अनुवाद

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

इण्डिया हटाओ भारत लौटाओ : जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी


20 दिसंबर 2015.                                                                                                     
रहली (ज़िला-सागर मध्यप्रदेश) में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिवस पर गजरथ यात्रा के बाद चारों दिशाओं से भक्तिवश पधारे लगभग एक लाख जैन-अजैन श्रद्धालुओं को उदबोधन देते हुए योगीश्वर कन्नडभाषी संत दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने धर्म-देशना की अपेक्षा राष्ट्र और समाज में आए भटकाव  का स्मरण  कराते  हुए कहा कि आज जवान पीढ़ी का  ख़ून सोया हुआ है। कविता ऐसी लिखो कि रक्त में संचार आ जाय। उसका इरादा 'इण्डिया' नहीं 'भारत' के लिये बदल जाय। वह पहले  भारत को याद रखें। भारत  याद   रहेगा, तो धर्म-परम्परा याद रहेगी। पूर्वजों ने भारत के भविष्य के लिये क्या सोचा होगा?

उनकी भावना भावी पीढ़ी को लाभान्वित करने  की  रही थी। वे भारत का गौरव,   धरोहर और परम्परा को अक्षुण्ण चाहते थे। धर्म की परम्परा  बहुत बड़ी  मानी जाती है। इसे  बच्चों  को  समझाना है। आज  ज़िंदगी जा रही है। साधना करो। साधना  अभिशाप को भगवान बना  देती है। जो  हमारी धरोहर है। जिसे हम गिरने  नहीं देंगे।

महाराणा  प्रताप ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। उनके और उन जैसों के स्वाभिमान के बल पर हम आज जीवित हैं। भारत  को स्वतन्त्र  हुए सत्तर वर्ष  हो  गए हैं। स्वतन्त्र  का अर्थ होता है-'स्व  और तन्त्र'।  तन्त्र आत्मा का होना  चाहिए। आज हम, हमारा राष्ट्र एक-एक पाई  के लिए परतंत्र हो चुका है। हम हाथ किसी के आगे नहीं पसारें।   महाराणा प्रताप को देखो, उन जैसा स्वाभिमान  चाहिए। उनसे है भारत की गौरवगाथा। आज हमारे भारत की पूछ  नहीं हो  रही है ?  मैं अपना ख़ज़ाना  आप लोगों  के सामने रख  रहा हूं। आप  लोगों में मुस्कान देख रहा हूँ। मैं भी  मुस्करा रहा हूं। हमें बता दो, भारत का नाम 'इण्डिया' किसने रखा? भारत का नाम 'इण्डिया' क्यों रखा गया? भारत 'इण्डियाक्यों बन गया?  क्या भारत का अनुवाद  'इण्डिया' है? इण्डियन का अर्थ क्या है? है कोई व्यक्ति जो इस बारे में बता सके?  हम भारतीय हैं, ऐसा हम स्वाभिमान के साथ कहते नहीं हैं। अपितु गौरव के साथ कहते  हैं, 'व्ही आर इण्डियन'।  कहना चाहिए- 'व्ही आर भारतीय'।  भारत का कोई अनुवाद नहीं होता। प्राचीन समय में 'इण्डियानहीं कहा जाता था।  भारत को भारत के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। युग के आदि में ऋषभनाथ के ज्येष्ठ पुत्र 'भरत'  के नाम पर भारत नाम पड़ा है। उन्होंने भारत की भूमि को संरक्षित किया है। यह ही आर्यावर्त 'भारत' माना गया है। जिसे 'इण्डिया' कहा जा रहा है। आप हैरान हो जावेंगे, पाठ्य-पुस्तकों के कोर्स में 'इण्डियन' का जो अर्थ   लिखा गया है, वह क्यों पढ़ाया जा रहा है?  इसका किसी के पास क्या कोई जवाब है? केवल इतना लिखा गया है कि  अंग्रेज़ों ने ढाई सौ वर्ष तक हम पर अपना राज्य किया, इसलिए हमारे देश 'भारत' के लोगों का नाम 'इण्डियन' का  पड़ गया है।

इससे भी अधिक विचार यह करना है कि है कि चीन हमसे  भी ज़्यादा परतन्त्र  रहा है। उसे हमसे दो या तीन साल बाद स्वतन्त्रता मिली है। उससे पहले स्वतन्त्रता हमें मिली है। चीन को जिस दिन स्वतन्त्रता मिली थी, तब उनके सर्वेसर्वा नेता ने कहा था कि हमें स्वतन्त्रता की प्रतीक्षा थी। अब हम स्वतन्त्र हो गए हैं। अब हमें सर्वप्रथम अपनी भाषा चीनी को सम्हालना है।परतन्त्र अवस्था में हम अपनी भाषा चीनी को क़ायम रख नहीं सके थे। साथियों ने सलाह दी थी कि चार-पाँच  साल बाद अपनी भाषा को अपना लेंगे। किन्तु मुखिया ने किसी की सलाह को नहीं मानते हुए चीना भाषा को देश की भाषा घोषित किया। नेता ने कहा चीन स्वतन्त्र हो गया है और अपनी भाषा चीनी को छोड़ नहीं सकते हैं। आज की रात से  चीन में की भाषा चीनी प्रारम्भ होगी और उसी रात से वहाँ  चीन की भाषा चीनी प्रारंभ हो गयी। भारत में कोई ऐसा व्यक्ति है जो चीन के समान हमारे देश की भाषा तत्काल प्रारम्भ कर दे

