अनुवाद

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

एनआईसी को नहीं जनभाषा से कोई सरोकार

प्रति,
निदेशक (शिकायत)
राजभाषा विभाग
गृह मंत्रालय, भारत सरकार 
नई दिल्ली 

विषय: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (रासूविके) द्वारा राजभाषा अधिनियम का निरंतर उल्लंघन,उपेक्षा और अंग्रेजी थोपने/अंग्रेजी को बढ़ावा देने की शिकायत 

महोदय,

भारत सरकार के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्यरत राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र जिसका काम/कर्तव्य अथवा सशुल्क सेवा कार्य भारत सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों  के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों/आयोगों/कंपनियों/सार्वजनिक बैंकों/निकायों/शैक्षणिक संस्थानों को सूचना प्रौद्योगिकी उपलब्ध करवाना हैं, उनकी वेबसाइटें, मोबाइल अनुप्रयोग, एसएमएस सेवा, इंटरनेट विज्ञापन, ऑनलाइन अभियान आदि के निर्माण, प्रचार, प्रबंधन एवं अनुरक्षण तक विस्तृत है. रासूविके ही भारत सरकार की सभी वेबसाइटों को बनाता/विकसित करता है और उनकी देखरेख/ अनुरक्षण करता है, वेबसाइटों को प्रस्तुत (होस्ट) करता है.

परन्तु बड़े दुखी मन से कहना पड़ रहा है कि रासूविके सूचना प्रौद्योगिकी (सूप्रौ) के नाम पर अंग्रेजी को बढ़ावा दे रहा है, जितनी भी हिन्दी वेबसाइटें रासूविके द्वारा बनायी जा रही हैं, उनमें से अधिकतर वेबसाइटों पर ऑनलाइन प्ररूप, ऑनलाइन सदस्यता प्ररूप, ऑनलाइन शिकायत प्ररूप, ऑनलाइन दान,  ऑनलाइन प्रतिक्रिया प्ररूप आदि की सुविधा हिन्दी में ना होकर केवल अंग्रेजी में उपलब्ध करवाई जाती है. रासूविके का काम है कि ऐसी सभी सुविधाएँ वह १००% हिन्दी में उपलब्ध करवाए, पर हो इसके विपरीत रहा है . आम नागरिक को ऐसे सभी ऑनलाइन फॉर्म अंग्रेजी में उपलब्ध करवाए जाते हैं. ऐसा लगता है कि हिन्दी वेबसाइट तैयार करने वाले रासूविके के कार्मिक हिन्दी वेबसाइटों पर सभी सेवाएँ/सुविधाएँ/विकल्प आदि हिन्दी में देने के इच्छुक नहीं रहते इसलिए हिन्दी वेबसाइटों पर भी नागरिकों को अंग्रेजी झेलनी पड़ती है.

इसी प्रकार हिन्दी वेबसाइटों की टैगिंग भी अंग्रेजी में की जा रही है जिसके कारण गूगल आदि पर हिन्दी में खोज करने पर भी  विभिन्न मंत्रालयों/विभागों/आयोगों/कंपनियों/सार्वजनिक बैंकों/निकायों/शैक्षणिक संस्थानों आदि की वेबसाइटें नहीं मिल पाती और अंग्रेजी में नाम लिखकर खोजना पड़ता है. उदहारण के रूप में  प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट के शीर्षक तो 'हिन्दी' में लिखे गए हैं पर टैगिंग अंग्रेजी में की गई है सो हिन्दी शीर्षक गूगल में दिखाई भी नहीं देते और कोई उन्हें खोज भी नहीं सकता. 

रासूविके के अधीन आने वाली निम्नलिखित वेबसाइटें केवल अंग्रेजी में बनाई गई हैं, और कई वर्षों से ऐसा चल रहा है, द्विभाषी वेबसाइट बनाने के नियम-निर्देश की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है. कुछ वेबसाइटों में हिन्दी जा विकल्प तो है पर कोई भी वेबसाइट द्विभाषी नहीं  है. 

