परता से मदद करती है। इस तरह की सहायता में सीआईएस और एएसईएन जैसे व्यापारिक संगठन और दूसरे देशों से द्विपक्षीय व्यापार के लिए किए गए समझौते शामिल हैं। निर्यात के लिए वस्तु का चयन करते समय यह तय कर लेना आवश्यक है की चयनित वस्तु व्यापार किए जाने वाले देश द्वारा निर्धारित गुणवत्ता और विशेषता रखती हो। निर्यात की जाने वाली वस्तु अन्य अंतर्राष्ट्रीय सत्यापन संगठनों के अलावा भारतीय मानक ब्यूरो और एगमार्क द्वारा तय की गई मानक पर खरी उतरनी चाहिए।
निर्यात लाइसेंस
हमारे देश में ऐसी बहुतायत वस्तुएं हैंजिन्हें बिना किसी लाइसेंस के निर्यात किया जाता है। निर्यात लाइसेंस सिर्फ उन्हीं वस्तुओं के लिए आवश्यक हैजो आईटीसी (एचएस) के अनुसूची में सूचीबद्ध हैं औरनिर्यात एवं आयात मदों के वर्गीकरण में हैं। ऐसी वस्तुओं के निर्यात का लाइसेंस प्राप्त करने के लिए विदेश व्यापार महानिदेशक को आवेदन देना जरूरी होता है। निर्यात कमिश्नर की अध्यक्षता वाली एक समिति गुणों के आधार पर निर्यात लाइसेंस जारी करती है।
विशेष रसायनअव्यवसामग्रीउपकरण और प्रौद्योगिकी (एससीओएमईटी) से संबंधित वस्तुओं के निर्यात में भी एक लाइसेंस के तहत अनुमति दी जाती है या फिर पूरी तरह निषिद्ध कर दिया जाता है।एससीओएमईटी वस्तुओं के निर्यात के लिए दिशा निर्देश यहां देखे जा सकते हैं
नमूनों का निर्यात
एक निर्दिष्ट सीमा तक नमूनों के मुफ्त निर्यात की अनुमति है। निर्यातक को इन सुविधाओं का लाभ लेने के लिए उपयुक्त निर्यात संवर्धन परिषद में पंजीकृत होना आवश्यक हैअन्यथा वो इस सुविधा से वंचित रह सकता है। यदि किसी नमूने पर "नमूनाब्रिकी के लिए नहीं" अंकित है तो उसे बिना किसी समस्या और सीमा के निर्यात किया जा सकता है।
नौवहन बिल प्रक्रिया
यदि निर्यातक वायु मार्ग से वस्तु का निर्यात कर रहा है तो उसे शिपिंग बिल जमा करना अनिवार्य है। यही शर्त सड़क से निर्यात करने पर भी लागू होती है लेकिन इसमें एक निर्धारित प्रारूप में निर्यात बिल जमा करना जरूरी होता हैजिसमें निर्यातक का नामपरेषितीचालान संख्यापैकिंग का ब्यौरामात्राएफओबी महत्वशिपिंग बिलपैकिंग की जानकारी और माल का विवरण दिया गया हो। इसके साथ ही शिपिंग बिल व अन्य दस्तावेज जैसे पैकिंग सूचीनिर्यात अनुबंधचालान व रेहन का पत्र भी संलग्नक के रूप में जमा किया जाता है। शिपिंग बिल पांच प्रकार के होते हैं:-
निर्यात के बिल इस प्रकार हैं:-
निर्यातक शिपिंग बिलों को ऑनलाइन जांच व ट्रैक कर सकते हैं।
निर्यात ऑर्डर