कोई भी कठिनाई आ जाय देश के गौरव और स्वाभिमान को छोड़ नहीं सकते हैं। सत्तर वर्ष अपने देश को स्वतन्त्र  हुए हो गए हैं। हमारी भाषाऐं बहुत पीछे हो गयी हैं। अंग्रेजी भाषा को  शिक्षा  का माध्यम  बनाने की ग़लती  की गयी। मैं भाषा सीखने के लिए अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा  को सीखने का विरोध नहीं करता हूँ। किंतु देश  की   भाषा के ऊपर कोई अन्य भाषा नहीं हो सकती है। अंग्रेजी भारत की भाषा कभी नहीं थी और न कभी होनी चाहिए। अंग्रेजी अन्य विदेशी भाषाओं के समान ज्ञान प्राप्त करने का साधन मात्र है। विदेशी भाषा अंग्रेजी में हम अपना सब कुछ काम करने लग गए, यह ग़लत है। हमें दादी के साथ दादी की भाषा जो यहाँ बुन्देलखण्डी है, उसी में बात करना चाहिए। जो यहाँ सभी को समझ में आ जाती है। मैं कहता हूँ ऐसा ही अनुष्ठान करें। 

लीक से हट कर प्रवचन:
प्रस्तुति: 
निर्मलकुमार पाटोदी
विद्या-निलय, ४५, शांति निकेतन
इन्दौर- ४५२०१०
मो. ०७८६९९-१७०७० मेल: nirmal.patodi@gmail.com

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

हमारा देश कब मुक्त होगा इण्डिया नाम से


राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार को सत्ता में आए एक वर्ष से अधिक हो चुका है। राष्ट्रवादी सरकार से जैसी उम्मीद थी, उसके विपरीत हर नई योजना का नाम अंग्रेजी में रख रही है और इन नई-नई योजनाओं के प्रतीक-चिह्न बनाने के लिए केवल अंग्रेजी विज्ञापन और अंग्रेजी के महंगे अख़बारों में छपवाए जा रहे हैं। इन योजनाओं के लिए सुझाव भी जनता से अंग्रेजी माध्यम में बनी वेबसाइटों और अंग्रेजी में छपे दिशा निर्देशों और नियमों के द्वारा आमंत्रित किए जा रहे हैं। नई योजनाओं के लोकार्पण के कार्यक्रम अब लांच फंक्शन कहलाते हैं और इनमें सभी बैनर, पोस्टर और अतिथि नामपट आदि केवल अंग्रेजी में छपवाए जाते हैं। आश्चर्य इस बात का है कि विदेशी सरकारें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं के दौरान यही सब अपने देश की भाषा एवं हिंदी में तैयार करवाती हैं, ताकि भारत से घनिष्ठता और उसके प्रति सम्मान को सिद्ध कर सकें। 

मेरे हिंदी में लगाए गए आरटीआई आवेदन के अंग्रेजी में भेजे गए उत्तर में एक मंत्रालय ने बताया है कि 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान के लिए प्रतीक चिह्न प्रतियोगिता का विज्ञापन केवल अंग्रेजी में तैयार किया गया था और जिस पर अख़बारों को लगभग 8 लाख रुपए का भुगतान किया गया। अंग्रेजी अख़बारों पर लगभग 7 लाख रुपये खर्च किए गए। हिंदी समाचार-पत्रों पर लगभग 60 हज़ार एवं प्रांतीय भाषा के अख़बारों में छपे विज्ञापन पर मात्र 15 हज़ार खर्च किए गए। यह मात्र एक उदाहरण है, राजभाषा/भारतीय भाषाओं का हर मंत्रालय में यही हाल है। 


प्रधानमंत्री कार्यालय ने तो बाकायदा प्रधानमंत्री के भाषणों के लिए 'हिंगलिश' को राजभाषा का दर्जा दे दिया, आम आदमी को प्रधानमंत्री के तथाकथित हिंदी भाषणों को पढ़ने के लिए रोमन लिपि और अंग्रेजी भाषा दोनों का ज्ञान अनिवार्य है। प्रमका में प्रमं के भाषण लिखने वाला अधिकारी अंग्रेजी का बहुत बड़ा पैरोकार है, यह बात मैं मनमोहन सिंह के कार्यकाल से अनुभव कर रहा हूं। पिछले पांच साल के भाषण देख लीजिए, सभी हिंगलिश में लिखे जा रहे हैं। पत्र सूचना कार्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध ये भाषण वही पढ़ सकता है, जो हिंदी के साथ अंग्रेजी पढ़ना और समझना जानता हो, सिर्फ हिंदी जानने वाले इन भाषणों को पढ़ नहीं सकते हैं। 

राष्ट्रवादी सरकार शीघ्र ही हमारे देश का नाम इंडिया घोषित कर दे और भारत नाम पर प्रतिबंध लगा दे तो अचरज ना कीजिएगा। जो काम कांग्रेस ना कर सकी वह काम राष्ट्रवादी सरकार करेगी!

मेक इन इंडिया 
डिजिटल इंडिया 
स्किल इंडिया 
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ़ इंडिया 
माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनैंस एजेंसी 
माई गव वेबसाइट 
टीम इंडिया 
ग्रीन इंडिया 
और ऐसे नामों की सूची लम्बी है... 

