अनुवाद

बुधवार, 27 अगस्त 2014

भारत में अंग्रेजी की अनिवार्यता कब समाप्त होगी?

मुकेश कुमार जैन आईआईटी के ऐसे विद्यार्थी हैंजो आपकी मुख्यधारा की आकांक्षाओं में बिल्कुल समाविष्ट नहीं होंगे। इनके अपने सपने भी हैं। सिविल सेवा परीक्षाओं में नयी सी-सैट पद्धति के विरोध की आंधी के पीछे आईआईटी रुड़की से स्नातक 52 साल के जैन का भी हाथ है। वह अखिल भारतीय अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी मंच के मुख्य कर्ताधर्ता हैं। यह संगठन उत्तर हो या दक्षिणदेश के हर हिस्से से अंग्रेजी का सफाया करके उसकी जगह हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए काम कर रहा है। 


इसका संचालन राजधानी के ऐतिहासिक बिड़ला मंदिर परिसर के निकट हिंदू महासभा कार्यालय  से होता है। इस कार्यालय का अपना ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  की शुरुआती शाखाएं लगाई जाती थीं। जैन के स्वयंसेवकों में से एक ने बताया कि निश्चित तौर पर एक बार नाथुराम विनायक गोडसे ने इसके कमरों का इस्तेमाल किया था। 1986 से ही जैन और उनके दोस्त एकजुट होकर अंग्रेजी की जगह हिंदी को लागू करने के लिए विरोध-प्रदर्शन करते आ रहे हैं। वह चाहते हैं कि आईआईटी-जी की परीक्षा हो या फिर एनडीए-सीडीएसबैंक परीक्षा  हो या फिर किसी सरकारी कंपनी की परीक्षाहर जगह अंग्रेजी के बजाय हिंदी को जगह मिले। 

कार्यालय में वीर सावरकर की प्रतिमा से सटे कमरे में बैठे जैन ने अपना छात्र जीवन याद करते हुए बताया कि उन्हें अधिकारियों को यह समझाने में काफी लंबा वक्ता लगा कि उन्हें हिंदी में परीक्षा देने की अनुमति दी जाए। विनिर्माण व्यवसाय चलाने वाले जैन ने कहा, 'ऐसा इसलिए नहीं था कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती बल्कि मुझे यह बहुत शर्मनाक लगता है कि हमारे ज्ञान और परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी है। छात्र  मेरा मजाक उड़ाते थेलेकिन मैं उन्हें कहता था कि वे पश्चिमी देशों के चक्कर में अपनी मातृभाषा का अपमान कर रहे हैं। हमें चीनजर्मनी और फ्रांस से सीखना चाहिए कि वे किस तरह अपनी भाषा का सम्मान कर रहे हैं।जैन 1984 आईआईटी रुड़की बैच के इंजीनियर हैं। 


जैन ने बताया कि उन्हें पहली कामयाबी उस वक्त मिली जब आईआईटी कानपुर परिसर में हिंसात्मक विरोध के बाद संस्थान को मजबूर होकर 1986 में हिन्दी में प्रपत्र जारी करने पड़े। उन्होंने कहा, 'हमने एक साल पहले से ही अंग्रेजी के प्रश्न-पत्र जलाना शुरू कर दिया था, जिसके बाद संस्थान का रवैया नरम पड़ा।' जैन की अंग्रेजी-विरोधी गतिविधियों का दायरा उस वक्त बढ़ा जब उन्हें कई हिंदू संगठनों का समर्थन मिला। जैन के संगठन में 1,200 कार्यकर्ता हैं, जिनमें से ज्यादातर दिल्ली और उप्र से हैं।

रविवार, 24 अगस्त 2014

रेल्वे ने आम जनता की परेशानी को माना, बहुभाषी पोर्टल से करा सकेंगे अपनी भाषा में टिकट


नई दिल्ली। 20 मई 2015 
भारतीय रेल्वे खानपान एवं पर्यटन निगम जल्द ही यात्रियों को हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में में ऑनलाइन रेल टिकट आरक्षित कराने की सुविधा देने जा रही है। अब अंग्रेजी न जानने वाले लोग भी आसानी से आईआरसीटीसी की वेबसाइट से टिकट आरक्षित करा सकेंगे। ज्ञात रहे कि कई भारतीय भाषा सेवी पिछले तीन चार वर्ष से लगातार माँग कर रहे थे कि रेल टिकट की ऑनलाइन सुविधा हिन्दी में उपलब्ध करवाई जानी चाहिए पर अधिकारी इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे थे, इस रेल बजट में माननीय रेलमंत्री श्री सुरेश प्रभु ने घोषणा की थी कि ऑनलाइन टिकट आरक्षण हेतु बहुभाषी पोर्टल बनाया जाएगा जिसमें यात्री अपनी सुविधा के अनुसार भाषा का चयन करके टिकट आरक्षित कर सकेंगे, शुरुआत में इसमें हिन्दी भाषा का विकल्प जोड़ा जा रहा है.
निगम के एक अधिकारी ने बताया कि इस दिशा में काम चल रहा है। ऐसे में कई लोग चाहकर भी खुद टिकट बुक नहीं करा पाते। इस स्थिति में या तो वे एजेंटों की मदद लेते हैं या फिर उन्हें काउंटर पर जाकर टिकट खरीदना पड़ता है।
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दिनांक: २४ अगस्त २०१४ 

सेवा में, 
केन्द्रीय सूचना अधिकारी, 
रेलवे बोर्ड, रेल मंत्रालय 
भारत सरकार 
नई दिल्ली – ११०००१   

विषय : सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन आवेदन 

महोदय,
कृपया निम्नलिखित सूचनाएँ नियमानुसार केवल राजभाषा में प्रदान करने की कृपा करें, अंग्रेजी में प्राप्त उत्तरों के विरुद्ध अपील एवं शिकायतें दर्ज करवायी जाएँगी (*अंग्रेजी=फिरंगी भाषा):

रेल मंत्रालय के अधीन कार्यरत रेलवे बोर्ड एवं आईआरसीटीसी द्वारा राजभाषा की निरंतर उपेक्षा की जा रही है.भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा विभिन्न राज्यों की अपनी राजभाषाएँ हैं, भारत में लगभग तीन प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं और सत्तानवे प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं. यहाँ ध्यान देने योग्य है कि देश कि छप्पन करोड़ जनता की मातृभाषा हिन्दी है और इसके अतिरिक्त लगभग पच्चीस करोड़ लोग हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान रखते हैं.

