अनुवाद

शुक्रवार, 31 मई 2013

भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की आयोजन समिति द्वारा राजभाषा अधिनियम का निरंतर उल्लंघन की शिकायत

प्रति,
श्री मनीष तिवारी 
माननीय राज्यमंत्री, 
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, 
नई दिल्ली 

विषय: भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की आयोजन समिति द्वारा राजभाषा अधिनियम का निरंतर उल्लंघन की शिकायत

माननीय महोदय,

हर वर्ष भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया) के आयोजन में हर स्तर पर भारत की राजभाषा की घोर उपेक्षा की जाती है और राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का खुला उल्लंघन होता है. उल्लंघन की बानगी कुछ इस प्रकार है : (क) समारोह के बैनर, पोस्टर, हस्त-पुस्तिकाएँ, सूची-पत्र (कैटलाग) केवल अंग्रेजी में छापे जाते हैं जबकि इन्हें अनिवार्य रूप से हिन्दी-अंग्रेजी दोनों में  होना चाहिए. (ख). समारोह का प्रतीकचिह्न  भी केवल अंग्रेजी में जारी किया जाता गया है और वर्षों से ऐसा हो रहा है. (ग) समारोह की वेबसाइट भी केवल अंग्रेजी में बनायी है. 

मैं पिछले ६ माह से आयोजन समिति के पदाधिकारियों को (इन ईमेल्स पर : iffifilms@gmail.comrikkykhan@yahoo.com, Tanu Rai <dff.tanurai@gmail.com>, Tanu Rai <entry4panorama@gmail.com>, ddpk-iffi@nic.in,iffiprogrammes@gmail.comलिख रहा हूँ , कई बार अनुस्मारक भी भेजे परन्तु आज तक कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है. इस ईमेल के साथ सभी ईमेल और अनुस्मारक जुड़े हुए है जो आयोजन अधिकारियों को भेजे गए.

मेरी शिकायत पर राजभाषा विभाग ने भी दिसंबर २०१२ में पत्र लिखा था उसका उत्तर भी इन्होंने ने नहीं दिया इसलिए आज आप को कष्ट दे रहा हूँ. आप मंत्रालय की मुखिया हैं इसलिए आपके एक निर्देश पर कार्यवाही हो सकती है. 

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आगामी भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में सभी बैनर-पोस्टर, हस्त-पुस्तिकाएँ, सूची-पत्र (कैटलाग) आदि में अंग्रेजी के साथ हिन्दी को अंग्रेजी के ऊपर प्राथमिकता देते हुए शामिल करने के निर्देश जारी करें. 

आगामी आयोजनों में संविधान के अनुच्छेद 343-351 तथा राजभाषा अधिनियम 1963 एवं भारत की राजभाषा नीति का ऐसा उल्लंघन ना हो इसके लिए कड़े निर्देश दें तथा भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की वेबसाइट हिन्दी में उपलब्ध करवाएँ.

मुझे आशा ही नहीं वरन पूरा विश्वास है आप इस पर शीघ्र कार्यवाही करेंगे क्योंकि प्रश्न भारत की राजभाषा और जनभाषा 'हिन्दी' के अनुपालन का है.

आपके सकारात्मक उत्तर की प्रतीक्षा में 

धन्यवाद सहित, 


प्रवीण जैन 

मंगलवार, 28 मई 2013

अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं का हक केवल अंग्रेजी जानने वालों को

१९ अप्रैल २०१३


प्रति,
माननीय राष्ट्रपति महोदय 
भारतीय गणतंत्र
राष्ट्रपति भवन,
नई दिल्ली 

विषय:स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा राजभाषा की उपेक्षा के सम्बन्ध में शिकायत

माननीय राष्ट्रपति महोदय,

मैं राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय को 12 जनवरी २०१३ (अधोलिखित ईमेल) से लगातार लिख रहा हूँ कि स्वास्थ्य मंत्रालय  द्वारा राजभाषा सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है साथ ही शिकायत की प्रतिलिपि  स्वास्थ्य मंत्रालय को भी लगातार भेजी गई है. मैंने अनुरोध किया है कि राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों की उपेक्षा ना की जाए और जहाँ-२ उल्लंघन हो रहा है उसे रोका जाए पर ३-३ अनुस्मारक भेजने के बाद भी राजभाषा विभाग अथवा स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से ना तो कोई उत्तर मिला है और ना ही अब तक कार्यवाही की गई है.

