अनुवाद

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

मुंबई मोनोरेल के संचालन में यात्रियों की भाषा को प्राथमिकता मिले

प्रति,
मुख्यमंत्री महोदय 
महाराष्ट्र शासन 
मंत्रालय, मुंबई 

विषय: मुंबई मोनोरेल एवं मुंबई मेट्रो में राष्ट्रभाषा 'हिन्दी' का प्रयोग किए जाने हेतु अनुरोध 

महोदय,


भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा महाराष्ट्र की राजभाषा मराठी है दोनों भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैभारत में लगभग तीन प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं और सत्तानवे प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं. मुंबई एवं महाराष्ट्र के निवासियों के लिए हिन्दी मौसी जैसी है और यहाँ के अधिकांश लोग हिन्दी का अच्छा कार्यसाधक ज्ञान रखते हैं.

इन तथ्यों से पता चलता है कि अंग्रेजी थोपने की बजाए उन्हें उनकी भाषा में  एवं हिन्दी भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए. महाराष्ट्र में बसों में और अन्य सरकारी कार्यालयों में अंग्रेजी को वरीयता के साथ प्रयोग किया जा रहा है, राष्ट्रभाषा की उपेक्षा करके देश की आर्थिक राजधानी में अंग्रेजी का प्रयोग उचित नहीं है, कई मामलों में मराठी का प्रयोग भी नहीं किया जाता है और नागरिकों पर अंग्रेजी थोपी जा रही है.  राज्य में अंग्रेजी का प्रयोग निरंतर बढ़ाया जा रहा है.


सरकार को आम जनता एवं भारत की मुंबई आने वाली जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए इन सड़कों और मार्गों के नाम-पटों में हिन्दी को अंग्रेजी से पहले स्थान देना चाहिए क्योंकि मुंबई केवल महाराष्ट्र की राजधानी ही नहीं भारत की आर्थिक राजधानी है और यहाँ सम्पूर्ण भारत के लोग आते हैं. मुंबई में हिंदी के साथ सौतेला व्यवहार अनुचित है.

अनुरोध:

  1. सड़कों पर लगे ये मार्ग निर्देश पट्ट (रोड साइन बोर्ड) भारत के अन्य राज्यों के वाहन चालकों के लिए मराठी देवनागरी में लिखे होने से पढ़ने में तो एकदम आसान होते हैं पर वे इन्हें समझ नहीं पाते हैं इसलिए इनमें मराठी के ठीक बाद हिन्दी का प्रयोग सुनिश्चित किया जाए. इससे देश के अन्य भागों से आने वाले लोगों को बहुत आसानी होगी.
  2. उपनगरीय (लोकल) की तरह मुंबई मोनोरेल एवं मुंबई मेट्रो में सभी दिशा-निर्देश, स्टेशनों के नाम एवं नाम-पट आदि राष्ट्रभाषा हिन्दी में लगवाए जाएँ. इससे देश के अन्य भागों से आने वाले लोगों को बहुत आसानी होगी.
  3. मुंबई मोनोरेल  की गाड़ियों में बाहरी तरफ अंग्रेजी में लिखे Mumbai Mono Rail के स्थान पर देवनागरी लिपि में लिखा जाए. देवनागरी हमारी पहचान है. इसी तरह जब मेट्रो चालू हो उसपर भी देवनागरी का प्रयोग सुनिश्चित किया जाए.
  4. महाराष्ट्र, विशेषकर मुंबई में लगे सरकारी कार्यालयों के नाम पट्ट मराठी में लगाए गए हैं जो बहुत अच्छी बात है पर उनमें राष्ट्रभाषा की अनदेखी करके अंग्रेजी को स्थान दिया गया है जो अनुचित है, सरकार यदि हिंदी का प्रयोग नहीं कर सकती है तो उसे अंग्रेजी का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए.

इस सम्बन्ध में की गई कार्यवाही से मुझे अवगत करवाया जाएऐसी मेरी प्रार्थना है.

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

क्या मोबाइल कम्पनियाँ आपको बिना बताए ठग लेती हैं ?

प्रति,

मुख्य प्रशासनिक अधिकारी 
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण
महानगर दूरसंचार भवन 
(जाकिर हुसैन कॉलेज के बगल में) 
जवाहर लाल नेहरू (ओल्ड मिंटो रोड) मार्ग
नई दिल्ली-110 002

विषय: ट्राई ने मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हेतु कंपनियों द्वारा किस भाषा में जानकारी देना अनिवार्य किया है ?

महोदय,

भारत में  मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन उपभोक्ताओं की संख्या करोड़ों में है और देश के राजभाषा हिन्दी है तथा विभिन्न राज्यों की अपनी राजभाषाएँ हैं, भारत में लगभग तीन प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं और सत्तानवे प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं. यहाँ ध्यान देने योग्य है कि देश कि छप्पन करोड़ जनता की मातृभाषा हिन्दी है और लगभग पच्चीस करोड़ लोग हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान रखते हैं.

