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बुधवार, 10 जून 2020

उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के निचले न्यायालयों में हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने के विरुद्ध याचिका की निरस्त


*9 जून 2020*.
उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के निचले न्यायालयों और राज्य के सभी अधिकरणों में कामकाज की आधिकारिक भाषा हिन्दी लागू करने के राज्य सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
हरियाणा में निचले न्यायालयों और अधिकरणों में कामकाज की आधिकारिक भाषा हिन्दी बनाने संबंधी हरियाणा राजभाषा (संशोधन)अधिनियम, 2020 की वैधानिकता को कुछ वकीलों ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
मुख्य न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं से प्रश्न किया कि इस विधान में क्या गलत है क्योंकि लगभग 80 प्रतिशत वादकारी अंग्रेजी नहीं समझते हैं। पीठ ने इस तरह का विधान बनाने को उचित बताते हुए कहा कि हिन्दी को कुछ राज्यों में निचले न्यायालयों में कामकाज की भाषा बनाने में कुछ भी गलत नहीं है। ब्रिटिश राज में भी साक्ष्य दर्ज करने का काम क्षेत्रीय भाषाओं में ही होता था।
याचिकाकर्ता समीर जैन का कहना था कि वह न्यायालय की कार्यवाही हिन्दी या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा में किए जाने के विरुद्ध नहीं हैं, लेकिन चूंकि वह दिल्ली-एनसीआर के हैं, इसलिए हरियाणा के न्यायालयों में वकीलों के लिए हिन्दी में बहस करना कठिन होगा। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भी अपने मुकदमों की बहस हिन्दी में करना कठिन होगा।
इस पर न्यायालय ने कहा कि इस विधान के तहत अंग्रेजी को अलग नहीं किया गया है और न्यायालय की अनुमति से इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय शुरू में इस मसले पर नोटिस जारी करना चाहती थी, लेकिन राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने कहा कि राज्य में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 272 और दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 137 (2) के तहत प्रदत्त अधिकार के अंतर्गत ही यह विधान लागू किया गया है।
उन्होंने कहा कि राज्य को न्यायालय की कार्यवाही में पारदर्शिता लाने और यह वादकारियों की समझ में आने के लिए इस तरह का विधान बनाने का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि इस संशोधन की धारा 3ए में कुछ भी गलत नहीं है और इससे किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं होता है।
मुख्य न्यायमूर्ति ने कहा कि मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में न्यायालय की कार्यवाही हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं में हो रही है। इस पर याचिकाकर्ताओं ने याचिका वापस लेने और राहत के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय जाने की छूट देने का पीठ से अनुरोध किया।
समीर जैन सहित पांच वकीलों ने राज्य के उस विधान को चुनौती दी थी जिसमें दीवानी और फौजदारी न्यायालयों, राजस्व न्यायालयों और किराया अधिकरणों तथा राज्य के दूसरे अधिकरणों की कार्यवाही हिन्दी भाषा में करने का प्रावधान किया गया है। इन वकीलों की दलील थी कि हरियाणा राजभाषा संशोधन अधिनियम, 2020 असंवैधानिक है और राज्य में निचले न्यायालयों में कामकाज की भाषा के रूप में हिन्दी को मनमाने तरीके से थोपा जा रहा है। 

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