इन तथ्यों से पता चलता है कि देश के सत्तानवे प्रतिशत नागरिकों पर अंग्रेजी थोपने की बजाए उन्हें उनकी भाषा में अथवा कम से कम हिन्दी भाषा में दी जानी चाहिए पर ऐसा नहीं हो रहा है उन पर अंग्रेजी थोपी जा रही है. जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं  रेलवे उन्हें ऑनलाइन टिकट सुविधा से १५ वर्षों से जानबूझकर वंचित रख रही है, उनके साथ भेदभाव किया जा रहा. यह सब टिकट दलालों के दवाब में किया जा रहा है वर्ना क्या कारण है जो हिन्दी में ऑनलाइन टिकट निकालने की सुविधा अब तक नहीं दी गई?  रेल यात्रा, गरीब और अमीर सभी करते हैं इसलिए इस सेवा में हिंदी को स्थान ना देना यह साफ़ करता है कि रेलवे को गरीब और आम जनता की ज़रा भी चिंता नहीं है इसलिए ऑनलाइन टिकट बुकिंग की सुविधा केवल अंग्रेजी में दी गई है ताकि अंग्रेजी ना जानने वाले देश के 97% लोग कभी भी ऑनलाइन टिकट ना निकाल सकें, इन 97% लोगों की कोई सुनवाई नहीं, उनकी परेशानी का किसी को ख्याल नहीं. सारी ऑनलाइन सेवाएँ केवल अंग्रेजी जानने वाले मुट्ठीभर लोगों को ध्यान में रखकर शुरू की जा रही हैं.

चाही गयी सूचनाएँ:
१. आईआरसीटीसी द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा प्रतीक-चिह्न (लोगो)  केवल अंग्रेजी में बनाया गया है जबकि नियमानुसार इसे हिन्दी में अथवा द्विभाषी रूप में बनाया जाना चाहिए. इस उल्लंघन के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

२. रेल मंत्रालय की सभी अंग्रेजी वेबसाइट हमेशा पहले खुलती है और राजभाषा की उपेक्षा करते हुए हिन्दी का विकल्प अंग्रेजी वेबसाइट पर दिया गया है. अंग्रेजी वेबसाइट को प्राथमिकता दी गई है. नियमानुसार वेबसाइट राजभाषा विभाग अथवा पत्र-सूचना कार्यालय की वेबसाइट की तरह १००% द्विभाषी होनी चाहिए ताकि हिन्दी-अंग्रेजी की सामग्री एक साथ प्रदर्शित हो. पूर्व निर्धारित रूप से अंग्रेजी वेबसाइट का पहले खुलना यह दर्शाता है कि रेल मंत्रालय अंग्रेजी को प्राथमिकता देता है. ऐसा करने का निर्णय किसने लिया था, नाम-पदनाम-संपर्क बताएँ? 

३. आईआरसीटीसी की ऑनलाइन टिकट बुकिंग की सुविधा वर्षों से केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध है, ऑनलाइन टिकट बुकिंग का प्रारूप केवल अंग्रेजी में बनाया गया है और उसमें नाम आदि अंग्रेजी में भरना भी अनिवार्य है. ऐसा किस अधिकारी के आदेश से किया जा रहा है? जिसे अंग्रेजी नहीं आती है वो इस वेबसाइट पर ऑनलाइन टिकट किस तरीके से बुक करे, उसके लिए रेलवे ने क्या विकल्प उपलब्ध करवाया है? 
4. बुकिंग के पश्चात् दयाभाव से कम्पनी ने टिकट छापने की सुविधा अंग्रेजी और हिंदी में दी है यानी कि आप अपनी मर्जी से टिकट की भाषा चुन सकते हैं, अंग्रेजी का टिकट तो पूरी तरह से अंग्रेजी में होता है पर हिंदी के टिकट में अंग्रेजी की भरमार है स्थानों के नाम, गाड़ी का नाम, यात्रियों के नाम, शायिकाओं का विवरण, किराया [शब्दों में] आदि केवल अंग्रेजी में ही छपता है. जिसे अंग्रेजी का ज्ञान ना हो वो ऐसे हिंदीटिकट को लेकर भी सहयात्रियों से पूछताछ करता फिरता है. ऐसा हरदिन करोड़ों रेल यात्रियों के साथ हो रहा है. अंग्रेजी का टिकट 100% अंग्रेजी में होता है पर हिंदी का टिकट 100% हिंदी में नहीं दिया जाता. रेलवे ने टिकटों को शत-प्रतिशत द्विभाषी रूप में छापने के लिए क्या कदम उठाए हैं? इसके लिए क्या लक्ष्य है?    
5. आईआरसीटीसी ने टिकट बुकिंग हेतु कौन-२ मोबाइल अनुप्रयोग (एप्प) किस-किस भाषा में बनाए हैं?

6. आईआरसीटीसी ने ई-टिकट सम्बन्धी एसएमएस अलर्ट की सुविधा भी केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध करवाई है, जिसे अंग्रेजी का ज्ञान ना हो वो ऐसे एसएमएस अलर्ट को लेकर सहयात्रियों से पूछताछ करता फिरता है क्योंकि वह उसे पढ़ नहीं सकता, ऐसी परेशानी करोड़ों यात्रियों को प्रतिदिन हो रही है. यह सुविधा हिन्दी में शुरू करने लिए रेलवे ने क्या-२ कदम उठाए हैं? हिन्दी में अलर्ट सुविधा कब शुरू की जाएगी?
7. आईआरसीटीसी ने ऑनलाइन खरीदारी, हवाई टिकट आरक्षण एवं पर्यटन के लिए भी अलग-२ वेबसाइटों का केवल अंग्रेजी में निर्माण किया है, रेलआहार के प्रतीक-चिह्न में हिंदी को अंग्रेजी से नीचे प्रयोग किया गया है. यह राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लंघन है, इसके लिए कौन अधिकारी ज़िम्मेदार है?  इस उल्लंघन को रोकने के क्या उपाय किए गए हैं?
8. आईआरसीटीसी द्वारा सभी ईमेल उपयोगकर्ताओं को ई-टिकट सम्बन्धी सभी ईमेल जैसे टिकट आरक्षण, रद्दीकरण,रेलगाड़ी छूट जाने वाले टीडीआर जमा करने सम्बन्धी ईमेल केवल अंग्रेजी में भेजा जाता है जबकि राजभाषा नियमों के अनुसार ऐसे सभी ईमेल द्विभाषी रूप में भेजे जाने चाहिए. आईआरसीटीसी द्वारा ईमेल- पत्र भेजने में राजभाषा सम्बन्धी सभी नियमों और प्रावधानों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं और ऐसा वर्षों से चल रहा है. ऐसे ईमेल सिर्फ अंग्रेजी में भेजे जाने का निर्णय कब और किसने लिया था? इस उल्लंघन को रोकने के क्या उपाय किए गए हैं?

९. निम्नलिखित टिकटों पर कंप्यूटर द्वारा 90% विवरण (दो स्टेशनों के नाम को छोड़कर) केवल फिरंगी भाषा में छापा जाता है:
i. आरक्षित कार्ड टिकट 
ii. मुंबई उपनगरीय रेल के टिकट
iii. मासिक/त्रैमासिक पास
iv. स्वचालित मशीन टिकट
v. प्लेटफोर्म टिकट 
इन सभी को १०० % द्विभाषी बनाने के लिए रेलवे ने क्या कार्यवाही की है और कब यह सुविधा मिलने लगेगी?