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि शीघ्र निर्देश जारी करें एवं राजभाषा की उपेक्षा करने वाले संबंधित अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए.


प्रति
राजभाषा विभागगृह मंत्रालय
एनडीसीसी-II (नई दिल्ली सिटी सैंटर) भवन, 'बी' विंग
चौथा तलजय सिंह रोड़
नई दिल्ली - 110001

विषय:  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राजभाषा अधिनियम का उल्लंघन के सम्बन्ध में लोक शिकायत:

महोदय,

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय  द्वारा  भारत की राजभाषा की घोर उपेक्षा की जा रही है तथा राजभाषा सम्बन्धी संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है. चूँकि यह मंत्रालय देश के आम आदमी से जुड़ा हुआ है इसलिए भी इसके कामकाज में हिन्दी भाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. आम लोगों को जब स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी उनकी अपनी भाषा में नहीं दी जाएगी तो उन्हें स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ क्या मिलेगा, यह दूर की कौड़ी है. 

शिकायत के मूल बिंदु:

१. सभी कार्यक्रमों के बैनर हिंदी में ना छापकर केवल अंग्रेजी में छापे जा रहे हैं. 10 जनवरी २०१३ , ११ जनवरी २०१३ एवं 12 जन 2013 को दिल्ली में आयोजित ब्रिक्स देशों के स्वास्थ्य सचिवों की बैठक /सम्मेलन एवं लाल फीता एक्सप्रेस समापन समारोह के चित्र संलग्न हैं. इनमें सभी बैनर आदि केवल अंग्रेजी में ही बनवाए गए. (अनुलग्नक देखें )
२. लेखन सामग्री (स्टेशनरी),लिफाफा छपाईपत्र-शीर्ष, रबर की मुहरों आदि के निर्माण में भी अंग्रेजी को प्राथमिकता. 
३. आधिकारिक वेबसाइट भी हिंदी में उपलब्ध नहीं है. हिन्दी वेबसाइट के नाम पर केवल मुखपृष्ठ ही हिन्दी में बनाया गया है जिसमें सभी मदों पर क्लिक करने पर अंग्रेजी वेबसाइट खुल जाती है. अंग्रेजी वेबसाइट पर सभी प्रेस विज्ञप्तियां एवं आंकड़ेपीडीएफ फाइलें केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं।
४. मंत्रालय द्वारा प्रतीक चिन्हों के चयन में भी अंग्रेजी को प्राथमिकता दी गई है राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के प्रतीक चिन्ह nrhm.jpgमें अंग्रेजी ऊपर है जबकि हिन्दी के अक्षर भी छोटे है और हिन्दी को एकदम नीचे रखा गया है. इसमें सुधार करवाया जाए. (अनुलग्नक देखें ) 
५. इसी तरह भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण का प्रतीक चिन्हfssai.jpg केवल अंग्रेजी में बनाया गया है इसमें भी अविलम्ब हिन्दी को प्राथमिकता देते हुए शामिल करवाया जाए.(अनुलग्नक देखें )
6. इसी तरह राष्ट्रिय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको)  का प्रतीक चिन्ह केवल अंग्रेजी में बनाया गया है इसमें भी अविलम्ब हिन्दी को प्राथमिकता देते हुए शामिल करवाया जाए.(अनुलग्नक देखें )
मंत्रालय से संबद्ध अन्य विभाग/संगठनों में से किसी भी संगठन की हिन्दी में वेबसाइट उपलब्ध नहीं है:
वेबसाइटें इस प्रकार हैं:
·   राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम] http://www.mohfw.nic.in/NRHM.htm
·   केन्द्रीय स्वास्थ्य आसूचना कार्यालय CBHI  http://cbhidghs.nic.in/
·   समेकित रोग निगरानी परियोजना Integrated Disease Surveillance Project  IDSP http://idsp.nic.in/
·   राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र एनसीडीसी http://www.nicd.nic.in/