बुधवार, 24 जून 2015

प्रधानमंत्री कार्यालय में अंग्रेजी का राज

माननीय प्रधानमंत्री हिंदी को वरीयता देते हैं पर उनके कार्यालय ("प्रमका") के अधिकारियों को राजभाषा हिन्दी से कोई लेना देना नहीं है इसलिए भारत सरकार द्वारा आरम्भ की आम जनता की योजनाओं की जानकारी केवल अंग्रेजी में जारी कर रहे हैं और स्वयं प्रमं के दृष्टिकोण को पलीता लग रहा है और हर योजना -राजकार्य में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जा रही है. सरकार के काम और योजनाओं की जानकारी/ऑनलाइन सुविधाएं हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में ना दिए जाने से योजनाएं तो फेल होंगी ही, सरकार की साख में सुधार भी नहीं होगा। 

शिकायत के प्रमुख बिंदु:

१. प्रधानमंत्री जी की वेबसाइट पूर्व निर्धारित रूप में (बाय डिफ़ॉल्ट) अंग्रेजी में खुलती है, वेबसाइट पर हिन्दी का विकल्प है पर वेबसाइट द्विभाषी नहीं है. जब मनमोहन सिंह प्रमं थे तब वेबसाइट का मुखपृष्ठ (होमपेज) 100 % द्विभाषी था और इस तरह हिंदी को प्राथमिकता दी गयी थी. प्रमका के अधिकारीगण से कहें कि मुखपृष्ठ 100 % द्विभाषी बनाया जाना चाहिए।
२. हिन्दी वेबसाइट होमपेज पर बैनर में 'भारत के प्रधानमंत्री' के बजाय 'PMINDIA' लिखा गया है.
३. प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा अब तक हिंदी में विज्ञप्ति लिखने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है और पत्र सूचना कार्यालय से अंग्रेजी विज्ञप्ति के अनुवाद के लिए इंतज़ार किया जाता है, जो २-३ घंटे के बाद जारी हो पाता है. कई मामलों में किसी-किसी विज्ञप्ति का अनुवाद वेबसाइट पर कभी भी नहीं डाला जाता है. विज्ञप्ति मूल रूप से हिन्दी में तैयार करने के लिए निर्देश दें.
४. हिन्दी वेबसाइट की किसी पोस्ट पर 'टिप्पणी करें' विकल्प चुनने पर टिप्पणी लिखने का फॉर्म सिर्फ अंग्रेजी में होता है और उस फॉर्म में देवनागरी में नाम/पता/टिप्पणी स्वीकृत नहीं है. टिप्पणी लिखने के लिए सत्यापन (वेरिफिकेशन) के लिए ईमेल सिर्फ अंग्रेजी में भेजा जाता है जबकि गूगल की सेवाओं की तरह ऐसे ईमेल और एसएमएस द्विभाषी (हिन्दी -अंग्रेजी) दोनों भाषाओं में भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए .
५. "प्रधानमंत्री को लिखें" विकल्प चुनने पर 'शिकायत पंजीकरण प्रपत्र' द्विभाषी खुलता है पर उसमें जिलों के नाम एवं 'शिकायत के विषय (श्रेणी) सिर्फ अंग्रेजी में हैं. 
६. हिन्दी वेबसाइट पर "हमारी सरकार" विकल्प के तहत अन्य नौ सरकारी वेबसाइटों को लिंक किया गया है उसमें संबंधित हिन्दी वेबसाइटों को लिंक किया जाना चाहिए ताकि वेबसाइट नाम पर क्लिक करने पर संबंधित हिन्दी वेबसाइट खुल जाए.
७. प्रमका ने ऑनलाइन प्रचार के लिए जो 'जनसम्पर्क एजेंसी नियुक्त की है वह नागरिकों को ईमेल सूचनाएँ /एसएमएस/ट्विटर अलर्ट/ ऑनलाइन विज्ञापन सिर्फ अंग्रेजी में भेजती है यह राजभाषा नियम 1976 एवं राजभाषा सम्बन्धी उन प्रावधानों का उल्लंघन है जिनमें यह कहा गया कि भारत सरकार नागरिकों को जनभाषा अथवा हिन्दी अथवा द्विभाषी रूप में पत्र लिखेगी। ईमेल पत्र की श्रेणी में आता है। जनता को ईमेल सिर्फ अंग्रेजी नहीं हिंदी-भारतीय भाषाओँ में भेजे जाने चाहिए। 
८. प्रमका की सोशल मीडिया टीम के अधिकारी  निरंतर राजभाषा की उपेक्षा कर रहे हैं, हिन्दी से सौतेला व्यवहार जारी है जबकि चीन की सोशल मीडिया साइट 'वेइबो' पर तो प्रमं के आधिकारिक खाते पर नाम/ परिचय/ताज़ा अपडेट मंदारिन (चीनी भाषा) में होते हैं पर भारत की जनता के लिए फेसबुक/ट्विटर/यू-ट्यूब/इंस्टाग्राम पर नाम-परिचय द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेजी) ना होकर सिर्फ #अंग्रेजी में है. इन पर हिन्दी में अपडेट एक महीने में 1-2 बार ही होता है जबकि नियमित अपडेट बारी-२ से द्विभाषी रूप में डाले जाने चाहिए ताकि अंग्रेजी ना जानने वाले #भारत के नागरिक भी इनका उपयोग कर सकें। नाम-परिचय भी द्विभाषी लिखने से राजभाषा हिन्दी को उसका सम्मान और स्थान मिल जाएगा। ऐसा करने में प्रमका का कोई परेशानी नहीं होगी, बस निर्देश दिए जाने की आवश्यकता है.
९. प्रमका की वेबसाइट का डोमेन नाम देवनागरी में पंजीकृत करवाएँ और विज्ञापनों में उसका प्रयोग किया जाए। प्रधानमंत्री कार्यालय की विज्ञप्तियाँ भारत की प्रमुख भाषाओं में वेबसाइट पर डाली जानी चाहिए। 
१०. प्रमका ने 'माई गव' वेबसाइट के लिए चिह्न में हिन्दी को अंग्रेजी के अक्षरों के नीचे रखा है जबकि हिन्दी ऊपर होनी चाहिए। 'माई गव' वेबसाइट का हिंदी संस्करण आधा अधूरा है और माई गव वेबसाइट के 90 % पृष्ठ केवल अंग्रेजी में खुलते हैं। पंजीकरण और फीडबैक में देवनागरी के अक्षर लिखने पर अंग्रेजी में सन्देश आता है ' इनवैलिड कैरेक्टर्स, उस ओन्ली अल्फावेट्स'
११. जनता द्वारा हिंदी में लिखे गए पत्रों  के जवाब प्रमका से अंग्रेजी में दिया जाता है।  ताज़ा उदाहरण 'भारतीय भाषा आंदोलन' के ज्ञापन का है, भारतीय भाषाओँ के लिए आंदोलन कर रहे लोगों के ज्ञापन का जवाब भी अंग्रेजी में दिया गया जो बेहद शर्मनाक बात है। 

