कहा-
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में मातृभाषा में पढ़ने की स्वतंत्रता भी शामिल है
मुख्य न्यायाधीश जेके माहेश्वरी के नेतृत्व
में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने राज्य सरकार के उस निर्णय को
निरस्त कर दिया है, जिसमें राज्य के सभी प्राथमिक
विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को अनिवार्य किया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा, "कक्षा एक से छह या एक से आठ तक के लिए शिक्षा के माध्यम को तेलुगू से
अंग्रेजी में परिवर्तित करना राष्ट्रीय नीति शिक्षा
अधिनियम, 1968 और अन्य कई रिपोर्टों के विरुद्ध है।
इसलिए, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है और यह सरकारी
आदेश निरस्त किए जाने योग्य है।"
उच्च न्यायालय ने यह आदेश आश्रम चिकित्सा
महाविद्यालय के एक सहायक प्राध्यापक और एक सामाजिक कार्यकर्ता की याचिकाओं पर
दिया। याचिकाओं में यूनेस्को और दिल्ली डिक्लेरेशन एंड फ्रेमवर्क फॉर एक्शन, एजुकेशन फॉर ऑल समिट 1993 की सिफारिशों के
आधार पर सरकार के निर्णय का विरोध किया गया था।
खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति निनाला जयसूर्या
ने इस क्षेत्र में स्वतंत्रता पूर्व पश्चात् के विकास की विस्तृत जांच की और
निम्नलिखित निष्कर्ष दिया:
अनुच्छेद 19 (1) (ए)
उच्च न्यायालय ने माना कि विद्यालयीन स्तर पर
शिक्षा का माध्यम चुनने का विकल्प एक मौलिक अधिकार है। पीठ ने कहा "शिक्षा का
माध्यम, जिसमें नागरिक को शिक्षित किया जा सकता है, वह अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है।"
पीठ ने कहा कि शिक्षा के पश्चात् एक नागरिक अपने विचारों को उस भाषा में स्वतंत्र
रूप से व्यक्त करने की स्थिति में होता है, जिसमें वह
शिक्षित है; इसीलिए एक नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता के अधिकार से संरक्षित और सम्मानित किया जाता है, और मातृभाषा में शिक्षा के माध्यम का चयन करने का अधिकार इसी का हिस्सा है।
उच्च न्यायालय ने कहा, "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों में मातृभाषा में या
संविधान की अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी भाषा में (अनुच्छेद 19 के खंड (2) में उल्लिखित प्रतिबंधों के अधीन)
शिक्षा का माध्यम चुनने का अधिकार भी शामिल है। इसलिए, यह
निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विद्यालयीन स्तर
पर शिक्षा का माध्यम चुनने का विकल्प अनुच्छेद 19 (1) (ए)
के अंतर्गत् प्रदत्त अधिकार है। (अनुच्छेद 19 (2) द्वारा
निर्धारित अपवादों के अधीन)" अनुच्छेद 19 (1) (जी)
पीठ ने कहा कि सरकार का आदेश भाषाई अल्पसंख्यक संस्थानों में अल्पसंख्यक भाषाओं
में शिक्षा प्रदान करने के अधिकार का हनन कर 'किसी भी
पेशे की स्वतंत्रता के अधिकार' का उल्लंघन करता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) का
उल्लंघन है।
उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि 19
(1) (जी) के प्रयोजनों के लिए, जो कि
किसी भी पेशे, व्यवसाय, व्यापार
और कारोबार पर लागू होता है, अनुच्छेद 19
(1) (जी) के अंतर्गत् एक शैक्षणिक संस्थान चलाना एक व्यवसाय है, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने टीएमए पाई फाउंडेशन व अन्य विरुद्ध कर्नाटक
राज्य व अन्य अखिल भारतीय अभिलेख (एआईआर) 2003 सर्वोच्च
न्यायालय 355 के मामले में स्पष्ट किया है।
न्यायालय ने कहा, "सरकारी आदेश द्वारा सभी संस्थानों
पर लगाए गए प्रतिबंध में भाषाई अल्पसंख्यक प्रबंधनों द्वारा संचालित शैक्षणिक
संस्थान भी शामिल होंगे और ऐसा अधिनियम, जो संस्था के
संचालन को प्रभावित करने के लिए अनुच्छेद 19 (1) (जी)
का उल्लंघन करेगा, वह गिर सकता है।"
शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 29 न्यायालय ने कहा कि बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम,
2009 की धारा 29, जो कि
प्रारंभिक शिक्षा के पाठ्यक्रम और मूल्यांकन से संबंधित है, के अनुसार शैक्षणिक प्राधिकरण को बाल-निर्माण के सर्वांगीण विकास के
मानदंडों-बच्चे का ज्ञान, क्षमता और प्रतिभा, शारीरिक और मानसिक क्षमता का पूर्ण विकास, आदि
पर गौर करना चाहिए। यह कानून यह भी निर्धारित करता है कि शिक्षा का माध्यम बच्चे
की मातृभाषा में होना व्यावहारिक होता है, यह बच्चे को
भय, आघात और चिंता से मुक्त करता और बच्चे को अपने