इन सब बातों को देखते हुए सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में हिंदी की क्या स्थिति होगी? स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं उसके अधीनस्थ सभी कार्यालयों/विभागों को कहा जाए कि  सभी वेबसाइट भारत की राजभाषा में उपलब्ध करवाएं एवं प्रतीक-चिन्हों के चयन में हिंदी को प्राथमिकता दी जाए जो प्रतीक चिन्ह अभी केवल अंग्रेजी में हैं उनमें अविलम्ब हिंदी को शामिल किया जाए।

राजभाषा विभाग के वर्ष 2013-14 के वार्षिक कार्यक्रम में राष्ट्रपति सचिवालय, प्रधान मंत्री कार्यालय एवं केंद्र सरकार  के सभी मंत्रालय, तीनों सेनाओं, सभी सरकारी कंपनियों, सभी सरकारी शिक्षण संस्थाओं एवं संगठनों को निर्देशित किया जाए कि उनके द्वारा बनाए जाने वाले सभी प्रतीक-चिन्ह (लोगो) केवल हिंदी/संस्कृत  में बनाये जाएं और यदि प्रतीक-चिन्ह में अंग्रेजी को शामिल करना है तो उसमें हिंदी को प्राथमिकता दी जाएप्रतीक-चिन्ह में हिंदी के अक्षर बड़े, ऊपर हों अथवा अंग्रेजी अक्षरों से पहले अथवा आगे  होने चाहिए। केंद्र सरकार  के जिन मंत्रालय,  सेनाओं, सरकारी कंपनियों, सरकारी शिक्षण संस्थाओं एवं संगठनों में अभी केवल अंग्रेजी वाले अथवा हिंदी-अंग्रेजी के अलग-2  प्रतीक चिन्ह प्रयोग में लाये जा रहे हैं उनको आवश्यक सुधार करने के लिए कहा जाए। 

विनम्र निवेदन: बेहतर  तो होगा कि  राजभाषा विभाग इस साल केंद्र सरकार के प्रतीक-चिन्ह एवं वेबसाइट दिशा - निर्देश/नीति लागू  की जाए इससे समस्या का हमेशा के लिए हल काफी हद तक हो जाएगा।

