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शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान बौद्धिक क्षमता का निर्धारण नहीं करता: बार काउंसिल

अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान बौद्धिक क्षमता का निर्धारण नहीं करता: भारतीय विधिज्ञ परिषद ने संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा भारतीय भाषाओं में आयोजित करने के विचार का समर्थन किया

मुंबई, 3 जुलाई 2020.




भारतीय विधिज्ञ परिषद (बार काउंसिल) ने अंग्रेजी के अलावाभारतीय भाषाओं में राष्ट्रीय विधि विद्यालयों में प्रवेश के लिए संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा (संविप्र परीक्षा या क्लैट) आयोजित करने की व्यावहारिकता का पता लगाने के लिए एक समिति का गठन किया है। भारतीय विधिज्ञ परिषद ने यह कदम दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा प्रथम कौशिकनवीन कौशिक और अरुण भारद्वाज द्वारा भारतीय भाषाओं में संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की माँग पर विचार करने के निर्देश के बाद उठाया है।

याचिकाकर्ताओं को संबोधित एक पत्र मेंभारतीय विधिज्ञ परिषद ने भारतीय भाषाओं में संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए अपनी सहमति व्यक्त की है और कहा कि "अंग्रेजी भाषा का ज्ञान या अज्ञान बुद्धिक्षमताकौशल अथवा समर्पण आदि का निर्धारण नहीं करता है इसलिएइस परीक्षा को भारतीय भाषाओं में भी आयोजित किया जाना चाहिए।"

वास्तव में बार काउंसिल अंग्रेजी सहित 11 भाषाओं में अखिल भारतीय विधिज्ञ परीक्षा आयोजित करती है। भारतीय विधिज्ञ परिषद ने एक 7 सदस्यीय समिति का गठन किया है जिसमें विधि विद्यालयों के प्रतिनिधि और अन्य हितधारकों को शामिल किया गया है। इस प्रकार देश में क़ानूनी शिक्षा के नियामक के रूप में अपनी भूमिका को स्वीकार करते हुएभारतीय विधिज्ञ परिषद ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगी कि कोई भी योग्य उम्मीदवार संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित होने से वंचित न रहे।

परिषद ने विधि पेशे और विधि शिक्षा के नियामक होने के नाते आश्वासन दिया है कि "उसका सर्वप्रथम मत है कि किसी भी योग्य उम्मीदवार को अंग्रेजी के अज्ञान के कारण संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा देने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।" यह मुद्दा एक बहुआयामी हैजिसमें न केवल यह मुद्दा है कि परीक्षा कितनी भारतीय भाषाओं में आयोजित की जाएबल्कि विधि विद्यालयों में पाठ्यक्रम की संरचना के बारे में भी विचार किया जाए।

परिषद ने पत्र में लिखा है "एक अन्य पहलू यह है कि देश भर में विधि विश्वविद्यालयों में कितनी भारतीय भाषाओं में सेमिस्टर की परीक्षाएँ आयोजित की जा रही हैं। संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद अगला अनुरोध हो सकता है कि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में भी भारतीय भाषाओं में सेमिस्टर परीक्षाएँ आयोजित की जाएँ। वर्तमान में कई विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी और राज्य की संबंधित क्षेत्रीय भाषा में परीक्षा आयोजित की जाती है। हालांकिराष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों की तुलना अन्य सरकारी संस्थाओं से नहीं की जा सकती है इसलिए इस मुद्दे पर गहन विचार विमर्श आवश्यक है। "  

इसके अलावायह सूचित किया गया है कि परिषद द्वारा गठित समिति केवल उन आवेदकों को समायोजित करने के लिए इस वर्ष की संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा को पुनर्निर्धारित करने की व्यावहारिकता पर भी विचार करेगीजो भारतीय भाषा में परीक्षा देने की इच्छा रखते हैं।

इस मुद्दे के बारे में आगे की योजना शीर्ष अदालत के पास एक शपथ पत्र के माध्यम से रखी जाएगीक्योंकि संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा के संचालन से संबंधित मामला पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। भारतीय विधिज्ञ परिषद ने कहा है कि समिति में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के पूर्व और वर्तमान कुलपतिशिक्षाविद और भारतीय विधिज्ञ परिषद के दो सदस्य शामिल होंगे। इस समिति की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश करेंगे।

गुरुवार, 11 जून 2020

ब्रिटिश शासन में भी न्यायालयों में होता था क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग, अब क्यों नहीं हो सकता ?


·          आशीष राय
जिसके लिए यह न्याय प्रणाली काम करती है, उसे ही न्याय न समझ में आए तो यह तो बहुत बड़ा अन्याय है। वर्तमान परिदृश्य में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस देश की न्याय प्रणाली में न्याय की भाषा ऐसी क्यों नहीं होनी चाहिए कि जो आमजन को समझ में आए?
देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि न्यायालय में 80 प्रतिशत पक्षकार अंग्रेजी नहीं जानते हैं। फिर आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी है जो न्याय प्रणाली को मातृभाषा में नहीं होने देना चाहती। सामान्यतः यह बात अंग्रेजी के समर्थकों द्वारा बार-बार उठाई जाती है कि हिंदी के शब्द बहुत ही कठिन हैं और न्यायालयों में इनके प्रयोग में कठिनाई आती है। गौरतलब है कि ब्रिटिश शासन में भी न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग होता रहा है, कठिनाई पर आंदोलन भी होते रहे हैं। महामना मालवीय जी के प्रयासों से न्यायालयों में हिंदी के प्रयोग की अनुमति गवर्नर मैकडोनेल ने खुद दी थी।  
जब अंग्रेजी भाषा का प्रयोग न्यायालयों में शुरू हुआ था, तो कितने लोगों को अंग्रेजी आती थी? लोगों ने आवश्यकतानुसार इसे सीखा। कालांतर में अंग्रेजी के बढ़ते प्रभुत्व ने हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव और प्रवाह रोकने की कोशिश की। कुछ मुट्ठी भर लोगों ने हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं को कमतर करने का प्रयास शुरू कर दिया। आप प्राय: देखते होंगे कि साइकिल, ट्रेन, टाई इत्यादि की हिंदी एक षड्यंत्र के तहत आपको कितनी कठिन शब्दावली में बताई जाती है। उनके षड्यंत्र का शिकार होकर लोग चटखारे लेकर इन सब चीजों को वायरल भी करते रहते हैं।
कठिन न्यायिक शब्दों की आड़ लेकर सदैव यह लोग बताने का प्रयत्न करते हैं कि वर्तमान में ज्यादातर विधि महाविद्यालयों में अंग्रेजी में पढ़ाई होती है और उनको हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में कार्य करने में कठिनाई होगी। लेकिन वह भूल जाते हैं कि क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षित लोग आज उच्चतम न्यायालय में भी अपनी सेवा दे रहे हैं। शोध बताते हैं कि भाषा का ज्ञान बहुत ही अल्प समय में प्राप्त किया जा सकता है लेकिन अपनी मातृभाषा में हुई शिक्षा आपको विद्वान बनाती है।
सर्वविदित है कि हिंदी के कई शब्दों को ऑक्सफोर्ड शब्दकोष ने भी अपनाया है। हम भी उदार मन से कुछ शब्दों को अपनी भाषा में शामिल तो कर ही सकते हैं। न्यायालयों में भी क्षेत्रीय भाषाओं के कठिन शब्दों को हम आसान शब्दों से परिवर्तित भी कर सकते हैं, इसमें कोई कानूनी अड़चन भी नहीं है परंतु षड्यंत्र के अंतर्गत सदैव इसमें उलझाने का प्रयास किया जाता रहा है। आज की आवश्यकता यही है कि सबको मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि सामान्य शब्दों का भी न्यायिक प्रक्रिया में प्रयोग बढ़े। कठिन शब्दों के प्रयोग की कोई आवश्यकता भी नहीं है। 