शनिवार, 30 मई 2015

केन्द्रीय सूचना आयोग आज भी अंग्रेजों के लिए काम कर रहा है!

सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के अधीन गठित केन्द्रीय सूचना आयोग अपनी स्थापना के नौ वर्षों बाद भी  राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमावली का निरन्तर उल्लंघन कर रहा है. ना तो प्रेस-विज्ञप्तिनियम और निर्देश हिन्दी में जारी हो रहे हैं और ना ही आयोग ने आज तक अपनी दो वेबसाइट http://cic.gov.in/ एवं rti.gov.in द्विभाषी रूप में बनाई हैं. 


कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (जो प्रधानमंत्री जी के अधीन आता है) ने आरटीआई ऑनलाइन http://rtionline.gov.in/ 
वेबसाइट  तैयार करवाई है,  इस पर भारत के नागरिक भारत की राजभाषा हिन्दी में यूनिकोड फॉण्ट में आवेदन नहीं लगा सकते क्योंकि सिस्टम में हिंदी के अक्षरों को प्रतिबंधित किया गया है.  इस तरह कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने भारत के सत्तानवे प्रतिशत नागरिकों को हिन्दी में ऑनलाइन आवेदन लगाने से रोक रखा है. क्या यही लोकतंत्र है

राजभाषा अधिनियम की धारा ३ (३) के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण दस्तावेज भी केवल अंग्रेजी में जारी कर रहा है और संसाधनों के अभाव की दुहाई दे रहा हैजनता की भाषा में काम करने में भी यही रोना.  अखबारों में बार-२ पढ़ने को मिलता है कि आयोग सूचना कानून के  आरटीआई आवेदनों के सम्बन्ध में हिन्दी में लगाई गई शिकायतों एवं  प्रथम अपील के विरुद्ध लगाई जाने वाली द्वितीय अपीलों का निबटारा केवल अंग्रेजी में करता है. 
क्या आयोग में बैठे आयुक्तगणों में से किसी को भी हिन्दी का ज्ञान नहीं हैजो वे अपना शत-प्रतिशत काम केवल अंग्रेजी में निबटा रहे हैंऐसा कब तक चलेगाकेन्द्रीय सूचना आयोग संविधान द्वारा आम जनता को दिए गए अधिकारों का निरंतर उल्लंघन कर रहा है और आम जनता पर जबरन अंग्रेजी थोप रहा है और कोई इनके विरुद्ध हल्ला नहीं बोलता. 

यदि केन्द्रीय सूचना आयोग ही राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमावली  का इस तरह उल्लंघन करेगा तो सूचना कानून के तहत द्वितीय अपील लगाने वाले अंग्रेजी ना जानने वाले भारत के प्रताड़ित नागरिक किस की शरण लेंगेक्या आरटीआई आवेदनों के सम्बन्ध में  हिन्दी में लगाई गई शिकायतों  एवं प्रथम अपील के विरुद्ध लगाई जाने वाली द्वितीय अपीलों के निर्णय अंग्रेजी में भेजे जाते रहेंगे ताकि आम नागरिक को और प्रताड़ित किया जा सके. आयोग स्वयं जानते बूझते हुए राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है.

केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों से आप पूछिए कि क्या वे ऐसी भाषा में लिखी अपीलों का निर्णय कर सकते हैं जो भाषा उनको ना आती हो (जैसे जर्मन-फ्रेंच). यदि नहींतो फिर भारत के आम एवं गरीब नागरिकों द्वारा अपनी भाषा में लगाई जाने वाली अपीलों का निपटारा आयोग अंग्रेजी में किसलिए कर रहा हैयदि आयुक्त हिंदी में लिखी अपील समझ सकता हैपढ़ लेता है तो वह उसका निर्णय/आदेश हिन्दी में क्यों नहीं लिखताद्वितीय अपील के विरुद्ध अंतिम विकल्प के रूप में केवल 'उच्च न्यायालयका सहारा होता है तो क्या हिन्दी में द्वितीय अपील लगाने वाले आवेदकों को हिन्दी में उत्तर पाने के लिए हर बार उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा?

केन्द्रीय सूचना आयोग के द्वारा राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के निरंतर और जानबूझ कर किए जा रहे उल्लंघन के सम्बन्ध में पिछले तीन वर्षों में यह मेरा 15वां ईमेल/अनुस्मारक है. केन्द्रीय सूचना आयोग को मैंने सबसे पहला ईमेल 2 नवम्बर 2012 को लिखा था उसके बाद मैं निम्नलिखित ईमेल/ईमेल अनुस्मारक राजभाषा विभाग एवं केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों को लिख चुका हूँ:

         i.            नवम्बर 2012
       ii.            23 नवम्बर 2012
      iii.            15 दिसंबर 2012 
     iv.            27 फरवरी 2013
       v.            15 मार्च 2013 
     vi.            19 मार्च 2013
    vii.            22 मार्च 2013
  viii.            26 मार्च 2013 
     ix.            19 अप्रैल 2013
       x.            10 मई 2013 
     xi.            23 मई 2013
    xii.            17 अगस्त 2013
  xiii.            21 सितम्बर 2013
  xiv.            14 दिसंबर 2014
   
4 सितम्बर 2013 को एक आर टी आई आवेदन लगाया थाआयोग ने इसमें माँगी गई जानकारी नहीं दी थी. बाकी किसी भी ईमेल अथवा मेरे ईमेल शिकायत को राजभाषा विभाग द्वारा अग्रेषित करने के बाद भी आयोग के आयुक्तों/सचिवों अथवा अधिकारियों ने हमारी शिकायतों पर अब तक कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की है और न ही एक बार भी कोई जवाब दिया. हमारे मित्र तुषार कोठारी एवं अन्य लोग केन्द्रीय सूचना आयोग को राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के उल्लंघनों के बारे सैकड़ों ईमेल लिख चुके हैं.
केन्द्रीय सूचना आयोग के अधिकारियों/आयुक्तों/सचिवों की कार्यप्रणाली का सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि आयोग ने आम जनता से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर तीन साल बाद निरंतर लिखने के बाद राजभाषा कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए कदम उठाना तो दूर की बात है, आज तक एक भी ईमेल का उत्तर नहीं दिया.  वस्तुतः केन्द्रीय सूचना आयोग अपने कार्यालय में हिन्दी का प्रयोग जानबूझ कर रोक रहा है ताकि आम जनता को सूचनाओं और अपीलों के नाम पर उलझाए रखा जा सके.

हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा सिर्फ अंग्रेजी” में करनाएक सोची समझी चाल है:

केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा सिर्फ अंग्रेजी में करनाएक सोची समझी चाल है ताकि आम जनता को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा सके. अंग्रेजी में निपटारा होने से शिकायतकर्ता और अपीलकर्ता दूसरों का मुंह ताकते रहते हैं. आयोग के हाथ मेंअंग्रेजी’ शोषण करने का सबसे बड़ा और आसान हथियार है. क्या आयोग के आयुक्त किसी ऐसी अपील का निपटारा कर सकते हैं जो चीनी भाषा मंदारिनमें लगाई गई होफिर आयोग हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा सिर्फ अंग्रेजी” में किसलिए कर रहा हैयह हिन्दी में द्वितीय अपीलों और शिकायतों को दर्ज करवाने वालों के खिलाफ षड्यंत्र हैअन्याय हैइस पर तुरंत रोक लगायी जानी चाहिए.

बुधवार, 20 मई 2015

महाराणा प्रताप की पुत्री चम्पा

चम्पा

महाराणा प्रताप का नाम कौन नहीं जानता? यही एक ऐसा सूरमा था, जिसने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं कीं । वे हिन्दू कुल के गौरव को सदा सुरक्षित रखने में तल्लीन रहे। इसी महाप्रतापी राजा की पुत्री का नाम चम्पा था।
    
अकबर द्वारा चित्तौड़ पर अधिकार कर लेने के पश्चात् महाराणा प्रताप अरावली पर्वत की घटियों, गुफाओं तथा वनों में परिवार सहित भटक रहे थे। रात को भूमि पर सोते, दिन भर पैदल चलते। बच्चे जंगली बेर तथा घास की रोटियाँ खाकर किसी तरह गुजारा कर रहे थे। कभी-कभी तो उपवास ही करना पड़ जाता था। कितना मार्मिक एवम् हृदय विदारक दृश्य था।
    
चम्पा ग्यारह वर्ष की हो चुकी थी। महाराणा प्रताप का एक पुत्र भी था जो उस समय चार वर्ष का था। एक दिन दोनों बच्चे नदी तट पर खेल रहे थे। पुत्र को भूख लगी। वह रोते हुए रोटी माँगने लगा। चम्पा अपने भाई का दुःख समझ रही थी। उसने उसे उठा लिया और उसे कहानी सुनाने लगी। अच्छे-अच्छे फूल चुने और उसकी माला बनाकर बच्चे को पहनायी । किसी तरह उसे फुसला कर बहला दिया। वह गोद में ही सो गया। उसे माँ के पास लेकर आयी तो देखा महाराणा प्रताप चिन्तित बैठे थे।
    
