लेखिका: प्रो. संतिश्री धूलिपुडी पंडित (कुलपति, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय)
तिथि: ११ मई २०२५
भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में एक ऐसा गिरोह सक्रिय हो चुका है जो बड़ी चालाकी से झूठ, भ्रम और दोमुंही बातें फैलाकर हमारे युवाओं के मन-मस्तिष्क पर कब्ज़ा करना चाहता है।
हाल ही में अमेरिका में एक नये शासन ने शिक्षा विभाग को समाप्त करने और कुछ बड़े विश्वविद्यालयों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता रोकने का निर्णय लिया। यह इसलिए किया गया क्योंकि वहाँ के विश्वविद्यालयों में एक विशेष वैचारिक गिरोह शिक्षा के नाम पर समाज को तोड़ने का काम कर रहा था।
अब वही विचारधारा भारत के प्रमुख संस्थानों—जैसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं) (आईआईटी), भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (भाविशिअसं) (आईआईएसईआर), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (राप्रौसं)(एनआईटी) और कई निजी विश्वविद्यालयों—में भी पहुँच चुकी है।
⚠️ भारत की उन्नति के लिए खतरा
यह वैचारिक झुकाव भारत के "विकसित भारत २०४७" और "अमृतकाल" जैसे लक्ष्यों को नुकसान पहुँचा सकता है।
ये लोग इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर रहे हैं, धर्म परिवर्तन और आक्रमणों की सच्चाई को छिपा रहे हैं, और हमारे धार्मिक व सांस्कृतिक मूल्यों को कमज़ोर कर रहे हैं।
भारत के होनहार विद्यार्थी ऐसे शोध कार्यों में लगाए जा रहे हैं जो हमारे देश की भावना और आत्मसम्मान के विरुद्ध हैं। यदि समय रहते सरकार ने कठोर कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ी भारत के मूल विचारों और परंपराओं से कट जाएगी।
📚 शिक्षा से धर्म और संस्कृति का अलगाव
हमारे विश्वविद्यालय अब ऐसे पाठ्यक्रम चला रहे हैं जिनमें भारत की मूल पहचान, वेदों की शिक्षा, और उपनिषदों की बातें नहीं सिखाई जातीं।
इसका परिणाम यह है कि छात्र ऐसे विचारों से प्रभावित हो जाते हैं जो भारत विरोधी हैं।
🏛️ संस्थानों पर वैचारिक कब्ज़ा
मानविकी और समाजविज्ञान विभाग, जो पहले छात्रों में संवेदनशीलता और सामाजिक समझ विकसित करने के लिए बनाए गए थे, अब एकतरफा सोच के अड्डे बन चुके हैं।
उदाहरण के लिए, एक संस्थान में "समाज और संस्कृति" विषय में एक नया पाठ्यक्रम शुरू हुआ, पर उसमें भारत की संस्कृति की जगह विदेशी विचारधारा को बढ़ावा दिया गया।
🔬 विज्ञान और तकनीकी शिक्षा भी प्रभावित
अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे तकनीकी क्षेत्रों में भी ये विचारधाराएँ घुस चुकी हैं।
तकनीक तो तटस्थ होती है, लेकिन यदि उसे चलाने वाला व्यक्ति वैचारिक रूप से भारत-विरोधी हो, तो वह तकनीक का उपयोग समाज को गुमराह करने में कर सकता है।
😠 अनुचित और पक्षपातपूर्ण वातावरण
कुछ संस्थानों में अब नियुक्तियाँ और शोध कार्य योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि अपने-अपने गुटों और पहचान के आधार पर किए जा रहे हैं।
कई बार संकाय सदस्य आपस में विवाह कर लेते हैं और मिलकर एक ऐसा बंद समूह बना लेते हैं जिसमें बाहरी व्यक्ति टिक नहीं पाता।
यह सब मिलकर शिक्षा को संकीर्ण और पक्षपातपूर्ण बना देता है।
🛡️ समाधान क्या है?
लेखिका कहती हैं कि हमें संस्थानों को नष्ट नहीं करना है, बल्कि उन्हें फिर से भारत की संस्कृति और मूल्यों के अनुरूप बनाना है।
प्रमुख उपाय:
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नियुक्तियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता हो।
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शोध कार्य भारत की संस्कृति, समाज और सच्चाई को ध्यान में रखकर हो।
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नए वैचारिक मंच तैयार किए जाएँ जो भारत के पक्ष में सोचने और लिखने को बढ़ावा दें।
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विद्यार्थियों को वेद, उपनिषद और धर्म-संस्कृति की जानकारी दी जाए।
🔚 निष्कर्ष
यह केवल शिक्षा का मामला नहीं, बल्कि सभ्यता की रक्षा का प्रश्न है।
जो शक्तियाँ हमारे देश को बाहर से हरा नहीं सकीं, वे अब हमारे ही संस्थानों में छिपकर हमारे युवाओं की सोच को कमजोर कर रही हैं।
हमें इस खतरे को समझना चाहिए और पूरी एकजुटता से इसका समाधान खोजना चाहिए — ताकि हमारा राष्ट्र शक्ति, ज्ञान और संस्कृति से समृद्ध बना रहे।
लेखिका के Indian higher education has a woke-jihadi academic complex शीर्षक अंग्रेजी लेख का हिन्दी अनुवाद
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