१०. सामाजिक माध्यमों (ट्विटर एवं फेसबुक तथा यूट्यूब) पर मंत्रालय का परिचय/प्रोफाइल केवल अंग्रेजी में लिखने और ताज़ा जानकारी केवल अंग्रेजी में डालने का निर्णय किसने लिया?

आवेदक  
प्रवीण जैन

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

अंग्रेजी ना जानने वाले हैं दोयम दर्जे के नागरिक

विनम्र निवेदन है कृपया निम्न ईमेल को अपने नाम -पते के साथ निम्न ईमेल पर भेज दें और गुप्त प्रतिलिपि (BCC)  मुझे भेजें :
"Joint Secy, OL" <jsol@nic.in>
RAJINDER PAUL ASSISTANT DIRECTOR <rajinder.paul31@nic.in>
Shefali Dash <dash@nic.in>
Kewal Krishan <kewal.krishan@nic.in>
"sharma.vandana" <sharma.vandana@nic.in>

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सेवा में,
1.     सचिव महोदया
राजभाषा विभाग
गृह मंत्रालय
नई दिल्ली

2.     प्रशासनिक प्रधान,
राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र
ए ब्लॉकसीजीओ कॉम्प्लेक्स
लोधी रोडनई दिल्ली - 110 003 

विषय: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (रासूविकेद्वारा राजभाषा अधिनियम का निरंतर उल्लंघन एवं जानबूझकर उपेक्षा करने के सम्बन्ध में  

महोदय/महोदया,

भारत सरकार के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्यरत राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (रासूविकेजिसका कार्य भारत सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों  के विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों/ आयोगों/कंपनियों/सार्वजनिक बैंकों/निकायों/ शैक्षणिक संस्थानों को सूचना प्रौद्योगिकी उपलब्ध करवाना हैं. यह केंद्र हिन्दी की घोर उपेक्षा कर रहा है.

हिन्दी वेबसाइटों की टैगिंग भी अंग्रेजी में की जा रही है जिसके कारण गूगल आदि पर हिन्दी में खोज करने पर भी  विभिन्न मंत्रालयों /विभागों / आयोगों / कंपनियों/ सार्वजनिक बैंकों/ निकायों/ शैक्षणिक संस्थानों आदि की वेबसाइटें नहीं मिल पाती और अंग्रेजी में नाम लिखकर खोजना पड़ता है.

रासूविके द्विभाषी वेबसाइट बनाने में कोई रूचि नहीं ले रहाहिन्दी-अंग्रेजी की अलग-२ वेबसाइट बनाई जा रही है. यदि कानून में संशोधन करके अथवा एक राष्ट्रीय वेबसाइट नीति जैसा कुछ बना कर रासूविके के लिए अनिवार्य कर दिया जाये कि वह जो भी सरकारी वेबसाइट बनाएगा, उसे तब तक लोकार्पित नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके साथ उसका हिन्दी संस्करण तैयार नहीं कर लिया जाता.

नियम हो कि दोनों भाषाओं में सामग्री एकसाथ प्रदर्शित होगी, इससे लाभ होगा कि अधिकारियों को झक मारकर हिन्दी में भी सामग्री को अद्यतित करना होगा वरना फिलहाल हो कई सालों तक हिन्दी वेबसाइट की कोई अधिकारी सुध नहीं लेता. इस बात को राजभाषा विभाग अच्छी तरह से जानता है. इसी तरह कोई भी ऑनलाइन फॉर्म/सेवा/मोबाइल एप्लीकेशन  तब तक सरकारी वेबसाइट पर नहीं शुरू की जाएगी जबतक कि वह १००% द्विभाषी रूप में तैयार नहीं हो. ऐसा नियम बनने से राजभाषा अधिनियम के उल्लंघन को स्त्रोत पर ही रोक दिया जाएगा और यह राजभाषा विभाग के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी.

मेरी शिकायत के बिंदु:
(क).         रासूविके का प्रतीक (लोगो) भी केवल अंग्रेजी में NIC बनाया गया है.

(ख).         रासूविके की मुख्य वेबसाइट पर ६०-७०% सामग्री अंग्रेजी में है  www.nic.in
(ग).          केवल अंग्रेजी में बनाई गयीं वेबसाइटें:
1)        भारत सरकार की निर्देशिका http://goidirectory.gov.in/index.php
2)        प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए ऑनलाइन दान https://pmnrf.gov.in/
3)        राष्ट्रीय रक्षा निधि के लिए ऑनलाइन दान https://ndf.gov.in/payform.php
4)        एनआईसी ईमेल (NIC)  https://mail.nic.in/mail/mauth
5)        ऑनलाइन निविदा वेबसाइट http://tenders.gov.in/
6)        ऑनलाइन परीक्षा परिणामों की वेबसाइट http://results.gov.in/
7)        केन्द्रीय सार्वजनिक सरकारी खरीद वेबसाइट http://eprocure.gov.in/cppp/
8)        रासूविके में भर्ती हेतु वेबसाइट http://recruitment.nic.in/
9)        केंद्र सरकार की वेबसाइटों हेतु दिशानिर्देश का पोर्टल http://web.guidelines.gov.in/ 
10)    भारत सरकार की वेबसाइटो के मूल्यांकन हेतु पोर्टल http://www.webanalytics.gov.in/
(घ).          रासूविके द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों/संगोष्ठियों/ सम्मेलनों/बैठकों आदि  के बैनरअतिथियों की मेज नाम -पट्टिकाएँ भी केवल अंग्रेजी में तैयार की जाती हैं,आमंत्रण पत्रबिल्लेअन्य आयोजन सम्बन्धी साहित्य भी केवल अंग्रेजी में ही तैयार किया जाता हैऐसे सभी सम्मलेन आदि में भाग लेने वालों द्वारा भरे जाने वाले भौतिक-पीडीएफ फॉर्म एवं ऑनलाइन फॉर्म भी केवल अंग्रेजी में ही तैयार किये जाते हैं. ऐसे सम्मेलनों के लिए भी वेबसाइट अंग्रेजी में शुरू की जाती है.ताज़ा उदाहरण वेबरत्न पुरस्कार २०१४ के  सभी दस्तावेज एवं ऑनलाइन फॉर्म केवल अंग्रेजी में जरी किए गए हैं.
(ङ).          भारत का राष्ट्रीय पोर्टल पर हिन्दी में कम सामग्री एवं हिन्दी वेबसाइट का अंग्रेजी के बाद खुलनाहिन्दी वेबसाइट पर अन्य वेबसाइट के लिंक केवल अंग्रेजी वेबसाइटों के दिए जाते हैं ना कि हिन्दी वेबसाइटों के.
(च).          रासूविके द्वारा हिन्दी भाषी राज्यों में जो हिन्दी वेबसाइट बनाई जाती है उसमें ज्यादातर विकल्प अंग्रेजी में ही दिए जाते हैं.
(छ).          स्वतंत्रता दिवसगणतंत्र दिवसराष्ट्रपति-प्रम के अभिभाषणों जैसे समारोहों के वेबकास्ट हेतु बनाए गए पोर्टल भी केवल अंग्रेजी में बनाए गए हैं. 
(ज).          रासूविके द्वारा बनायी जा रही वेबसाइटों में से अधिकतर वेबसाइटों पर ऑनलाइन प्ररूपऑनलाइन सदस्यता प्ररूपऑनलाइन शिकायत प्ररूपऑनलाइन दान,  ऑनलाइन प्रतिक्रिया प्ररूप आदि की सुविधा हिन्दी में ना होकर केवल अंग्रेजी में उपलब्ध करवाई जाती है. सभी ऑनलाइन प्रारूप-प्रपत्र हिन्दी-अंग्रेजी में अगल-२ नहीं बनाए जाने चाहिए बल्कि एकसाथ दोनों भाषाओं में बनने चाहिए, इसे आसानी से किया जा सकता है.

