अनुवाद

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

सरकारी बैंकों में भी नहीं होता आम आदमी की भाषा में कामकाज

दिनांक: 4 जनवरी 2014

सेवा में,
1.   श्री राजीव टाकरू, सचिव महोदय, वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय
2.   डॉ. रमाकांत गुप्‍ता, महाप्रबंधक, भा.रि.बैंक, मुंबई
3.   श्री आर.आर. सिंह, उप महाप्रबंधक, महाप्रबंधक, भा.रि.बैंक, मुंबई 
4.   श्री अरुण कुमार जैन, सचिव महोदय, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय
5.   सुश्री पूनम जुनेजा, संयुक्त सचिव एवं मुख्य सतर्कता अधिकारी महोदया,             राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय  
6.   श्री भोपाल सिंह, निदेशक (शिकायत), राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय
7.   प्रमुख राष्ट्रीयकृत बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
8.   संसदीय राजभाषा समिति
  
विषय- राजभाषा के कानूनों को मुंह चिढ़ाते राष्ट्रीयकृत बैंक ।

महोदय,
यह चौंकाने वाली बात है कि भारत सरकार के मातहत राष्ट्रीयकृत बैंक खुले रूप में भारत सरकार के राजभाषा के कानून की अवहेलना करते दिखाई देते हैं और वे विभाग व कार्यालय आदि जिन पर इन कानूनों को लागू करवाने की जिम्मेदारी हैवे चुपचाप बैठकर इसे मौन समर्थन देते दिखाई देते हैं। ऐसे कानूनों का क्या मतलब जिनका पालन बहुत कम और उल्लंघन बहुत ज्यादा होता हो ।
    मुंबई की उपनगरीय गाड़ियों में और स्टेशनों पर लगे होर्डिंग/ विज्ञापन भारत सरकार के राजभाषा के कानून को मुंह चिढ़ाते दिखते हैं। हाल के कुछ महीनों में उपनगरीय गाड़ियों में केनरा बैंकइलाहाबाद बैंक,स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुरस्टेट बैंक आफ पटियाला ने सभी विज्ञापन केवल अंग्रेजी में लगाए। कॉर्पोरेशन बैंक ने तो पूरे दादर स्टेशन ( मध्य रेल) के चेहरे को ही अंग्रेजी में रंग डाला । इसके पहले बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी यही किया था । उल्लेखनीय है कि मुंबई की उपनगरीय गाड़ियों के सभी यात्री हिंदी बखूबी जानते हैंइसकी तुलना में अंग्रेजी जानने वाले काफी कम हैंइसीलिए धारावाहिकों और निजी कंपनियों के अनेक होर्डिंग उपनगरीय गाड़ियों व स्टेशनों पर हिंदी में लगते हैं। संतोष की बात यह रही कि यूनियन बैंक,सेंट्रल बैंकओरियंटल बैंकबैंक ऑफ इंडिया आदि ने उपनगरीय गाड़ियों के विज्ञापनों में हिंदी का भी प्रयोग कर हिंदी के कानून की मर्यादा रखी।
      
