अनुवाद

गुरुवार, 31 जुलाई 2014

भारत में हिन्दी माध्यम से पढ़े लोग हैं अनपढ़!!!

मैं नवी मुम्बई में एक मध्यमवर्गीय 'आवासीय सहकारी संस्था' में रहता हूँ  पिछले तीन वर्षों से हिन्दी की उठापटक कर रहा हूँ इसलिए भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों से चिट्ठियाँ आती रहती हैं. कई बार प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति भवन से सूचना कानून के तहत लगाए आवेदनों के उत्तर आते हैं. इस कारण से वाशी डाकघर में सभी जानने लगे हैं. पर इस सब में एक बात अवश्य है कि ये लोग मेरा थोड़ा बहुत मान भी करते हैं कि मुझे बड़े-बड़े लोगों की चिट्ठियां आती हैं पर उन्हें कौन बताए कि २० पत्र लिखने के बाद एक उत्तर आता है. हर मंत्रालय में कमोवेश यही हालत है. जनता की समस्याओं को हवा में उड़ा देना, परन्तु मैं कहाँ हार मानने वाला हूँ.

बात कुछ दिन पुरानी है, उस दिन की घटना ने मुझे चौंकाया. हमारी संस्था के चौबीस घंटे के सेवक श्री बहादुर सिंह हैं. यह भला मानुस अहर्निश संस्था की दो इमारतों की सुरक्षा में तैनात रहता है. रीवा का रहने वाला है और पाँचवीं कक्षा तक पढ़ा  है.

एक दिन दफ्तर से लौटा तो उसने प्राप्त हुई चिट्ठियों का बण्डल मुझे सौंपा और कहने लगा ' साहब ! आप को सरकार से इतनी सारी चिट्ठियों क्यों आती हैं? 

मैंने बताया कि मैं #हिन्दी के लिए थोड़ा काम करता हूँ, सरकार से उसी के लिए जवाब आता है और मैं आगे बढ़ने लगा.

तभी उसने टोका, साहब ! एक शिकायत हमें भी भई रही. आप कोई मदद कर सकत हो का?

मैंने कहा 'बोलो हो सकेगा तो ज़रूर कर दूँगा. 

उसने कहा ' या तो आप हम को अंग्रेजी सिखा दो या फिर हिन्दी के पेपरन (अख़बारों) में अंग्रेजी बंद करवा दो.' 

मैंने अनजान बनते हुए कहा 'हिन्दी पेपर तो हिन्दी में ही होता है ना!'

उसने नवभारत टाइम्स और नवभारत नाम के मुम्बई से छपने वाले अखबार के पुराने अंक दिखाते हुए कहा 'ई देखो साहब, कितनी जगह एबीसीडी लिखी है. हमको तो एबीसीडी काला अक्षर भैंसा बराबर'. इतनी अंग्रेजी आती होती तो चौकीदार काहे बनते.'

दोनों अख़बार उसने उलट-पलट कर दिखा दिए. 

दुखी मन से आगे बोला "हम तो अनपढ़ नहीं थे पर अब लगता है हम अब भी अनपढ़ हैं, का करी हैं अब हिन्दी का पेपर भी पढ़ नहीं सकत."  

उसके चेहरे पर अबूझ सी पहेली थी, फिर बोला 'साहब अब तो #हिन्दी का पेपर पढ़न वास्ते अंग्रेजी सीखन ज़रूरी भई, हम का करें!

मैं अवाक् था कि एक पाँचवीं तक पढ़ा आदमी इतनी बड़ी बात कह गया, "हम तो अनपढ़ नहीं थे पर अब लगत है हम आज भी अनपढ़ हैं."  

यह बात क्यों इन अखबारों के संपादकों और मालिकों को समझ नहीं आती. हिन्दी समाचार चैनलों और इन तथाकथित हिन्दी अख़बारों ने देश के उन करोड़ों लोगों को फिर से अनपढ़ बना दिया है, जिन्होंने ने अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की है और अंग्रेजी नहीं पढ़ी और अंग्रेजी नहीं जानते.