आपसे शीघ्र और सकारात्मक तथा कारगर कार्यवाही की अपेक्षा है.

भवदीय
अपना नाम लिखें:
डाक का पता लिखें : 

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

स्टेट बैंक कहीं भी: स्टेट बैंक का हिन्दी मोबाइल एप

ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं को #हिन्दी सहित सभी #भारतीय भाषाओं में शुरू करवाने के लिए हमारा अभियान निरंतर जारी है उसी कड़ी में इसे आप एक सफलता मान सकते हैं. अब स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने वाले लोग अधिक से अधिक इसे डाउनलोड करें और स्टेट बैंक को सुझाव भेजें ताकि इन सेवाओं को और बेहतर बनाया जा सके.

१२ अगस्त २०१२ से देश के सबसे बड़े ऋणदाता बैंक  '#भारतीयस्टेटबैंक' ने मार्च २०१४ में अंग्रेजी में आरम्भ किए गए मोबाइल अनुप्रयोग जिसे आमतौर पर अंग्रेजी में एप्लीकेशन कहा जाता है, का हिन्दी संस्करण शुरू किया है. 

इस #हिन्दी अनुप्रयोग में अनेक विशेषताएँ हैं जैसे 
उपयोगकर्ता चार प्रकार के खातों (लेनदेन/जमा/ऋण एवं पीपीएफ) का इसके माध्यम से अवलोकन कर सकते हैं  और इसके साथ ही आप पिछले १० लेनदेन भी देख सकते हैं.

अनुप्रयोग के प्रयोक्ता स्टेट बैंक के खातों एवं अन्य बैंकों के खातों में #धन अन्तरण कर सकते हैं जैसे एनईएफटी (राइनिस्था), वीज़ा क्रेडिट कार्ड भुगतान एवं आईएमपी #स्थानांतरण.

आप इसके द्वारा स्थायी जमा अथवा आवर्ती जमा भी खोल सकते हैं. 
मोबाइल या #डीटीएच सेवा का पुनर्भरण (रीचार्ज) कर सकते हैं. इसके द्वारा निर्धारित तिथि के विकल्प के साथ बिल भुगतान की सुविधा भी उपलब्ध है.
ब्यौरा:



----------------------------भारतीय स्टेट बैंक की रिटेल इंटरनेट बैंकिंग एप्लीकेशन ------------------------ 
स्टेट बैंक कहीं भी
आपके एंड्राइड स्मार्ट फोन्स के लिए भारतीय स्टेट बैंक की रिटेल इंटरनेट बैंकिंग आधारित एप्लीकेशन है. उपयोगकर्ताओं को प्रत्येक मोड पर अपने वित्त का प्रबंधन करने में मदद करने की विशेषताओं वाला एक सुरक्षित, सुविधाजनक और प्रयोक्ता अनुकूल एप्लीकेशन. गूगलप्ले स्टोर से ही डाउनलोडकरें. इस एप्लीकेशन को डाउनलोड करने के लिए किसी भी अन्य वेबसाइटों का उपयोग न करें.
मेरे खाते
1. 4 प्रकार के खातो (लेनदेन / जमा / ऋण / पीपीएफ) का विवरण
2. खाता क्र का चयन
3. खाते का विस्तृत विवरण
4. मिनी स्टेटमेंट ( पिछला 10 लेनदेन)
5. निधि अंतरण ( स्वत: का खाता)
6. आंतर बैंक( एसबीआई के अंतर्गत) अंतरण
7. अंतर बैंक(अन्य बैंक) अंतरण
8. क्रेडिट कार्ड (वीजा) अंतरण
9. आईएमपीएस अंतरण
10. सावधि जमा
11. आवर्ती जमा
12. एटीएम कार्ड ब्लोकिंग
13. संपर्क ( कॉल) करें
बिल भुगतान
14. बिल सहित
15. बिल रहित
16. बिलर देखें
17. निर्धारित बिल टॉप अप एवं रिचार्ज
18. मोबाईल टॉप अप
19. डीटीएच रिचार्ज
अनिवार्यता:
एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस 2.3 या इसके बाद के संस्करण) वाला एक स्मार्ट फोन.
GPRS/EDGE/3G/Wi-Fi जैसी इंटरनेट कनेक्टिविटी.
लेनदेन अधिकारों के साथ वर्तमान के एसबीआई रिटेल (व्यक्तिगत) इंटरनेट बैंकिंग का यूजर नाम और पासवर्ड.
नोट:
वर्तमान में यह एप्लीकेशन एसबीआई खुदरा इंटरनेट बैंकिंग ग्राहकों को ही समर्थन करता है. सहयोगी बैंकों के 'इंटरनेटबैंकिंग उपयोगकर्ताइस एप्लीकेशन का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

आप इसे यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं :


गुरुवार, 7 अगस्त 2014

अंग्रेजीपरस्तों का कोरा झूठ: अंग्रेजी भारत की सम्पर्क भाषा है

जनसत्ता 6 अगस्त, 2014 : संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं को लेकर चल रहे आंदोलन ने एक बार फिर अंग्रेजी  समर्थकों को बुरी तरह परेशान कर दिया है, उन्हें अपनी भाषा का वर्चस्व हर बार की तरह इस बार फिर से खतरे में दीखने लगा है, खासकर अर्णव गोस्वामी जैसे लोग तो पगलाए-घबराए से लग रहे हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह अपने अंग्रेजी  चैनल पर आए एक कन्नड़भाषी को- जो अंग्रेजी  बढ़िया जानते हैं मगर इस आंदोलन के समर्थक हैं- तंग आकर पूछा कि कहीं आप किसी पार्टी से संबद्ध तो नहीं हैं, और जब उन सज्जन ने निराश करते हुए कहा कि कतई नहीं, तो अर्णवजी बहुत हताश हुए, क्योंकि उन सज्जन पर इस मामले का राजनीतिकरण करने का चालू आरोप लगाना उनके लिए मुश्किल हो गया। 

