अनुवाद

शनिवार, 10 नवंबर 2012

जैनधर्म में दीपावली

जैन धर्म में दीपावली का त्यौहार 

जैनधर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रत्यूष बेला (सूर्य की पहली किरण निकलने के साथ) में निर्वाण की प्राप्ति पावापुरी (नालंदा, विहार) से हुई थी इन्द्रों ने भगवान का निर्वाण कल्याणक बड़े ही धूमधाम से मनाया.

उसी दिन सायंकाल गोधूलि बेला में तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी  के प्रथम शिष्य गणधर श्री गौतम स्वामी को केवल ज्ञान की उत्पत्ति हुई थी.

ये दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ आज से २५३९ वर्ष पूर्व घटित हुई थीं, तभी से भारतवर्ष में दीपावली का त्यौहार बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है.

इस दिन जैन धर्मावलंबी प्रातःकाल में शुद्ध वस्त्र धारण कर जिनालयों में जाते हैं और भगवान महावीर की पूजा करते हैं और 'निर्वाण कांड' पढ़कर निर्वाण कल्याणक महोत्सव मानते हुए निर्वाण लाडू समर्पित  करते हैं  और तीर्थंकरों से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवन ! एक दिन हमको भी अपने जैसा बना लेना.

शाम को घरों को सजाया जाता है और अंधेरा होने से पहले सोलह्करण के प्रतीक १६ दिए प्रज्ज्वलित किये जाते हैं और भगवान गौतम स्वामी की पूजा व आरती की जाती है.

जैनागम के अनुसार मुनिगण जैन श्रावकों को पटाखे ना चलाने एवं गरीब और असहाय लोंगों की सेवा करने एवं उनके घरों में रौशनी/ज्ञान के दिए जलाने का उपदेश देते हैं ताकि कोई भी घर अज्ञान और मिथ्यात्व के अँधेरे में ना रहे और चहुँओर अहिंसा धर्म की ज्योति प्रकशित होती रहे.

साधुओं का उपदेश है कि इस दिन जैन श्रावक केवल और केवल देव-शास्त्र और गुरु की आराधना ही करें एवं विशेष रूप से भगवान महावीर स्वामी एवं गणधर श्री गौतम स्वामी की पूजा करें, अन्धविश्वास में पड़कर धन-दौलत, रुपये-पैसे अथवा मकान-दूकान की पूजा ना करें.

पटाखे चलाने से लाखों जीवों का घाट होता है, उन्हें कष्ट पहुँचता है, गर्भवती नारी एवं गर्भस्थ शिशु, बीमार और वृद्धजनों को अत्यन्त कष्ट और परेशानियां सहनी पड़ती हैं, छोटे-जानवरों और पक्षियों की भी मौत हो जाती है.

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