इन तथ्यों से पता चलता है कि देश के सत्तानवे प्रतिशत मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन उपभोक्ताओं  पर अंग्रेजी थोपने की बजाए उन्हें उनकी भाषा में अथवा कम से कम हिन्दी भाषा में दी जानी चाहिए पर ऐसा नहीं हो रहा है उनपर अंग्रेजी थोपी जा रही है. 

उपभोक्ताओं पर अंग्रेजी थोपने के उदाहरण:

१. किसी भी मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन कंपनी द्वारा आज तक अपनी-२ वेबसाइटों पर कोई भी जानकारी हिन्दी अथवा स्थानीय भाषा में नहीं दी गई है.

२. किसी भी मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन कंपनी द्वारा आज तक अपनी-२ वेबसाइटों पर कोई भी ऑनलाइन सेवा हिन्दी अथवा स्थानीय भाषा में नहीं दी गई है.

३. किसी भी मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन कंपनी द्वारा आज तक उपभोक्ताओं को एसएमएस अलर्ट सेवा हिन्दी अथवा स्थानीय भाषा में नहीं दी गई है.

४. किसी भी मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन कंपनी द्वारा आज तक उपभोक्ताओं को सेवाओं के बिल, ईमेल विवरण आदि  की सुविधा हिन्दी अथवा स्थानीय भाषा में पाने की व्यवस्था नहीं की गई है और कुछ कम्पनियों द्वारा बिल आदि में भाषा चुनने का विकल्प तो दिया जाता है पर ग्राहक को इस सुविधा की कोई जानकारी नहीं दी जाती और कंपनी पूर्व निर्धारित रूप से (बाई डिफाल्ट) बिल आदि केवल अंग्रेजी में भेजती है और साथ ही ग्राहकों द्वारा मांग करने पर भी मना करती हैं. जबकि होना यह चाहिए कि बिल, विवरण, एसएमएस, कनेक्शन के आवेदन फॉर्म अनिवार्य रूप से राज्य की भाषा (स्थानीय भाषा) के हिसाब से उपलब्ध करवाए जाना का नियम बनाया जाए और अंग्रेजी को थोपना बंद किया जाए. महानगरों के अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों को इससे कोई परेशानी भले ना होती हो पर जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते उनके हितों की अनदेखी होती है कम्पनियाँ अंग्रेजी के नाम पर उपभोक्ताओं को ठगती रहती हैं.

५. सरकार ने सेट-टॉप बोक्स लगाने का अनिवार्य नियम बनाया है पर ग्राहकों को आवेदन फॉर्म, ग्राहक सेवा पुस्तिका, सेट-बॉक्स सञ्चालन के लिए टीवी स्क्रीन पर आने वाले विवरण, सेट टॉप बॉक्स लगाने वाली डीटीएच कम्पनी की वेबसाइट आदि किस भाषा में उपलब्ध हो इसकी घोर अनदेखी हुई है और इन सारी कंपनियों ने भी उपभोक्ताओं पर अंग्रेजी लाद दी. यदि सेट टॉप बॉक्स का अनिवार्य नियम बनाया है तो ग्राहकों को अपनी भाषा में ये सुविधाएँ मिलें इसका नियम भी बनाया जाए.

६. मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन कंपनियों द्वारा अपने ग्राहकों को अपनी सेवा शर्तें किस भाषा में दी जानी चाहिए, तत्संबंधी नियम क्या है?

कृपया बताने का कष्ट करें कि ट्राई ने ग्राहकों के हितों कि रक्षा और जागरुकता के लिए मोबाइल/केबल/डीटीएच एवं फोन कम्पनियों द्वारा अपने उपभोक्ताओं को कौन-२ सी सेवाएँ और कौन-२ से दस्तावेज अपनी भाषा में प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है और कौन-२ सी सेवाएँ और कौन-२ से दस्तावेज ग्राहकों को केवल अंग्रेजी में ही दिया जाना अनिवार्य किया है?

कृपया बताने का कष्ट करें कि उपभोक्ता को यदि कम्पनी द्वारा कोई दस्तावेज/ फॉर्म/ सेवा-शर्तें अपनी भाषा में नहीं दी जाती हैं तो वह इसकी शिकायत किस अधिकारी को कर सकता है उनका नाम, पता, ईमेल और फोन नम्बर क्या है? ऐसी शिकायतों का निवारण कितने दिनों में होता है?

आपसे अनुरोध है कि नागरिक अधिकार-पत्र में निर्धारित अवधि में इसका निराकरण करें.

आपके शीघ्र उत्तर की अपेक्षा है. फिलहाल इस पत्र की प्राप्ति की सूचना भेजने का कष्ट करें.

भवदीय 


हिन्दी फिल्मों में फिल्म का नाम भी हिंदी में नहीं लिखा जाता !!


प्रति,
श्री मनीष तिवारी,
सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री, 
सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय, (सूप्रम) 
भारत सरकार
नई  दिल्ली 

विषय: भारत में फिल्म-टीवी पर नाम-शीर्षक में प्रविष्टियों (कैप्शन) की भाषा सम्बन्धी नियम बनाए जाने का निवेदन

माननीय महोदय,

सबसे पहले मैं आपका बहुत आभारी हूँ कि आपने मेरे निवेदन पर 'भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह' (इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इण्डिया) के आयोजन में हिंदी के प्रयोग को सुनिश्चित करने हेतु सम्बंधित अधिकारी को निर्देश जारी किए.

