अनुवाद

सोमवार, 27 जनवरी 2014

‘जागो ग्राहक जागो’ का नारा केवल दिखावा है

हर माल पर अंग्रेजी का कमाल

भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा विभिन्न राज्यों की अपनी राजभाषाएँ हैंभारत में लगभग तीन प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं और सत्तानवे प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं. यहाँ ध्यान देने योग्य है कि देश की छप्पन करोड़ जनता की मातृभाषा हिन्दी है और इसके अलावा लगभग तीस करोड़ लोग हिन्दी का अच्छा कार्यसाधक ज्ञान रखते हैं.

इन तथ्यों से पता चलता है कि देश के सत्तानवे प्रतिशत ग्राहकों पर अंग्रेजी थोपने की बजाए उन्हें उनकी भाषा में अथवा कम से कम हिन्दी भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए पर ऐसा नहीं हो रहा है उन पर अंग्रेजी थोपी जा रही है. 
 
अंग्रेजी है निजी कम्पनियों का मीठा हथियार

आज भारत में निजी कंपनियों का कारोबार अरबों में है और वे भारत के छोटे-२ गाँवों में पैर पसार चुकी हैं और भारत में बिकने वाले अधिकतर सामान के डिब्बों, पुडों, पुड़िया (पैकिंग) के लेबल केवल अंग्रेजी में छाप कर देश की भोलीभाली जनता को ठगती हैं. निजी कंपनियों को अपना माल बेचने के लिए चिकने चुपड़े विज्ञापनों पर खूब भरोसा है, उन्हें इस तथ्य से कोई मतलब नहीं कि उनकी कम्पनी का माल खरीदने वाला ग्राहक अंग्रेजी जानता है कि नहीं. उसके माल के लेबल में क्या-२ लिखा है, सामान की अवसान तिथि (एक्सपाइरी) क्या है? उसकी कीमत क्या है? उसके उपयोग की विधि क्या है? ना तो वो इसे पढ़ सकता है और ना ही समझ सकता है. कम्पनी का माल वह अपनी जोखिम और कम्पनी की दया पर खरीदता है क्योंकि देश में कोई कानून ऐसा नहीं जो कहे कि ग्राहक को उसकी अपनी भाषा में जानकारी देना जरूरी है. 

भारत में अंग्रेजी भाषा ग्राहकों को ठगने का सबसे आसान और सरल हथियार है क्योंकि ना तो ग्राहक सामान की कोई जानकारी ले सकेगा, ना कोई सवाल जवाब करेगा और न ही ठगे जाने पर किसी उपभोक्ता मंच में शिकायत कर सकेगा.

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विज्ञापन हिंदी में

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि कम्पनियों को के बात तो अच्छे से समझ आ चुकी है कि भारत में माल बेचने के लिए विज्ञापन तो हिन्दी एवं स्थानीय भाषाओं में करना होगा वर्ना बाज़ार में पैठ नहीं बने जा सकती इसीलिए बड़ी-२ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने विज्ञापन हिंदी में बनवाती हैं और अख़बारों को रंग डालती हैं कई बार तो अंग्रेजी अखबार में भी हिन्दी विज्ञापन छपवाए जाते हैं और कंपनियों को पता है कि अंग्रेजी के बजाय उनका कारोबार हिंदी विज्ञापनों के दम पर ही बढ़ सकता. 

अंग्रेजी के नाम पर देश के करोड़ों ग्राहक छले जा रहे हैं, उन्हें ठगा जा रहा है क्योंकि जो डिब्बाबंद सामान वो खरीद रहा है, उसके डिब्बे/पैक पर लिखी कोई भी बात वह पढ़ नहीं सकता, यदि पढ़ ले तो समझ नहीं सकता क्योंकि भारत के बिकने वाले हर सामान पर लिखी हर जानकारी एक ऐसी भाषा में होती है जिसका उसे ज्ञान नहीं है, दुकानदार जैसा बताए उसे सही मानकर सामान खरीदता है, आज 'जागो ग्राहक जागो' नारा केवल दिखावा है, छलावा है इसलिए भारत सरकार को चाहिए कि ग्राहक को उसकी अपनी भाषा में मिलें इसका कानून बनाए ताकि ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा हो.