बात उसकी सही थी और मैं तो पहले से अख़बारों की हिंग्रेजी से चिढ़ा हुआ था, परन्तु मेरे पास कोई समाधान नहीं.

मैंने उसे ढाढस दिया 'ऐसा मत बोलो, तुम पढ़े-लिखे हो, अपने आप को अनपढ़ मत कहो, इन अख़बारों को छोड़ो और दोपहर का सामना, यशोभूमि अथवा 'दबंग दुनिया' में से कोई भी अख़बार पढ़ लिया करो उनमें एबीसीडी नहीं छपती.' (शायद उस मजबूर इंसान को अनपढ़ वाला ख्याल चोट पहुँचा रहा था.)

मैंने अपनी राह पकड़ी और सोचते-२ इमारत की तीसरी मंजिल तक पहुँच गया जबकि घर पहली मंजिल पर ही था. 

सोमवार, 21 जुलाई 2014

संघ लोक सेवा आयोग: अंग्रेजी का सबसे बड़ा गुलाम

संघ लोक सेवा आयोग (संलोसेआ ) ने वर्ष 2011 से अपनी परीक्षा पद्धति में जो व्यापक फेरबदल किया था, उसका भारी विरोध होना जरा भी अप्रत्याशित नहीं है। प्रारंभिक परीक्षा की पुरानी पद्धति में सामान्य ज्ञान और एक वैकल्पिक विषय का पर्चा हुआ करता था, अब इस वैकल्पिक विषय के पर्चे को हटाकर 'नागरिक सेवा योग्यता परीक्षा” जिसे अंग्रेजी में सिविल सर्विसेज एप्टिट्यूड टेस्ट" कहा जाता यानी 'सीसैट" का पर्चा जोड़ दिया गया है। 'सीसैट" के अनिवार्य प्रश्नों की श्रृंखला में पंद्रह ऐसे प्रश्न भी शामिल कर दिए गए हैं, जिनका अनुवाद बेहद कठिन हिन्दी  में होता है। इन सभी प्रश्नों के हिन्दी  अनुवाद को समझ पाना इसलिए भी कठिन होता है, क्योंकि इन सभी प्रश्नों को पहले मूल अंग्रेजी में ही तैयार किया जाता है और फिर उनका भाषायी अनुवाद नितांत निर्दयी हिन्दी  में अभ्यर्थियों के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जाता है।

भारी विरोध के बाद मोदी सरकार इस प्रकरण पर सक्रिय हुई है। चूंकि यह मसला पूर्णत: तकनीकी होने से कार्मिक मंत्रालय इसमें सीधे-सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता, इसलिए कार्मिक मंत्रालय ने संघ लोक सेवा आयोग  से परीक्षा पद्धति  का अध्ययन-विवेचन करने को कहा है। कार्मिक मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भी 'सीसैट" परीक्षा पद्धति  से असहमति जताते हुए कहा है कि इससे हिन्दी भाषी छात्रों का नुकसान हो रहा है। उन्होंने पाठ्यक्रम व परीक्षा पद्धति  में सुस्पष्टता नहीं आने तक संघ लोक सेवा आयोग  से फिलहाल प्रारंभिक परीक्षा स्थगित करने की बात भी कही है। जाहिर है, बदलाव जरूरी है। समन्वयवादी दृष्टिकोण से देखा जाए तो उचित और आदर्श स्थिति यही हो सकती है कि अंग्रेजी का आतंक शिथिल किया जाए।

'सीसैट" के पर्चे में कहने को तो पठन-आधारित अवबोध, लोगों के बीच अपना सिक्का जमाने की कला, तर्कपूर्ण सोच, विषय विश्लेषण, बुद्धि कौशल, संवाद कुशलता, निर्णय क्षमता, मानसिक दक्षता, बुनियादी गणित और अंग्रेजी अवबोध के प्रश्न शामिल किए गए हैं, लेकिन इसकी असलियत कुछ और ही है। फोरी तौर पर सर्वथा निर्दोष और प्रभावशाली प्रतीत होने वाला 'सीसैट" का यह पर्चा गैर-अंग्रेजी माध्यम के प्रत्याशियों को सिरे से खदेड़ देने के लिए ही लाया गया है।