आज मैं एक अन्य बात रखना चाहता हूँ, पूरे विश्व में अलग-२ भाषाओं की फ़िल्में, वृत्तचित्र, टीवी कार्यक्रम, समाचार बुलेतिन, धारावाहिक बनते और प्रसारित होते हैं, इन सभी में प्रदर्शन/प्रसारण के आरंभ और अंत एवं उसके दौरान कई बातें/नाम/शीर्षक आदि विवरण स्क्रीन/परदे पर दिखाई देते हैं. भारत को छोड़कर अन्य देशों में यह सारे विवरण-प्रविष्टियाँ उनकी अपनी भाषा में होती हैं. 

हमारे देश में इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट नियम शायद नहीं है इसलिए विशेषरूप से हिंदी फिल्मों/ धारावाहिकों में ऐसा सारा विवरण केवल अंग्रेजी में प्रदर्शित किया जाता है और हिंदी (देवनागरी लिपि) में कुछ भी नहीं लिखा होता, यहाँ तक की फिल्म अथवा धारावाहिक का नाम भी हिंदी में नहीं लिखा जाता, उसे रोमन में लिखा जाता है.

हिंदी फिल्म अथवा धारावाहिक के सारे विवरण-प्रविष्टियाँ, शीर्षक आदि हिंदी में लिखे जाएँगे तो किसी को इसमें आपत्ति नहीं हो सकती, अलबत्ता देश के सुदूर अंचलों के लोगों को भी बहुत सी बातें पढने में आ जाएंगी जो वे अभी पढ़ नहीं पाते. मैं यहाँ अंग्रेजी में विवरण-शीर्षक लिखे जाने का विरोध नहीं कर रहा, यह तो फिल्म-टीवी धारावाहिक के लोगों की मर्जी है पर दर्शकों के हित में तो यही होगा कि हिंदी फिल्म हो तो साड़ी जानकारी स्क्रीन/परदे पर हिंदी में भी प्रदर्शित की जाए, अंग्रेजी का प्रयोग फिल्म वाले करते रहें तो किसी को आपत्ति नहीं होगी पर हिंदी फिल्म और हिंदी धारावाहिक में हिंदी में विवरण दिया जाना अनिवार्य होना चाहिए.

कुछ समय से कुछ हिंदी चैनलों ने सारे विवरण-शीर्षक हिंदी में लिखना शुरू भी किया है जो अच्छी पहल है पर यह नियम सभी भारतीय निजी एवं सरकारी चैनलों पर लागू होना चाहिये.

आपसे अनुरोध है कि आप इस सम्बन्ध में मंत्रालय से नियम-निर्देश जारी करवाएं:

क] भारत में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों एवं उनकी झलकियाँ [प्रोमोज़] के नाम/शीर्षक एवं फिल्म/प्रोमोज़  के आरम्भ और अंत में (कलाकारों/गायकों के नाम/फिल्म निर्माण टीम आदि के नाम) जो कुछ भी स्क्रीन पर लिखा हुआ दिखाई देता है, इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट नियम नहीं है. जैसे ऐसे शीर्षक/नाम एवं अन्य विवरण किस भाषा और लिपि में प्रदर्शित किए जाने चाहिए

सुझाव: सूप्रम अविलम्ब ऐसा नियम बनाए कि भारत में प्रदर्शित/उद्घाटित/रिलीज़ होने वाली फ़िल्में जिस भाषा की होंगी उसके नाम /शीर्षक और फिल्म के आरम्भअंत और फिल्म के दौरान एवं /उनके प्रोमोज़ में जो कुछ भी स्क्रीन पर लिखा हुआ दिखाई देता हैवह उसी भाषा में लिखा/टाइप किया होना अनिवार्य होगा जिस भाषा की वह फिल्म है. जैसे गुजराती अथवा तमिल भाषा की फिल्म में स्क्रीन पर लिखा हुआ सबकुछ गुजराती और तमिल में हो. यदि तमिल फिल्म का नाम अंग्रेजी में है तो भी उसे तमिल की लिपि में प्रदर्शित किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए. फिल्म निर्माता फिल्म की मूल भाषा से इतर अन्य किसी भी वैकल्पिक भाषा प्रयोग करना चाहे तो करे परन्तु जिस भाषा की फिल्म है उसके सभी विवरण/शीर्षक (कैप्शन/टाइटल्स) उसी भाषा में लिखना अनिवार्य किया जाए.

ख] भारत में प्रदर्शित होने वाली सभी फिल्मों/वृत्तचित्र/धारावाहिक/टीवी शो/ कार्यक्रमों के पोस्टर/सीडी एवं कैसेट के आवरण/वेबसाइट आदि किस भाषा में बनाये जाने चाहिएस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट नियम नहीं है. 