ग्राहकों को क्या-क्या जानकारी हिन्दी में मिलनी चाहिए

भले ही कोई ऐसा कानून भारत में ना हो, जो ये कहे कि देश में बिकने वाले उत्पाद के डिब्बे/पुड़ा/पुड़िया (पैकिंग) पर हिन्दी अथवा स्थानीय भाषा में लेबल लगाना अनिवार्य पर फिर भी ‘वृहत्तर ग्राहक हितों’ को ध्यान में रखते हुए देश में माल बेचने वाली कम्पनियों/फर्मों को सभी उत्पादों पर निम्नलिखित जानकारियाँ प्राथमिक आधार पर हिन्दी में छापना चाहिए :
1.    बड़े अक्षरों में उत्पाद का नाम 
2.    उत्पादन तिथि
3.    उत्पाद का मूल्य 
4.    अवसान (एक्सपाइरी) तिथि 
5.    वजन
6.    उत्पाद बनाने में प्रयुक्त हुए घटक (सामग्री)
7.    उत्पाद की विशेषताएँ    

ऐसा करके कम्पनियाँ करोड़ों ग्राहकों के हितों की रक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठा सकती हैं, जिससे कम्पनी के कारोबार में दीर्घगामी वृद्धि होगी.

मेरे मस्तिष्क में एक प्रश्न बार-२ कौंध रहा है "क्या कभी इस गणतंत्र में ग्राहकों को अपनी भाषा में जानकारी पाने का अधिकार मिलेगा?" 


मंगलवार, 7 जनवरी 2014

सरकारी बैंकों में भी नहीं होता आम आदमी की भाषा में कामकाज

दिनांक: 4 जनवरी 2014

सेवा में,
1.   श्री राजीव टाकरू, सचिव महोदय, वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय
2.   डॉ. रमाकांत गुप्‍ता, महाप्रबंधक, भा.रि.बैंक, मुंबई
3.   श्री आर.आर. सिंह, उप महाप्रबंधक, महाप्रबंधक, भा.रि.बैंक, मुंबई 
4.   श्री अरुण कुमार जैन, सचिव महोदय, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय
5.   सुश्री पूनम जुनेजा, संयुक्त सचिव एवं मुख्य सतर्कता अधिकारी महोदया,             राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय  
6.   श्री भोपाल सिंह, निदेशक (शिकायत), राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय
7.   प्रमुख राष्ट्रीयकृत बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
8.   संसदीय राजभाषा समिति
  
विषय- राजभाषा के कानूनों को मुंह चिढ़ाते राष्ट्रीयकृत बैंक ।

महोदय,
यह चौंकाने वाली बात है कि भारत सरकार के मातहत राष्ट्रीयकृत बैंक खुले रूप में भारत सरकार के राजभाषा के कानून की अवहेलना करते दिखाई देते हैं और वे विभाग व कार्यालय आदि जिन पर इन कानूनों को लागू करवाने की जिम्मेदारी हैवे चुपचाप बैठकर इसे मौन समर्थन देते दिखाई देते हैं। ऐसे कानूनों का क्या मतलब जिनका पालन बहुत कम और उल्लंघन बहुत ज्यादा होता हो ।
    मुंबई की उपनगरीय गाड़ियों में और स्टेशनों पर लगे होर्डिंग/ विज्ञापन भारत सरकार के राजभाषा के कानून को मुंह चिढ़ाते दिखते हैं। हाल के कुछ महीनों में उपनगरीय गाड़ियों में केनरा बैंकइलाहाबाद बैंक,स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुरस्टेट बैंक आफ पटियाला ने सभी विज्ञापन केवल अंग्रेजी में लगाए। कॉर्पोरेशन बैंक ने तो पूरे दादर स्टेशन ( मध्य रेल) के चेहरे को ही अंग्रेजी में रंग डाला । इसके पहले बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी यही किया था । उल्लेखनीय है कि मुंबई की उपनगरीय गाड़ियों के सभी यात्री हिंदी बखूबी जानते हैंइसकी तुलना में अंग्रेजी जानने वाले काफी कम हैंइसीलिए धारावाहिकों और निजी कंपनियों के अनेक होर्डिंग उपनगरीय गाड़ियों व स्टेशनों पर हिंदी में लगते हैं। संतोष की बात यह रही कि यूनियन बैंक,सेंट्रल बैंकओरियंटल बैंकबैंक ऑफ इंडिया आदि ने उपनगरीय गाड़ियों के विज्ञापनों में हिंदी का भी प्रयोग कर हिंदी के कानून की मर्यादा रखी।
      