अंग्रेजी को लूट की भाषा बनाया गया है
न्यायिक प्रक्रिया अधिवक्ता और न्यायाधीशों के लिए नहीं बल्कि आम जनता के लिए है, ये तो निमित्त मात्र हैं। जिसके लिए यह न्याय प्रणाली काम करती है, उसे ही न्याय न समझ में आए तो यह तो बहुत बड़ा अन्याय है। वर्तमान परिदृश्य में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस देश की न्याय प्रणाली में न्याय की भाषा ऐसी क्यों नहीं होनी चाहिए कि जो आमजन को समझ में आए? कुछ अधिवक्ता साथियों और आमजन का यह भी मानना है कि न्यायिक व्यवस्था में अंग्रेजी को लूट के माध्यम रूप में भी प्रयोग किया जाता है। हिंदी या मातृभाषा का प्रयोग इसलिए भी नहीं किया जा रहा है कि पक्षकार को यह समझ में आ सकता है कि न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता आपस में क्या बातचीत कर रहे हैं। उनको अपनी साख गिरने का भी डर लगा रहता है। डॉक्टर जब दवा लिखता है तो उसकी पर्ची पर लिखी हुई दवा केवल मेडिकल वाला ही क्यों पढ़ पाता है? सामान्य जन क्यों नहीं पढ़ पाता क्योंकि डॉक्टर को डर लगा रहता है कि अगर पढ़ लिया तो अगली बार स्वयं न आकर खुद से दवाई उपयोग करने लगे। इस प्रकार के डर ने भी अंग्रेजी को लूट की भाषा बना रखा है। 
आज सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर भी क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग बहुत ही कम हो रहा है। आखिर क्यों? कौन-सी ऐसी मजबूरी है जो ऐसा करने से रोकती है! जबकि उपभोक्ता कानून में स्पष्ट है कि उपभोक्ता को जानने का अधिकार है कि वह जिन चीजों का उपभोग कर रहा है, उसे पता चल सके कि वह चीज है क्या? फिर न्याय के पक्षकारों, जिन्होंने न्यायालय और अधिवक्ता को फीस दी है, उन्हें यह जानने का कानूनी अधिकार क्यों नहीं है कि उसके मुकदमे में चरणबद्ध क्या-क्या हुआ? आज समय की मांग है कि वर्तमान न्याय प्रणाली में न्याय होता दिखना भी चाहिए। न्यायालय में क्या हो रहा है, निर्णय किस आधार पर हो रहा है, उसके मुकदमे किस आधार पर जीते गए, किस आधार पर वह हारा, पक्षकार को यह जानने का पूरा अधिकार है। यह मौलिक अधिकार भी है।
जब देश स्वतंत्र हो गया, अपना तथाकथित तंत्र स्थापित हो गया, फिर स्व के तंत्र में भी फिरंगी भाषा का प्रयोग बढ़ता रहेगा तो निश्चित रूप से इसको परतंत्रता की ही श्रेणी में ही रखेंगे। अगर देश स्वतंत्र है, स्व-तंत्र अपना है तो स्व-भाषा भी अपनी होनी ही चाहिए। भारतीय भाषा अभियान को कोटिश: साधुवाद कि उसने इस विषय की गंभीरता को समझा और देश के समक्ष इस विषय को लेकर गया। आज भारतीय भाषा अभियान के प्रयासों से हाल ही में हरियाणा राज्य ने अपने राज्य के सभी जिला न्यायालयों में हिंदी के प्रयोग की अनिवार्यता की है। वर्तमान न्याय व्यवस्था को देखते हुए यह भी आवश्यक प्रतीत होता है कि नए भारत की परिकल्पना में न्याय सुधार एक महत्वपूर्ण विषय होना चाहिए। स्वतंत्रता पश्चात तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए न्याय व्यवस्था की उच्चतम इकाई, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी में कार्य शुरू किया गया था लेकिन आज आवश्यकता है कि इसमें बदलाव किया जाए। यथार्थ यही है कि जब देश के उच्च न्यायालयों में और उच्चतम न्यायालय में भारतीय भाषाओं में कार्य होना शुरू होंगे तो विधि महाविद्यालय भी क्षेत्रीय भाषाओं में अध्यापन कार्य को बढ़ाएंगे। अब भाषा को रोजगार से भी जोड़ने की आवश्यकता है और देश की सरकार को इस दिशा में पहल कर निर्णय लेने की आवश्यकता है।
-आशीष राय
(लेखक उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता हैं)

बुधवार, 10 जून 2020

उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के निचले न्यायालयों में हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने के विरुद्ध याचिका की निरस्त


