प्रति,
निदेशक (शिकायत)
राजभाषा विभाग
गृह मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली
विषय: भारत सरकार की तेल विपणन कंपनियों द्वारा हिन्दी का प्रयोग बंद करने और अंग्रेजी के तेजी से बढ़ते उपयोग की शिकायत
महोदय,
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कम्पनियाँ हैं :
- भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लि,
- हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लि,
- इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन लि
बड़े दुखी मन से कहना पड़ रहा है कि भारत सरकार की तेल विपणन कंपनियों द्वारा हिन्दी का प्रयोग लगभग बंद कर दिया गया, आम ग्राहक जैसे ही किसी पेट्रोल पम्प अथवा गैस एजेंसी के विक्रय केंद्र पर जाता है वहां सारी जानकारी, बिल-देयक-बीजक, भुगतान रसीद पर मुद्रण, पम्प परिसर में समस्त निर्देश-दिशासूचक आदि केवल अंग्रेजी में ही लिखे दिखाई देते हैं यहाँ तक कि पेट्रोल पम्प पर संबंधित कंपनी का नाम उसका प्रतीक चिह्न, एजेंसी का नाम, पेट्रोल-डीजल मापने व वाहनों में ईंधन डालने वाली सभी मशीनों पर भी सभी कुछ अंग्रेजी में ही लिखा-छापा जाता है. "पेट्रोल" अथवा "डीज़ल" शब्द भी केवल अंग्रेजी में लिखा जाता है.
सभी कंपनियों ने पेट्रोल पम्पों की भवन-संरचना को इस प्रकार आकल्पित करवाया है कि उसमें हिन्दी को उपयोग करने का निर्देश नहीं, सब कुछ केवल अंग्रेजी में ही होता है. ऐसा पूरे देश में किया जा रहा है.
इन मशीनों पर कुछ वर्षों पहले तक 'वाहन में ईंधन डलवाने से पहले शून्य (०) की जाँच कर लें' लिखा होता था. अब तो आम ग्राहक के लिए अनिवार्य यह निर्देश भी केवल अंग्रेजी में ही छापा जाता है. पेट्रोलियम उत्पादों का मूल्य और भंडार की जानकारी आदि भी केवल अंग्रेजी में ही प्रदर्शित की जा रही है.
इन कंपनियों द्वारा अग्राजा (अपने ग्राहक को जानो अथवा केवाईसी) के जो भी फॉर्म/प्रारूप छपवाए गए वे सभी केवल अंग्रेजी में बांटे जा रहे हैं इन सभी फार्मों में हिन्दी अथवा अन्य किसी भारतीय भाषा को स्थान नहीं दिया गया. (अनुलग्नक देखें)
इन सभी कंपनियों ने अपने उत्पादों के प्रतीक चिह्न / पहचान के चिह्न (सिम्बल/लोगो) भी केवल अंग्रेजी में बनाये हुए हैं, उनमें हिन्दी का लेशमात्र भी उपयोग नहीं किया गया.
इन कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के लिए निर्धारित पोशाकों पर भी केवल अंग्रेजी का ही इस्तेमाल किया है, कंपनी का नाम, उत्पाद का नाम आदि सबकुछ अंग्रेजी में उकेरा/कढ़ाई किया गया है.
इन कंपनियों द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले वाहनों/अनुबंधित वाहनों अथवा अधिकृत एजेंसी/ अधिकृत व्यापारी द्वारा उपयोग में आने वाले वाहनों पर भी सबकुछ अंग्रेजी में ही लिखा जाता है.
