जब कभी बात होती
है कि भारत को "इंडिया नहीं भारत कहो" , तो एक स्वाभाविक सा
प्रश्न आता है कि भारत पर क्यों?
भारत का
स्वर्णिम अतीत है !
1.
सबसे पहले एक अंग्रेज़ जिसका नाम है ‘थॉमस
बैबिंगटन मैकाले’, ये भारत में आया और करीब 17 साल रहा। इन 17 वर्षों में उसने भारत का
काफी प्रवास किया, पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत में गया। अपने 17 साल के
प्रवास के बाद वो इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट ‘हाउस ऑफ कोमेन्स’ में उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद एक लंबा भाषण
दिया। उसका अंश पुन: प्रस्तुत करूँगा उसने कहा था :: “ I have travelled
across the length and breadth of India and have not seen one person who is a
beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high
moral values, people of such calibre, that I do not think we would ever conquer
this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her
spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her
old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that
all that is foreign and English is good and greater than their own, they will
lose their self esteem, their native culture and they will become what we want
them, a truly dominated nation.
2.
”इसी भाषण के अंत में वो एक वाक्य और कहता है : वो
कहता है ”भारत में जिस व्यक्ति के घर में भी मैं कभी गया, तो मैंने देखा की वहाँ सोने के सिक्कों का ढेर ऐसे लगा रहता हैं, जैसे की चने का या गेहूं का ढेर किसानों के घरों में रखा जाता है और वो
कहता है की भारतवासी इन सिक्को को कभी गिन नहीं पाते क्योंकि गिनने की फुर्सत नही
होती है इसलिए वो तराजू में तौलकर रखते हैं। किसी के घर में 100 किलो, इसी के यहा 200 किलो और किसी के यहाँ 500 किलो सोना है, इस तरह भारत के घरों में सोने का भंडार भरा हुआ है।”
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