तर्क अन्यथा नहीं है कि वैकल्पिक विषय के पर्चे से सिर्फ तोतारटंतता की क्षमता का ही पता चलता है, जबकि प्रशासनिक कार्यों की पूर्णता के लिए वांछित कार्यकुशलता का प्रमाण अलग ही होता है। यह वांछित कार्यकुशलता भाषाई ज्ञान से सर्वथा भिन्न् होती है। जाहिर है कि प्रशासनिक कार्यकुशलता का कहीं कोई एक सर्वथा सर्वमान्य समाधान उपलब्ध नहीं होता है। भिन्न्-भिन्न् राज्यों के देहात और देहाती-समाज की भाषाएं-पृष्ठभूमि एक समान नहीं हैं। अत: गैर-अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पाए विद्यार्थी 'सीसैट" में असफल हो जाते हैं। यह प्रवृत्ति सन् 2011 से कुछ भयंकर विस्तार पाती जा रही है।

परीक्षा पद्धति की इसी विसंगति के विरोध में भारतीय भाषा आंदोलन के बैनर तले भारतीय भाषाप्रेमी अप्रैल से धरना दे रहे हैं। हाल ही में वर्ष 2013 के परीक्षा परिणाम घोषित हुए हैं। आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि हिन्दी  माध्यम से पढ़कर आने वाले अभ्यर्थियों की सफलता शरारतन और इरादतन कितनी सीमित कर दी गई है। घोर आश्चर्य होता है कि उनकी सफलता की दर अब तक के सबसे निम्न स्तर पर आकर महज दो प्रतिशत  ही रह गई है।

वर्ष 2011 में जारी किए गए 'सीसैट" के बाद से गैर-अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थियों की सफलता का ग्राफ लगातार गिर रहा है। वर्ष 2010 में हिन्दी  माध्यम से प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले प्रत्याशी 4,156 थे, वहीं वर्ष 2011 में उनकी संख्या घटकर महज 1,682 पर आ गई। वर्ष 2010 से 2011 तक तेलुगु माध्यम से उत्तीर्ण होने वाले छात्र-छात्राएं भी 69 प्रतिशत  से घटकर 29 प्रतिशत  रह गए, तमिल वाले 38 से 14 और कन्न्ड़ वाले 38 से घटकर सिर्फ पांच प्रतिशत  पर सिमट गए। इस असंतुलन के लिए सिर्फ 'सीसैट" की ही जिम्मेदारी बनती है। 'सीसैट" के बाद से ही एक और खबर यह भी निकलकर आ रही है कि देहाती छात्रों के मुकाबले शहरी छात्रों का वर्चस्व संघ लोक सेवा आयोग  के नतीजों में तेजी से बढ़ रहा है। क्या इसे देशी भाषाओं के विरुद्ध अंग्रेजी भाषा की कुटिल साजिश नहीं समझा जाना चाहिए? पूछा जा सकता है कि क्यों प्रश्न-पत्र पहले अंग्रेजी में तैयार किए जाते हैं और फिर हिन्दी में पढ़े जाने वाले वे ही प्रश्न अंग्रेजी से हिन्दी में अनूदित किए जाते हैं? जो घटिया अनुवाद का बेहतरीन नमूना हैं, वह भी ऐसी भ्रष्ट और अस्पष्ट हिन्दी  में, जो आम समझ से कोसों दूर हो?