*9 जून 2020*.
उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के निचले न्यायालयों और राज्य के सभी अधिकरणों में कामकाज की आधिकारिक भाषा हिन्दी लागू करने के राज्य सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
हरियाणा में निचले न्यायालयों और अधिकरणों में कामकाज की आधिकारिक भाषा हिन्दी बनाने संबंधी हरियाणा राजभाषा (संशोधन)अधिनियम, 2020 की वैधानिकता को कुछ वकीलों ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
मुख्य न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं से प्रश्न किया कि इस विधान में क्या गलत है क्योंकि लगभग 80 प्रतिशत वादकारी अंग्रेजी नहीं समझते हैं। पीठ ने इस तरह का विधान बनाने को उचित बताते हुए कहा कि हिन्दी को कुछ राज्यों में निचले न्यायालयों में कामकाज की भाषा बनाने में कुछ भी गलत नहीं है। ब्रिटिश राज में भी साक्ष्य दर्ज करने का काम क्षेत्रीय भाषाओं में ही होता था।
याचिकाकर्ता समीर जैन का कहना था कि वह न्यायालय की कार्यवाही हिन्दी या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा में किए जाने के विरुद्ध नहीं हैं, लेकिन चूंकि वह दिल्ली-एनसीआर के हैं, इसलिए हरियाणा के न्यायालयों में वकीलों के लिए हिन्दी में बहस करना कठिन होगा। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भी अपने मुकदमों की बहस हिन्दी में करना कठिन होगा।
इस पर न्यायालय ने कहा कि इस विधान के तहत अंग्रेजी को अलग नहीं किया गया है और न्यायालय की अनुमति से इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय शुरू में इस मसले पर नोटिस जारी करना चाहती थी, लेकिन राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने कहा कि राज्य में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 272 और दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 137 (2) के तहत प्रदत्त अधिकार के अंतर्गत ही यह विधान लागू किया गया है।
उन्होंने कहा कि राज्य को न्यायालय की कार्यवाही में पारदर्शिता लाने और यह वादकारियों की समझ में आने के लिए इस तरह का विधान बनाने का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि इस संशोधन की धारा 3ए में कुछ भी गलत नहीं है और इससे किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं होता है।
मुख्य न्यायमूर्ति ने कहा कि मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में न्यायालय की कार्यवाही हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं में हो रही है। इस पर याचिकाकर्ताओं ने याचिका वापस लेने और राहत के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय जाने की छूट देने का पीठ से अनुरोध किया।
समीर जैन सहित पांच वकीलों ने राज्य के उस विधान को चुनौती दी थी जिसमें दीवानी और फौजदारी न्यायालयों, राजस्व न्यायालयों और किराया अधिकरणों तथा राज्य के दूसरे अधिकरणों की कार्यवाही हिन्दी भाषा में करने का प्रावधान किया गया है। इन वकीलों की दलील थी कि हरियाणा राजभाषा संशोधन अधिनियम, 2020 असंवैधानिक है और राज्य में निचले न्यायालयों में कामकाज की भाषा के रूप में हिन्दी को मनमाने तरीके से थोपा जा रहा है। 

मंगलवार, 19 मई 2020

350 वर्षों से जैन समाज की कर्मभूमि है आमची मुंबई और जन्मभूमि भी


23 सितंबर 1668 को आमची मुंबई के वाणिज्यिक राजधानी बनने का बीजारोपण हुआ था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने द्वीपों के एक समूह पर ब्रिटिश राजघराने से इसे पट्टे पर लेकर अपना पैर रखा। उसके पहले यह द्वीप पुर्तगालियों के हाथों में थे तो इसे वाणिज्यिक शहर बनाने की कल्पना किसी ने नहीं की थी। उन्होंने इसे केवल अपना नाम दिया, बॉम्बे। परंतु फिरंगी ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे आधुनिक शहरी केंद्र में रूप में विकसित करने का सपना देखा, मुंबई के रूप आज एक वास्तविकता के रूप में विद्यमान है।

फिरंगी कंपनी के आने से पूर्व कैथोलिक पुर्तगाली शासन के अंतर्गत् इन द्वीपों में धार्मिक सहिष्णुता बहुत कम थी, इसलिए व्यापारी लोग यहाँ बसने से कतराते थे। अंग्रेजों ने धार्मिक स्वतंत्रता एवं सुरक्षा का आश्वासन दिया तो जैन और पारसी व्यापारियों ने सूरत एवं आसपास से निकल कर मुंबई में स्थायी रूप से बसने का निश्चय किया और किले के आसपास के क्षेत्रों में आकर रहने लग गए।

1668 में बॉम्बे को प्रमुख शहर और भारत की वाणिज्यिक राजधानी के रूप में विकसित करने का सपना पारसी शिपबिल्डर्स और जैन व्यापारियों के सहयोग के बिना सम्भव नहीं था।

जैन अहिंसा में विश्वास रखने वाला सेवाभावी धार्मिक संप्रदाय है। धीरे धीरे गुजरात एवं राजस्थान से बड़ी संख्या में जैन परिवार मुंबई में आकर स्थायी रूप से रहने लगे। मुंबई में 250 वर्ष प्राचीन जैन मंदिर इस बात के प्रमाण हैं कि जैनों ने मुंबई को अपनी कर्मभूमि के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों की जन्मभूमि के रूप में भी स्वीकार कर लिया था।

वैसे तो जैन समाज बहुत छोटा समाज है पर मुंबई के विकास में उनका योगदान अति महत्वपूर्ण है। जैनों ने मुंबई को अपना आशियाना बनाया। अपने पूर्वजों की जन्मभूमि से उनका नाता धीरे-धीरे शिथिल होता गया और मुंबई को मातृभूमि मान कर आमची मुंबई से अपनी घनिष्ठता को सुदृढ़ करते रहे। 350 वर्ष के इतिहास के उपरांत उन्होंने सरकार से मुफ़्त में किसी भी वस्तु को पाने की आशा नहीं की। सरकारी भूमि को हथिया कर उन्होंने अपने खेलकूद एवं आनंद के लिए एक भी जिमखाना नहीं बनाया।