रासूविके की केवल अंग्रेजी वेबसाइटें  :

१. रासूविके की मुख्य वेबसाइट केवल अंग्रेजी में बनाई गई है  www.nic.in 
2. भारत सरकार की निर्देशिका भी केवल अंग्रेजी में बनाई गई है http://goidirectory.gov.in/index.php
३. प्रधानमंत्री राहत कोष एवं राष्ट्रीय रक्षा निधि के लिए ऑनलाइन दान की वेबसाइट केवल अंग्रेजी में  https://pmnrf.gov.in/
४. एनआईसी ईमेल (NIC) की वेबसाइट भी केवल अंग्रेजी में https://mail.nic.in/mail/mauth
५. ऑनलाइन निविदा वेबसाइट http://tenders.gov.in/
७. ऑनलाइन परीक्षा परिणामों की वेबसाइट http://results.gov.in/
८. भारत सरकार का डेटा पोर्टल http://data.gov.in/
९. खुले शासन हेतु प्लेटफार्म (भारत -अमरीका संयुक्त उपक्रम )की वेबसाइट http://ogpl.gov.in/about_us
१०. उत्तराखंड राहत एवं बचाव अभियान हेतु पोर्टल http://dms.uk.gov.in/
११. केन्द्रीय सार्वजनिक सरकारी खरीद वेबसाइट http://eprocure.gov.in/cppp/
१२. रासूविके में भर्ती हेतु वेबसाइट http://recruitment.nic.in/
१३. केंद्र सरकार की वेबसाइटों हेतु दिशानिर्देश का पोर्टल http://web.guidelines.gov.in/
१४. रासूविके द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों/संगोष्ठियों/ सम्मेलनों/बैठकों आदि  के बैनर, अतिथियों की मेज नाम -पट्टिकाएँ भी केवल अंग्रेजी में तैयार की जाती हैं इससे अनुमान है कि आमंत्रण पत्र, बिल्ले, अन्य आयोजन सम्बन्धी साहित्य भी केवल अंग्रेजी में ही तैयार किया जाता होगा, मुझे देखने हेतु सुलभ नहीं है. ऐसे सभी सम्मलेन आदि में भाग लेने वालों द्वारा भरे जाने वाले भौतिक-पीडीएफ फॉर्म एवं ऑनलाइन फॉर्म भी केवल अंग्रेजी में ही तैयार किये जाते हैं. ऐसे सम्मेलनों के लिए भी वेबसाइट अंग्रेजी में शुरू की जाती है.
१५. रासूविके का प्रतीक (लोगो) भी केवल अंग्रेजी में NIC बनाया गया है.
१६. आम जनता की कल्याणकारी योजनाओं का पोर्टल http://dial.gov.in/
१७. भारत का राष्ट्रीय पोर्टल पर हिन्दी में कम सामग्री एवं हिन्दी वेबसाइट का अंग्रेजी के बाद खुलना, हिन्दी वेबसाइट पर अन्य वेबसाइट के लिंक केवल अंग्रेजी वेबसाइटों के दिए जाते हैं नाकि हिन्दी वेबसाइटों के.
१९. रासूविके द्वारा हिन्दी भाषी राज्यों में भी ज़्यादातर वेबसाइटें केवल अंग्रेजी में ही बनाई जाती हैं, जो हिन्दी वेबसाइट बनाई जाती है उसमें ज्यादातर विकल्प अंग्रेजी में ही दिए जाते हैं. पर रासूविके द्विभाषी वेबसाइट बनाने में कोई रूचि नहीं ले रहा, हिन्दी-अंग्रेजी की अलग-२ वेबसाइट बनाई जा रही है.
२०. स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, राष्ट्रपति-प्रम के अभिभाषणों  जैसे समारोहों के वेबकास्ट हेतु बनाए गए पोर्टल भी केवल अंग्रेजी में बनाए गए हैं. 
२१.  भारत सरकार की वेबसाइट के मूल्यांकन हेतु बनाया गया पोर्टल http://www.webanalytics.gov.in/
२१. आर टी आई ऑनलाइन पोर्टल http://rtionline.gov.in/
२२. गैसस (गैरसरकारी संगठन) भागीदारी प्रणाली http://ngo.india.gov.in/auth/default.php 
२३. खुले शैक्षिक संसाधन के लिए डिजिटल भंडार http://nroer.in/home/
२४. भारत विकास प्रवेशद्वार का पहचान चिह्न केवल अंग्रेजी में बनाया गया  है.
२६. राष्ट्रीय ई-अभिशासन योजना की सम्पूर्ण वेबसाइट अंग्रेजी में है केवल मुखपृष्ठ हिन्दी में बनाया गया है. इसका  प्रतीकचिह्न EG अंग्रेजी में बनाया गया है और "गवर्नेंस" अंग्रेजी शब्द का प्रयोग किया गया है जबकि हिन्दी में इसके समकक्ष एक अच्छा शब्द है 'अभिशासन'. 
२७. जहाँ जहाँ संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के द्वारा सामाजिक मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब आदि) उपयोग हो रहा है उसमें अंग्रेजी ही है हिन्दी का तो नामोनिशान भी नहीं है.