आशा करता हूँ आप शीघ्र निर्देश जारी करेंगे।


राजभाषा विभाग से भारत सरकार में हिन्दी की वास्तविक वर्तमान स्थिति पर प्रश्न

विषय : भारत सरकार में हिन्दी की वास्तविक वर्तमान स्थिति 

महोदय,
भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री एवं  भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों/विभागों/निकायों और पदाधिकारियों द्वारा सामाजिक माध्यमों(ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, गूगल+, यू-ट्यूब आदि-आदि) का भरपूर उपयोग किया जा रहा है पर जो एक गैर-भारतीय भाषा उपयोग में लायी जा रही है वह है अंग्रेजी.
कृपया बताने का कष्ट करें :
सामाजिक मीडिया:
१) क्या भारत सरकार द्वारा सामाजिक माध्यमों पर भारत की राजभाषा का प्रयोग अनिवार्य नहीं है?
२) क्या भारत सरकार द्वारा सामाजिक माध्यमों पर केवल अंग्रेजी का प्रयोग किया जाना संविधान के अनुच्छेद ३४३-३५१, राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम, एवं राजभाषा नीति का उल्लंघन नहीं है ? यदि सामाजिक माध्यमों पर केवल अंग्रेजी का प्रयोग उक्त का उल्लंघन नहीं है तो उसके कारण और सम्बन्धित प्रावधान क्या हैं?
३) भारत सरकार द्वारा सामाजिक माध्यमों पर भारत की राजभाषा के प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए राजभाषा विभाग ने क्या अब तक कोई कदम उठाए हैं, उनका विवरण क्या है?
४) आम विचार के अनुसार भारत सरकार द्वारा सामाजिक माध्यमों पर केवल अंग्रेजी का प्रयोग संविधान के अनुच्छेद ३४३-३५१, राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम, एवं राजभाषा नीति स्पष्ट उल्लंघन है, जो कई वर्षों से निरंतर जारी है उसे रोकने के लिए राजभाषा विभाग ने अब तक क्या-क्या कदम उठाए हैं ? यदि कोई कदम नहीं उठाए हैं तो उसके पीछे क्या कारण रहे?
सरकारी जालस्थल (वेबसाइटें):
१. चूँकि भारत की राजभाषा हिन्दी है उसके उपरांत भी भारत के राष्ट्रपति, एवं  भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों/सार्वजनिक बैंकों की ९९% वेबसाइटें पूर्व-निर्धारित रूप से (बाई डिफॉल्ट) अंग्रेजी में ही खुलती हैं और 'हिन्दी में' का विकल्प अंग्रेजी वेबसाइट के मुखपृष्ठ पर दिया जाता है, कृपया बताएँ कि क्या ऐसा करना राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ३(३) के अंतर्गत जारी कार्यालय ज्ञापन क्र. 12024/2/92-रा.भा. (बी-II), दिनांक ६ अप्रैल १९९२  का ठीक अनुपालन है?
२. क्या भारत सरकार के  मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों/सार्वजनिक बैंकों की वेबसाइटें पूर्व-निर्धारित रूप से अंग्रेजी में बनाए जाने के सम्बन्ध में कोई नियम/आदेश जारी किया गया है? यदि नहीं तो क्या यह राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लंघन है?
३. आम विचार के अनुसार भारत सरकार के  मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों/सार्वजनिक बैंकों की वेबसाइटें पूर्व-निर्धारित रूप से अंग्रेजी में खुलना, संविधान के अनुच्छेद ३४३-३५१, राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम, एवं राजभाषा नीति स्पष्ट उल्लंघन है, जो कई वर्षों से निरंतर जारी है उसे रोकने के लिए राजभाषा विभाग ने अब तक क्या-क्या कदम उठाए हैं, काया निर्देश जारी किए हैं ? यदि कोई कदम नहीं उठाए हैं तो उसके पीछे क्या कारण रहे?
४. यह सर्वमान्य और सर्वज्ञात तथ्य है कि भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री एवं  भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों /सार्वजनिक बैंकों की वेबसाइटें पहले अंग्रेजी में ही आरम्भ (लॉञ्च) की जाती हैं और उसके कई वर्षों बाद हिन्दी में वेबसाइटें बनायी जाती रही हैं, हिन्दी वेबसाइटें समय पर अद्यतन भी नहीं की जाती, कई बार तो वर्षों तक कोई उनकी सुध नहीं लेता. तो क्या है माना जाए कि राजभाषा के नाम पर अंग्रेजी ही भारत सरकार की प्राथमिकता सूची में है?
५. भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री एवं  भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों /सार्वजनिक बैंकों की हिन्दी वेबसाइटों पर क्या-२ सामग्री अंग्रेजी में डाली जा सकती है, तत्संबधी क्या नियम हैं?
६. भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री एवं  भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों /सार्वजनिक बैंकों की हिन्दी वेबसाइटों के अद्यतन किए जाने के सम्बन्ध में क्या नियम हैं?
७. सार्वजनिक बैंकों द्वारा नेटबैंकिंग-ऑनलाइन बैंकिंग सुविधा किन भाषाओं में उपलब्ध करवाई जाएगी,तत्सम्बन्ध में क्या नियम हैं?
८. भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री एवं  भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों /सार्वजनिक बैंकों द्वारा प्राप्त हिन्दी ईमेल का उत्तर किस भाषा में दिया जाना चाहिए, इस सम्बन्ध में क्या नियम हैं?
९. भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री एवं  भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों /सार्वजनिक बैंकों द्वारा प्राप्त किसी भी ईमेल (प्राप्त ईमेल की भाषा कोई भी हो) की प्राप्ति के बाद भेजी जाने वाली "प्राप्ति -स्वीकृति" किस भाषा में दी जानी  चाहिए, इस सम्बन्ध में क्या नियम हैं?
सरकारी प्रतीक-चिह्न (लोगो)
भारत सरकार के  मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों/सार्वजनिक बैंकों द्वारा अपनाए जाने वाले किसी भी प्रतीक-चिह्न के सम्बन्ध में क्या नियम -विधान है, प्रतीक-चिह्न में कौन -२ सी भाषाएं  प्रयोग की जानी चाहिए? कौन सी भाषा को प्राथमिकता दी जायेगी? उसका विवरण क्या है?
ऑनलाइन सदस्यता/प्रवेश/ नौकरी आवेदन प्ररूप:
भारत सरकार के  मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/शिक्षण संस्थानों/सार्वजनिक बैंकों/केन्द्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले किसी भी ऑनलाइन सदस्यता/प्रवेश/ नौकरी आवेदन प्ररूप के सम्बन्ध में क्या नियम -विधान है, ऑनलाइन सदस्यता/प्रवेश/ नौकरी आवेदन प्ररूप में कौन-२ सी भाषाएं प्रयोग की जानी चाहिए, कौन सी भाषा को प्राथमिकता दी जायेगी? उसका विवरण क्या है?
मोबाइल अनुप्रयोग (ऐप्लिकेशन):
भारत सरकार के  मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/शिक्षण संस्थानों/सार्वजनिक बैंकों/केन्द्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा जारी किए जाने वाले किसी भीमोबाइल अनुप्रयोग के सम्बन्ध में क्या नियम -विधान है, मोबाइल अनुप्रयोग में कौन-२ सी भाषाएं प्रयोग की जानी चाहिए, कौन सी भाषा को प्राथमिकता दी जायेगी? उसका विवरण क्या है?
भारत सरकार/राजभाषा विभाग/ सी-डैक ने अब तक ऑनलाइन हिन्दी सिखाने के लिए कौन-२ से सॉफ्टवेयर, मोबाइल अनुप्रयोग, वेब - अनुप्रयोग और वेबपृष्ठ बनाए/जारी किए हैं, उन्हें कहाँ से प्राप्त किया जा सकता है?उसका विवरण क्या है?
जैसा कि चीन  ने ऑनलाइन मंदारिन सिखाने के विकल्प उनकी कई सरकारी वेबसाइटों (प्रधानमंत्री) पर दिए हैं क्या ऐसी कोई सुविधा हिन्दी के लिए भारत सरकार ने आरंभ की है? इस सम्बन्ध में कोई योजना?
शीघ्र उत्तर की अपेक्षा के साथ 