वे इस बात से डर गए कि फिर तो इस कन्नड़ की बात को उनके श्रोता विश्वसनीय मान सकते हैं, तो वे तुरंत एक अंग्रेजी  समर्थक की तरफ मुड़ गए और उस कन्नड़भाषी को आगे बोलने नहीं दिया, जैसा कि अपनी पसंद की बात न करने वालों के साथ वे अक्सर किया करते हैं। अर्णवजी और तमाम ऐसे सज्जन बार-बार यह याद दिला रहे हैं कि अंग्रेजी  ही देश की संपर्क भाषा है और उसके बगैर देश का काम नहीं चल सकता और अंग्रेजी  के प्रति नफरत का वातावरण बनाया गया तो यह देश टूट जाएगा। यह अलग बात है कि किसी ने ऐसी कोई बात उनके चैनल पर नहीं कही। 

खासतौर पर नब्बे के दशक में बाजारीकरण की शुरुआत के बाद से अंग्रेजी  का आकर्षण तेजी से बढ़ा है और हर कोई अंग्रेजी  के पीछे पड़ा है कि जैसे अंग्रेजी  रोजगार और जीवन में सफलता की पक्की गारंटी है। अब गली-गली मोहल्ले-मोहल्ले गरीबों के लिए भी अंग्रेजी  स्कूल खुल गए हैं, लेकिन न तो सरकारी स्कूल और न आशा के नए द्वीप बने ये निजी  स्कूल अंग्रेजी  के प्रचार-प्रसार में कोई खास योगदान दे रहे हैं। 2007 में सरकारी स्कूलों में पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के अंग्रेजी  ज्ञान का जो सर्वे हुआ था, उसमें बताया था कि ये बच्चे दूसरी कक्षा की अंग्रेजी  पाठ्यपुस्तक भी बमुश्किल पढ़ पाते हैं। 2010 में पुन: हुआ ऐसा ही सर्वे बताता है कि पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले आधे छात्र दूसरी कक्षा की अंग्रेजी  पाठ्यपुस्तक भी नहीं पढ़ पाते। 

चलिए थोड़ी देर के लिए सरकारी स्कूल तो मान लिया कि सरकारी स्कूल ही हैं और उनका अब कुछ नहीं हो सकता, शायद इसीलिए गरीब तबका भी अगर संभव होता है तो अपने बच्चों को इन स्कूलों में नहीं भेजता। मगर जिन निजी  स्कूलों में भेजता है वहां भी चौंसठ प्रतिशत बच्चों की ठीक यही हालत है। तो गरीब वर्गों तक अंगेरजी की पहुंच जरूर हो रही है मगर इस तरह जिसका कोई मतलब नहीं है, जिससे उन बच्चों के अभिभावकों के वे सपने पूरे नहीं हो सकते, जिसके लिए उन्होंने इन स्कूलों में दाखिल करवाया है। इसके अलावा अंग्रेजी , अंग्रेजी  में भी बहुत बड़ा जातिभेद है। किसने कहां अंग्रेजी  पढ़ी, यह एक बड़ा मुद््दा है। इसे समझने में शायद अभी वक्त लगेगा।

इसके बावजूद अंग्रेजी  को देश की संपर्क भाषा घोषित करने वाले अंग्रेजी  के प्रभाव के बारे में तरह-तरह के बड़े-बड़े दावे पेश करते रहे हैं। उधर राष्ट्रीय ज्ञान आयोग- जो अंग्रेजी दाओं से भरा हुआ है, उसने 2006-2009 की अपनी रिपोर्ट में यह आंखें खोल देने वाली बात कही थी कि अब भी देश के एक प्रतिशत से ज्यादा लोग अंग्रेजी  का उपयोग दूसरी भाषा के रूप में भी नहीं करते, पहली भाषा में उसे बरतने की बात तो भूल ही जाएं। अगर यह गलत है तो या तो आयोग झूठा है, लेकिन तब क्या जनगणना के आंकड़े भी झूठे हैं? 2001 की जनगणना (अभी भाषा संबंधी रिपोर्ट 2011 की नहीं आई है) बताती है कि भारत में कुल 2,26,449 लोग प्रथम भाषा के रूप में अंग्रेजी  का प्रयोग करते हैं। 

सवा अरब की आबादी में सवा दो लाख लोगों की भाषाई हैसियत क्या है? खरिया और कोंध भाषा- जिनके बारे में ज्यादातर लोग कुछ नहीं जानते- भी इतने ही लोग बोलते हैं जितने लोग भारत में अंग्रेजी  को अपनी मातृभाषा मानते हैं। इससे पहले 1981 की जनगणना में भी बताया गया था कि देश के कुल 2,02,400 लोग ही प्रथम भाषा के रूप में अंग्रेजी  बोलते हैं यानी आबादी के अनुपात में महज 0.03 प्रतिशत लोग। 

ये आंकड़े किसी हिन्दी वादी द्वारा पैदा नहीं किए गए हैं, न किसी अंग्रेजी -विरोधी ने ये गढ़े हैं, लेकिन अंग्रेजी  जानने और सत्ता का सुख लूटते रहने का दंभ पालने वाले इस क्रूर सच्चाई को नहीं समझना चाहते। 2001 की जनगणना के कथित आंकड़ों के आधार पर- जो आंकड़े जनसंख्या आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हुए- इनका दावा है कि भारत में हिन्दी  के बाद दूसरी सबसे बड़ी भाषा अंग्रेजी  है जिसने बांग्ला सहित तमाम भारतीय भाषाओं को पीछे छोड़ दिया है। 

इस हास्यास्पद दावे का आधार वही कथित अनुपलब्ध रिपोर्ट है जो यह बताती है कि करीब सवा दो लाख लोगों की मातृभाषा ही अंग्रेजी  है लेकिन 8.60 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा अंग्रेजी  है और तीसरी भाषा के तौर पर इसे 3 करोड़ 12 लाख लोग इस्तेमाल करते हैं।

मगर लाख लोगों की प्रथम भाषा अचानक 8.60 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा कैसे हो सकती है, यह आश्चर्य का विषय है और अगर ऐसा कोई दावा सचमुच ही 2001 की जनगणना रिपोर्ट करती है तो इसका बड़ा आधार हमारी हीनता-ग्रंथि ही हो सकती है जो हम तथाकथित पढ़े-लिखे लोगों को बाध्य करती है कि वे दूसरी भाषा के तौर पर अंग्रेजी  को दर्ज करवा कर देश के संभ्रातों में शामिल होने का गौरव मन ही मन लूटें। दूसरी भारतीय भाषाओं को सीखने के प्रति हमारी उदासीनता भी- खासकर उन लोगों में जो जीवन भर अपने भाषा-क्षेत्र में ही तमाम कारणों से सीमित रह जाते हैं- इसका कारण हो सकती है। चूंकि स्कूल-स्तर पर लोगों ने अक्सर किसी भारतीय भाषा के बजाय टूटी-फूटी अंग्रेजी  ही पढ़ी होती है, इसलिए उसे ही वे दूसरी भाषा के रूप में दर्ज करवा देते होंगे, जबकि अंग्रेजी  का उनका ज्ञान हास्यास्पद स्तर का हो सकता है। मैं अपने अनुभवों से जानता हूं कि चालीस साल पहले भी जिन छात्र-छात्राओं ने स्कूल-कॉलेज स्तर पर अंग्रेजी  पढ़ी है, उनमें से ज्यादातर का इस भाषा का ज्ञान दरअसल कितना सतही है (कॉलेज में मेरे अंग्रेजी  के अध्यापक खुलेआम कुंजी लेकर कक्षा में आते थे और उसमें से प्रश्नोत्तर लिखवा देते थे और उनका काम खत्म हो जाता था)। अंग्रेजी  बोलने-लिखने वालों के दावों को लेकर इंगलिश इंडियाज नेक्स्ट पुस्तिका के लेखक डेविड ग्रेडोल ने इस बारे में उपलब्ध विभिन्न आंकड़ों का हवाला देते हुए और इन सबकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि दरअसल कोई निश्चित रूप से नहीं जानता कि भारत में कितने लोग अंग्रेजी  जानते हैं। 