यदि कानून में संशोधन करके रासूविके के लिए अनिवार्य कर दिया जाये कि वह जो भी सरकारी वेबसाइट बनाएगा उसे तब तक लोकार्पित नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके साथ उसका हिन्दी संस्करण तैयार नहीं कर लिया जाता. इसी तरह कोई भी ऑनलाइन फॉर्म/सेवा/मोबाइल एप्लीकेशन  तब तक सरकारी वेबसाइट पर नहीं शुरू की जाएगी जबतक कि वह १००% द्विभाषी रूप में तैयार नहीं हो. ऐसा नियम बनने से राजभाषा अधिनियम के उल्लंघन को स्त्रोत पर ही रोक दिया जाएगा और यह राजभाषा विभाग के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी.

कहने का अर्थ यही कि हिन्दी के नाम पर सिर्फ दिखावा चल रहा है. आपसे शीघ्र और सकारात्मक तथा कारगर कार्यवाही की अपेक्षा है.


शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

पत्र सूचना कार्यालय की अक्ल आई ठिकाने पर, और आपकी?

देश का संविधान चीख-२ कहता है कि हिन्दी भारत की राजभाषा है और कामकाज हिन्दी में होना चाहिए पर यह बात भारत सरकार के विभिन्न विभागों और मंत्रालयों में बैठे अधिकारियों को समझ नहीं आती और वे राजभाषा अधिनियम का मखौल उड़ा रहे हैं, यही अधिकारी हिन्दी के नाम पर पिछले ६६ वर्षों से खानापूर्ति करते आ रहे हैं और अंग्रेजी का वर्चस्व जस का तस है.

नवी मुंबई में निवासरत एक युवा हिन्दीप्रेमी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत 'पत्र सूचना कार्यालय' [पसूका] में राजभाषा की घोर उपेक्षा का प्रकरण अपने हाथ लिया, ६ फरवरी २०१३ से लगातार उन्होंने पत्र सूचना कार्यालय के अधिकारियों को ईमेल भेजना आरम्भ किया, कई अनुसमारक भेजे, पर उत्तर ना आया. 

राजभाषा अधिनियम के उल्लंघन की शिकायत राजभाषा विभाग को भेजी गई. पर बात आगे नहीं बढ़ी. शिकायत पर राजभाषा विभाग द्वारा कोई कार्यवाही ना होने से हताश होकर अंतिम हथियार के रूप में शिकायतकर्ता ने 'सूचना का अधिकार अधिनियम' का सहारा लिया और एक आवेदन लगाया तब पसूका से राजभाषा के अनुपालन से जुड़े ढेरों प्रश्न पूछ डाले जिनपर पसूका के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारियों को अपनी गलती का एहसास हुआ, कार्यालय को १९९२ के उस निर्देश का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि जहाँ-२ हिन्दी अंग्रेजी का एकसाथ इस्तेमाल होगा, वहाँ -२ हिन्दी को अंग्रेजी के ऊपर प्राथमिकता दी जाएगी क्योंकि राजभाषा हिन्दी है ना कि अंग्रेजी. 

पसूका के अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदन के कई प्रश्नों के ठीक-२ उत्तर नहीं दिए, तब आवेदक ने प्रथम अपील लगा दी.

अपील के उत्तर में पसूका ने स्पष्ट किया कि वे पसूका की वेबसाइट की सभी सेवाओं में हिन्दी को प्राथमिकता देंगे एवं हिन्दी की सम्पूर्ण सामग्री को अंग्रेजी की सामग्री के पहले/ऊपर/आगे प्रकाशित किया जाएगा.

और ५ सितम्बर २०१३ का दिन 'इतिहास' बन गया है. आज से पसूका की वेबसाइट http://pib.nic.in/newsite/mainpage.aspx पर भारत की राजभाषा को उसका उचित स्थान मिल गया, वेबसाइट पर कई सेवाओं जो पहले केवल अंग्रेजी में थी, अब हिन्दी में उपलब्ध हैं. हिन्दी की विज्ञप्तियों को अंग्रेजी से ऊपर कर दिया गया है, सभी टैब द्विभाषी बना दिए गए हैं. पहले हिन्दी में उन्नत खोज का विकल्प नहीं था, उसे आरम्भ कर दिया गया है, इसी तरह दस्तावेज, आलेख आदि को अंग्रेजी सामग्री से नीचे प्रकाशित किया जाता था, उसे भी हिन्दी में ऊपर लगा दिया गया है.

शीघ्र ही फोटो का विवरण भी द्विभाषी रूप में उपलब्ध होगा आज तक उसे केवल अंग्रेजी में डाला जा रहा है. पसूका के ट्विटर एवं यू-ट्यूब पर भी नवीन जानकारी द्विभाषी रूप में शुरू की जा रही है.