सन् 1918 तक कोलकाता व्यापारिक क्षेत्र में मुंबई से बहुत आगे था। 1918 में महामारी में भारी संख्या में लोग काल कवलित हुए, परंतु वह भयावह महामारी भी जैनों को मुंबई से अलग नहीं कर पायी, क्योंकि जैन मुंबई को आमची मुंबई मान चुके थे। 1918 की महामारी का प्रभाव 1920 तक समाप्त हुआ। कठिन परिस्थिति में भी जैन व्यापारी मुंबई को वाणिज्यिक राजधानी बनाने सपने को पूरा करने के लिए निरंतर कड़ा परिश्रम करते रहे।

जैन व्यापारियों द्वारा किये गये कड़े परिश्रम के फल पकने लगे और अंग्रेज कोलकाता को छोड़कर मुंबई को प्रमुख वाणिज्यिक राजधानी के रूप में देखने के लिए विवश हुए। कोलकाता से बिड़ला, डालमिया जैसे हिंदू व्यापारी मुंबई आकर स्थायी रूप से रहने लगे।

मुंबई एवं उसके आसपास आज लगभग 20 लाख जैन निवास करते हैं। जब भी मुंबई किसी प्राकृतिक आपदा से घिरी है, जैन समाज सदैव सेवा के लिए आगे आया है। जैनों की प्रमुख संस्थाएँ जीतो, भारतीय जैन संघटना, समस्त महाजन एवं महावीर इंटरनेशनल ने बिना किसी भेदभाव एवं राजनीतिक अपेक्षा के मानवसेवा के लिए अपने धन का सदुपयोग किया है।

कोरोना विषाणु रोग- 2019 महामारी के कारण बहुत सारे लोग मुंबई छोड़ कर अपने-2 प्रांत में जा रहे हैं परंतु जैन समाज आमची मुंबई को अपनी मातृभूमि मान कर सेवा के कार्यों के लिए समर्पित होकर मुंबई में डटा हुआ है। कोरोना महामारी के थमते ही फिर से परिश्रम और लगन के साथ आमची मुंबई को वाणिज्यिक राजधानी बनाये रखने के लिए लगा रहेगा। बिना किसी अपेक्षा से अपनी कर्मभूमि एवं जन्मभूमि के उत्थान के लिए निष्ठावान व प्रयत्नशील बना रहेगा। जैन समाज अहिंसा, धार्मिकता एवं सेवाभाव के गुणों से ओतप्रोत होने के कारण सदा प्रसन्नचित्त रहता है परंतु उसे पीड़ा तो तब अनुभव होती है जब कोई 350 वर्षों से मुंबई के निर्माण में जैन समाज के योगदान को भुलाकर पर-प्रांतीय मान कर उन्हें प्रताड़ित करने के प्रयास करता है।

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गुरुवार, 14 मई 2020

क्या बंडा के जैन समाज ने मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज के बंडा आगमन पर तालाबंदी व शारीरिक दूरी के नियमों का उल्लंघन किया था?

तथ्य जाँच- 
सामाजिक माध्यमों, समाचार पत्रों में जो छपा है और टीवी पर जो दिखाया जा रहा है क्या वो सच है?

परम पूज्य मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज भाग्योदय तीर्थ चिकित्सालय सागर (मप्र) के परिसर में 2 महीने से विराजमान थे। 


परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज लगभग 2 माह से अपने बहुचर्चित और लोकप्रिय कार्यक्रम शंका समाधान में पूरे देश के जैन समाज के लोगों को शारीरिक दूरी (सोशल डिसटेंस) अपनाने व कोरोना महामारी की भयावता के प्रति सावधान कर रहे थे।  पिछले 2 महीनों से शासनादेश से पूरे देश के जिनालय बन्द हैं, फिर भी कुछ लोग चोरी छुपे मन्दिर जाने का प्रयास कर रहे थे, तब भी मुनिश्री ने समाज को सरकार के नियमों के पालन की नसीहत दी थी।

7 मई 2020 को भाग्योदय तीर्थ चिकित्सालय में कोरोना पीड़ित मिला जिसे भोपाल संदर्भित किया गया, वहाँ पहुँचकर उसकी मृत्यु हो गई। अस्पताल का एक प्रयोगशाला कर्मी भी चपेट में आ गया और 10-12 चिकित्सकों को भी स्व-एकांतवास (क्वारेंटाइन) में जाना पड़ा। महाराजश्री ने इस पर विचार किया कि यहाँ रुकना संकट का कारण बन सकता है, इसलिए उन्होंने वहाँ से विहार करने का निश्चय किया। समाज के लोगों ने मुनिश्री के पद-विहार के लिए प्रशासन से अनुमति ली, इस अनुमति में उनके साथ कुल 20 लोगों को चलने की अनुमति दी गई और इस प्रकार 9 मई 2020 को प्रातः 6 बजे सागर से विहार आरंभ हुआ। जैन मुनि किसी भी प्रकार के वाहन का प्रयोग नहीं करते हैं और सदैव पैदल चलते हैं। कुछ चैनलों पर एंकर बोल रहे थे कि मुनिश्री धार्मिक पदयात्रा निकाल रहे थे, धार्मिक कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे जबकि जैन साधु सदैव ही पैदल चलते हैं, उन्होंने अलग से कोई आयोजन नहीं किया था।

जैन मुनि कठोर तपश्चर्या का पालन करते हैं, 24 घंटे में एक बार ही आहार-जल ग्रहण करते हैं। अस्वस्थ होने पर भी आहार के समय ही शुद्ध आयुर्वेदिक औषधि ही ग्रहण करते हैं, वह भी 24 घंटे में एक बार। वे किसी भी अस्पताल में कभी उपचार नहीं करवाते हैं। चूँकि भाग्योदय तीर्थ चिकित्सालय में कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ने की संभावना थी इसीलिए मुनिश्री ने विहार करना ही उचित समझा।

विहार आरंभ करने से पूर्व मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा सभी श्रावकों को निर्देश दिए गए थे और कहा था कि विहार के रास्ते में पड़ने वाले किसी भी गाँव-नगर में उनके आगमन या विहार के दौरान कोई भी श्रावक-श्राविका रस्तों पर इकट्ठा नहीं होंगे एवं अपने घरों के दरवाजे, छतों आदि से ही दर्शन करेंगे। विहार करते हुए मुनिश्री अंकुर कॉलोनी (मकरोनिया), दीनदयाल नगर, कर्रापुर, छापरी आदि नगरों में रुके भी पर सभी स्थानों पर जैन समाज ने नियमों का पालन किया।

