अनुवाद

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

चुनाव सम्बन्धी जागरुकता का पहला हक़ भारतीय अंग्रेजों को है देहातियों को नहीं, समझे क्या?

प्रति,निदेशक (शिकायत)
राजभाषा विभाग
गृह मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली
sudhir.malhotra@nic.in


विषय : चुनाव आयोग द्वारा राजभाषा की घोर उपेक्षा 

आदरणीय महोदय,मैं पिछले कई महीनों से भारत निर्वाचन आयोग को लिख रहा हूँ, मेरे कई मित्रों ने भी ६-७ महीने से लगातार चुनाव आयोग को ईमेल भेजे हैं कि चुनाव आयोग हिंदी वेबसाइट उपलब्ध करवाए परन्तु ऐसा लग रहा है कि इन ९ महीनों के बाद भी आयोग ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया, एक भी ईमेल का उत्तर नहीं आया.

मतदाताओं के ऑनलाइन पंजीयन की व्यवस्था भी केवल अंग्रेजी में है वेबसाइट पर, जिससे अंग्रेजी ना जानने वाले करोड़ों लोग इस सेवा के लाभ से वंचित हैं. 

एक भी विज्ञप्ति अथवा अधिसूचना आयोग की वेबसाइट पर हिंदी में उपलब्ध नहीं है. पत्र-सूचना कार्यालय ने आर टी आई में बताया है कि १-२ मंत्रालयों को छोड़कर किसी भी विभाग /आयोग/मंत्रालय से हिन्दी में विज्ञप्ति नहीं आती है. केवल अंग्रेजी में विज्ञप्तियाँ उनके पास आती हैं. अंग्रेजी विज्ञप्ति का पसूका की "हिंदी इकाई" द्वारा अनुवाद किया जाता है और वही हिंदी विज्ञप्ति पसूका वेबसाइट पर डाल दी जाती है.  मेरा भी मानना है कि यदि हिंदी में विज्ञप्तियां जारी हो रही होती तो उन्हें सम्बंधित विभागों/मंत्रालयों/आयोग आदि की वेबसाइट पर डाला भी जाता और पसूका को भी भेजा जाता, पर जब हिंदी में विज्ञप्ति तैयार ही नहीं की जा रही तो भेजने का प्रश्न ही नहीं उठता. यह एक गंभीर मामला है, तो क्या विभिन्न विभागों/मंत्रालयों/आयोग आदि द्वारा राजभाषा अधिनियम की धारा ३(३) का उल्लंघन किया जा रहा है? इसकी जांच करवाई जाए कि किस-२ सरकारी निकाय ने पिछले ३ सालों में हिंदी में प्रेस विज्ञप्तियां जारी नहीं की?(आर टी आई आवेदन एवं उसकाका उत्तर संलग्न है, देखें बिंदु ६ से १० "अनुलग्नक एक "). 

आयोग की वेबसाइट पर सारे दस्तावेज भी केवल अंग्रेजी में हैं  आम नागरिक को वेबसाइट से कोई भी जानकारी राजभाषा में उपलब्ध नहीं होती है. आप चाहें तो स्वयं वेबसाइट पर जाकर देख सकती हैं.

नवम्बर २०१३ में हिंदी भाषी राज्यों में चुनाव भी हैं. कम से कम उसके पहले वेबसाइट १००% हिंदी में शुरू की जाए ताकि आम मतदाताओं को जानकारी उनकी भाषा में उपलब्ध हो सके. 

हिंदी वेबसाइट बनाने का नियम १९९९ में बना था और आज १४ वर्ष बीत चुके हैं  क्या इनसे यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि आयोग हिन्दी में कोई भी काम क्यों नहीं करता? इतने वर्षों में भी आयोग ने अपनी वेबसाइट हिंदी में शुरू क्यों नहीं की? वर्तमान आईटी युग में वेबसाइट पर हिन्दी में जानकारी नहीं है तो इसका सीधा मतलब है कि जनता के साथ अन्याय किया जा रह है, जहाँ से जनता जानकारी ले सकती है आपने वो रास्ता बंद कर दिया और अंग्रेजी थोप दी.