सुझाव: जैसे गुजराती अथवा तमिल भाषा की फिल्म के पोस्टर एवं सीडी/कैसेट के आवरण/वेबसाइट आदि में गुजराती और तमिल प्रयोग करना अनिवार्य किया जाए. फिल्म निर्माता फिल्म की मूल भाषा से इतर अन्य कोई वैकल्पिक भाषा का प्रयोग करना चाहे तो करे परन्तु जिस भाषा की फिल्म है उसका प्रयोग और उसको प्राथमिकता देना अनिवार्य किया जाए.

ग]  भारत सरकार द्वारा मान्य/पंजीकृत सभी निजी एवं सरकारी टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले सभी वृत्तचित्र/धारावाहिक/टीवी शो/ कार्यक्रमों/ समाचार अंकों (बुलेटिनों) के नाम/शीर्षक एवं कार्यक्रम आदि के आरम्भ और अंत में (कलाकारों/गायकों के नाम/कार्यक्रम निर्माण टीम आदि के नाम आदि सभी कैप्शन) जो कुछ भी स्क्रीन पर लिखा हुआ दिखाई देता हैस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट नियम नहीं है. जैसे ऐसे शीर्षक/नाम एवं अन्य विवरण किस भाषा और लिपि में प्रदर्शित किए जाने चाहिए?

सुझाव: जैसे गुजराती अथवा तमिल भाषा के सभी वृत्तचित्र/धारावाहिक/टीवी शो/ कार्यक्रमों/ समाचार अंकों (बुलेटिनों) के नाम/शीर्षक एवं कार्यक्रम आदि के आरम्भ और अंत में (कलाकारों/गायकों के नाम/कार्यक्रम निर्माण टीम आदि के नाम) जो कुछ भी स्क्रीन पर दिखाई देता है उसमें गुजराती और तमिल प्रयोग करना अनिवार्य किया जाए. वृत्तचित्र/धारावाहिक/टीवी शो/ कार्यक्रमों/ समाचार अंकों (बुलेटिनों)के निर्माता मूल भाषा से इतर अन्य कोई वैकल्पिक भाषा का प्रयोग करना चाहे तो करे परन्तु जिस भाषा का वृत्तचित्र/धारावाहिक/टीवी शो/ कार्यक्रमों/ समाचार अंक (बुलेटिन) है उसका प्रयोग और उसको प्राथमिकता देना अनिवार्य किया जाए.

आपके द्वारा शीघ्र कार्यवाही की अपेक्षा करता हूँ.

निवेदक:

स्टेट बैंक से रहें सावधान और ग्राहकों के हितों की अनदेखी

सेवा में,
 श्रीमती अरुंधति भट्टाचार्य 
 अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
 भारतीय स्टेट बैंक  
 मदाम कामा रोड, मुम्बई  - 400021 
  
विषय- अंग्रेजी थोपकर ग्राहक हितों और राजभाषा सम्बन्धी कानूनों की अनदेखी करता हुआ केवल अंग्रेजी जानने वालों का बैंक ।

महोदय,
यह चौंकाने वाली बात है कि भारत सरकार के मातहत राष्ट्रीयकृत बैंक खुले रूप में भारत सरकार के राजभाषा के कानून की अवहेलना करते दिखाई देते हैं और वे विभाग व कार्यालय आदि जिन पर इन कानूनों को लागू करवाने की जिम्मेदारी हैवे चुपचाप बैठकर इसे मौन समर्थन देते दिखाई देते हैं। ऐसे कानूनों का क्या मतलब जिनका पालन बहुत कम और उल्लंघन बहुत ज्यादा होता हो ।
          यहाँ यह बताना गैरजरूरी न होगा कि ज्यादातर बैंकों में ज्यादातर विज्ञापन सामग्रीहोर्डिंगसभी प्रकार के आवेदन फार्म आदि अंग्रेजी में हैं, आपके भारतीय स्टेट बैंक और समूह के बैंकों की स्थिति तो बहुत ही चिंताजनक है। 