फिर जो किसी भारतीय भाषा को अपनी मातृभाषा बताते हैं और जो अंग्रेजी  को अपनी दूसरी या तीसरी भाषा बताते हैं इनकी आपस में तुलना कैसे की जा सकती है? दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी  या किसी और भाषा का ज्ञान प्रथम भाषा के रूप में किसी अन्य भाषा के ज्ञान से तुलनीय कैसे हो सकता है? यह कैसे कहा जा सकता है कि चूंकि बांग्ला जानने वाले लोगों की कुल संख्या (दूसरी-तीसरी भाषा के रूप में इसे इस्तेमाल करने वालों सहित) अंग्रेजी  जानने वालों से कम है इसलिए बांग्ला अंग्रेजी  से पिछड़ गई है, जबकि बांग्ला को प्रथम भाषा के रूप में इस्तेमाल करने वाले लोग आठ करोड़ तैंतीस लाख हैं और अंग्रेजी  का प्रथम भाषा के रूप मे प्रयोग करने वाले चौथाई करोड़ भी नहीं हैं। 

अब आते हैं इस बात पर कि भारत की संपर्क भाषा दरअसल क्या है- अंग्रेजी  है या हिन्दी ? अगर भारत के लोगों के आपसी संपर्क का अर्थ यहां आइएएस-आइपीएस अधिकारियों, उच्च और उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों, अकादमिशियनों, कॉरपोरेट घरानों के लोगों-प्रतिनिधियों, उच्च और उच्चमध्यवर्गियों का आपसी संपर्क होना ही है, आम जनता का आपसी संपर्क होना नहीं है तो निश्चित रूप से अंग्रेजी  ही भारत की संपर्क भाषा है।

अगर भारत को भारत यहां के किसान, मजदूर, अल्पसंख्यक, आदिवासी, दलित, पिछड़े और स्त्रियां बनाती हैं, यहां कि भाषाएं-बोलियां बोलने वाले लोग बनाते हैं तो संपर्क भाषा अंग्रेजी  कतई नहीं हो सकती।  वे आंकड़े जो अंग्रेजी को हिन्दी  के बाद दूसरी बड़ी भाषा घोषित करते हैं, वे ही यह भी बताते हैं कि हिन्दी को प्रथम भाषा के रूप में बरतने वाले 42 करोड़ लोग (अंग्रेजी  को बरतने वाले सवा दो लाख) हैं तथा दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में बरतने वाले बाकी तेरह करोड़ से अधिक लोग हैं यानी कुल 55.14 करोड़ लोग हिन्दी  बोलते-लिखते-समझते हैं। अगर दूसरे जटिल सांस्कृतिक-भाषाई उलझनों को फिलहाल छोड़ दिया जाए तो उर्दू बोलने वाले भी तो लिपि को छोड़ कर वही हिन्दी  या वही हिंदुस्तानी बोलते-बरतते हैं जो बाकी हिन्दी भाषी कहलाने वाले लोग बोलते-बरतते हैं। ऐसे लोग जो उर्दू को अपनी प्रथम भाषा बताते हैं उनकी तादाद भी कम नहीं है- 5 करोड़ 15 लाख है। 

यानी व्यावहारिक रूप से हिन्दी या हिंदुस्तानी जानने वाले लोग देश में 2001 तक साठ करोड़ से भी ज्यादा थे, जिनमें उर्दू को दूसरी या तीसरी भाषा के रूप में बरतने वालों की संख्या शामिल नहीं है क्योंकि इसके आंकड़ों के बारे में हमें नहीं मालूम; यानी देश की आधी आबादी हिन्दी  लिखती-बोलती-समझती है। अगर अंग्रेजी  के विवादास्पद दावे को थोड़ी देर को सही भी मान लें तो उससे चार गुना ज्यादा लोग हिन्दी या कहें हिंदुस्तानी जानते-समझते हैं। लेकिन संपर्क भाषा फिर भी अंग्रेजी  ही है, यह कितना बड़ा मजाक है?

हिन्दी  या भारतीय भाषाओं की पचास दूसरी समस्याएं हैं (क्या अंग्रेजी  की नहीं हैं?) और निस्संदेह हिन्दी  के मुकाबले अंग्रेजी  बोलने-समझने-पढ़ने वाले दुनिया भर में बहुत ज्यादा हैं, मगर भारत की संपर्क  भाषा अंग्रेजी  किसी तौर पर नहीं है, भ्रम चाहे ऐसा होता हो। निश्चित रूप से अंग्रेजी  को इस देश की नौकरशाही-न्यायप्रणाली-कॉरपोरेट जगत का अकुंठ समर्थन हासिल है जिसमें राजनीतिकों का भी एक बड़ा और प्रभावशाली तबका शामिल है। उसकी सत्ता का आधारस्तंभ अंग्रेजी  है, अगर वह आधार ही ढह गया तो आभिजात्य का विशाल किला भरभरा कर गिर जाएगा। 

वैसे अंग्रेजीदांओं ने यह खबर भी सुनी होगी कि तमिलनाडु- जहां आज भी हिन्दी -विरोध की राजनीति खेली जाती है- अंग्रेजी दां निजी  स्कूलों में हिन्दी  पढ़ाई जाती है ताकि बेहतर सरकारी और निजी सेवाएं हासिल करने के लिए देश के किसी भी हिस्से में कोई दिक्कत न आए। यहां तक कि हिन्दी -विरोधी द्रमुक तमिलनाडु के हिन्दी भाषियों के वोट हासिल करने के लिए पर्चे हिन्दी  में छापती है। बहरहाल, हिन्दी  एक ऐसा यथार्थ है जिसकी उपेक्षा करना अंग्रेजी  वालों को ही भारी पड़ सकता है। थोड़ा-थोड़ा शायद यह अरणब बाबू भी समझते हैं, तभी अपने कार्यक्रम में वे हिन्दी  भी अक्सर आजकल बोलने लगे हैं।