मैंने पिछले वर्ष १५ अक्तूबर २०१२ को आरटीआई लगाई थी तब भी आयोग ने यह बताने इस इनकार कर दिया कि हिन्दी वेबसाइट कब उपलब्ध होगी? राजभाषा कानून अपनी जगह हैं पर क्या बहुसंख्य जनसंख्या की भाषा में जानकारी ना देना, अन्याय नहीं हैं और संविधान के अनुच्छेद ३४३ से ३५१ के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हैं? ( आर टी आई का उत्तर संलग्न है, देखें बिंदु २ और ३ "अनुलग्नक दो और तीन "). 

राजभाषा विभाग की नाक नीचे यह सब हो रहा है, विभाग सरकार से अपने कर्तव्यों के अनुपालन के लिए अधिक शक्तियों के माँग करने से क्यों हिचकता है?

एक और महत्वपूर्ण बात: 
मतदाता पहचान पत्रों के निर्माण में 'राजभाषा' की अनदेखी अनवरत जारी है. हिन्दीभाषी राज्यों को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य में मतदाता पहचान पत्रों पर हिंदी का एक भी अक्षर इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसी तरह हिंदी एवं अहिन्दीभाषी दोनों राज्यों में मतदाता पहचान पत्रों पर अंग्रेजी को ऊपर लिखा जाता है और हिंदी अथवा सम्बंधित राज्य की भाषा को अंग्रेजी के नीचे. चुनाव आयोग से पूछा जाए कि 'क्या हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाएँ अंग्रेजी से निम्नतर हैं?
क्या यह १९९२ में बने नियम का उल्लंघन नहीं है जिसमें कहा गया था कि हिन्दी का प्रयोग किसी भी दस्तावेज/फॉर्म/पहचान पत्र में 'अंग्रेजी' से ऊपर/आगे/पहले किया जाना चाहिए.  (नमूने के तौर पर कुछ मतदाता पहचान पत्रों को संलग्न किया है)
आप बताइए: अहिन्दीभाषी राज्यों (तमिलनाडु जहाँ हिंदी का विरोध था) के मतदाता पहचान पत्रों  में हिंदी को कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए ? और किसलिए नहीं दिया जाना चाहिए?

आपके उत्तर की प्रतीक्षा करूँगा. आशा करता हूँ कि आप इन बातों का शीघ्र संज्ञान लेकर कार्यवाही करेंगे .









शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

देहातियों की भाषा में क्यों हो न्याय ?

न्यायालय  के निर्णय हिंदी में देने की अपील

न्यायालय के निर्णयों  को हिंदी में देने के लिए अदालत से गुजारिश करने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा। उत्तराखंड के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता  चंद्रशेखर उपाध्याय यह मुहिम शुरू करने वाले हैं।

उन्होंने बताया कि वह प्रदेश के सभी नागरिकों से अपील करेंगे कि वह उच्च न्यायालय  के माननीय मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर यह मांग करें कि वह अपने निर्णय हिंदी में सुनाएं, ताकि आम आदमी अपनी भाषा में उस निर्णय को जान सके जो उसके बारे में लिया जाता है।

नैनीताल उच्च न्यायालय  के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह

चंद्रशेखर ने बताया कि पत्र के माध्यम से नैनीताल उच्च न्यायालय  के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया जाएगा कि वह 14 सितंबर 2013 से उच्च न्यायालय के सभी न्यायमूर्तिगण की संपूर्ण कार्यवाही हिंदी में करने और निर्णय हिंदी में देने का निर्देश दें। उन्होंने प्रदेश के लोगों से अपील की है कि वह इस आशय का पोस्टकार्ड या अन्य संचार माध्यम से अपनी अपील नैनीताल उच्च न्यायालय  के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचाएं।