पिता को चिन्तित देख चम्पा ने पूछा,“पिता जी ! आप कुछ उदासीन एवम् चिन्तित मुद्रा में है!  क्या कारण है?“
    
महाराणा प्रताप ने भाव विभोर हो कहा, ’बेटी! कोई बात नही है। मैं यह सोच रहा था कि आज हमारे यहाँ एक अतिथि आ गये है।

उन्हें क्या खिलाऊँ ? मेरे द्वार पर आया अतिथि भूखा चला जाए यह कदापि नहीं होना चाहिए। क्या करूँ?“
    
चम्पा ने कहा,“पिताजी ! आप इतनी सी बात के लिए चिन्तित हैं। अतिथि भूखा नहीं जायेगा। आप ने जो कल मुझे दो रोटियाँ दी थीं मैंने वे खायी नहीं है। वह रक्खी हैं  मैंने वे रोटियाँ छोटे भाई के लिए रक्खी हैं परन्तु वह अब सो गया है।“ यह कहकर चम्पा दौड़ कर पत्थर के नीचे से दो राटियाँ उठा लाई। पिता जी को देते हुए बोली,“आप ले जाकर प्रेम पूर्वक अतिथि का सत्कार करें।“
    
महाराणा प्रताप ने चटनी और रोटी अतिथि को दी। वह रोटियाँ खाकर चला गया। घास की रोटियाँ उसे कितनी स्वादिष्ट लगी होंगी, भगवान ही जानता है। परन्तु महाराणा प्रताप से बच्चों का यह कष्ट नहीं देखा जा रहा था। उनके मन में विचार आया कि वे अकबर की अधीनता अब स्वीकार कर लें। उन्होंने अकबर को एक पत्र लिखा। 
    
चम्पा भूख से त्रस्त थी। वह मूर्छित हो गयी। महाराणा प्रताप ने बेटी को गोद में उठाते गए रुंधे स्वर में कहा, “बेटी अब तुझे कष्ट नहीं होगा। मैंने अकबर को पत्र लिख दिया है।“
    
चम्पा चौंककर उठी। मानों उसे बिजली का तार छू गया हो। वह बोल उठी, पिता जी! आपने यह क्या किया? आप अकबर की दासता स्वीकार करेंगे। हम लोगों के सुख के लिए आप दास बनेंगे। आपने हम लोगों को शिक्षा दी है कि देश के गौरव की रक्षा के लिए मर जाना चाहिए। आप ही देश को नीचा दिखायेंगे । पिता जी! आप को मेरी सौगन्ध है! आप अकबर की अधीनता स्वप्न में भी कभी न स्वीकारें।..........पिता जी आप को ................................." 

कहते-कहते चम्पा पिता की गोद में सदा सदा के लिए चुप हो गयी। इधर अकबर के दरबार में जब महाराणा का पत्र पहुँचा तो वह  पृथ्वीराज जी के हाथ में लगा। पृथ्वी राज जी ने महाराणा को पत्र लिखा जिसे पढ़कर महाराणा प्रताप ने अधीनता का विचार छोड़ दिया। उन्हें अपनी बेटी चम्पा के बलिदान का करूण दृश्य जैसे हिम्मत बॅधा गया हो। वे उस प्रेरणा से हिन्दू कुल गौरव की रक्षा के लिए पुनः प्रयत्नशील हो उठे।

साभार: 

मंगलवार, 19 मई 2015

वेबसाइट पर भारत के नक़्शे में से पाक कब्जे वाला कश्मीर गायब

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा : http://efclearance.nic.in/ वेबसाइट पर भारत के नक़्शे में से पाक कब्जे वाला कश्मीर गायब 18 अप्रैल 2015 को 2:37 अपराह्न

17 अक्तूबर 2014 को 6:24 अपराह्न को भेजी गई मेरी शिकायत का संज्ञान लें, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में हर स्तर पर राजभाषा #हिन्दी का मखौल उड़ाया जा रहा है।  राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम एवं राजभाषा सम्बन्धी हर प्रावधान का हर स्तर पर उल्लंघन किया जा रहा है। 

इन बातों को देखकर लगता है कि यह मंत्रालय शायद अब भी अंग्रेज सरकार के लिए काम कर रहा है, उसे भारत के कानूनों और राष्ट्रपति जी के आदेशों की परवाह नहीं है। पर्यावरण जैसे विषय पर जनता में जागरुकता के लिए मंत्रालय को सभी भारतीय भाषाओं में अधिनियम/नियम/नीतियाँ जारी करनी चाहिए ताकि जनता इनके संरक्षण में योगदान दे सके। अंग्रेजी भाषा से ना तो पर्यावरण का भला होगा, ना सरकार का और नहीं ऐसे भारत देश का, जहाँ 95% जनता अंग्रेजी ना तो पढ़ पाती है और ना समझ सकती है । दुनिया के सभी विकसित देशों में सरकारें वेबसाइटों एवं एवं ऑनलाइन सेवाओं में नागरिकों द्वारा समझी जाने वाली अधिक से अधिक भाषाओं को जोड़ रही हैं और एक भारत सरकार है जो अन्य भारतीय भाषाओं (तमिल, तेलुगू, मराठी आदि) की तो बात दूर है अपनी राजभाषा #हिन्दी में ऑनलाइन सेवाएँ/वेबसाइटों को बनाने के लिए तैयार नहीं।  हम जैसे नागरिक बार शिकायत करके अपना बहुमूल्य समय और धन बर्बाद कर रहे हैं और अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