मंगलवार, 21 मई 2013

आदरणीय प्रधानमंत्री जी : आप अपने देश में हिन्दी में क्यों नहीं बोलते ?

प्रति: manmohan@sansad.nic.in

प्रति,
श्री मनमोहन सिंह,
प्रधानमंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली 

माननीय महोदय,

बड़ी विनम्रता के साथ यह बात रखा रहा हूँ. कल (२० मई २०१३) आपके और चीनी प्रम (प्रधानमंत्री) के प्रेस वक्तव्य के बाद सामाजिक मीडिया पर भारत के लोगों ने अपना दुःख व्यक्त किया कि चीन के  प्रधानमंत्री ली ने भारतीय पत्रकारों को चीनी भाषा में ही संबोधित किया पर आपने अपना पूरा वक्तव्य अंग्रेजी में दिया. मेरे मन में भी इस बात की पीड़ा थी इसलिए सीधे आपके समक्ष रख रहा हूँ.

कल जिस किसी ने भी टीवी चैनलों पर विश्व के दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों के माननीय प्रधानमंत्रियों के भाषण सुने होंगे, उसे चीन और भारत में फर्क समझ में आ गया होगा।



माननीय प्रधानमंत्री जी आप अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच उस भाषा में बोले जिसे मात्र ३ प्रतिशत भारतीय समझते हैं, आपने उस भाषा में बोलने का साहस नहीं किया, जिसे लगभग पूरा देश समझता है। वहीं चीनी प्रधानमंत्री उस भाषा में बोले जिसे भारत में कुछ गिने चुने लोग ही समझते होंगे.  इसे चीन के  प्रधानमंत्री ली की राष्ट्रप्रेम की भावना ही कहा जाएगा कि दूसरे देश में, अपरिचित लोगों में भी अपनी मां का सम्मान उन्होंने किया, इस बात की परवाह किए बिना कि सुनने वाले चीनी भाषा  नहीं जानते.

कल आपने भी यदि अपना वक्तव्य हिन्दी में दिया होता तो देश का मान बढ़ जाता और भारत चीन से दो कदम आगे की राह तय करता. आपको हिन्दी में बोलना कोई क़ानूनी अनिवार्यता नहीं है पर इस देश के नागरिक होने के नाते हम आपसे अनुरोध कर सकते हैं कि आप भारत की राजभाषा का इस्तेमाल करें और सरकार के कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को प्राथमिकता के आधार पर बढ़ावा दें, आखिर हिन्दी देश के ८० करोड़ से ज्यादा नागरिकों द्वारा इस्तेमाल जो की जाती है.