अनुवाद की साजिश के साथ ही क्या यहां संघ लोक सेवा आयोग  की भर्ती परीक्षा में अंग्रेजी का आतंक कायम रखने की भी साजिश नजर नहीं आती है? यह भाषायी आतंक, अन्याय है। इसके विरोध में जो धरना आदि दिल्ली में जारी है, उसका पुरजोर समर्थन किया जाना चाहिए। हिन्दी  आंदोलनकारियों की यह मांग कैसे अनुचित कही जा सकती है कि लोकसेवा आयोग की सभी परीक्षाएं तथा न्यायालयों का कामकाज हिन्दी  तथा भारतीय भाषाओं में होना चाहिए? अंग्रेजी का आतंक क्यों नहीं समाप्त होना चाहिए? साथ ही हिन्दीप्रेमी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आंदोलनकारी हिन्दीभाषी छात्रों की चिठ्ठी का जवाब अंग्रेजी में देकर क्या साबित करना चाहा है?

·         राजकुमार कुम्भज
(लेखक पत्रकार व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
साभार- दैनिक नईदुनिया से 


रविवार, 13 जुलाई 2014

ऐसा भारत में ही हो सकता है: मराठी बोलने पर दण्ड

९ जुलाई २०१४ को पुणे में एक अंग्रेजी माध्‍यम विद्यालय में  मराठी बोलने पर छात्रों को दी गई अमानवीय शारीरिक और मानसिक यंत्रणा संबंधी निंदनीय घटना के समाचार-पत्रों में छपी खबरों प्रतियाँ अवलोकनार्थ संलग्‍न हैं।


इस तरह की छोटी-मोटी घटनाओं को हमारे समाचार-चैनलों/मीडिया में जगह नहीं मिलती और स्‍थानीय समाचार-पत्रों का दायरा सीमित होता है, इस कारण हो सकता है बहुतों को इसकी ख़बर न हो, पर देश के विभिन्न भागों में ऐसी शर्मनाक घटनाएँ घट रही हैं । 

मामला बढ़ता देख विद्यालय प्रशासन द्वारा इस पाशविक पिटाई के संदर्भ  में अन्‍य कारण बता कर और छात्रों को ही बिगड़ा हुआ व अनुशासनहीन बता कर, मामले को दूसरी दिशा में मोड़ने और स्‍वयं को ठीक साबित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, जिसका उल्‍लेख व संकेत समाचार-पत्रों में भी है। 
आइए, हम सभी (शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार-समर्थक और भारतीय-भाषा-प्रेमी) मिलजुल
कर  निंदा-निंदा का खेल   खेलें  और अगली किसी बड़ी घटना की प्रतीक्षा करें। (क्‍योंकि पिछले 60 वर्षों से हम यही तो करते आए हैं) 
सौजन्य: लोचन मखीजा, पुणे, महाराष्‍ट्र
समाचार-पत्रों की कतरनें :



शनिवार, 12 जुलाई 2014

संघ लोक सेवा आयोग: राजनाथ सिंह के दरवाजे पर पहुंची भारतीय भाषाओं की लड़ाई

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में अंग्रेजी की तुलना में भारतीय भाषाओं की उपेक्षा किए जाने से जुड़ा मामला अब गृह मंत्री राजनाथ सिंह के घर तक पहुंच गया है। शनिवार सुबह जब गृह मंत्री अपने आवास से निकल रहे थे तभी यूपीएससी के प्रतियोगियों ने आवास के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस दौरान छात्र-छात्राओं ने जमकर नारेबाजी भी। छात्र-छात्राओं ने कहा कि यूपीएससी परीक्षा में भारतीय भाषाओं के प्रतियोगियों की अनदेखी की जा रही है, जबकि अंग्रेजी को बढ़ावा दिया जा रहा है।

राजनाथ सिंह ने कहा, प्रधानमंत्री से चर्चा करेंगे
आवास के बाहर प्रदर्शन कर रहे छात्र-छात्राओं से मिलने पहुंचे गृह मंत्री राजना‌थ सिंह ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से चर्चा करने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को प्रधानमंत्री के समक्ष रखेंगे। यही नहीं, उन्होंने इस मामले में छात्रों का समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर निर्णय कराने की मांग करने का भी आश्वासन दिया। उनके इस आश्वासन के बाद प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राएं गृह मंत्री के घर से लौट गए। गौरतलब है कि इस बार यूपीएससी परीक्षा में अग्रेंजी को महत्व दिया गया, जिससे भारतीय भाषाओं के छात्रों को खासा नुकसान हुआ था।