उपाध्याय ने बताया कि पहला पोस्टकार्ड चिपको आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा और जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर जूनापीठाधीश्वर आचार्य अवधेशानंद गिरी से लिखवाकर मुख्य न्यायाधीश को भेजा जाएगा। उन्होंने वीर सैनिकों के परिवारों से भी अपील की है कि वे न्यायाधीश को इस आशय का पोस्टकार्ड भेजें। चंद्रशेखर ने बार काउंसिल सहित सभी जनपदों की बार एसोसिएशन से भी अपील की कि वह अपने हस्ताक्षरयुक्त पोस्टकार्ड मुख्य न्यायाधीश को भेजें।

युवाओं से भी अपील की

उन्होंने प्रत्येक बुद्धिजीवी, प्रबुद्ध नागरिक, स्वयंसेवी संगठन, सामाजिक संगठन, गैर सरकारी संस्थाओं के साथ ही युवाओं से भी अपील की है। उन्होंने मुख्यमंत्री, लोकसभा के पांचों सदस्यों, सभी राज्यसभा सदस्यों, विधायक और जनप्रतिनिधियों से भी अपील की है कि वह इस आशय का पत्र माननीय न्यायाधीश को भेजने का कष्ट करें।

नैनीताल में उत्तराखंड उच्च न्यायालय

www.highcourtofuttarakhand.gov.in
ईमेल: highcourt-ua@nic.in और hcprotocol-ua@nic.in


ईपीएबीएक्स सं. 05942-235388 फैक्स: 231692
क्र.
नाम व पदनाम

विस्तार

पीएसटीएन फोन
1.     
माननीय मुख्य न्यायाधीश

कार्यालय -213
 आवास  322
कार्यालय -231691
आवास  231694
2.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री कल्याण ज्योति सेनगुप्ता

कार्यालय -249
कार्यालय -233363
आवास  231696
3.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री प्रफुल्ल. सी. पंत

कार्यालय  310
 आवास  319
कार्यालय -233364
आवास  233057
4.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री बी.एस. वर्मा

कार्यालय -253

कार्यालय -239655
आवास  233377
5.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री वी.के. बिष्ट

कार्यालय  210
कार्यालय -232775
आवास  232774
6.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री सुधांशु धूलिया

कार्यालय -335
कार्यालय -232511
आवास  235548
7.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री आलोक सिंह

कार्यालय -247
कार्यालय -239171
आवास  237151
8.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री एस.के. गुप्ता

कार्यालय -252
कार्यालय -231695
आवास  231693
9.     
माननीय न्यायमूर्ति श्री यू.सी. ध्यानी

कार्यालय -323
कार्यालय -233361
आवास  233362
10.   
महापंजीयक (श्री राम सिंह)
मो. 9760455056 
मो. 9456591996

कार्यालय -205
आवास  321
कार्यालय  232085 / फैक्स: 237721
आवास  231721

ईमेल का एक प्रारूप:

माननीय मुख्य न्यायाधीश
उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल

विषय: उत्तराखंड उच्च न्यायालय में नागरिकों की भाषा में न्याय पाने का अधिकार

महोदय,

उत्तराखंड राज्य की भाषा हिंदी है और सभी सरकारी कामकाजों में भी हिंदी को ही इस्तेमाल किया जाता है. निचली अदालतों में न्यायालयीन कामकाज हिंदी में होता है और राज्य के काफी कम नागरिक ही अंग्रेजी जानते हैं. इसलिए उच्च न्यायालय से निवेदन है कि अंग्रेजी ना जानने वाले नागरिकों को न्याय पाने के अधिकार में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की जाए.

न्यायालय हिंदी में निर्णय देने की पहल करे तथा आम जनता को हिंदी में अपने मामले रखने की अनुमति दी जाए. अंग्रेजी के नाम पर आम नागरिकों के न्याय पाने के अधिकारों का हनन ना हो इसे सुनिश्चित किया जाए.

धन्यवाद

भवदीय

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