अनुवाद

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

इण्डिया हटाओ भारत लौटाओ : जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी


20 दिसंबर 2015.                                                                                                     
रहली (ज़िला-सागर मध्यप्रदेश) में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिवस पर गजरथ यात्रा के बाद चारों दिशाओं से भक्तिवश पधारे लगभग एक लाख जैन-अजैन श्रद्धालुओं को उदबोधन देते हुए योगीश्वर कन्नडभाषी संत दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने धर्म-देशना की अपेक्षा राष्ट्र और समाज में आए भटकाव  का स्मरण  कराते  हुए कहा कि आज जवान पीढ़ी का  ख़ून सोया हुआ है। कविता ऐसी लिखो कि रक्त में संचार आ जाय। उसका इरादा 'इण्डिया' नहीं 'भारत' के लिये बदल जाय। वह पहले  भारत को याद रखें। भारत  याद   रहेगा, तो धर्म-परम्परा याद रहेगी। पूर्वजों ने भारत के भविष्य के लिये क्या सोचा होगा?

उनकी भावना भावी पीढ़ी को लाभान्वित करने  की  रही थी। वे भारत का गौरव,   धरोहर और परम्परा को अक्षुण्ण चाहते थे। धर्म की परम्परा  बहुत बड़ी  मानी जाती है। इसे  बच्चों  को  समझाना है। आज  ज़िंदगी जा रही है। साधना करो। साधना  अभिशाप को भगवान बना  देती है। जो  हमारी धरोहर है। जिसे हम गिरने  नहीं देंगे।

महाराणा  प्रताप ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। उनके और उन जैसों के स्वाभिमान के बल पर हम आज जीवित हैं। भारत  को स्वतन्त्र  हुए सत्तर वर्ष  हो  गए हैं। स्वतन्त्र  का अर्थ होता है-'स्व  और तन्त्र'।  तन्त्र आत्मा का होना  चाहिए। आज हम, हमारा राष्ट्र एक-एक पाई  के लिए परतंत्र हो चुका है। हम हाथ किसी के आगे नहीं पसारें।   महाराणा प्रताप को देखो, उन जैसा स्वाभिमान  चाहिए। उनसे है भारत की गौरवगाथा। आज हमारे भारत की पूछ  नहीं हो  रही है ?  मैं अपना ख़ज़ाना  आप लोगों  के सामने रख  रहा हूं। आप  लोगों में मुस्कान देख रहा हूँ। मैं भी  मुस्करा रहा हूं। हमें बता दो, भारत का नाम 'इण्डिया' किसने रखा? भारत का नाम 'इण्डिया' क्यों रखा गया? भारत 'इण्डियाक्यों बन गया?  क्या भारत का अनुवाद  'इण्डिया' है? इण्डियन का अर्थ क्या है? है कोई व्यक्ति जो इस बारे में बता सके?  हम भारतीय हैं, ऐसा हम स्वाभिमान के साथ कहते नहीं हैं। अपितु गौरव के साथ कहते  हैं, 'व्ही आर इण्डियन'।  कहना चाहिए- 'व्ही आर भारतीय'।  भारत का कोई अनुवाद नहीं होता। प्राचीन समय में 'इण्डियानहीं कहा जाता था।  भारत को भारत के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। युग के आदि में ऋषभनाथ के ज्येष्ठ पुत्र 'भरत'  के नाम पर भारत नाम पड़ा है। उन्होंने भारत की भूमि को संरक्षित किया है। यह ही आर्यावर्त 'भारत' माना गया है। जिसे 'इण्डिया' कहा जा रहा है। आप हैरान हो जावेंगे, पाठ्य-पुस्तकों के कोर्स में 'इण्डियन' का जो अर्थ   लिखा गया है, वह क्यों पढ़ाया जा रहा है?  इसका किसी के पास क्या कोई जवाब है? केवल इतना लिखा गया है कि  अंग्रेज़ों ने ढाई सौ वर्ष तक हम पर अपना राज्य किया, इसलिए हमारे देश 'भारत' के लोगों का नाम 'इण्डियन' का  पड़ गया है।

इससे भी अधिक विचार यह करना है कि है कि चीन हमसे  भी ज़्यादा परतन्त्र  रहा है। उसे हमसे दो या तीन साल बाद स्वतन्त्रता मिली है। उससे पहले स्वतन्त्रता हमें मिली है। चीन को जिस दिन स्वतन्त्रता मिली थी, तब उनके सर्वेसर्वा नेता ने कहा था कि हमें स्वतन्त्रता की प्रतीक्षा थी। अब हम स्वतन्त्र हो गए हैं। अब हमें सर्वप्रथम अपनी भाषा चीनी को सम्हालना है।परतन्त्र अवस्था में हम अपनी भाषा चीनी को क़ायम रख नहीं सके थे। साथियों ने सलाह दी थी कि चार-पाँच  साल बाद अपनी भाषा को अपना लेंगे। किन्तु मुखिया ने किसी की सलाह को नहीं मानते हुए चीना भाषा को देश की भाषा घोषित किया। नेता ने कहा चीन स्वतन्त्र हो गया है और अपनी भाषा चीनी को छोड़ नहीं सकते हैं। आज की रात से  चीन में की भाषा चीनी प्रारम्भ होगी और उसी रात से वहाँ  चीन की भाषा चीनी प्रारंभ हो गयी। भारत में कोई ऐसा व्यक्ति है जो चीन के समान हमारे देश की भाषा तत्काल प्रारम्भ कर दे

कोई भी कठिनाई आ जाय देश के गौरव और स्वाभिमान को छोड़ नहीं सकते हैं। सत्तर वर्ष अपने देश को स्वतन्त्र  हुए हो गए हैं। हमारी भाषाऐं बहुत पीछे हो गयी हैं। अंग्रेजी भाषा को  शिक्षा  का माध्यम  बनाने की ग़लती  की गयी। मैं भाषा सीखने के लिए अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा  को सीखने का विरोध नहीं करता हूँ। किंतु देश  की   भाषा के ऊपर कोई अन्य भाषा नहीं हो सकती है। अंग्रेजी भारत की भाषा कभी नहीं थी और न कभी होनी चाहिए। अंग्रेजी अन्य विदेशी भाषाओं के समान ज्ञान प्राप्त करने का साधन मात्र है। विदेशी भाषा अंग्रेजी में हम अपना सब कुछ काम करने लग गए, यह ग़लत है। हमें दादी के साथ दादी की भाषा जो यहाँ बुन्देलखण्डी है, उसी में बात करना चाहिए। जो यहाँ सभी को समझ में आ जाती है। मैं कहता हूँ ऐसा ही अनुष्ठान करें। 

लीक से हट कर प्रवचन:
प्रस्तुति: 
निर्मलकुमार पाटोदी
विद्या-निलय, ४५, शांति निकेतन
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