यहाँ यह बताना गैरजरूरी न होगा कि ज्यादातर बैंकों में ज्यादातर विज्ञापन सामग्रीहोर्डिंगसभी प्रकार के आवेदन फार्म आदि अंग्रेजी में हैंभारतीय स्टेट बैंक और इस समूह के बैंकों की स्थिति तो बहुत ही चिंताजनक है। स्टेट बैंक ने 2008 के बाद से अपनी हिन्दी वेबसाइट अद्यतित ही नहीं की है और हिन्दी वेबसाइट के नब्बे प्रतिशत पृष्ठों पर अंग्रेजी सामग्री और अंग्रेजी वेबपृष्ठ के ही लिंक भरे पड़े हैं, राष्ट्रपति जी के आदेशों के उपरांत भी अब तक पासबुक एवं मासिक विवरण के हिन्दी-द्विभाषी में छापने की व्यवस्था बैंक पूरे पाँच साल बाद भी नहीं कर पाया. एसएमएस चेतावनी, नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, मोबाइल ऐप, ऑनलाइन खाता खोलना, ऑनलाइन शिकायत प्रणाली जैसी सभी आधुनिक सेवाएँ बैंक ग्राहकों पर अंग्रेजी में थोप रहे हैं, इन बैंकों को ग्राहकों की सुविधा नहीं बल्कि बैंकिंग सेवाओं के अंग्रेजीकरण की अधिक चिंता है. बैंक गर्व से लिखता है “हर भारतीय का बैंक” पर देखा जाए तो यह स्टेट बैंक “केवल अंग्रेजी वालों का अंग्रेजी बैंक है”. एसएमएस चेतावनी आप अंग्रेजी में भेजते हैं और पन्द्रह रुपये प्रति तिमाही ग्राहक से वसूल रहे हैं भले ही ग्राहक ना उसे पढ़ सकता हो, ना समझ सकता हो? देश के अंग्रेजी ना जानने वाले करोड़ों ग्राहकों के साथ अन्याय किया जा रहा है, केवल अंग्रेजी में एसएमएस भेजा जाना असंवैधानिक है, जो भाषा मुझे नहीं आती है उसमें मुझे एसएमएस भेजा जाए और शुल्क भी वसूला जाए यह तो सरासर तानाशाही है.
     बैंक ऑफ इंडिया तथा कार्पोरेशन भारतीय स्टेट बैंक समूह के बैंकों आदि बैंकों के कोर बैंकिंग सॉफ्टवेयर भी प्राय: केवल अंग्रेजी में हैं जिनमें नियमानुसार हिंदी-अंग्रेजी द्विभाषी कार्य की सुविधा होनी चाहिए।
     यह आश्चर्य कि बात है कि राजभाषा के कानूनों का उल्लंघन करने वाले बैंकों को सरकार राजभाषा पुरस्कार से उपकृत भी करती है, जिन्हें कानून तोड़ने के लिए दंडित किया जाना चाहिए उन्हें पुरस्कृत कैसे किया जा सकता है? यदि सभी बैंक राजभाषा के कानूनों का उल्लंघन करते हों अथवा अनेक नियमों का पालन ना करते हों तो किसी भी बैंक को कोई भी ईनाम नहीं दिया जाना चाहिए। कानून तोड़नेवाले को ईनाम देना तो उन्हें कानून तोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने जैसा है। सभी सरकारी बैंकों में राजभाषा अनुपालन के लिए सघन औचक निरीक्षण करवाया जाए और उल्लंघन करने वालों में ईनाम बाँटना बंद करवाया जाए साथ ही सख्त निर्देश जारी किए जाएँ कि आम ग्राहकों से जुड़ी प्रत्येक सेवा में हिन्दी को प्राथमिकता के आधार पर अगले छह महीनों में बिना किसी हीले-हवाले के शामिल किया जाए और उसकी रिपोर्ट वित्तीय सेवाएँ विभाग एवं भारतीय रिज़र्व बैंक को सौंपी जाए.
     अनुरोध है कि बैंकों को उपरोक्त मामले में पत्र लिखकर कड़े आदेश दिए जाएं और राजभाषा कानूनों का पालन करवाया जाए । जिन अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है उन्हें सोते से जगाया जाए या हटाया जाए। इस पत्र को संचार जगत में भी भेजा जा रहा है अतः हैम सभी कृत कार्रवाई की सूचना व परिणामों की अपेक्षा करते हैं ।

भवदीय
प्रवीण जैन 

प्रति: secy-fs@nic.in, "Gupta, Ramakant" <ramakantgupta@rbi.org.in>, rrsingh@rbi.org.insecy-ol@nic.in, "Joint Secy, OL" <jsol@nic.in>, jatchaudhary1@yahoo.comcmd@allahabadbank.co.incmd@bankofbaroda.comcmd@bankofindia.co.in,cmdscrt@canarabank.co.inchairman@centralbank.co.incmd@corpbank.co.incmd@denabank.co.incmd@idbi.co.in,cmdsec@indian-bank.comcmd@iobnet.co.incmd@obc.co.inpsbcmd@vsnl.comsbhmd@sbhyd.co.in,cmdsectt@syndicatebank.co.incmd@unitedbank.co.incmd@vijayabank.co.inchairman@sbi.co.in, "डा. निर्मल खत्री," <nirmalkhatri1@gmail.com>, "डा. रघुवंश प्रसाद सिंह," <singhrp@sansad.nic.in>, "निर्मल खत्री, संरास" <nirmalkhatri@sansad.nic.in>, श्री प्रदीप टम्‍टा <tamtapradeep@gmail.com>, "श्री राजेन्‍द्र अग्रवाल, Rajendra Agarwal" <rajendra.agrawal51@gmail.com>, श्री रमेश बैश Ramesh Bais <rameshbais47@gmail.com>, हुकुम नारायण देव <hukum@sansad.nic.in>