11 मई 2020 को सुबह 7 बजे मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज बंडा के बरा चौराहे पर पहुँचे। बरा चौराहा बंडा का व्यस्ततम चौराहा है। तालाबंदी में छूट के बाद यहां पर सुबह 7:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक पूरा बाजार खुला रहता है, चौराहे पर देशी एवं विदेशी शराब की 2 दुकानें हैं जो वीडियो में देखी जा सकती है जहां पर शराब लेने वालों की भीड़ थी, उसी के बाजू में सब्जी की दुकानें लगती हैं। इन दुकानों पर सब्जी खरीदने एवं बेचने वालों की भीड़ थी। बंडा से होकर ट्रकों, टैक्सियों में भरकर प्रतिदिन हजारों प्रवासी मजदूर गुजरते हैं, चौराहे पर समाजसेवियों द्वारा पूड़ी-सब्जी के पैकेट बाहर से आए मजदूरों को वितरित किए जा रहे थे, उनकी भी भीड़ थी।

जब मुनि श्री बंडा के इस चौराहे पर पहुँचे तो यह सारी भीड़ इकत्र होकर मुनि श्री को देखने उमड़ पड़ी, सामाजिक माध्यमों पर प्रसारित वीडियो इसी समय बनाया गया है, जिसे देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि बंडा जैन समाज ने मुनिश्री की भव्य अगवानी की हो और सारे नियमों को तोड़ा गया हो । 

जबकि सच्चाई यह है कि जैन समाज के लोगों ने अपनी छतों पर एवं घरों पर खड़े होकर ताली एवं थाली बजाकर मुनिश्री का स्वागत किया था।  वीडियो में अधिकांश जैनेत्तर बंधु हैं जो महाराज श्री के आगमन की बात सुनकर एकत्र हो गए और इस तरह चौराहे पर भीड़ लग गई।

इस वीडियों में आप देख सकते हैं कि चौराहे पर मुनिश्री केवल कुछ सेकंड ही रुके, बंडा में पहले से विद्यमान अन्य जैन साधुओं ने उनका अभिनंदन किया और अगवानी करने आए कुछ व्यवस्थापकों के साथ मुनिश्री जैन मंदिर की ओर चले गए।  इसमें जैन समाज की एवं महाराज श्री की कोई गलती नहीं है। समाज के लोगों को पहले से समझा दिया गया था और सभी ने उसका अक्षरशः पालन भी किया।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने निरस्त किया अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने का आदेश

कहा- अभिव्‍यक्ति की स्वतंत्रता में मातृभाषा में पढ़ने की स्वतंत्रता भी शामिल है

मुख्य न्यायाधीश जेके माहेश्वरी के नेतृत्व में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने राज्य सरकार के उस निर्णय को निरस्त कर दिया हैजिसमें राज्य के सभी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को अन‌िवार्य किया गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा, "कक्षा एक से छह या एक से आठ तक के ‌लिए शिक्षा के माध्यम को तेलुगू से अंग्रेजी में परिवर्त‌ित करना राष्ट्रीय नीति शिक्षा अधिनियम, 1968 और अन्य कई र‌िपोर्टों के विरुद्ध है। इसलिएइसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है और यह सरकारी आदेश निरस्त ‌किए जाने योग्य है।"

उच्च न्यायालय ने यह आदेश आश्रम चिकित्सा महाविद्यालय के एक सहायक प्राध्यापक और एक सामाजिक कार्यकर्ता की याचिकाओं पर दिया। याचिकाओं में यूनेस्को और दिल्ली ‌ड‌िक्लेरेशन एंड फ्रेमवर्क फॉर एक्शनएजुकेशन फॉर ऑल समिट 1993 की सिफारिशों के आधार पर सरकार के निर्णय का विरोध किया गया था।
खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति निनाला जयसूर्या ने इस क्षेत्र में स्वतंत्रता पूर्व पश्चात् के विकास की विस्तृत जांच की और निम्नलि‌‌खित निष्कर्ष दिया:

अनुच्छेद 19 (1) (ए) उच्च न्यायालय ने माना कि विद्यालयीन  स्तर पर शिक्षा का माध्यम चुनने का विकल्प एक मौलिक अधिकार है। पीठ ने कहा "शिक्षा का माध्यमजिसमें नागरिक को शिक्षित किया जा सकता हैवह अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है।" पीठ ने कहा कि शिक्षा के पश्चात् एक नागरिक अपने विचारों को उस भाषा में स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्थिति में होता हैजिसमें वह शिक्षित हैइसीलिए एक नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से संरक्षित और सम्मानित किया जाता हैऔर मातृभाषा में शिक्षा के माध्यम का चयन करने का अधिकार इसी का हिस्सा है।

उच्च न्यायालय ने कहा, "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों में मातृभाषा में या संविधान की अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी भाषा में (अनुच्छेद 19 के खंड (2) में उल्लिखित प्रतिबंधों के अधीन) शिक्षा का माध्यम चुनने का अधिकार भी शामिल है। इसलिएयह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विद्यालयीन  स्तर पर शिक्षा का माध्यम चुनने का विकल्प अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अंतर्गत् प्रदत्त अधिकार है। (अनुच्छेद 19 (2) द्वारा निर्धारित अपवादों के अधीन)" अनुच्छेद 19 (1) (जी) पीठ ने कहा कि सरकार का आदेश ​​भाषाई अल्पसंख्यक संस्थानों में अल्पसंख्यक भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने के अधिकार का हनन कर 'किसी भी पेशे की स्वतंत्रता के अधिकारका उल्लंघन करता हैजो कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) का उल्लंघन है।
उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि 19 (1) (जी) के प्रयोजनों के लिएजो कि किसी भी पेशेव्यवसायव्यापार और कारोबार पर लागू होता हैअनुच्छेद 19 (1) (जी) के अंतर्गत् एक शैक्षणिक संस्थान चलाना एक व्यवसाय हैजैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने टीएमए पाई फाउंडेशन व अन्य विरुद्ध कर्नाटक राज्य व अन्य अखिल भारतीय अभिलेख (एआईआर) 2003 सर्वोच्च न्यायालय 355 के मामले में स्पष्ट किया है। न्यायालय ने कहा, "सरकारी आदेश द्वारा सभी संस्‍थानों पर लगाए गए प्रतिबंध में भाषाई अल्पसंख्यक प्रबंधनों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थान भी शामिल होंगे और ऐसा अधिनियमजो संस्था के संचालन को प्रभावित करने के लिए अनुच्छेद 19 (1) (जी) का उल्लंघन करेगावह गिर सकता है।"

शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 29 न्यायालय ने कहा कि बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 की धारा 29, जो कि प्रारंभिक शिक्षा के पाठ्यक्रम और मूल्यांकन से संबंधित हैके अनुसार शैक्षणिक प्राधिकरण को बाल-निर्माण के सर्वांगीण विकास के मानदंडों-बच्चे का ज्ञानक्षमता और प्रतिभाशारीरिक और मानसिक क्षमता का पूर्ण विकासआदि पर गौर करना चाहिए। यह कानून यह भी निर्धारित करता है कि शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा में होना व्यावहारिक होता हैयह बच्चे को भयआघात और चिंता से मुक्त करता और बच्चे को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से और संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप व्यक्त करने में मदद करता है। न्यायालय ने माना कि सरकारी आदेश केंद्रीय अधिनियमों के विरुद्ध है।

आंध्र प्रदेश शिक्षा अधिनियम, 1982 की धारा 7 ऐसी ही राय आंध्र प्रदेश शिक्षा अधिनियम, 1982 की धारा 7 के अंतर्गत् अभिव्यक्ति के कौशलआदि के संबंध में मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के महत्व पर दी गई है। उच्च न्यायालय ने कहा कि प्राथमिक स्तर पर विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम बदलने का निर्णय राज्य सरकार अकेले नहीं ले सकती है। बल्किअधिनियम की धारा 7 (3) और 7 (4) के अनुसारएससीईआरटी वह शैक्षणिक प्राधिकरण हैजो निर्धारित प्राधिकारी के साथ परामर्श करने के पश्चात्बच्चों के सतत व व्यापक मूल्यांकन के साथ ही पाठ्यक्रमरूपरेखा और मूल्यांकन तंत्र के संबंध में विशिष्ट निर्देश जारी कर सकता है। शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति सहायक महान्यायवादी  बी कृष्णा मोहन ने न्यायालय को बताया कि उक्त कानून राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 के विपरीत है। क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के संबंध में राष्ट्रीय ‌शिक्षा नीति के अनुच्छेद 4.3 के अंतर्गत्इस बात पर जोर दिया गया है कि प्राथमिक चरण में शिक्षा का निर्देश क्षेत्रीय भाषा में होना चाहिएजो संबंधित राज्यों में सांस्कृतिक विकास के लिए आवश्यक है।

उच्च न्यायालय ने सहायक महान्यायवादी की दलील से सहमति व्यक्त की और माना कि सरकार का आदेश कानून के अनुसार नहीं हैं। मिसालें अंत मेंबेंच ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा कियाजिनमें यह स्पष्ट किया गया था कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में मातृभाषा में शिक्षा का माध्यम चुनने का अधिकार शामिल है।

विशेष रूप सेकर्नाटक राज्य विरुद्ध एसेशिएटेड मैनेजमेंट ऑफ इंग्लिश मीडियम प्राइमरी एंड सेकंडरी स्कूल्स (2014) 9 एससीसी 485 पर भरोसा किया गयाजिसके अंतर्गत् उच्चतम न्यायालय ने कहा था- "संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अंतर्गत् भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में बच्चे की पसंद की भाषा में विद्यालय के प्राथमिक स्तर पर शिक्षित होने की स्वतंत्रता शामिल है और राज्य इसे इस तरह की पसंद पर केवल इसलिए नियंत्रण नहीं कर सकताक्योंकि वह सोचता है कि बच्चे के लिए अधिक लाभदायक होगा यदि उसे अपनी मातृभाषा में विद्यालय के प्राथमिक चरण में पढ़ाया जाता है। इसलिएहम यह मानते हैं कि एक बच्चा या उसकी ओर से उसके माता-पिता या अभिभावकको शिक्षा के माध्यम के संबंध में पसंद की स्वतंत्रता का अधिकारजिसमें वह प्राथमिक स्तर पर शिक्षित होना चाहता है।"
राज्य सरकार की दलील थी कि उक्त आदेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कमजोर वर्गजिनकी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा तक पहुंच नहीं हैसंविधान के अनुच्छेद 46 की भावना के अनुसार लाभान्वित होते हैं। यद्यपि उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की दलील नहीं मानी और कहा, "राज्य सरकार का यह निर्देश कि प्राथमिक स्तर पर ‌शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी माध्यम से नागरिकों को लाभ होगाउच्चतम न्यायालय के निर्णय के विपरीत है।"

विद्यमान योजना के अनुसारआंध्र प्रदेश में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम तेलुगु हैऔर बच्चे या माता-पिता की पसंद के अनुसार अंग्रेजी और तेलुगु दोनों में समानान्तर कक्षाएं भी हैं।

प्रकरण का विवरण:
प्रकरण का शीर्षक: डॉ श्रीनिवास गुंटुपल्ली विरुद्ध आंध्र प्रदेश राज्य व अन्य।
प्रकरण क्र .: रिट याचिका 183/2019
गणपूर्ति (कोरम): मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति निनाला जयसूर्या
प्रतिनिध‌ित्व: एडवोकेट करुमानची इंद्रनील बाबू और अनूप कौशिक करवाड़ी (याचिकाकर्ताओं के लिए);
सहायक महान्यायवादी  बी कृष्ण मोहनएजीएस श्रीराम और एडवोकेट एन सुब्बा राव
जीवी शिवाजीडॉ.एस.कैलप्पावी कार्तिक नवयनवेदुला वेंकट रमना और वाई कोटेश्वर राव आदि।


निर्णय डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें-

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

किरीट विषाणु रोग-2019 महामारी : गृह मंत्रालय में लगातार जारी है राजभाषा अधिनियम 1963 का उल्लंघन