शनिवार, 12 जुलाई 2014: अमर उजाला, नई दिल्ली

लोकसभा में उठी संघ लोक सेवा आयोग से सीसैट हटाने की मांग

नई दिल्ली : लोकसभा में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा में शामिल किये गए सीसैट को समाप्त करने की शुक्रवार को मांग उठी।

सपा के धर्मेन्द्र यादव और भाजपा के योगी आदित्यनाथ ने शून्यकाल के दौरान यह मामला उठाया।
यादव ने कहा कि सीसैट लागू किया जाना ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले छात्रों और हिन्दी भाषी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा वालों के खिलाफ षड्यंत्र है। उन्होंने कहा कि 2008 की परीक्षा में प्रारंभिक परीक्षा में 45 प्रतिशत, 2009 में 42 और 2010 में 35 प्रतिशत ग्रामीण अथवा हिन्दी भाषी पृष्ठभूमि के छात्र उत्तीर्ण हुए थे, वहीं सीसैट लागू होने के बाद से यह घटकर 11 प्रतिशत रह गया।
भाजपा के योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं की अनदेखी की जा रही है। उन्होंने ने भी सिविल सेवा परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा से सीसैट हटाने की मांग की।
भाषा 

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

संघ लोक सेवा आयोग:मनोज तिवारी बनेंगे भारतीय भाषा भाषी युवाओं की आवाज

नई दिल्ली: दैनिक जागरण. संघ लोक सेवा आयोग (यू.पी.एस.सी.) की परीक्षाओं में हिन्दी के साथ हो रहे भेदभाव का मुद्दा अब संसद में गूंजेगा।हिन्दी भाषा के लिए मुखर्जी नगर में दो दिन आमरण अनशन करने वाले हजारों छात्रों की आवाज बनेंगे उत्तर पूर्वी दिल्ली के भाजपा सांसद मनोज तिवारी। मंगलवार को वह इस आमरण अनशन में खुद पहुंच गए। उन्होंने छात्रों की समस्या को गंभीरता से सुना। सांसद ने छात्रों को आश्वासन दिया कि वह चार दिन के अंदर-अंदर कोई न कोई ठोस जवाब जरुर देंगे। 

राष्ट्रीय अधिकार मंच के बैनर तले अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे छात्रों का कहना है कि सरकार जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं करती उनका अनशन जारी रहेगा। इनकी मांग है कि परीक्षाओं में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के साथ भेदभावपूर्ण नीतियों को खत्म किया जाए। जिससे ज्यादा से ज्यादा छात्रों को लाभ मिल सके।

छात्रों ने सांसद को बताया कि इस बार यूपीएससी की परीक्षा पास करने वाले केवल 26 हिन्दी भाषी है। यूपीएससी की परीक्षा में सी सैट आने से अंग्रेजी के छात्रों को ज्यादा फायदा मिल रहा है। छात्रों का आरोप था हिन्दी के साथ यह सब दुव्र्यवहार पूर्व गृहमंत्री पी.चिंदबरम के इशारे पर हुआ था। हिन्दी भाषी छात्रों को हेय दृष्टि से देखा जा रहा है।

हिन्दी भाषी छात्रों के लिए हिन्दी का विकल्प भी खत्म कर दिया गया है। अब जब देश में नई मोदी सरकार हिन्दी को बढ़ावा दे रही है तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है। छात्रों को आश्वासन देते हुए सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि वह उनकी पीड़ा को गंभीरता से समझ रहे है। वह इस मामले में संबंधित मंत्री से बात करेंगे। उम्मीद है कि हल निकल जाएगा।

इतना ही नहीं जरुरत पड़ी तो हिन्दी भाषी छात्रों की आवाज को वह संसद तक पहुंचाएंगे। उन्होंने छात्रों के साथ हिन्दी के नाम पर भेदभाव नहीं होने दिया जाएगा। 