यहाँ यह बताना गैरजरूरी न होगा कि ज्यादातर बैंकों में ज्यादातर विज्ञापन सामग्रीहोर्डिंगसभी प्रकार के आवेदन फार्म आदि अंग्रेजी में हैंभारतीय स्टेट बैंक और इस समूह के बैंकों की स्थिति तो बहुत ही चिंताजनक है। स्टेट बैंक ने 2008 के बाद से अपनी हिन्दी वेबसाइट अद्यतित ही नहीं की है और हिन्दी वेबसाइट के नब्बे प्रतिशत पृष्ठों पर अंग्रेजी सामग्री और अंग्रेजी वेबपृष्ठ के ही लिंक भरे पड़े हैं, राष्ट्रपति जी के आदेशों के उपरांत भी अब तक पासबुक एवं मासिक विवरण के हिन्दी-द्विभाषी में छापने की व्यवस्था बैंक पूरे पाँच साल बाद भी नहीं कर पाया. एसएमएस चेतावनी, नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, मोबाइल ऐप, ऑनलाइन खाता खोलना, ऑनलाइन शिकायत प्रणाली जैसी सभी आधुनिक सेवाएँ बैंक ग्राहकों पर अंग्रेजी में थोप रहे हैं, इन बैंकों को ग्राहकों की सुविधा नहीं बल्कि बैंकिंग सेवाओं के अंग्रेजीकरण की अधिक चिंता है. बैंक गर्व से लिखता है “हर भारतीय का बैंक” पर देखा जाए तो यह स्टेट बैंक “केवल अंग्रेजी वालों का अंग्रेजी बैंक है”. एसएमएस चेतावनी आप अंग्रेजी में भेजते हैं और पन्द्रह रुपये प्रति तिमाही ग्राहक से वसूल रहे हैं भले ही ग्राहक ना उसे पढ़ सकता हो, ना समझ सकता हो? देश के अंग्रेजी ना जानने वाले करोड़ों ग्राहकों के साथ अन्याय किया जा रहा है, केवल अंग्रेजी में एसएमएस भेजा जाना असंवैधानिक है, जो भाषा मुझे नहीं आती है उसमें मुझे एसएमएस भेजा जाए और शुल्क भी वसूला जाए यह तो सरासर तानाशाही है.
     बैंक ऑफ इंडिया तथा कार्पोरेशन भारतीय स्टेट बैंक समूह के बैंकों आदि बैंकों के कोर बैंकिंग सॉफ्टवेयर भी प्राय: केवल अंग्रेजी में हैं जिनमें नियमानुसार हिंदी-अंग्रेजी द्विभाषी कार्य की सुविधा होनी चाहिए।
     यह आश्चर्य कि बात है कि राजभाषा के कानूनों का उल्लंघन करने वाले बैंकों को सरकार राजभाषा पुरस्कार से उपकृत भी करती है, जिन्हें कानून तोड़ने के लिए दंडित किया जाना चाहिए उन्हें पुरस्कृत कैसे किया जा सकता है? यदि सभी बैंक राजभाषा के कानूनों का उल्लंघन करते हों अथवा अनेक नियमों का पालन ना करते हों तो किसी भी बैंक को कोई भी ईनाम नहीं दिया जाना चाहिए। कानून तोड़नेवाले को ईनाम देना तो उन्हें कानून तोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने जैसा है। सभी सरकारी बैंकों में राजभाषा अनुपालन के लिए सघन औचक निरीक्षण करवाया जाए और उल्लंघन करने वालों में ईनाम बाँटना बंद करवाया जाए साथ ही सख्त निर्देश जारी किए जाएँ कि आम ग्राहकों से जुड़ी प्रत्येक सेवा में हिन्दी को प्राथमिकता के आधार पर अगले छह महीनों में बिना किसी हीले-हवाले के शामिल किया जाए और उसकी रिपोर्ट वित्तीय सेवाएँ विभाग एवं भारतीय रिज़र्व बैंक को सौंपी जाए.
     अनुरोध है कि बैंकों को उपरोक्त मामले में पत्र लिखकर कड़े आदेश दिए जाएं और राजभाषा कानूनों का पालन करवाया जाए । जिन अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है उन्हें सोते से जगाया जाए या हटाया जाए। इस पत्र को संचार जगत में भी भेजा जा रहा है अतः हैम सभी कृत कार्रवाई की सूचना व परिणामों की अपेक्षा करते हैं ।