महोदया, 
  1. स्टेट बैंक ने 2008 के बाद से अपनी हिन्दी वेबसाइट अद्यतित ही नहीं की है और हिन्दी वेबसाइट के नब्बे प्रतिशत पृष्ठों पर अंग्रेजी सामग्री और अंग्रेजी वेबपृष्ठ के ही लिंक भरे पड़े हैं.
  2. राष्ट्रपति जी के आदेशों के उपरांत भी अब तक सभी प्रकार के मुद्रित आवेदन, ऑनलाइन आवेदन, पासबुक एवं मासिक विवरणके हिन्दी-द्विभाषी में छापने की व्यवस्था बैंक पूरे पाँच साल बाद भी नहीं कर पाया. ऑनलाइन बैंकिंग वेबसाइट पर केवल मुखपृष्ठ हिंदी में है बाकी सबकुछ अंग्रेजी में है, यहाँ तक की ऑनलाइन बैंकिंग इस्तेमाल के लिए बनाए आगे सभी अनिवार्य नियम और शर्तें भी केवल अंग्रेजी में हैं, जो ग्राहक अंग्रेजी नहीं जानते ये शर्तें उनपर भी लागू हैं, अंग्रेजी नहीं आती तो बैंक की नहीं यह ग्राहक की समस्या है.
  3. एसएमएस चेतावनी, नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, मोबाइल ऐप, ऑनलाइन खाता खोलना, ऑनलाइन शिकायत प्रणाली जैसी सभी आधुनिक सेवाएँ बैंक ग्राहकों पर अंग्रेजी में थोप रहे हैं, इन आपके बैंक को ग्राहकों की सुविधा नहीं बल्कि बैंकिंग सेवाओं के अंग्रेजीकरण की अधिक चिंता है. बैंक गर्व से लिखता है “हर भारतीय का बैंक” पर देखा जाए तो यह स्टेट बैंक “केवल अंग्रेजी जानने वालों का अंग्रेजी बैंक है”. 
  4. एसएमएस चेतावनी आप अंग्रेजी में भेजते हैं और पन्द्रह रुपये प्रति तिमाही ग्राहक से वसूल रहे हैं भले ही ग्राहक ना उसे पढ़ सकता हो, ना समझ सकता हो? देश के अंग्रेजी ना जानने वाले करोड़ों ग्राहकों के साथ अन्याय किया जा रहा है, केवल अंग्रेजी में एसएमएस भेजा जाना असंवैधानिक है, जो भाषा मुझे नहीं आती है उसमें मुझे एसएमएस भेजा जाए और शुल्क भी वसूला जाए यह तो सरासर तानाशाही है. आपका बैंक देश के गाँव - गाँव में मौजूद है फिर भी आपको ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहकों भी चिंता नहीं है. 
आप बैंक की सर्वेसर्वा हैं इसलिए अनुरोध है कि अपने बैंक के सम्बंधित अधिकारियों को कड़े निर्देश जारी करें और राजभाषा सम्बन्धी कानूनों का पालन करवाया जाए तथा ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए बैंक के कामकाज में हिन्दी को प्राथमिक आधार पर प्रयोग करना सुनिश्चित किया जाए। जिन अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है उन्हें सोते से जगाया जाए या हटाया जाए। इस पत्र को संचार जगत में भी भेजा जा रहा है अतः हम सभी की गई कार्रवाई की सूचना व परिणामों की अविलम्ब अपेक्षा करते हैं। आपके बैंक द्वारा अंग्रेजी थोपकर ग्राहक हितों की अनदेखी को रोका जाए.

भवदीय


प्रतिलिपि:
  1.  सचिव, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय 
  2.  सुश्री पूनम जुनेजा, संयुक्त सचिव एवं मुख्य सतर्कता अधिकारी महोदया, 
  3.  श्री भोपाल सिंह, निदेशक (शिकायत), राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय

प्रधानमन्त्री जी बैठक तो बुलवाइए ?


दिनांक: 10 फरवरी 2014 

प्रति,
डॉ श्री मनमोहन सिंह 
माननीय प्रधानमंत्री जी, भारत सरकार
एवं 
अध्यक्ष, केन्द्रीय हिंदी समिति 
प्रधानमंत्री कार्यालय,
दक्षिणी खंड (साउथ ब्लाक),
नई दिल्ली -110011

विषय: केन्द्रीय हिन्दी समिति की बैठक अविलम्ब बुलाए जाने हेतु अनुरोध 

माननीय महोदय, 

प्रधानमंत्री जी! आप भी भारत की जनता को समझ नहीं सके और इन दस सालों में लोगों पर अंग्रेजी को बुरी तरह थोपा गया इसलिए आपकी योजनाओं का लाभ जनता को नहीं मिला। जब नागरिक को योजना की जानकारी उसकी भाषा में नहीं मिलती, वह चाहकर भी योजना का लाभ नहीं उठा पाता। आपने (सरकार ने) हिन्दी में नहीं बताया तो समझ लीजिए आपने कुछ भी नहीं बताया; आपकी एवं सरकार की सारी मेहनत बेकार चली जाएगी।

आपकी सरकार ने राजभाषा अधिनियम एवं संबंधित प्रावधानों के पालन के लिए पिछले दस वर्षों में एक भी ठोस कदम नहीं उठाया, स्थिति तो इतनी बुरी है आपके कार्यालय (प्रधानमंत्री कार्यालय) से आम नागरिकों के हिन्दी में लिखे पत्रों और आवेदनों के जवाब अंग्रेजी भेजे जाते हैं, फिर कुछेक बार कई दिनों बाद उसका हिंदी अनुवाद नागरिक को भेजा जाता है, यानी सरकारी धन और समय का इसमें दुरूपयोग होता है, जो अधिकारी हिन्दी पत्र अथवा आवेदन को पढ़कर समझकर उसका जवाब अंग्रेजी में लिख सकता है वही सीधे उसका जवाब हिन्दी में भी दे सकता है, जिससे समय और डाक-व्यय की बचत होगी. आपके कार्यालय में रबर की मुहरें तक केवल अंग्रेजी में बनी इस्तेमाल की जा रही हैं, हर काम में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जा रही है, 1999 में आपके कार्यालय से ही द्विभाषी वेबसाइट बनाने का आदेश जारी हुआ और आपके कार्यालय की खुद की वेबसाइट का हिन्दी संस्करण 201२ में शुरू हुआ,  जब आपके अर्थात केन्द्रीय हिंदी समिति के अध्यक्ष के कार्यालय में हिन्दी का यह हाल हो तो फिर सरकार के अन्य मंत्रालयों से जनता क्या उम्मीद कर सकती है? इतने अनिवार्य नियमों का उल्लंघन किस बात को दर्शाता है, यही कि सरकार राजभाषा के प्रति एकदम उदासीन है और उसे केवल अंग्रेजी में काम करना है, जनता को अंग्रेजी नहीं आती तो यह जनता की अपनी समस्या है, सरकार को इस बात से कोई सरोकार नहीं. आपके कार्यालय जैसी स्थिति अन्य मंत्रालयों की भी है. 