दिनांक-17 अप्रैल 2020

निवेदन- यह एक शिकायत है, सुझाव कदापि नहीं है और इस शिकायत का संबंध राजभाषा विभाग से नहीं है बल्कि गृह मंत्रालय से है।

सेवा में,
संयुक्त सचिव (प्रशासन)
गृह मंत्रालय, दक्षिण खंड (नॉर्थ ब्लॉक)
केन्द्रीय सचिवालय, नई दिल्ली -110001

विषय- गृह मंत्रालय द्वारा किरीटविषाणु रोग (कोरोना विषाणु रोग- 2019) के संबंध में सभी आदेश, कार्यालय आदेश, दिशा निर्देश, हिन्दीभाषी राज्यों से पत्राचार, परिपत्र, परामर्श-पत्र, नियमावली आदि केवल अंग्रेजी में जारी करने के विरुद्ध लोक शिकायत

महोदय,
गृह मंत्रालय द्वारा कोरोना के संबंध में सभी आदेश, कार्यालय आदेश, दिशा निर्देश, हिन्दीभाषी राज्यों से पत्राचार, नियमावली आदि केवल अंग्रेजी में जारी किए जा रहे हैं जबकि राजभाषा अधिनियम 1963 तथा राजभाषा नियमावली 1976 के अनुसार ये आधिकारिक दस्तावेज राजभाषा हिन्दी में जारी करना अनिवार्य है।

किरीटविषाणु रोग पर 18 मार्च 2020 से लेकर अब तक 68 से अधिक आधिकारिक दस्तावेज केवल अंग्रेजी में जारी किए हैं, इन सभी सभी दस्तावेजों के लिए तैयार पत्र-शीर्ष (लेटरहैड) भी राजभाषा नियमावली 1976 के नियम 11 का उल्लंघन करते हुए केवल अंग्रेजी में है, जबकि आधिकारिक दस्तावेजों पर पत्रशीर्ष द्विभाषी (हिन्दी व अंग्रेजी में एकसाथ) प्रयोग किया जाना चाहिए जिसमें मंत्रालय का नाम, पता, दिनांक, अधिकारी का नाम-पदनाम, दूरभाष, फैक्स व ईमेल आदि सबकुछ द्विभाषी रूप में अंकित हो-