भवदीय
प्रवीण जैन 

प्रति: secy-fs@nic.in, "Gupta, Ramakant" <ramakantgupta@rbi.org.in>, rrsingh@rbi.org.insecy-ol@nic.in, "Joint Secy, OL" <jsol@nic.in>, jatchaudhary1@yahoo.comcmd@allahabadbank.co.incmd@bankofbaroda.comcmd@bankofindia.co.in,cmdscrt@canarabank.co.inchairman@centralbank.co.incmd@corpbank.co.incmd@denabank.co.incmd@idbi.co.in,cmdsec@indian-bank.comcmd@iobnet.co.incmd@obc.co.inpsbcmd@vsnl.comsbhmd@sbhyd.co.in,cmdsectt@syndicatebank.co.incmd@unitedbank.co.incmd@vijayabank.co.inchairman@sbi.co.in, "डा. निर्मल खत्री," <nirmalkhatri1@gmail.com>, "डा. रघुवंश प्रसाद सिंह," <singhrp@sansad.nic.in>, "निर्मल खत्री, संरास" <nirmalkhatri@sansad.nic.in>, श्री प्रदीप टम्‍टा <tamtapradeep@gmail.com>, "श्री राजेन्‍द्र अग्रवाल, Rajendra Agarwal" <rajendra.agrawal51@gmail.com>, श्री रमेश बैश Ramesh Bais <rameshbais47@gmail.com>, हुकुम नारायण देव <hukum@sansad.nic.in>

अगला सीईओ कौन होगा?

एक बूढ़े हो रहे सफल व्यवसायी ने सोचा कि यही सही समय है जब मैं अपना उत्तराधिकारी चुन लूँ जो उसकी कंपनी को संभल सके.

उसने अपने बच्चों या फिर कंपनी के वर्तमान निदेशकों को चुनने के बजाय कुछ अलग करने का मन बनाया.  उसने कम्पनी के सभी युवा अधिकारियों को एक साथ बोर्ड रूम में बुलाया. उसने कहा 'अब समय आ गया है जब मैं अपनी कुर्सी छोड़ दूं और कंपनी के अगले  मुख्य कार्याधिकारी का चुनाव करूँ. मैंने तय किया है कि अगला सीईओ आप में से ही कोई होगा.'
सभी युवा अधिकारी विस्मय में थे पर वो बोलता रहा. 

आज मैं आप में से प्रत्येक को बहुत ही विशेष बीज देने वाला हूँ मैं चाहता हूँ कि आप इस बीज को बोएँ और उसे पानी दें और एक वर्ष के पश्चात् यहाँ आकार मुझसे मिलें और बताएं कि मेरे दिए बीज से आपने क्या पैदा किया है?  उसके बाद मैं  आपके द्वारा उगाए हुए पौधों का निरीक्षण करूँगा और जिसे चुनूंगा वह इस कम्पनी का अगला सीईओ होगा.

उस दिन वहां पर एक व्यक्ति, जिसका नाम मधु था, भी उपस्थित था. उसे भी एक बीज प्राप्त हुआ. वह घर पहुंचा और अपनी प्रिय पत्नी को आश्चर्य से भरी यह सारी कहानी सुना दी. उसकी पत्नी ने उसके लिए एक गमला, मिटटी और खाद की व्यवस्था कर दी और मधु ने उसमें  अपना बीज डाल दिया. प्रतिदिन वो उसे पानी देने लगा और देखता कि गमले से कोई पौधा उग रहा है या नहीं. 

लगभग तीन सप्ताह के बाद दफ्तर में अन्य अधिकारी अपने बीज और उन से उग रहे पौधों की चर्चा करने लगे.

मधु अपने गमले को  जांचता रहता  पर कुछ भी पैदा नहीं हुआ.  ऐसे ही दिन बीतते गए और कुछ भी नहीं हुआ.

अब तक तो बाकी सब अपने हर दिन बढ़ रहे पौधों की बातें बड़े चाव ले ले कर करते, पर मधु के पास न तो कोई पौधा था न उसकी कोई बात, उसे लगता कि वो असफल हो गया है, उसकी किस्मत ही फूटी है..

इस तरह ६ महीने और बीत गए. मधु के गमले में कुछ भी नहीं उगा. वह परेशान था उसे लगता जैसे उसने ही बीज को मार डाला हो. हर किसी के पास बड़े- बड़े पौधे थे जो वृक्ष बनने की ओर अग्रसर थे, पर उसके पास तो सिर्फ खली गमला था, जिसमे वो इस आशा के साथ हर दिन पानी डालता रहता था कि शायद कभी उसमें से भी कोई अंकुर फूट पड़ेगा. और इस तरह पूरा एक वर्ष व्यतीत हो गया. 
 
और सभी अधिकारी अपने अपने पौधे  निरीक्षण के लिए कम्पनी के मालिक के पास लेकर आ गए.