कर्नाटक उच्च न्यायालय में अब जल्द ही कन्नड़ भाषा में कामकाज

बेंगलूरू। कर्नाटक उच्च न्यायालय में अब जल्द ही कन्नड़ भाषा में कामकाज हो सकेगा। अब तक अंग्रेजी उच्च न्यायालय की अधिकारिक भाषा है।

राज्य मंत्रिमंडल की बुधवार को यहां मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या की अध्यक्षता में हुई बैठक में उच्च न्यायालय में दैनिक कामकाज कन्नड़ में किए जाने का निर्णय किया गया। बैठक में इस बारे में उच्च न्यायालय को सूचित करने पर सहमति बनी।

सूत्रों ने बताया कि बैठक में उच्च न्यायालय का कामकाज कन्नड़ करने को सभी के लिए अनुकूल व सुविधाजनक माना गया है। सरकार ने माना कि उच्च न्यायालय में सभी कामकाज कन्नड़ में होने से याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने में सुविधा होगी और केसों की सुनवाई में विलंब को भी टाला जा सकेगा। निचली अदालतों में पहले से कन्नड़ भाषा का इस्तेमाल करना लागू है। सरकार ने इसी व्यवस्था को उच्च न्यायालय में लागू करने की पहल की है।


राजस्थान पत्रिका, ९  जुलाई २०१४

बुधवार, 9 जुलाई 2014

संघ लोक सेवा आयोग: सीसैट का विरोध, आमरण अनशन पर बैठे छात्र

संघ लोक सेवा आयोग में सीसैट का विरोध कर रहे छात्रों को संबोधित करते राजनीतिक विश्लेषक वेद प्रकाश वैदिक।
नई दिल्ली. ८ जुलाई २०१४ (नवभारत टाइम्स के सौजन्य से)
संघ लोक सेवा आयोग (संलोसेआ)  में हिन्दी के साथ भेदभाव खत्म करने और सीसैट को हटाने को लेकर छात्रों का विरोध दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। विरोध जताने के क्रम में मुखर्जी नगर में 50 से अधिक सिविल के छात्र 6 जुलाई से ही आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। इनमें करीब 20 लड़कियां भी शामिल हैं। 
हैरत की बात यह है कि अभी तक सरकार की ओर  से कोई प्रतिनिधि अनशन पर बैठे छात्रों से बात करने तक नहीं आया है। इससे पहले भी करीब 15000 छात्र 27 जून को अपनी मांगों को लेकर रेसकोर्स भी गए थे, वहां सारी रात बैठे रहे लेकिन सरकार की ओर  से न तो कोई प्रतिनिधि इनकी बातों को सुनने आया न ही किसी प्रकार का आश्वासन ही उन्हें मिला। 
छात्रो की मांग है कि बदलाव के बाद प्रारंभिक परीक्षा में शामिल किए गए सीसैट को हटाया जाए जिसका सीधा लाभ इंजीनियरी  और प्रबंधन के छात्रों को मिल रहा है। कई बार प्रदर्शन कर चुके इन छात्रों का कहना है कि अब उनके पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं हैं क्योंकि हमारी बातों को कहीं नहीं सुना जा रहा है। 
इन छात्रों की संघ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा 24 अगस्त को है। छात्रों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान संघ लोक सेवा आयोग ने अपने पाठ्यक्रम में व्यापक बदलाव किया है जिससे ग्रामीण और मानविकी  पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वाले छात्रों के चयन में नाटकीय रूप से गिरावट दर्ज की गई है। अब हाल यह हो गया है कि 2013 के संघ लोक सेवा आयोग के रिजल्ट में 1122 लोगों का चयन हुआ है जिसमें हिन्दी माध्यम के छात्रों की संख्या केवल 26 है। 
चयन में इस गिरावट के लिए छात्र यूपीएसी की अंग्रेजी परस्ती को और प्रारंभिक परीक्षा में शामिल किए गए सीसैट को जिम्मेदार मान रहे हैं। संघ लोक सेवा आयोग की तौयारी कर रहे छात्र दुष्यंत का कहना है कि सीसैट के कारण इंजीनियरी  और प्रबंधन के छात्रों काफी लाभ मिल रहा है जबकि मानविकी एवं हिन्दी माध्यम के छात्र इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। 
संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वाले छात्र अतहर कहते हैं कि यही वजह है कि हम सीसैट को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग कर रहे हैं। अतहर ने कहा, 'हमारी मांग है कि मुख्य परीक्षा में जो अंग्रेजी अर्हता का प्रश्न पत्र है उसे भी अन्य भारतीय भाषाओं के स्तर का बनाया जाए।
जबकि एक और छात्र सम्पूर्णानंद कहते हैं कि संघ लोक सेवा आयोग के प्रश्न जो मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किये जाते हैं उसका हिन्दी अनुवाद काफी जटिल और कई जगहों पर गलत भी होता है। हमारी मांग यह है कि मूल प्रश्न पत्र हिन्दी में ही तैयार किए जाएं। छात्रों की मानें तो साक्षात्कार में भी हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के छात्रों को अंग्रेजी बोलने के लिए बाध्य किया जाता है। छात्र प्रारंभिक परीक्षा की तिथि को भी आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं क्योंकि आंदोलन और अनशन की वजह से उन्हें पढ़ाई के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है।

