मुम्बई, १० सितम्बर २०१४.
देश भर में सितम्बर आते आते हिन्दी के नाम पर तमाम सारे आयोजन किये जाते हैं, इनमें सबसे अग्रणी भूमिका सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी विभागों की रहती है. ये संगठन पूरा साल तो अंग्रेजी में सोचने, समझने और कामकाज करने में निकाल देते हैं, बस हिन्दी दिवस पर , जो कि संयोग से पितृपक्ष में में ही आता है, समारोह करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं. लेकिन आज विले पार्ले स्थित सेण्ट्रल बैंक के प्रांगण में वैश्विक हिन्दी सम्मलेन का आयोजन किया गया वह कई मायने में भिन्न था. यह कार्यक्रम विदेश के लोगों को भाषा के सेतु से जोड़ने की कोशिश थी, साथ ही एक सार्थक पहल भी थी कि हिन्दी भाषा को कैसे आगे बढ़ाया जाए?
देश भर में सितम्बर आते आते हिन्दी के नाम पर तमाम सारे आयोजन किये जाते हैं, इनमें सबसे अग्रणी भूमिका सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी विभागों की रहती है. ये संगठन पूरा साल तो अंग्रेजी में सोचने, समझने और कामकाज करने में निकाल देते हैं, बस हिन्दी दिवस पर , जो कि संयोग से पितृपक्ष में में ही आता है, समारोह करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं. लेकिन आज विले पार्ले स्थित सेण्ट्रल बैंक के प्रांगण में वैश्विक हिन्दी सम्मलेन का आयोजन किया गया वह कई मायने में भिन्न था. यह कार्यक्रम विदेश के लोगों को भाषा के सेतु से जोड़ने की कोशिश थी, साथ ही एक सार्थक पहल भी थी कि हिन्दी भाषा को कैसे आगे बढ़ाया जाए?
सम्मेलन
का प्रमुख उद्बोधन हिन्दी की जानीमानी साहित्यकार श्रीमती मृदुला सिन्हा ने
किया, जिन्हे हाल ही में गोवा की राज्यपाल बनाया गया
है. उन्होंने कहा कि अपनी भाषा दिलों को जोड़ती है इसके उन्होंने अपने विदेश प्रवास के कई वाकये
सुनाये, जब केवल अपनी भाषा बोलने मात्र से अजनबी लोग अपने जैसे हो गए. उन्होंने यह भी कहा कि अगर सब लोग मिल कर प्रयास
करें तो भाषा को वो सम्मान मिल सकेगा जिसकी वह अधिकारी
है.
इस अवसर पर गोवा की मुख्य सूचना आयुक्त श्रीमती लीना
मेहंदळे ने भी कई पते की बातें कहीं। उनका कहना था कि जब तक हम “राम”
को लिखने से पहले अंग्रेजी के आरएएम की जगह मन में “र आ म” नहीं
सोचेंगे तब तक हिन्दी के माध्यम से सोचने की प्रवृति नहीं विकसित हो सकेगी. उनका यह
भी कहना था कि राजभाषा विभाग एवं इसके कामकाज से जुड़े लोग गैरहिन्दी भाषी प्रदेशों
में स्थानीय भाषाओं के साथ पुल का काम नहीं करेंगे तब तक हिन्दी को वह स्वीकार्यता नहीं मिलेगी, जिसकी वह अधिकारिणी
है. उन्होंने कहा कि संगणक पर हिन्दी
टंकण हेतु इन्स्क्रिप्ट प्रणाली सीखना वर्तमान समय में अपरिहार्य हो गया, इसके लिए
व्यापक जन अभियान चलाया जाना चाहिए.
सम्मेलन में सबसे भावनात्मक और प्रभावशाली वक्तव्य सुश्री मालती रामबली का रहा जो हिन्दी
शिक्षण की मशाल दक्षिण अफ्रीका में जलाये हुए हैं. मालती और उनका दक्षिण अफ्रीका से
आया हुआ दल सम्मेलन के सहभागियों के लिए प्रेरणास्रोत रहा.