भारत सरकार राजभाषा अधिनियम एवं संबंधित प्रावधानों के पालन के लिए ना तो चिंतित है, ना ही उसे इस बात की चिंता है कि आम नागरिकों को अंग्रेजी में दी जाने वाली सुविधाएँ और जानकारियाँ केवल देश के २-४ प्रतिशत लोगों के काम आती हैं बाकी नागरिकों के किसी काम नहीं आती. सरकार को केवल चिंता है तो अंग्रेजी की और अंग्रेजी जानने वाले मुठ्ठी पर नागरिकों की, ऐसा होने से आम नागरिक की पहुँच सरकार तक ना हो पाई है और आगे भी नहीं होगी. 

सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को भी अंग्रेजी आसान है क्योंकि अंग्रेजी में कामकाज होने से नागरिक ज्यादा सवाल-जवाब नहीं कर सकते, जब कुछ जानेंगे नहीं तो सवाल कैसे करेंगे? दुनिया में जितने भी विकसित देश हैं वे सब अपनी भाषा के दम पर विकसित हुए हैं, फ़्रांस, चीन, जापान, कोरिया, स्पेन, जर्मनी आदि अनेक उदाहरण हैं. जनभाषा में कामकाज होने से लोकतंत्र में जनता की भागीदारी अपने-आप बढ़ जाती है और देश विकास के पथ पर तेजी से बढ़ता है जबकि भारत में इसका उल्टा है. सरकार में बैठे लोग कभी नहीं चाहते कि सरकारी कामकाज हिन्दी में हो. पिछले सडसठ सालों से राजभाषा के नाम पर केवल औपचारिकता की पूर्ति की गई है इसलिए देश अब भी अंग्रेजी का ही दास बना हुआ है और आज भी पिछड़े देशों में गिना जाता है. दुनिया में चीन-जापान जैसे देश हैं जो अपनी भाषा के दम पर बेहतर जन भागीदारी के दम पर आगे-ही आगे बढ़ रहे हैं और भारत अपनी भाषाओं की जड़ों को खोदकर आने वाली पीढ़ियों को पंगु बना रहा है. सरकार में बैठे लोगों ने अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त की है इसलिए उनको लगता है कि अंग्रेजी ही विकास की वाहक है और वे हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं को पिछड़ेपन की निशानी मानते हैं वर्ना क्या कारण है कि राजभाषा का पालन नहीं होता?

आप एक बार राजभाषा विभाग को मिलने वाली शिकायतों की रिपोर्ट देख लीजिए, आपको हँसी आ जाएगी कि ये क्या बेहूदगी है? लोग सडसठ साल बाद भी हिंदी में लिखे पत्र अथवा आरटीआई आवेदन का जवाब हिन्दी में ना मिलने पर राजभाषा विभाग को शिकायत करते हैं, अनुस्मारक भेजते हैं. जिस अधिकारी ने अंग्रेजी में जवाब लिखा, उसे राजभाषा विभाग का पत्र मिलता है, पर वो अधिकारी ध्यान ही नहीं देता अथवा उसे कूड़ेदान में डाल देता है क्योंकि उस अधिकारी को किसी का डर नहीं, कानून में दंड का कोई प्रावधान नहीं है!!! यह सचमुच बहुत शर्मनाक स्थिति है कि माँगने पर भी नागरिकों को उनकी भाषा में जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जाती.

केंद्रीय हिंदी समिति की पिछली बैठक 28 जुलाई 2011 को हुई थी इसलिए आपसे अनुरोध है केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक तुरंत बुलवाइए, जो ढाई वर्षों से नहीं हुई है। 

आपके द्वारा शीघ्र कार्यवाही अपेक्षित है.


भवदीय

प्रतिलिपि:
  1. राज्य मंत्री, गृह मंत्रालय 
  2. सचिव, राजभाषा विभाग 
  3. संयुक्त सचिव, राजभाषा विभाग 
  4. निदेशक (शिका/नी), राजभाषा विभाग 
  5. संसदीय राजभाषा समिति 
  6. नेता प्रतिपक्ष - राज्यसभा एवं लोकसभा 
  7. प्रमुख राजनीतिक दल 
  8. प्रमुख समाचार, मीडिया समूह 
प्रति: PMO <manmohan@sansad.nic.in>, PM India <pmosb@gov.in>, PMINDIA <publicwing.pmo@gov.in>
प्रति: secy-ol@nic.in, "Joint Secy, OL" <jsol@nic.in>, rpn.singh@nic.inmullappally.ramachandran@gmail.com, "डा. निर्मल खत्री," <nirmalkhatri1@gmail.com>, "निर्मल खत्री, संरास" <nirmalkhatri@sansad.nic.in>, श्री रमेश बैश Ramesh Bais <rameshbais47@gmail.com>, raghu.sharma@sansad.nic.in, Sushma swaraj <sushmaswaraj@bjp.org>, sushmas@nic.in, Sushma swaraj <sushmaswaraj@hotmail.com>, connect@inc.in, Arun Jaitely <ajaitley@del5.vsnl.net.in>, Arun Jaitely <ajaitley@sansad.nic.in>