इन सभी कम्पनियों की हिन्दी वेबसाइटें भी उपेक्षा की शिकार हैं. सभी कंपनियों ने अपनी मुख्य वेबसाइट तो हिन्दी में उपलब्ध करवाई हैं पर अन्य सहायक वेबसाइटें केवल अंग्रेजी में ही बनायी हैं. इन सभी वेबसाइटों पर किसी भी प्रकार के ऑनलाइन फॉर्म (आवेदन-शिकायत अथवा प्रतिक्रिया आदि) हिन्दी में उपलब्ध नहीं है साथ उन्हें अंग्रेजी में भरा जाना अनिवार्य है, कोई भी ग्राहक यूनिकोड हिन्दी में ऐसे फॉर्म नहीं भर सकता. कम्पनी द्वारा अपने ग्राहकों को भेजे जाने वाले सभी एसएमएस भी केवल अंग्रेजी में भेजे जाते हैं. ऑनलाइन गैस बुकिंग की व्यवस्था भी केवल अंग्रेजी में है. फोन पर गैस बुकिंग के लिए आईवीआर सुविधा में हिन्दी का विकल्प अंग्रेजी के बाद सुनाई देता है उसमें भी हिन्दी के नाम पर हिंग्रेजी उपयोग की जा रही है. यानी जो ग्राहक अंग्रेजी नहीं जानता है कम्पनी की उसे कोई चिंता नहीं है.
इन कंपनियों की हिन्दी वेबसाइट पर भी सभी दस्तावेज एवं प्रारूप (फॉर्म) पीडीऍफ़ रूप में अंग्रेजी में डाले गए हैं परंतु उन पर हिन्दी के एक शब्द के भी दर्शन नहीं होते. कम से कम ऐसे फॉर्म अथवा दस्तावेज अनिवार्य रूप से 'द्विभाषी' रूप में डाले जाने चाहिए. हिन्दी वेबसाइट देखने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी में फॉर्म अथवा दस्तावेज किस काम का? आमजनता और ग्राहकों के साथ यह अन्याय क्यों? जब १००% वेबसाइट हिन्दी में बनाने का नियम है तो यह उस नियम का उल्लंघन भी है.
कम्पनियों की वार्षिक रिपोर्टें भी केवल अंग्रेजी में तैयार की जाती हैं, क्योंकि कदाचित इनके निदेशक मंडल के सदस्यों की बैठकों की कार्यवाही केवल अंग्रेजी में होती है और इनका मानना है कि कंपनी के शेयरों में निवेश करने वाले सभी निवेशक-शेयरधारक अंग्रेजी के ज्ञाता हैं फिर क्यों हिन्दी की मगजमारी करें? सेबी ने भी तो ऐसा कोई नियम नहीं बनाया कि शेयरधारकों को भेजी जाने वाली रिपोर्टें/पत्राचार आम निवेशक की भाषा में अर्थात हिन्दी में होने चाहिए.
हिन्दी वेबसाइटों की सम्पूर्ण टैगिंग अंग्रेजी में होती है इसलिए आप गूगल अथवा इंटरनेट पर कंपनी की हिन्दी वेबसाइट को नहीं ढूंढ सकते. हिन्दी वेबसाइटों की टैगिंग हिन्दी में होने लगे तो हिन्दी वेबसाइटों की दृश्यता इंटरनेट पर आपोआप बढ़ जाएगी. फ़िलहाल तो आपको कंपनी के अंग्रेजी मुखपृष्ठ पर आकर 'हिन्दी' विकल्प चुनना होगा. १९९२ के उस नियम का भी मखौल उड़ाया जा रहा है जिसमें हिन्दी का प्रयोग अंग्रेजी से आगे और पहले करने का अनिवार्य निदेश है. अंग्रेजी वेबसाइट का पहले खुलना इसी नियम का खुला उल्लंघन है. हिन्दी राजभाषा है और उसे ही पीछे रखा जाए ये कहाँ का तुक है?
इन कंपनियों से पूछा जाना चाहिए कि यदि आपको राजभाषा के पालन की कोई चिंता नहीं है तो कम से कम देश के ९०% ग्राहकों की चिंता कर लो जो अंग्रेजी नहीं जानते हैं, ग्राहकों को तो उनकी अपनी भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए, ग्राहक सेवा का क्या मतलब?
इन सभी कंपनियों को तुरंत कड़े निर्देश जारी किए जाएँ और पिछले ५ वर्षों में राजभाषा अनुपालन की जाँच करवाई जाए एवं अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए. (अनुलग्नक अवश्य देखें )
राजभाषा के उक्त सभी उल्लंघनों को अविलम्ब सुधारने के लिए कहा जाए.
आपके द्वारा तुरंत सकारात्मक कार्यवाही अपेक्षा है.