यह पुस्तक ४०-४५ वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी और अंतिम संस्करण वर्ष १९९३ में छपा था। आज पुनः देश में आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की पावन प्रेरणा से डॉ. वैदिकजी ने इस पुस्तक को नए सिरे से तैयार किया है और प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
विशेष बात यह है कि पुस्तक के लिए लेखक कोई लेखक वृत्ति नहीं लेंगे और साथ ही प्रकाशन कोई लाभ नहीं लेंगे। पुस्तक का मूल्य बहुत अल्प रखा गया है, मात्र 30 रुपये। उत्कृष्ट गुणवत्ता के कागज़ पर सुंदर साजसज्जा के साथ पुस्तक तैयार हुई है। भाषा शैली एकदम सरल है और अंग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ने के लिए तथ्य और सत्य को उजागर किया गया है। अंग्रेजी के वर्चस्व ने भारत को स्वतंत्रता के बाद भी परतंत्र बनाकर रखा है. देश के तीन-चार प्रश अंग्रेजीदाँ लोगों ने छियानवे प्रतिशत लोगों का हक़ मारा है। 'स्वभाषा अभियान' इस अघोषित शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा है।
क्या आप और हम इस पावन और पुनीत कार्य में अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार अपना योगदान देने को तैयार हैं ?
विशेष बात यह है कि पुस्तक के लिए लेखक कोई लेखक वृत्ति नहीं लेंगे और साथ ही प्रकाशन कोई लाभ नहीं लेंगे। पुस्तक का मूल्य बहुत अल्प रखा गया है, मात्र 30 रुपये। उत्कृष्ट गुणवत्ता के कागज़ पर सुंदर साजसज्जा के साथ पुस्तक तैयार हुई है। भाषा शैली एकदम सरल है और अंग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ने के लिए तथ्य और सत्य को उजागर किया गया है। अंग्रेजी के वर्चस्व ने भारत को स्वतंत्रता के बाद भी परतंत्र बनाकर रखा है. देश के तीन-चार प्रश अंग्रेजीदाँ लोगों ने छियानवे प्रतिशत लोगों का हक़ मारा है। 'स्वभाषा अभियान' इस अघोषित शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा है।
स्वयं पढ़ना ना भूलें तथा औरों को पढ़ाना ना भूलें। अपने सोए हुए भारतीयता के स्वाभिमान जगाना चाहते हैं तो आज ही मँगवाएँ।
भारत को विश्वशक्ति बनाना है और देश का खोया हुआ गौरव लौटाना है तो आइए 'स्वभाषा के इस अभियान में शामिल हो जाइए। माँ भारती पुकारती जागो देश के लाल!
आप फ़ोन न. - (0124) 4057295 पर भी संपर्क कर सकते हैं।
आप swabhashalao@gmail.com पर मेल करके भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।