अल्पसंख्यकों को योजनाओं की जानकारी देने में पूरी तरह विफल हुई सरकार

publicwing.pmo@gov.in

१० फरवरी २०१४ 

प्रति,
डॉ मनमोहन सिंह 
माननीय प्रधानमंत्री 
भारत सरकार,
प्रमका,
दक्षिणी खंड [साउथ ब्लाक] 
नई दिल्ली - 110011 

विषय : अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय हुआ अल्पसंख्यकों को योजनाओं की जानकारी देने में पूरी तरह विफल: राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लंघन  

आदरणीय महोदय,

भारत की राजभाषा हिन्दी है तथा विभिन्न राज्यों की अपनी राजभाषाएँ हैंभारत में लगभग तीन प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं और सत्तानवे प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं. यहाँ ध्यान देने योग्य है कि देश कि छप्पन करोड़ जनता की मातृभाषा हिन्दी है और लगभग पच्चीस करोड़ लोग हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान रखते हैं. 

आप अल्पसंख्यकों के विकास के लिए अनेक कदम उठा रहे हैं पर उनका लाभ अल्पसंख्यकों तक नहीं पहुँच रहा है क्योंकि अप्ल्संख्यक कार्य मंत्रालय की अल्पसंख्य्कों के विकास में शायद रूचि नहीं है इसलिए लोगों को सभी योजनाओं की जानकारी केवल अंग्रेजी में दी जा रही है, अंग्रेजी ऐसी भाषा है जिसे देश के एक प्रतिशत अल्पसंख्यक भी नहीं जानते, सरकार क्यों नहीं लोगों को लोगों की भाषा में जानकारी नहीं देना चाहती, उसे अंग्रेजी के भक्तिगान की इतनी चिंता क्यों है?

प्रधानमंत्री जी! आप भी भारत की जनता को समझ नहीं सके और इन दस सालों में लोगों पर अंग्रेजी को बुरी तरह थोपा गया इसलिए आपकी योजनाओं का लाभ जनता को नहीं मिला। जब नागरिक को योजना की जानकारी उसकी भाषा में नहीं मिलेगी तो वह उसका लाभ क्या ख़ाक उठा पाएगा? आपकी कितनी भी योजनाएं लागू कर दीजिए उनका लाभ जनता तक नहीं पहुंचेगा जब तक सरकारी अधिकारी उन योजनाओं के दस्तावेज, फॉर्म, ऑनलाइन आवेदन, वेबसाइट आदि की सुविधा हिन्दी भाषा में उपलब्ध नहीं करवा देते। आपने हिन्दी में नहीं बताया तो समझ लीजिए आपने कुछ भी नहीं बताया, आपकी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी।

आपकी सरकार ने राजभाषा अधिनियम के पालन के लिए एक भी ठोस कदम नहीं उठाया, स्थिति तो इतनी बुरी है आपके कार्यालय (प्रधानमंत्री कार्यालय) से आम नागरिकों के हिन्दी में लिखे पत्रों और आवेदनों के जवाब अंग्रेजी भेजे जाते हैं, आपके कार्यालय में रबर की मुहरें तक केवल अंग्रेजी में बनी इस्तेमाल की जा रही है, जब आपके कार्यालय में हिन्दी का यह हाल हो तो फिर सरकार के अन्य मंत्रालयों से जनता क्या उम्मीद कर सकती है? इतने अनिवार्य नियमों का उल्लंघन किस बात को दर्शाता है, यही कि सरकार राजभाषा के लिए एकदम उदासीन है और उसे केवल अंग्रेजी में काम करना है, जनता को अंग्रेजी नहीं आती तो यह जनता की अपनी समस्या है, सरकार को इस बात से कोई सरोकार नहीं.

यहाँ यह कहना उचित होगा कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय मंत्रालय का कामकाज अंग्रेजी में ही हो रहा है और शायद मंत्रालय यह मानकर चल रहा है कि भारत के सभी अल्पसंख्यक इंग्लैंड से अंग्रेजी पढ़कर आए हैं ऐसे में मंत्रालय हिंदी में काम कैसे कर सकता है आखिर मंत्रालय के अधिकारियों के सम्मान का प्रश्न है. मंत्रालय को अल्पसंख्यकों के विकास की चिंता नहीं है बल्कि अंग्रेजी की चिंता है इसलिए अंग्रेजी में काम करते चलो और जब कभी ज़रूरत पड़े तो दो-चार दस्तावेजों को हिंदी में अनुवाद करवा दो पर हम हिंदी में काम तो करेंगे ही नहीं, फिर अनुवादकों की सेवाएँ कब काम आएंगी?