https://www.mha.gov.in/media/whats-new

SR-No
Title
Download/Link
Date of issue
1
MHA Order Dated 16.4.2020 on Consolidated Revised Guidelines
16-04-2020
2
The Salaries and Allowances of Ministers(Amendment) Ordinance,2020(09042020)
16-04-2020
3
Home Secretary DO with Order dt 15.4.20, for dissemination & strict implementation
15-04-2020
4
MHA order dt 15.04.2020, with Revised Consolidated Guidelines
15-04-2020
5
Consolidated Guidelines of MHA on Lockdown measures on containment of COVID-19
14-04-2020
6
MHA DO letter dt.14.4.2020 to Chief Secretaries and Administrators for strict implementation of Lockdown Order during extended period
14-04-2020
7
DO Lr Dt. 12.4.2020 to Chief Secretaries and Administrators reiterating that the guidelines to be implemented about movement of persons and vehicles
12-04-2020
8
DO Lr. Dt. 12.4.2020 to Chief Secretaries and Administrators reg. welfare activities towards migrants
12-04-2020
9
MHA Order Dated 10.4.2020 along with 5th Addendum giving exemption to Fishing (Marine) and Aquaculture Industry
10-04-2020
10
DO letter dated 10.4.2020 to Chief Secretaries Administrators DGPs and CP Delhi for ensuring lockdown measures during ensuing festivals
10-04-2020
11
DO Letter Dt. 7.4.2020 to Chief Secretaries and Administrtators reg. essential commodities by invoking Essential Commodities Act
08-04-2020
12
Supply of Medical Oxygen smooth and hassle-free
06-04-2020
13
01.04.2020 J&K Reorg (Adaptation of State Laws) Order
04-04-2020
14
MHA clarifies on ground level issues being faced by States in ensuring smooth flow of supply chain of Essential Items during National Lockdown to fight COVID-19
04-04-2020
15
MHA issues order to make domiciles of Jammu andKashmir eligible for all Government posts in the Union Territory
04-04-2020
16
04.04.2020 J&K Domiciles eligible for all Govt Jobs
04-04-2020
17
Corrigendum to the MHA D.O letter dated 03.04.2020
04-04-2020
18
DO Letter dated 3.4.2020 to Chief Secretaries and Administrators with clarification on smooth flow of essential goods and services
04-04-2020
19
4th Addendum Dated 3.4.2020 to the Lockdown measures
03-04-2020
20
On directions of the Prime Minister, Home Ministry approves release of Rs 11,092 crores under State Disaster Risk Management Fund to All States
03-04-2020
21
MHA writes to States to ensure Smooth Harvesting and Sowing Operations, while maintaining Social Distancing, during 21-day Lockdown to fight COVID-19
03-04-2020
22
03.04.2020 HS to CS - Ensure smooth harvesting and sowing operations
03-04-2020
23
English Penal provisions under the DM Act and IPC (2.4.2020)
03-04-2020
24
MHA writes to States to widely publicize the Penal Provisions regarding Violations of Lockdown Measures to fight COVID-19
03-04-2020
25
MHA writes to States/UTs to ensure smooth Disbursal of Money to beneficiaries of PMGKY during 21-day Lockdown to fight COVID-19
03-04-2020
26
MHA blacklists 960 foreigners, present in India on tourist visas, for their involvement in Tablighi Jamaat activities necessary legal action to be taken
03-04-2020
27
DO Ltr Dated 3.4.2020 to Chief Secretaries Administrators and Advisors to LGs and Administrators reg smooth harvesting and sowing operations
03-04-2020
28
MHA issues an Addendum to lays down SOPs for transit of foreigners stranded in India and release of quarantined persons after being tested COVID-19 negative
03-04-2020
29
HS Letter on clarifications on AYUSH, Anganwadi and direct marketing of agricultural produce
03-04-2020
30
DO letter dated 2.4.2020 to CSs, Administrators, Advisors regarding Consolidated Guidelines-Clarifications reg
02-04-2020
31
3rd Addendum dated 2.4.2020 to Lockdown measures
02-04-2020
32
DO Letter to Chief Secretaries Administrators and Advisors reg. penal provisions under DM Act and IPC
02-04-2020
33
DO Letter to Chief Secretaries of States, Administrators and Advisors to UTs reg. disbursal of money to beneficiaries of PM-GKY (2.4.2020)
02-04-2020
34
MHA writes to States/UTs to take measures to fight Fake News in order to prevent Panic among People and spread of COVID-19 in India
02-04-2020
35
State-UT Helpline COVID19
02-04-2020
36
DO letters to Chief Secretaries, Administrators and Advisers on Supreme Court Order on 31.3.2020
01-04-2020
37
Shri Amit Shah chairs the 3rd Review Meeting since March 25 on preparations to fight the COVID-19 epidemic
28-03-2020
38
MHA requests States/UTs to implement Lockdown Measures in Letter and Spirit to fight COVID-19
01-04-2020
39
Addendum to the Guidelines annexed to the Ministry of Home Affairs
24-03-2020
40
Standing Operating Procedure on supply of essential goods
26-03-2020
41
MHA issues SOPs for Maintaining Supply of Essential Goods during 21-day Nationwide Lockdown to fight COVID-19
26-03-2020
42
High Level Committee under the Chairmanship of Union Home Minister approvesRs. 5,751.27 crore of additional Central assistance to 8 States
27-03-2020
43
MHA issues advisory to all States/UTs to make adequate arrangements for migrant workers, students etc from outside the States to facilitate Social Distancing for COVID-19
27-03-2020
44
MHA authorises States to use State Disaster Response Fund for relief measures for migrant workers during COVID-19 lockdown
28-03-2020
45
Modi Government dedicated to alleviate sufferings of People during the 21-day Nationwide Lockdown to fight COVID-19:
29-03-2020
46
MHA Order restricting movement of migrants and strict enforement of lockdown measures - 29.03.2020.
29-03-2020
47
3rd Addendum to Lockdown Guidelines on exempted Goods and Services
29-04-2020
48
MHA issues an Addendum to the Guidelines regarding Nationwide Lockdown to fight COVID-19
29-03-2020
49
Initiation of Disciplinary Proceedings against Four Officers of Government of National Capital Territory of Delhi (GNCTD) for Dereliction of Duty regarding containment of spread of COVID-19
29-03-2020
50
Gazette Notification regarding Jammu and Kashmir Reorganisation (Adaptation of State Laws)Order, 2020
01-04-2020
51
Jammu and Kashmir Reorganisation (Adaptation of State Laws)Order, 2020
01-04-2020
52
Tabligh activities in India
31-03-2020
53
Government committed to identify, isolate and quarantine COVID-19 positive Tabligh Jamaat (TJ) workers in India post their congregation in Nizamuddin, Delhi
31-03-2020
54
Annexure to Status Report filed in Hon'ble Supreme Court of India by Government on COVID-19
31-03-2020
55
Status Report filed in Hon'ble Supreme Court of India by Government on measures taken in respect of COVID-19
31-03-2020
56
Constitution of the Empowered Groups under the Disaster Management Act 2005
29-03-2020
57
MHA Order restricting movement of migrants and strict enforement of lockdown measures - 29.03.2020
29-03-2020
58
Second Addendum (27.03.2020) to MHA Order on Lockdown Measures
27-03-2020
59
Central Portal for COVID-19 Management (for details cilck below on MORE button)
27-03-2020
60
Government of India issues Orders prescribing lockdown for containment of COVID19 Epidemic in the country
26-03-2020
61
Due to the outbreak of COVID-19 pandemic, first phase of Census 2021 and updation of NPR postponed until further orders
26-03-2020
62
MHA order with addendum to Guidelines Dated 24.3.2020
25-03-2020
63
NDMA Order
24-03-2020
64
Guidelines
24-03-2020
65
MHA Order
24-03-2020
66
Modi government takes important step to encourage NCC Certificate holders to join Paramilitary Forces
19-03-2020
67
Preventive measures to be taken to contain the spread of Novel Coronavirus (COVID-19)-regarding.
18-03-2020
68
NOVEL CORONAVIRUS (COVID-19) (for details cilck below on MORE button)
18-03-2020

ये दस्तावेज राजभाषा हिन्दी में जारी नहीं करने से संविधान के अनुच्छेद 343 का लगातार उल्लंघन तो किया ही जा रहा है और इसके कारण देश के अंग्रेजी न जानने वाले 97 प्रतिशत नागरिकों के बीच गलत सूचनाएँ व अफवाहें फैल रही हैं। हालांकि अंग्रेजी में तैयार कुछ प्रेस विज्ञप्तियाँ पत्र सूचना कार्यालय के अनुवादकों से हिन्दी में अनुवाद करके वेबसाइट पर बिना जाँचे परखे अपलोड की जा रही हैं, इन विज्ञप्तियों का अनुवाद बहुत ही निम्न स्तर का होता है, कई बार गलत भी होता है।  

किरीट विषाणु की महामारी से बचने के लिए जानकारी होना व सावधानी बरतना ही बचाव है, पर ऐसा प्रतीत होता है कि मंत्रालय आम जनता की चिंता नहीं कर रहा है बल्कि केवल अंग्रेजी जानने वालों की चिंता कर रहा है।

गृह मंत्रालय के मुख्यालय, सभी विभागों, अनुभागों में हर स्तर पर राजभाषा अधिनियम 1963 व राजभाषा नियमावली 1976 के लगभग सभी प्रावधानों का लगातार उल्लंघन किया जाता है जिसको रोकने के लिए यह शिकायतकर्ता गत 10 वर्षों में सैकड़ों ईमेल शिकायतें, लोक शिकायत पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायतें व दर्जनों आरटीआई आवेदनों को प्रस्तुत कर चुका है।

कोरोना महामारी का मामला बहुत गंभीर है इसलिए त्वरित कार्यवाही अपेक्षित है अतः आपके द्वारा त्वरित निर्देश दिए जाने की आवश्यकता है।

भवदीय
प्रवीण कुमार जैन
सी-32, स्नेहबंधन सोसाइटीभूखंड-3, प्रभाग 16, वाशी, नवी मुंबई 400703 (भारत)