सम्मेलन के अवसर पर माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय
(भोपाल) के कुलपति बृजकिशोर कुठियाला, हर्षद शाह,
कुलपति, बाल विश्वविद्यालय (राजकोट), प्रेम
शुक्ल, संपादक दोपहर का सामना,
हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव, माधुरी छेड़ा,
पूर्व निदेशक, एसएनडीटी विश्विद्यालय, एसपी गुप्ता, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, रमाकांत गुप्ता, महाप्रबन्धक,
भारतीय रिजर्व बैंक, डॉ. एस. पी. दुबे, मुंबई विश्विद्यालय, जयन्ती बेन मेहता, पूर्व केंद्रीय
मंत्री, वी. सी. गुप्ता, महामना मदन
मोहन मालवीय मिशन, शंकर केजरीवाल, अध्यक्ष-परोपकार,
अतुल कोठारी, राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं
शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति, ब्र. विजयलक्ष्मी जैन, भूतपूर्व डिप्टी कलेक्टर, प्रवीण
जैन, कम्पनी सचिव एवं युवा हिन्दी सेवी, राजू ठक्कर, पीआईएल कार्यकर्त्ता, बालेन्दु दाधीच, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ,
प्रदीप गुप्ता, सोशल मीडिया विशेषज्ञ, विनोद टिबड़ेवाल, शिक्षा एक्टिविस्ट, सुश्री शक्ति मुंशी, जम्मू-कश्मीर
अध्ययन केंद्र, मो. आफताब आलम, पत्रकारिता
कोष, कृष्णमोहन मिश्र, चंद्रकांत
जोशी, जीटीवी, संजीव निगम, हिंदुस्तानी प्रचार सभा, नन्द किशोर नौटियाल,
वरिष्ष्ठ पत्रकार, संजय वर्मा, संगीत विशेषज्ञ, बी. एन.
श्रीवास्तव, सकाल मीडिया, संगीता
कारिया, टेरो रीडर जैसे हिन्दी अनुरागी इस सम्मेलन मौजूद थे.
सुबह १० बजे से सायं ६ बजे तक चले इस सम्मेलन में तकनीक, प्रचार,
प्रसार, वैश्वीकरण आदि से जुड़े मुद्दों पर जम
कर संवाद-परिसंवाद हुआ जिसने श्रोताओं को पूरे समय बांधे रखा.
इंदौर से पधारीं ब्र. विजयलक्ष्मी जैन ने भारतीय
भाषाओं की पुनर्स्थापना के लिए राष्ट्र-राज्य एवं जिला स्तर पर ठोस कार्ययोजना का
खाका रखा ताकि हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के नाम पर पिछले ६७ सालों जारी जुबानी-जमाखर्च
बंद हो और सच्चे अर्थों में देश में भारतीय भाषाओं की स्थापना हो सके. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अतुल कोठारी ने
भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार को रोकने हेतु चल रहे कुत्सित षड्यंत्र के प्रति
सभी को आगाह किया और कहा कि सभी देशी भाषाएँ सहेलियों जैसी हैं और हिन्दी के
दक्षिण में होने वाले राजनैतिक विरोध को रेखांकित किया. उन्होंने ऐसे झूठे विरोध
का जमकर खंडन किया और शिक्षा-न्याय एवं शासन प्रशासन में भारतीय भाषाओं के लिए
राष्ट्रव्यापी वैचारिक आन्दोलन पर बल दिया.
सम्मेलन में राज्यपाल महोदया श्रीमती मृदुला सिन्हा
ने श्रीमती मालती रामबली (दक्षिण अफ्रीका) को वैश्विक हिन्दी सेवा सम्मान,
बालेन्दु शर्मा दाधीच को भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी सम्मान, सीएस प्रवीण जैन
को भारतीय भाषा सक्रिय सेवा सम्मान एवं डॉ. सुधाकर मिश्र को आजीवन
हिन्दी साहित्य सेवा सम्मान से विभूषित किया गया. सभी पुरस्कार
प्राप्तकर्त्ताओं को दुशाला-श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र, शील्ड एवं नगद राशि प्रदान की गई.
सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. एम. एल. गुप्ता ने अपने उद्बोधन में हिन्दी
भाषा को ऊंचाई पर ले जाने का आह्वान किया.
विश्वके 700 करोड लोगोंमेसे करीब 100 करोड हिंदीको समझ लेते हैं, और भारतके सवासौ करोडमें करीब 90 करोड। फिरभी हिंदी राष्ट्रभाषा नही बन पाई। इसका एक हल शायद यह भी हो कि हिंदी-भोजपुरी-मैथिली-राजस्थानी-मारवाडी बोलनेवाले करीब 50 करोड लोग देशकी कमसे कम एक अन्य भाषाको अभिमान और अपनेपनके साथ सीखने-बोलने लगेंं तो संपर्कभाषा के रूपमें अंग्रेजीने जो विकराल सामर्थ्य पाया है उससे बचाव हो सके।
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