राजभाषा हिन्दी है और काम अल्पसंख्यकों के विकास का है फिर भी प्राथमिकता अंग्रेजी को, सारी योजनाएँ अंग्रेजी में पहले बनती हैं, सभी योजनाओं की जानकारी केवल अंग्रेजी में अंग्रेजी वेबसाइट पर डाली जाती है, सारे आवेदन, शपथपत्र के प्रारूप केवल अंग्रेजी में अंग्रेजी वेबसाइट पर डाले गए हैं, अंग्रेजी दस्तावेज पहले बनेंगे, परिपत्र अंग्रेजी में जारी होंगे. ऐसा देश है मेरा !!!

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा निरंतर राजभाषा अधिनियमराजभाषा नियमराजभाषा नीति और राजभाषा विभाग के निर्देशों का उल्लंघन किया जा रहा है:

उल्लंघन के उदाहरण:
1.    अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की वेबसाइट केवल अंग्रेजी में बनाई गई है और वेबसाइट पर दो-चार दस्तावेजों के अतिरिक्त अन्य कोई भी जानकारी हिंदी में उपलब्ध नहीं हैना ही हिंदी वेबसाइट बनाने के लिए मंत्रालय ने कोई काम किया गया है, आगामी दशकों में भी हिंदी वेबसाइट बनाने की भी कोई योजना मंत्रालय की नहीं है. वैसे भी मंत्रालय की स्थापना के सात वर्षों में कोई काम नहीं हुआ. लोकसभा चुनावों से पहले वेबसाइट हिन्दी में उपलब्ध करवाई जाए.
2.    एक-दो अपवाद छोड़कर  अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के सभी निविदा-पत्र, परिपत्र, कार्यालय ज्ञापन, करार, अनुबंध(ताज़ा अनुबंध अक्टूबर 2013 में हुआ), समझौते, प्रेस विज्ञप्तिविज्ञापन, कार्यक्रमों के बैनरपोस्टर, दिशा-निर्देश, फॉर्म, सूचना का अधिकार अधिनियम सम्बन्धी सभी विवरण/ सूचना अधिकारियों के नाम पते आदि का केवल अंग्रेजी में जारी किए जा रहे हैं. वेबसाइट पर हिंदी में विज्ञप्तिनीतिनियमभर्ती सूचनाअधिसूचना कुछ भी उपलब्ध नहीं है. कृपया मंत्रालय द्वारा राजभाषा विभाग को भेजी गई राजभाषा अनुपालन की त्रैमासिक रिपोर्टों की छानबीन करते हुए भौतिक परीक्षण किया जाए ताकि इन रिपोर्टों की सत्यता सामने आ सके.
3.    सभी ऑनलाइन सेवाएँ केवल अंग्रेजी में उपलब्ध हैं.
4 . अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा रबर की मुहरें, लिफ़ाफ़े और योजनाओं के लाभ लेने हेतु सभी आवेदन फॉर्म द्विभाषी ना छपाकर केवल अंग्रेजी में जारी किए/छापे गए हैं.
5. अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की सम्पूर्ण कार्यवाही अंग्रेजी में की जाती है, बैनर-पोस्टर-बैज-आमंत्रण-पत्र-पाठ्य सामग्री, प्रेस विज्ञप्ति, शिलान्यास-पट आदि केवल अंग्रेजी में तैयार किये जाते/की जाती है.
६. अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा हिन्दी में प्राप्त ईमेल के कोई जवाब नहीं दिए जाते।
७. मंत्रालय में हिन्दी में प्राप्त पत्रों एवं आर टी आई आवेदनों के उत्तर अंग्रेजी में लिखने वाले एवं हिन्दी में लिखे ईमेल का जवाब ना देने वाले अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए.
आपसे अनुरोध है कि अब ६६ साल बीत गए हैं हिंदी के नाम पर ढोंग करने वाले मंत्रालयों पर कार्यवाही सख्त कीजिए ताकि भारत के नागरिकों को उनकी भाषा में सेवाएं मिलें और सच्चे लोकतंत्र की स्थापना हो, संविधान निर्मातओं की राजभाषा हिंदी की स्थापना की भावना पूरी हो, ये भारत है अंग्रेजों का देश नहीं कि हम पर ६६ साल बाद भी अंग्रेजी थोपी जा रही है.

आपसे अनुरोध है केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक तुरंत बुलवाइए, जो ढाई वर्षों से नहीं हुई है। कृपया तुरंत कार्यवाही की जाए और की गई कार्यवाही से मुझे अवगत करवाया जाए.


भवदीय

प्रतिलिपि:
  1. मंत्री महोदय, अल्पसंख्यक कार्य 
  2. राज्य मंत्री महोदय, अल्पसंख्यक कार्य 
  3. सचिव, अल्पसंख्यक कार्य 
  4. सचिव, राजभाषा विभाग 
  5. संयुक्त सचिव, राजभाषा विभाग 
  6. निदेशक (शिका/नी), राजभाषा विभाग