अनुवाद

रविवार, 19 जनवरी 2020

1857 की क्रांति: शहीद लाला हुकमचंद जैन


देश को अंग्रेजों की परतंत्रता से स्वतंत्र करवाने के लिए हुई 1857 की क्रांति के पहले शहीद थे कानपुर के मंगल पांडे, यह तो सभी जानते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि देश के दूसरे शहीद थे हरियाणा में हाँसी के रहने वाले लाला हुकमचंद जैन।                                         

 अंग्रेजों को उत्तर भारत में हरियाणा और पंजाब की सीमा पर रोकने की तैयारी करने के लिए रसद व सहायता के लिए लिखे गए पत्र को आधार बना कर आज से 162 वर्ष पहले 19 जनवरी 1858 को उन्हें उनकी हवेली के सामने ही फांसी दे दी गई थी । उस समय उनकी आयु मात्र 40 वर्ष थी। पत्र लिखने में अपराध में अंग्रेजों ने उनके भतीजे फकीरचंद जैन को भी पकड़ा था, परंतु उनकी 13 वर्ष की आयु को देखते हुए उसे छोड़ दिया गया।

लाला हुकमचंद के परिजन बताते हैं कि फकीरचंद जैन ने खिड़की से खड़े होकर अंग्रेजी शासन की खिलाफत की तो तत्काल उन्हें भी फाँसी पर चढ़ा दिया गया । इस दर्दनाक दृश्य की साक्षी लाला हुकमचंद जैन की पत्नी ने अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को लहँगे में छुपाया और वहाँ से निकलकर उनके प्राण बचाए।

वे वर्षों तक भिखारी के वेष में अपना जीवनयापन करती रहीं। उनकी इन यादों और अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाने की गाथा को लाला के वंशज आज भी बड़े गर्व से कहते हैं। हाँसी की कचहरी में उनकी यादें सहेजी गई हैं। इंदौर में योजना क्रमांक 54 में रह रहे परिजन अजीत कुमार जैन, अजय कुमार जैन, संजय जैन व वीणा बंसल बताती हैं, 'अंग्रेजों ने लालाजी को फाँसी ही नहीं दी, उनका सब कुछ जब्त कर लिया। सरकारी दस्तावेजों में उनके नाम 9 हजार एकड़ जमीन और सोने-चाँदी के गहने थे। बाद में 80 वर्षों तक अंग्रेज हमारे परिवार के पीछे लगे रहे और हाँसी में घुसने नहीं दिया।'   

उन्होंने बताया, 'लाला हुकम चंद जैन बहादुरशाह जफर के कानूनी सलाहकार थे। उन्होंने हिसार जिले के हाँसी से ही अंग्रेजों को पंजाब व हरियाणा में आने से रोकने का प्रयास किया था। इसके लिए कुछ लोगों को साथ लेकर करनाल के निकट संघर्ष किया। इसी बीच अंग्रेजों ने बहादुरशाह जफर को पकड़ लिया। उनके दस्तावेजों की दिल्ली में जाँच हुई।  उसी मिसिल से लाला हुकमचंद के क्रांतिकारी होने का प्रमाण मिला, उन्हें गिरफ्तार कर ले गए। एक माह तक अदालत की कार्रवाई चलाकर उन्हें फाँसी की सजा सुना दी गई।' 

लाला हुकमचंद के बेटे लाला नियामतसिंह और सुगनचंद जैन ने बाद में परिवार को आगे बढ़ाया।

अजय जैन बताते हैं, 'हमारा परिवार भटकते-भटकते नागदा पहुंचा। यहां से हमारे पिता रणवीरसिंह जैन व चाचा शरणवीरसिंह जैन 1969 में इंदौर आकर बस गए। रणवीरसिंह आज भी मिक्सरवाले जैन साहब के नाम से जाने जाते हैं।'

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