शिकायत के मुख्य बिंदु  :
1.    आम नागरिकों को हिंदी  में भेजे आवेदनों/शिकायतों का कभी भी कोई जवाब नहीं दिया जाता है। 
2.    हिंदी में आर टी आई आवेदन लगाया जाए तो उसका जवाब अंग्रेजी में दिया जाता है। 
3.    राजभाषा अधिनियम की धारा 3 (3) के अंतर्गत आने वाले 14 अनिवार्य दस्तावेज द्विभाषी रूप में जारी ना करके केवल अंग्रेजी में जा रहे हैं। (एक-दो अपवाद हो सकते हैं)
4.    मंत्रालय की हिंदी वेबसाइट छः से दस-दस महीने में भी अद्यतित नहीं की जाती। हिंदी वेबसाइट पर फाइलें/विज्ञप्तियां /फॉर्म/आवेदन प्रारूप आदि/ अन्य वेबसाइट के लिंक सिर्फ अंग्रेजी में हैं। पर्यावरण सम्बन्धी सभी कानून/ नियम/ नीतियाँ केवल अंग्रेजी में हैं। उदाहरण अनेक हैं : -----
5.    संसद के प्रश्न एवं उत्तर
जल्द ही आ रहा है.

6.    पर्यावरण  एवं वन्य जीव स्वीकृति के ऑनलाइन आवेदन केवल अंग्रेजी में बनाए गए हैं। मंत्रालय के अधिकारी राष्ट्रपति जी के आदेश के बाद भी ऑनलाइन सेवाएँ http://efclearance.nic.in/http://environmentclearance.nic.in/http://forestsclearance.nic.in/ राजभाषा में शुरू करने को तैयार नहीं हैं इन वेबसाइटों पर हिन्दी में पर्यावरण का '' भी देखने को नहीं मिलेगा.        
7.    मंत्रालय की सभी वेबसाइटें सिर्फ अंग्रेजी में ही बनाई जा रही हैं, इनमें ज्यादातर के प्रतीक-चिह्न लोगो भी सिर्फ अंग्रेजी में बनाए गए हैं  जैसे: http://projecttiger.nic.in/http://envis.nic.in/,http://ntcavillagerelocation.nic.ihttp://www.tigernet.nic.inhttp://ifs.nic.inhttp://cza.nic.in/ 
8.    मंत्रालय की http://efclearance.nic.in/ वेबसाइट पर भारत के नक़्शे में से पाक कब्जे वाला कश्मीर उड़ा दिया गया है. ( चित्र देखें)
9.    उक्त मंत्रालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय  अधिकतर कार्यक्रमों/ बैठकों के  आमंत्रण -पत्र/ बैज (बिल्ले), ईमेल आमन्त्रण-पत्र, प्रवेश-पास, बैनर-पोस्टर-अतिथि नाम-पट केवल अंग्रेजी में बनाए जाते हैं। उक्त मंत्रालय द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों/ बैठकों के  अतिथि नामपट केवल अंग्रेजी में ही बनाए जाते हैं।  (अक्तूबर २०१४ से लेकर आज अप्रैल २०१५ तक इस मंत्रालय द्वारा अथवा इसके अधीनस्थ कार्यालयों द्वारा आयोजित अथवा गैर-सरकारी संस्थान द्वारा मंत्रालय के साथ सह-आयोजन में कई कार्यक्रम किए उनमें से 21 चित्र यहाँ पूर्ण विवरण के साथ संलग्न कर रहा हूँ. 

    (सभी चित्र अप्रैल 2015 से लेकर अक्तूबर 2014 तक तिथि के अनुसार)
1.  केंद्रीय पर्यावरणवन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावडेकर 13 अप्रैल, 2015 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(एनसीआर) के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक के बारे में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए।
2.  पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावडेकर अप्रैल, 2015 को नई दिल्ली में राज्यों के पर्यावरण और वन मंत्रियों के दो-दिवसीय सम्मेलन के समापन अवसर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए। साथ में पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन सचिव श्री अशोक लवासा भी हैं।
3.  पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर अप्रैल, 2015 को पर्यावरण भवननई दिल्ली में 'बायोडाइर्वसिटी ग्रीन हाटका उद्घाटन करने के बाद प्रदर्शनी का मुआयना करते हुए। साथ में पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन सचिव श्री अशोक लवासा भी हैं।
4.      पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर अप्रैल, 2015 को पर्यावरण भवननई दिल्ली में 'बायोडाइर्वसिटी ग्रीन हाटका उद्घाटन करते हुए। साथ में पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन सचिव श्री अशोक लवासा भी हैं।
5.      The Minister of State for Environment, Forest and Climate Change (Independent Charge), Shri Prakash Javadekar addressing at the meeting of the Chief Wildlife Wardens of Tiger Range States and field Directors of Tiger Reserves, in New Delhi on March 18, 2015.
CNR :65938 Photo ID :63248