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

केरल विधान सभा में हिन्दी बोलने पर रोक


तिरुवनंतपुरम। देश की राष्ट्र भाषा हिंदी, केरल विधानसभा में आधिकारिक भाषा नहीं है। केरल विधानसभा के उपाध्यक्ष एन. सकथन ने विधायकों को यह बात बताई तो वे अवाक रह गए। सकथन प्रश्नकाल के दौरान सदन के पीठासीन अधिकारी की भूमिका निभा रहे थे।
प्रश्नकाल के दौरान विपक्षी विधायक जमीला प्रकाशम ने राज्य के गृह मंत्री रमेश चेन्नीथला से पूछा कि राज्य पुलिस बल में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या पांच प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने के उनके वादे का क्या हुआ? अपने जवाब के अंत में चेन्नीथला ने हिंदी में कहा कि वह अपना वादा जल्द पूरा करेंगे।
उपाध्यक्ष सकथन ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए कहा कि सदन में हिंदी भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह आधिकारिक भाषा नहीं है। सकथन के मुताबिक, सदन के अंदर प्रयोग की जाने वाली आधिकारिक भाषाएं मलयालम, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी हैं। ऊर्जा मंत्री अरिदन मोहम्मद ने हालांकि कहा कि सदन में पहले हिंदी का प्रयोग होता रहा है। लेकिन सकथन ने कहा कि नियम 305 के आधार पर हिंदी बोलने की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह स्वीकृत भाषाओं में शामिल नहीं है।
मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा कि अगर सकथन की बात सच है तो हमें नियम बदलना होगा। हिंदी को भी आधिकारिक भाषा में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा न होने पर गलत संदेश जाएगा। जलपान गृह में भी विधायकों के बीच इस बात पर चर्चा होती रही। कांग्रेस विधायक बेनी बेहेनन ने बताया कि कन्नड़ भाषा को 1982 में आधिकारिक स्वीकृति मिली थी, उस समय वह सदन में मौजूद थे।
पूर्व विधानसभाध्यक्ष राधाकृष्णन ने कहा है कि अब अगर यह सरकार हिंदी को आधिकारिक भाषा में शामिल करना चाहती है, तो इसके लिए प्रक्रिया समिति आयोजित करके मंजूरी लेने की जरूरत होगी। चर्चा के दौरान सकथन ने बताया है कि मैंने सिर्फ इसलिए ऐसा कहा क्योंकि नियमत: हिंदी का प्रयोग नहीं किया जा सकता, यह सभी को पता चले। कुर्सी पर बैठने का मतलब नियमों का पालन करना है और मैंने वही किया।

सौजन्य: आईबीएन http://khabar.ibnlive.in.com/news/123300/1