गोदी में वस्तुओं की प्राप्ति के बादनिर्यातक सीमाशुल्क प्रयोजन के लिए नामित अधिकारी से संपर्क करने और पोर्ट अथॉरिटी व सभी मूल दस्तावेजों के साथ साथ अन्य घोषणाओं के समर्थन के साथ जांचसूची प्रस्तुत कर सकता है। सीमा शुल्क अधिकारी प्राप्त माल की मात्रा को सत्यापित करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक शिपिंग बिल और सभी मूल दस्तावेजडॉक मूल्यांकन करने वाले को दे सकता है जो किसी सीमा शुल्क अधिकारी से उस माल की जांच करवा सकता है। यदि डॉक मूल्यांकन करने वाला माल और विवरण प्रणाली में दिए गए दस्तावेजों से संतुष्ट हो जाता है तो वह निर्यात शिपमेंट को निर्यात की अनुमति दे सकता है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़)
विशेष आर्थिक क्षेत्र को विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम 2005 के तहत अधिनियमित किया गया थाजिससे निर्यातकों को बेहतर स्थापनाविकासप्रबंधन और अवसर दिए जाएं। विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना के प्रमुख उद्देश्यः
विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना के लिए बड़ी संख्या में सुविधाओं और प्रोत्साहन की पेशकश की जा रही है।
कमोडिटी बोर्ड
वाणिज्य विभाग के अधीन पांच सांविधिक कमोडिटी बोर्ड काम कर रहे हैं। यह बोर्ड उत्पादनचाय का निर्यात और विकासकॉफीरबड़मसाले और तम्बाकू के निर्यात के लिए जिम्मेदार हैं।
अन्य सुकारक
ऑनलाइन सेवाएं
फॉर्म
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डीजीएफटी
  • एएनएफ 1 आयातक /निर्यातक का प्रोफाइल
  • एएनएफ  आयातक-निर्यातक कोड नंबर (आईईसी) 4
  • एएनएफ डी प्रतिबंधित वस्तुओं के लिए निर्यात लाइसेंस
  • एएनएफ  एससीओएमईटी वस्तुओं के लिए निर्यात लाइसेंस
  • एएनएफ 2एफ आवेदन शुल्क की वापसी
  • एएनएफ  स्थिति प्रमाण पत्र का अनुदान
  • एएनएफ सी विशेष कृषि एवं ग्राम उद्योग योजना
  • एएनएफ डी फोकस बाजार स्कीम
  • एएनएफ  फोकस उत्पाद स्कीम  
  • एएनएफ जी विशेष कृषि एवं ग्राम उद्योग योजना (पैराग्राफ 3.8.6)
  • एएनएफ  अग्रिम प्राधिकार (वार्षिक आवश्यकता के लिए अग्रिम प्राधिकरण सहित) / अग्रिम रिलीज आदेश/ पत्र रद्द
  • एएनएफ बी स्थिरता / मानक इनपुट आउटपुट मानदंडों के संशोधन
  • एएनएफ सी डीईपीबी की निर्धारित दरें / ईंधन दरें
  • एएनएफ डी अग्रिम अधिकार पत्र का क्लब
  • एएनएफ   सीआईएफ में सवर्धन / एफओबी मूल्य या पुनर्मूल्यन या प्राधिकार के EO विस्तार
  • एएनएफ एफ  छुटकारा / अग्रिम प्राधिकार के खिलाफ गैर बांड प्रमाण पत्र
  • एएनएफ जी  ड्यूटी हकदारी पास बुक आवेदन (डीईपीबी)
  • एएनएफ आई जीईएम आरईपी प्राधिकार
  • एएनएफ  निर्यात संवर्धन पूंजीगत वस्तु प्राधिकार (ईपीसीजी)
  • एएनएफ बी ईपीसीजी प्राधिकार की मुक्ति के लिए निर्यात स्टेटमेंट
  • एएनएफ सी ईपीसीजी योजना के तहत पुनर्स्थिरीकरण
  • एएनएफ डी ईपीसीजी प्राधिकारों को क्लब करना
  • एएनएफ 8 सभी उद्योग किराये पर शुल्क वापसी के लिए दावा/ वापसी मूल्य का निर्धारण /टर्मिनल उत्पाद शुल्क की वापसी
सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क
आरबीआई फॉर्म
Source: http://business.gov.in/hindi