दूसरी ओर, मधु अपनी पत्नी को कह रहा था कि वह खाली गमला लेकर दफ्तर नहीं जाएगा. पर उसकी पत्नी इस बात पर अड़ गयी कि उसे ईमानदारी से अपनी बात रखनी चाहिए कि उसके बीज का क्या हुआ. वह काफी डर गया था कि  उसे अपने जीवन में पहली बार इतनी बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी पर वह जानता था  कि उसकी पत्नी सही है.

वह अपना खाली गमला लेकर कम्पनी के बोर्ड रूम पहुँच गया.

जब मधु वहां पहुंचा तो वहां का नज़ारा देख कर चकरा गयाअन्य अधिकारियों के लाये हुए अलग - अलग किस्म के सुन्दर सुन्दर पौधे देख कर वह आश्चर्यचकित हो गया. मधु ने अपना खाली गमला ज़मीन पे रख दिया, कुछ लोग उस पर जोर से हँस पड़े तो कुछ ने खेद व्यक्त किया !

कम्पनी का मालिक  वहां आ पहुंचा और उसने अपनी युवा टीम का अभिवादन किया.  मधु ने अपने आप को छुपाने की भरसक कोशिश की.

सीईओ ने बोलना आरम्भ किया ' आप सब ने कितने शानदार पौधे और फूल उगाये हैं. आज आप में से किसी एक को अगले सीईओ के रूप में नियुक्त किया जायेगा! 

अचानक से सीईओ ने देखा कि मधु कमरे में अपने खाली गमले के साथ छुपने की कोशिश कर रहा है. उसने वित्तीय निदेशक को कहा कि वह उसे सबके सामने लेकर आये.

मधु बुरी तरह घबरा गया!

उसने सोचा ' सीईओ जानते हैं कि मैं नाकामयाब रहा हूँ! शायद वो मुझे नौकरी से ही निकल देंगे! 

जैसे ही मधु सामने आया सीईओ ने उससे पूछा कि वह सबको बताये कि उसके बीज के साथ क्या हुआ- मधु ने उसको पूरी कहानी कह सुनायी.

सीईओ ने मधु को छोड़कर सबको बैठ जाने को कहा. उसने मधु की ओर देखा और अपनी युवा टीम को घोषणा करते हुए कहा  कि  ‘ मिलिए अपने अगले सीईओ से, उनका नाम है 'मधु'.’

मधु को बिल्कुल भी विश्वास  नहीं हुआ. मधु तो अपने बीज को उगा भी नहीं पाया था.

इसे नया सीईओ कैसे बनाया जा सकता है? सब बोल पड़े.

तब कम्पनी के मालिक ने कहा, ' आज से ठीक एक वर्ष पहले मैंने आप में से प्रत्येक को इस कक्ष में एक-एक बीज दिया था. मैंने सबको वह बीज अपने-२ घर ले जा कर उसे लगाने और आज के दिन वापस लाने को भी कहा था. 
क्या आपको पाता है ?
मैंने आप सब को उबाले हुए बीज दिए थे, वे सब बेकार हो चुके बीज थे - उनमें से पौधों का अंकुरण असंभव था.   मधु को छोड़कर आप सब मेरे पास इतने शानदार पेड़- पौधे लेकर आये. घोर आश्चर्य !
जब आपको पता चला कि जो बीज मैंने आपको दिया था, उसमें अंकुर नहीं फूटेगा तो आप सबने अपनी चालाकी दिखाई और  अपने बीज ही बदल लिए.  केवल मधु  ही इतना साहसी और ईमानदार था कि वह खाली गमला लेकर आ गया, जिसमें मेरा दिया हुआ बीज डाला गया था.  इसीलिए वही एक व्यक्ति है जो नया सीईओ बनाने के योग्य है. 
 कहानी का सार:
Ø यदि आप ईमानदारी के बीज बोएँगे तो विश्वास की फसल पैदा होगी
Ø यदि आप अच्छाई के बीज बोएँगे तो लोग आपके दोस्त बनते जाएँगे 
Ø यदि आप विनम्रता  के बीज डालेंगे तो आप महान बनेंगे
Ø यदि आप दृढ़ता के बीज बोएँगे तो संतोष  की फसल पैदा होगी
Ø यदि आप मेहनत  के बीज बोएँगे तो सफलता विश्वास की फसल पैदा होगी
Ø यदि आप क्षमा  के बीज बोएँगे तो सामंजस्य की फसल पैदा होगी

तो ध्यान रखें आप जैसे बीज बोएँगे वैसी ही फसल आएगी.
एक कहावत भी है ' जो बीज बबूल के बोए वो आम कहाँ से पाए'


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