6.      The Minister of State for Environment, Forest and Climate Change (Independent Charge), Shri Prakash Javadekar addressing at the inauguration of the “International Conference on Global Environment Issues” organised by the National Green Tribunal, in New Delhi on March 14, 2015.
7.      पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर 23 फरवरी, 2015 को नई दिल्ली में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ई-बुक जारी करते हुए। साथ में हैंं पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन सचिव श्री अशोक लवासा।
8.      केन्द्रीय पर्यावरणवन एवं जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावड़ेकर 06 फरवरी, 2015 को नई दिल्ली में जलवायु परिवर्तन मुद्दों और'चिंतन शिविरपर प्रेस सम्मेलन को संबोधित करते हुए।
9.      The Minister of State for Environment, Forest and Climate Change (Independent Charge), Shri Prakash Javadekar addressing the Valedictory Session of the RE-INVEST 2015, in New Delhi on February 17, 2015. 
CNR :65103 Photo ID :62386

10.  पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन सचिव श्री अशोक लवासा फरवरी, 2015 को कोलकाता में भारतीय प्राणि सर्वेक्षण के शताब्दी समारोह के संबंध में भारतीय प्राणि सर्वेक्षण (जेडआईसी) द्वारा आयोजित पशु वर्गीकरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन- चुनौतियां और संभावनाएं” को संबोधित करते हुए।
11.  पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर फरवरी, 2015 को नई दिल्ली में, "जलवायु मसले पर वार्ता: भारत की जलवायु नीति और राष्ट्रीय स्तर पर संभावित निर्धारित योगदान (आईएनडीसी)" पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए।
12.  The Minister of State for Environment, Forest and Climate Change (Independent Charge), Shri Prakash Javadekar and the Environment Minister, Germany, Ms. Barbara Hendricks in a bilateral meeting, in New Delhi on January 28, 2015.
CNR :64442 Photo ID :61724

13.  पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्रीश्री प्रकाश जावड़ेकर 20 जनवरी, 2015 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा आयोजित उत्तम आचरण और वन्य जीव अपराध मॉनिटरिंग सिस्टम पर क्षेत्रीय निदेशक एवं मुख्य वन्यजीव वार्डन की बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए।
14.  पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्रीश्री प्रकाश जावड़ेकर 20 जनवरी, 2015 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा आयोजित उत्तम आचरण और वन्य जीव अपराध मॉनिटरिंग सिस्टम पर क्षेत्रीय निदेशक एवं मुख्य वन्यजीव वार्डन की बैठक के उद्घाटन सत्र में "इकोनॉमिक वैल्यूएशन ऑफ टाईगर रिजर्वस् इन इंडिया" शीर्षक की पुस्तक का विमोचन करते हुए।
15.  वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में श्री प्रकाश जावडेकर
16.  पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर दिसंबर, 2014 को नई दिल्ली में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए लीमा रवाना होने की पूर्व संध्या पर एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए।
17.  The Minister of State for Information and Broadcasting (I/C), Environment, Forest and Climate Change (I/C) and Parliamentary Affairs, Shri Prakash Javadekar addressing at the RBS ‘Earth Heroes’ Awards 2014., in New Delhi on November 04, 2014.
18.  केंद्रीय सूचना और प्रसारणपर्यावरणवन एंव जलवायु परिवर्तन(स्वतंत्र प्रभार) और संसदीय कार्य राज्य मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर नवम्बर,2014 को नई दिल्ली में विश्व चिडियाघर और एक्वेरियम संघ के सम्मेलन के उदघाटन के अवसर पर टिकट जारी करते हुए। पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन सचिव श्री अशोक लवासा भी इस अवसर पर मौजूद हैं।(फोटो आईडीः 58447, पसूका- हिन्दी इकाई)
19.  सूचना और पर्यावरण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार)पर्यावरणवन और जलवायु राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) तथा संसदीय कार्य मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर ने02 नवम्‍बर, 2014 को नई दिल्‍ली में वन्‍यजीवों के चोरी-छिपे शिकार और वन्‍य- उत्‍पादों के अवैध व्‍यापार के सिलसिले में राष्‍ट्रीय प्राणि विज्ञान उद्यान का दौरा किया.
20.  सूचना और प्रसारण (स्वतंत्र प्रभार)पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार) और संसदीय कार्य राज्यमंत्री श्री प्रकाश जावडेकर 27 अक्‍टूबर, 2014 को नई दिल्ली में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के उपायों को बढ़ावा देने के लिए आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर संबोधित करते हुए।
21.  सूचना एवं प्रसारण (स्वतंत्र प्रभार)पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार)तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्रीश्री प्रकाश जावड़ेकर 18 अक्टूबर, 2014 को नई दिल्ली में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चौथे स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर प्रकाशन का विमोचन करते हुए। साथ में पर्यावरणवन और जलवायु परिवर्तन सचिवश्री अशोक लवासा और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशन्यायमूर्ति रंजन गोगोई और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी हैं। (फोटो आईडी58067, पसूका-हिंदी इकाई) 

महोदय/महोदया,  पर्यावरण एवं वन मंत्रालय पर राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम एवं राजभाषा सम्बन्धी हर प्रावधान के उल्लंघन के लिए सचिव स्तर पर बात करते हुए कार्यवाही करें अन्यथा आवेदक को राष्ट्रपति महोदय के समक्ष याचिका लगाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।