ऊपर से आपके मीडिया वक्तव्य का हिन्दी रूपान्तर 20-मई, 2013 को रात्रि 20:27 बजे जारी हुआ. क्या भारत सरकार की प्रेस विज्ञप्तियाँ/आपके अथवा राष्ट्रपति जी के आधिकारिक भाषण एक समय पर एक साथ हिन्दी-अंग्रेजी में जारी नहीं किए जा सकते? यह सब हो सकता है यदि आप ऐसा आदेश जारी कर दें. 

विभिन्न मंत्रालयों द्वारा जारी की जाने वाली अंग्रेजी और हिन्दी की विज्ञप्तियों के जारी होने के समय में ४-५ घंटे से लेकर २-३ दिन तक के समय का भारी अंतर होता है, इसी तरह भारत सरकार की वेबसाइटों का हाल है हिन्दी वेबसाइटें महीनों अद्यतन नहीं की जाती पर अंग्रेजी की वेबसाइटें हमेशा और हर समय अद्यतन की जाती हैं. इसी बात से पता चलता है कि भारत सरकार राजभाषा हिन्दी को लेकर कितनी गंभीर है. हिन्दी का भारत सरकार के कामकाज में इस्तेमाल केवल औपचारिकता से अधिक कुछ नहीं है. आप सरकार के मुखिया हैं जब आप ही हिन्दी का प्रयोग नहीं करेंगे तो शेष लोगों से हम हिन्दी के प्रयोग की उम्मीद नहीं कर सकते.


भवदीय,
प्रवीण जैन, मुंबई 

शुक्रवार, 3 मई 2013

विदेशी शत्रुओं की बेटी है इसलिए उसकी निष्ठा कभी भी भारत के साथ नहीं हो सकती:आचार्य चाणक्य



जब यूनानी आक्रमणकारी सेल्यूकस चन्द्रगुप्त मौर्य से हार गया और उसकी सेना बंदी बना ली गयी तब उसने अपनी सुंदर बेटी हेलेना के विवाह का प्रस्ताव चन्द्रगुप्त के पास भेजा ..



सेल्यूकस की सबसे छोटी बेटी हेलेन थी बहुत सुन्दर, आचार्य चाणक्य ने प्रस्ताव मिलने पर उसका विवाह सम्राट चन्द्रगुप्त से कराया. पर उन्होंने विवाह से पहले हेलेन और चन्द्रगुप्त के  समक्ष कुछ शर्तें रखीं जिस पर उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ.



पहली शर्त यह थी कि उन दोनों से उत्पन्न संतान उनके राज्य की उत्तराधिकारी नहीं होगी और कारण बताया कि हेलेन एक विदेशी महिला है, भारत के पूर्वजों से उसका कोई नाता नहीं है. 

भारतीय संस्कृति से हेलेन पूर्णतः अनभिज्ञ है और दूसरा कारण बताया कि हेलेन विदेशी शत्रुओं की बेटी है इसलिए उसकी निष्ठा कभी भी भारत के साथ नहीं हो सकती. 

तीसरा कारण बताया कि हेलेन की संतान विदेशी माँ की संतान होने के नाते उसके प्रभाव से कभी मुक्त नहीं हो पाएगी इसलिए वह भी भारतीय माटी, भारतीय लोगों के प्रति पूर्ण निष्ठावान नहीं हो पाएगी. 

एक और शर्त चाणक्य ने हेलेन के सामने रखी कि वह कभी भी चन्द्रगुप्त के राजकार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगी तथा राजनीति और प्रशासनिक अधिकार से पूर्णतः विरत रहेगी; केवल गृहस्थ जीवन में हेलेन का पूर्ण अधिकार होगा.



सोचिये मित्रो! भारत ही नहीं विश्व भर में चाणक्य जैसा कूटनीतिज्ञ, नीतिपरायण एवं विद्वत राजनीतिज्ञ आज तक दूसरा कोई पैदा नहीं हुआ फिर भी आज भारत इस महान गुरु का सबक भूल गया. क्या चाणक्य के वचनों के विरुद्ध चल रहे भारत का विनाश नहीं हो जाएगा?