विचारों को स्वतंत्र रूप से और संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप व्यक्त करने
में मदद करता है। न्यायालय ने माना कि सरकारी आदेश केंद्रीय अधिनियमों के विरुद्ध
है।
आंध्र प्रदेश शिक्षा अधिनियम, 1982 की धारा 7 ऐसी ही राय आंध्र प्रदेश शिक्षा
अधिनियम, 1982 की धारा 7 के अंतर्गत् अभिव्यक्ति के कौशल, आदि के संबंध
में मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के महत्व पर दी गई है। उच्च न्यायालय ने कहा
कि प्राथमिक स्तर पर विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम बदलने का निर्णय राज्य सरकार
अकेले नहीं ले सकती है। बल्कि, अधिनियम की धारा 7
(3) और 7 (4) के अनुसार, एससीईआरटी वह शैक्षणिक प्राधिकरण है, जो
निर्धारित प्राधिकारी के साथ परामर्श करने के पश्चात्, बच्चों
के सतत व व्यापक मूल्यांकन के साथ ही पाठ्यक्रम, रूपरेखा
और मूल्यांकन तंत्र के संबंध में विशिष्ट निर्देश जारी कर सकता है। शिक्षा पर
राष्ट्रीय नीति सहायक महान्यायवादी बी कृष्णा
मोहन ने न्यायालय को बताया कि उक्त कानून राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 के विपरीत है। क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के संबंध में राष्ट्रीय शिक्षा
नीति के अनुच्छेद 4.3 के अंतर्गत्, इस बात पर जोर दिया गया है कि प्राथमिक चरण में शिक्षा का निर्देश
क्षेत्रीय भाषा में होना चाहिए, जो संबंधित राज्यों में
सांस्कृतिक विकास के लिए आवश्यक है।
उच्च न्यायालय ने सहायक महान्यायवादी की दलील
से सहमति व्यक्त की और माना कि सरकार का आदेश कानून के अनुसार नहीं हैं। मिसालें
अंत में, बेंच ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न
निर्णयों पर भरोसा किया, जिनमें यह स्पष्ट किया गया था
कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में मातृभाषा में शिक्षा का माध्यम चुनने का
अधिकार शामिल है।
विशेष रूप से, कर्नाटक
राज्य विरुद्ध एसेशिएटेड मैनेजमेंट ऑफ इंग्लिश मीडियम प्राइमरी एंड सेकंडरी
स्कूल्स (2014) 9 एससीसी 485 पर भरोसा किया गया, जिसके अंतर्गत् उच्चतम
न्यायालय ने कहा था- "संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अंतर्गत् भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में बच्चे की
पसंद की भाषा में विद्यालय के प्राथमिक स्तर पर शिक्षित होने की स्वतंत्रता शामिल
है और राज्य इसे इस तरह की पसंद पर केवल इसलिए नियंत्रण नहीं कर सकता, क्योंकि वह सोचता है कि बच्चे के लिए अधिक लाभदायक होगा यदि उसे अपनी
मातृभाषा में विद्यालय के प्राथमिक चरण में पढ़ाया जाता है। इसलिए, हम यह मानते हैं कि एक बच्चा या उसकी ओर से उसके माता-पिता या अभिभावक, को शिक्षा के माध्यम के संबंध में पसंद की स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें वह प्राथमिक स्तर पर शिक्षित होना चाहता है।"
राज्य सरकार की दलील थी कि उक्त आदेश का
उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कमजोर वर्ग, जिनकी
अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा तक पहुंच नहीं है, संविधान
के अनुच्छेद 46 की भावना के अनुसार लाभान्वित होते
हैं। यद्यपि उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की दलील नहीं मानी और कहा,
"राज्य सरकार का यह निर्देश कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के
माध्यम के रूप में मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी माध्यम से नागरिकों को लाभ होगा, उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विपरीत है।"
विद्यमान योजना के अनुसार, आंध्र प्रदेश में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम तेलुगु है, और बच्चे या माता-पिता की पसंद के अनुसार अंग्रेजी और तेलुगु दोनों में
समानान्तर कक्षाएं भी हैं।
प्रकरण का विवरण:
प्रकरण का शीर्षक: डॉ श्रीनिवास गुंटुपल्ली विरुद्ध
आंध्र प्रदेश राज्य व अन्य।
प्रकरण क्र .: रिट याचिका 183/2019
गणपूर्ति (कोरम): मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति
जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति निनाला जयसूर्या
प्रतिनिधित्व: एडवोकेट करुमानची इंद्रनील
बाबू और अनूप कौशिक करवाड़ी (याचिकाकर्ताओं के लिए);
सहायक महान्यायवादी बी कृष्ण मोहन, एजीएस श्रीराम और एडवोकेट एन
सुब्बा राव,
जीवी शिवाजी, डॉ.एस.कैलप्पा, वी कार्तिक नवयन, वेदुला वेंकट रमना और वाई
कोटेश्वर राव आदि।