सौजन्य: जनसत्ता 

बुधवार, 6 अगस्त 2014

विदेशी छात्र भी आइआइटी में हिन्दी पढ़ेंगे

रुड़की: अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौस) रुड़की में पढ़ने वाले विदेशी छात्र भी हिन्दी पढ़ेंगे। विदेशी छात्र हिन्दी को बोलचाल की भाषा बनाएंगे। अफ्रीकी देशों के कई छात्र विभिन्न पाठ्यक्रमों में पढ़ाई के लिए रुड़की भाप्रौस में दाखिला लेते हैं। इस दौरान विदेशी छात्र पढ़ाई के साथ ही बोलचाल में अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग करते हैंजिसके चलते भारतीय छात्रों से अधिक मेलमिलाप नहीं हो पाता है। सबसे अधिक परेशानी विदेशी छात्र-छात्राओं को बाजार में खरीदारी के दौरान आती है। खासकर किताबें खरीदनाबस में सफर करना हो या फिर खानपान की चीजें खरीदनी हों तो अंग्रेजी न समझने के कारण दुकानदार को भी दिक्कतें पेश आती हैं। ऐसे में भाप्रौस रुड़की प्रबंधन ने निर्णय लिया है कि अब विदेशी छात्रों को भी हिन्दी पढ़ायी जाएगी।

भाप्रौस हिन्दी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. नागेंद्र ने बताया कि विदेशों में डिग्री लेने के लिए जाने से पहले वहां की भाषा सीखनी पड़ती है। इसी तरह भाप्रौस में दाखिला लेने वाले विदेशी छात्रों को भी हिन्दी पढ़ाई जाएगी। इससे विदेशी छात्र भारतीय संस्कृतिसाहित्य को जानेंगे व समझेंगे। कई छात्र सिविल इंजीनियरी के क्षेत्र में पढ़ाई व शोध कर रहे हैं और हिन्दी में कुछ किताबें बेहतर हैं तो उसे पढ़ने के लिए हिन्दी को जानना आवश्यक है। इससे ज्ञान भी बढ़ेगा। साथ ही स्थानीय क्षेत्रों में बोलचाल की भाषा हिन्दी हैलेकिन दुकानदारों को अंग्रेजी नहीं आती है। हिन्दी जानने से आसानी से विदेशी छात्र खरीददारी कर सकेंगे। शुक्रवार व शनिवार को भाप्रौस में कक्षाएं लगेंगीजिसमें भाप्रौस प्रोफेसर के अलावा अतिथि शिक्षक भी बुलाए जाएँगे । छह महीने से अधिक समय भाप्रौस में रहने वाले विदेशी छात्रों को हिन्दी सीखना अनिवार्य होगा।

इन देशों के आते हैं छात्र

भाप्रौस हिन्दी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. नागेंद्र ने बताया कि भाप्रौस में युगांडातंजानियाजर्मनीश्रीलंकानेपालभूटानमलेशिया आदि देशों के छात्र पढ़ाई व शोध के लिए आते हैं। इनकी संख्या करीब साठ है।

हिन्दी सिखाने का यह भी है प्रमुख कारण
जानकारों की मानें तो अगर भारतीय छात्र को जर्मनी में पढ़ाई एवं प्रोफेसर को शोध व डिग्री के लिए विदेश जाना पड़ता है तो वहां की भाषा अनिवार्य रूप से सीखनी पड़ती हैजबकि भारत में ऐसा नहीं था। ऐसे में अब भाप्रौस प्रबंधन ने भी हिन्दी को अनिवार्य कर दिया है।

सौजन्य- जागरण 

हिन्दी के प्रति आकर्षित हुए विदेशी कारोबारी

भारत में कम्पनी जगत और अमीर कारोबारी भले ही हमारी भाषा के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार करते हों पर विदेशियों की दृष्टि में यह भाषा भारतीय लोगों के प्रति अपनत्व दिखाने का प्रमुख माध्यम है।

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी नारे 'सबका साथ सबका विकास' का उल्लेख पिछले सप्ताह हुई वॉशिंगटन के एक विचारशील समूह की एक महत्वपूर्ण बैठक में किया था।

अमेरिकी निजी इक्विटी निवेश संस्था “डब्ल्यूएल रॉस” के निदेशक डेविड वैक्स अपने कारोबारी लेनदेनों के सिलसिले में कई बार भारत आ चुके हैं। पिछले सप्ताह अपनी ताज़ा भारत यात्रा में वैक्स ने अपने आगंतुक-पत्र में एक ओर अपना परिचय हिन्दी में छपवाया परन्तु आप किसी भी भारतीय कंपनी के अधिकारी के आगंतुक-पत्र पर हिन्दी की कल्पना भी नहीं कर सकते, अंग्रेजी उनके रुतबे की प्रतीक बनी हुई है; वैक्स भारत में कठिनाई से गुजर रही कंपनियों में निवेश करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी का यह प्रयोग छोटा, परन्तु महत्वपूर्ण संकेत है। वैक्स ने बताया, 'इसका उद्देश्य भारतीय लोगों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता को प्रकट करना था।'


इसी प्रकार जर्मन विमानन सेवा “लुफ्थांसा” का टीवी विज्ञापन भारतीय यात्रियों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने का प्रयास करता है। कंपनी ने पहली बार केवल भारत के लिए विज्ञापन तैयार किया है और इस विज्ञापन में उड़ान के दौरान भारतीय भोजन और फिल्मों को दिखाया गया है। लुफ्थांसा की प्रबन्धक (विपणन एवं संचार) संगीता शर्मा ने बताया, 'एक ब्रांड के तौर पर हम काफी समय से भारत में हैं...हालांकि, इस बार हम भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न करना चाहते थे।'

दिल्ली में कई दूतावासों ने कर्मियों को हिन्दी कक्षाओं में प्रवेश दिलवाया है। ऐसे विद्यार्थियों के अतिरिक्त कंपनियों के शोधकर्ताओं की ओर से भी हिन्दी  भाषा सीखने की मांग दिख रही है। हिन्दी  गुरु लैंग्वेजेस इंस्टीट्यूट के संस्थापक चंद्रभूषण पांडे के अनुसार, नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद पश्चिमी देशों और यहां तक कि चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के लोगों ने भी भारत में हिन्दी के बढ़ते महत्त्व के बारे में बात करना शुरू किया है। पांडे ने बताया, 'चीन के कई लोगों ने हाल में मुझसे संपर्क कर कहा कि वे हिन्दी  में उन्नत पाठ्यक्रम करना चाहते हैं, क्योंकि इससे उन्हें व्यावसायिक और कूटनीतिक रिश्ते बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।' पांडे अभी मित्सुबिशी और मित्सुई जैसी कंपनियों में काम करने वाले लोगों को हिन्दी  सिखा रहे हैं। उन्होंने बताया, 'गर्मी छुट्टी समाप्त होने और लोगों के छुट्टियों से वापस आने के बाद हिन्दी  सीखने से जुड़ी पूछताछ काफी आ रही है।'

