हर माल पर अंग्रेजी का कमाल
भारत की राजभाषा हिन्दी है
तथा विभिन्न राज्यों की अपनी राजभाषाएँ हैं, भारत में
लगभग तीन प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं और सत्तानवे प्रतिशत लोग अंग्रेजी नहीं
जानते हैं. यहाँ ध्यान देने योग्य है कि देश की छप्पन करोड़ जनता की मातृभाषा
हिन्दी है और इसके अलावा लगभग तीस करोड़ लोग हिन्दी का अच्छा कार्यसाधक ज्ञान रखते
हैं.
इन तथ्यों से पता चलता है कि देश के सत्तानवे
प्रतिशत ग्राहकों पर अंग्रेजी थोपने की बजाए उन्हें
उनकी भाषा में अथवा कम से कम हिन्दी भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए पर ऐसा नहीं
हो रहा है उन पर अंग्रेजी थोपी जा रही है.
अंग्रेजी है निजी कम्पनियों का मीठा हथियार
आज भारत में निजी कंपनियों का कारोबार अरबों में है और वे भारत के छोटे-२
गाँवों में पैर पसार चुकी हैं और भारत में बिकने वाले अधिकतर सामान के डिब्बों, पुडों, पुड़िया
(पैकिंग) के लेबल केवल अंग्रेजी में छाप कर देश की भोलीभाली जनता को ठगती हैं. निजी कंपनियों को अपना माल बेचने के लिए चिकने
चुपड़े विज्ञापनों पर खूब भरोसा है, उन्हें इस तथ्य से कोई
मतलब नहीं कि उनकी कम्पनी का माल खरीदने वाला ग्राहक अंग्रेजी जानता है कि नहीं.
उसके माल के लेबल में क्या-२ लिखा है, सामान की अवसान तिथि
(एक्सपाइरी) क्या है? उसकी कीमत क्या है? उसके उपयोग की विधि क्या है? ना तो वो इसे पढ़ सकता
है और ना ही समझ सकता है. कम्पनी का माल वह अपनी जोखिम और कम्पनी की दया पर खरीदता
है क्योंकि देश में कोई कानून ऐसा नहीं जो कहे कि ग्राहक को उसकी अपनी भाषा में
जानकारी देना जरूरी है.
भारत में अंग्रेजी भाषा ग्राहकों को ठगने का सबसे आसान और सरल हथियार
है क्योंकि ना तो ग्राहक सामान की कोई जानकारी ले सकेगा, ना
कोई सवाल जवाब करेगा और न ही ठगे जाने पर किसी उपभोक्ता मंच में शिकायत कर सकेगा.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विज्ञापन हिंदी में
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि कम्पनियों को के बात तो अच्छे से समझ आ
चुकी है कि भारत में माल बेचने के लिए विज्ञापन तो हिन्दी एवं स्थानीय भाषाओं में
करना होगा वर्ना बाज़ार में पैठ नहीं बने जा सकती इसीलिए बड़ी-२ बहुराष्ट्रीय
कम्पनियां अपने विज्ञापन हिंदी में बनवाती हैं और अख़बारों को रंग डालती हैं कई बार
तो अंग्रेजी अखबार में भी हिन्दी विज्ञापन छपवाए जाते हैं और कंपनियों को पता है
कि अंग्रेजी के बजाय उनका कारोबार हिंदी विज्ञापनों के दम पर ही बढ़ सकता.
अंग्रेजी के नाम पर देश के करोड़ों ग्राहक छले जा रहे हैं, उन्हें ठगा जा रहा है क्योंकि जो
डिब्बाबंद सामान वो खरीद रहा है, उसके डिब्बे/पैक पर लिखी
कोई भी बात वह पढ़ नहीं सकता, यदि पढ़ ले तो समझ नहीं सकता
क्योंकि भारत के बिकने वाले हर सामान पर लिखी हर जानकारी एक ऐसी भाषा में होती है
जिसका उसे ज्ञान नहीं है, दुकानदार जैसा बताए उसे सही मानकर
सामान खरीदता है, आज 'जागो ग्राहक जागो'
नारा केवल दिखावा है, छलावा है इसलिए भारत
सरकार को चाहिए कि ग्राहक को उसकी अपनी भाषा में मिलें इसका कानून बनाए ताकि
ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा हो.
ग्राहकों को क्या-क्या जानकारी हिन्दी में मिलनी चाहिए
भले ही कोई ऐसा कानून भारत में ना हो, जो ये कहे कि देश में बिकने वाले उत्पाद के
डिब्बे/पुड़ा/पुड़िया (पैकिंग) पर हिन्दी अथवा स्थानीय भाषा में लेबल लगाना अनिवार्य
पर फिर भी ‘वृहत्तर ग्राहक हितों’ को ध्यान में रखते हुए देश में माल बेचने वाली
कम्पनियों/फर्मों को सभी उत्पादों पर निम्नलिखित
जानकारियाँ प्राथमिक आधार पर
हिन्दी में छापना चाहिए
:
1. बड़े अक्षरों में उत्पाद का नाम
2. उत्पादन तिथि
3. उत्पाद का मूल्य
4. अवसान (एक्सपाइरी) तिथि
5. वजन
6. उत्पाद बनाने में प्रयुक्त हुए घटक
(सामग्री)
7. उत्पाद की विशेषताएँ
ऐसा करके कम्पनियाँ करोड़ों ग्राहकों के हितों की रक्षा
की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठा सकती हैं, जिससे कम्पनी के कारोबार में दीर्घगामी वृद्धि होगी.
मेरे मस्तिष्क में एक प्रश्न बार-२ कौंध रहा है "क्या कभी इस गणतंत्र में ग्राहकों को अपनी भाषा में जानकारी पाने का अधिकार मिलेगा?"
इन तथ्यों से पता चलता है कि देश के सत्तानवे प्रतिशत ग्राहकों पर अंग्रेजी थोपने की बजाए उन्हें उनकी भाषा में अथवा कम से कम हिन्दी भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए पर ऐसा नहीं हो रहा है उन पर अंग्रेजी थोपी जा रही है.
अंग्रेजी है निजी कम्पनियों का मीठा हथियार
भारत में अंग्रेजी भाषा ग्राहकों को ठगने का सबसे आसान और सरल हथियार है क्योंकि ना तो ग्राहक सामान की कोई जानकारी ले सकेगा, ना कोई सवाल जवाब करेगा और न ही ठगे जाने पर किसी उपभोक्ता मंच में शिकायत कर सकेगा.
ग्राहकों को क्या-क्या जानकारी हिन्दी में मिलनी चाहिए