जानकारों का कहना है कि ‘देश की भाषा में बात करना और उसकी संस्कृति का सम्मान’, न केवल दोस्ती दिखाने का तरीका है, बल्कि इसका उद्देश्य सामाजिक, राजनीतिक और व्यावसायिक मोर्चों पर संबंधित देश से सक्रिय जुड़ाव है । भारतीय प्रबन्ध संस्थान (भाप्रस- आईआईएम) अहमदाबाद के प्राध्यापक अब्राहम के कहते हैं, 'अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने के बजाय स्थानीय लोगों से जुड़ना अधिक महत्वपूर्ण है।' इसलिए, जब जर्मन पर्यटन संस्थान  अपनी पेशेवर सामग्री लगभग 10 भारतीय भाषाओं में जारी करता है, तो इसमें बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।


सौजन्य: श्री विजय कुमार मल्होत्रा


मंगलवार, 5 अगस्त 2014

अमरीकी दूतावास की स्पैन हिंदी ब्लॉग प्रतियोगिता में भाग लें और जीतें आईपैड

मित्रो! दुनिया भी अब हिन्दी का लोहा मानने लगी है और विश्व का सबसे शक्तिशाली देश इस बात को बखूबी जान चुका है इसलिए भारत में स्थित अमरीकी दूतावास ने ना केवल #हिंदी पत्रिका शुरू की है बल्कि अब वह हिंदी दिवस के आयोजन के लिए एक प्रतियोगिता भी आयोजित कर रहा है. हैं मज़ेदार बात.

हिंदी में अपना ब्लॉग लिखें

विषय है: अमेरिकी और भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ काम करके किस तरह से अमेरिका-भारत भागीदारी को प्रभावित करने के साथ ही उसे बेहतर स्वरूप प्रदान कर रहे हैं। ब्लॉग प्रतियोगिता के विषय अमेरिका-भारत: शिक्षा के ज़रिये मैत्री का इंद्रधनुष”  विषय पर ही आधारित होना चाहिए। प्रतियोगिता का शुभारंभ 1 अगस्त, 2014 को होगा और 29 अगस्त 2014 को इसका आखिरी दिन होगा। प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा 14 सितंबर, 2014 को हिंदी दिवस के अवसर पर की जाएगी।

पुरस्कार:
प्रथम पुरस्कार: आईपैड मिनी
द्वितीय पुरस्कार: आईपॉड टच
तृतीय पुरस्कार: स्पैन गि़फ्ट बॉक्स

प्रतियोगिता में कैसे भाग लें:
* ब्लॉग प्रविष्टियां स्पैन वेबसाइट के हिंदी ब्लॉग पृष्ठ के ज़रिये भेजें। कृपया दाईं तरफ के खाने में अपना ब्लॉग लिखेंपर क्लिक करें और लॉग इन करें।
* आप ब्लॉग प्रविष्टि भेजने वाले पृष्ठ पर हिंदी ट्रांसलिटरेशन के ज़रिये ब्लॉग लिख सकते हैं या फिर वर्चुअल हिंदी कीबोर्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं  (कृपया पृष्ठ के बिल्कुल ऊपरी हिस्से में दिए कीबोर्ड सेक्शन पर क्लिक करें)  या फिर यूनीकोड  में ब्लॉग लिखकर यहां कॉपी-पेस्ट कर दें।
* ब्लॉग श्रेणी के लिए ड्रॉप डाउन मेन्यू से कृपया  शिक्षा  को चुनें।
* ब्लॉग लेखक सेक्शन में अपना पूरा नाम लिखें।
* यदि इस लिंक के ज़रिये ब्लॉग भेजने में आपको कोई पेरशानी आती है तो आप अपनी यूनीकोड पाठ्यसामग्री वाली ब्लॉग प्रविष्टि editorspan@state.gov पर भेज दें। पाठ्यसामग्री वर्ड फाइल में हो या फिर ईमेल के मुख्य पृष्ठ पर ही भेज  दें।
*कृपया प्रविष्टि के साथ अपना पूरा नाम, पता और जन्म तिथि एवं वर्ष लिखें।
* कृपया कोई भी प्रविष्टि डाक से न भेजें।
* ब्लॉग के साथ कोई चित्र या फोटो भेजना अनिवार्य नहीं है।

पात्रता:
* इस प्रतियोगिता में 14 से 45 वर्ष की आयु के भारत में रह रहे सभी भारतवासी भाग ले सकते हैं। 
* अमेरिकी सरकार के कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्य इसमें भा नहीं ले सकते।
नियम:
* ब्लॉग प्रविष्टियां हिंदी में होनी चाहिएं। अन्य किसी भाषा में प्रविष्टि स्वीकार नहीं की जाएगी।
* ब्लॉग 600 शब्दों से ज़्यादा का नहीं होना चाहिए।
* संपादक के अनुमोदन के बाद प्रविष्टियां स्पैन वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएंगीं। प्रतियोगिता में आने वाली प्रविष्टियां कार्यदिवसों के दौरान कार्य-अवधि (सोमवार से शुक्रवार, सुबह 8.30 से शाम 5 बजे तक) के बीच ही जांची जाएगीं। कार्यअवधि के बाद, या सप्ताहांत या अवकाश वाले दिन भेजी गईं प्रविष्टियों को अगले कार्य-दिवस में जांचा जाएगा।
* प्रत्येक प्रतियोगी सिर्फ एक प्रविष्टि भेज सकता है।
* ब्लॉग भेजने वाला व्यक्ति ही प्रतियोगी माना जाएगा और सिर्फ वही व्यक्ति पुरस्कार मिलने पर इसे पाने का हकदार होगा।
* प्रविष्टि प्रतियोगी द्वारा स्वयं लिखित और मौलिक होनी चाहिए।
* किसी भी तरह की कॉपीराइट वाली सामग्री या कहीं और से ली गई सामग्री को प्रविष्टि के तौर पर न भेजें। ऐसी प्रविष्टियों को अस्वीकार कर दिया जाएगा।
* एक बार ब्लॉग प्रविष्टि भेज देने पर इसे अंतिम माना जाएगा। इसे संशोधित, संपादित या बदला नहीं जा सकेगा।
* ब्लॉग में लिखे तथ्यों के लिए प्रतियोगी स्वयं ज़िम्मेदार होंगे। स्पैन तथ्यों की सत्यता या पाठ्यसामग्री की मौलिकता का ज़िम्मा नहीं लेगा। इसमें अन्य व्यक्तियों या संगठनों के हवाले से कहे गए तथ्य शामिल हैं।
*भेजी गई प्रविष्टियों में निम्न में किसी तरह की सामग्री नहीं होनी चाहिए: गालीगलौज, घृणास्पद या नस्लभेदी सामग्री, विघटनकारी या शत्रुतापूर्ण टिप्पणी, हिंसा की धमकी, एक-दूसरे से टकराव, आपत्तिजनक सामग्री को छिपाने या गलत वर्तनी के साथ लिखने की कोशिश, किसी भी वस्तु, सेवा या व्यावसायिक वेबसाइट का विज्ञापन, व्यापार के प्रस्ताव, "ज़रुरत है" वाले पोस्ट, या चैरिटी का आग्रह, ऐसी कोई भी सामग्र्री जिसमें अश्लीलता हो।