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सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

वीर निर्वाण संवत् – भारत का सर्वाधिक प्राचीन संवत्

 

वीर निर्वाण संवत् – भारत का सर्वाधिक प्राचीन कालक्रम

जैन परंपरा में “वीर निर्वाण संवत्” भारत का सर्वाधिक प्राचीन और प्रमाणित कालगणना संवत् माना गया है। यह संवत् भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष-गमन (निर्वाण) के वर्ष से आरम्भ होता है, जो ईसा पूर्व 527 वर्ष में कार्तिक कृष्ण अमावस्या (7 अक्तूबर) के दिन पावापुरी (वर्तमान बिहार) में घटित हुआ था । उनके निर्वाण के पश्चात् अगले ही दिन—कार्तिक शुक्ल एकादशी से—इस संवत् का शुभारम्भ हुआ, जिसे “वीर निर्वाण संवत्” कहा गया। भगवान महावीर स्वामी के पाँच नामों वीर, अतिवीर, सन्मति, वर्द्धमान और महावीर में से “वीर” नाम से यह संवत् प्रचलित हुआ।

वीर निर्वाण संवत् की प्राचीनता

इतिहासकारों तथा ग्रंथीय प्रमाणों के अनुसार, यह संवत् विक्रम संवत्, शक संवत्, शालिवाहन संवत्, हिजरी संवत्, ईस्वी संवत्, गुप्त संवत्सभी से अधिक प्राचीन है। इसका प्रारंभिक उल्लेख महान आचार्ययति-वृषभ रचित तिलोय पण्णति (6वीं शताब्दी ईस्वी) में मिलता है, जिसमें भगवान महावीर के निर्वाण वर्ष को आधार बनाकर संवत् की गणना की गई है। आचार्य जिनसेन (8वीं सदी ईस्वी) द्वारा रचित हरिवंश पुराण में भी वीर निर्वाण युग और शक युग के बीच का कालान्तर 605 वर्ष, 5 माह, 10 दिन बताया गया है ।

पुरातात्विक प्रमाण

1912 ईस्वी में सुप्रसिद्ध भारतीय पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने राजस्थान के अजमेर ज़िले की भिनाय तहसील स्थित वडली गाँव (वर्तमान बडली) से एक ब्राह्मी-लिपि में अंकित प्राचीन शिलालेख खोजा।

इस शिलालेख में “84 वीर संवत्” का उल्लेख मिलता है—अर्थात यह शिलालेख भगवान महावीर के निर्वाण के 84वें वर्ष का है, जो लगभग ईसा पूर्व 443 वर्ष का समय दर्शाता है।​ यह अभिलेख आज भी अजमेर के राजपूताना संग्रहालय (आमेर म्यूज़ियम) में सुरक्षित है और भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्रमाणित किया गया है।

इतिहासकार डॉ. राजबली पाण्डेय ने अपनी प्रसिद्ध कृति इंडियन पैलियोग्राफी (पृष्ठ 180) में लिखा कि—“अशोक काल से पहले जिन शिलालेखों में तिथि-संकेत हैं, उनमें वडली का अभिलेख निर्विवाद रूप से सर्वाधिक प्राचीन है” ।

जैन ग्रंथों में वर्णन

जैन परंपरा के अनेक ग्रंथ—हरिवंश पुराण, तिलोय पण्णत्ति, धवला, पंचाङ्ग सूत्रमें वीर निर्वाण संवत् का क्रमिक प्रयोग मिलता है।

आचार्य वीरसेन ने धवला ग्रंथ में इसकी पुष्टि की है कि शक युग के प्रारंभ से 605 वर्ष 5 माह 10 दिन पहले भगवान महावीर का निर्वाण हुआ।

इसी गणना के अनुसार वर्तमान में (सन् 2025 ईस्वी में) वीर निर्वाण संवत् 2552 प्रारंभ हो रहा है, जो विसं 2082 अथवा शक संवत 1947 के समकक्ष है ।

दीपावली से संबंध

भारतवर्ष में आज जो दीपावली पर्व मनाया जाता है, उसकी ऐतिहासिक जड़ें इसी दिन में हैं—जब भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया और उनके शिष्य गणधर गौतम स्वामी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। उसी अवसर पर समस्त भारत के जनसमुदाय और राज्यों ने ज्योति-प्रज्वलन किया, ताकि “ज्ञान का प्रकाश” सदा अमिट रहे।

इस घटना की स्मृति में ही अगली प्रतिपदा से वीर निर्वाण संवत् आरम्भ किया गया, जो आज भी जैन समाज का नववर्ष है ।

तुलनात्मक क्रम (प्रमुख संवतों के साथ)

संवत का नाम

प्रारंभ वर्ष (ईसा पूर्व/ईस्वी)

प्रारंभ का कारण

वीर निर्वाण से कालांतर

वीर निर्वाण संवत्

527 ईसा पूर्व

भगवान महावीर का निर्वाण

0 वर्ष

विक्रम संवत्

57 ईसा पूर्व

राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक

लगभग 470 वर्ष बाद

शक संवत्

78 ईस्वी

शक राजाओं का शासन प्रारंभ

लगभग 605 वर्ष बाद

हिजरी संवत्

622 ईस्वी

पैगम्बर मुहम्मद का मदीना गमन

लगभग 1149 वर्ष बाद

ईस्वी संवत्

1 ईस्वी

यीशु मसीह का जन्म

लगभग 527 वर्ष बाद

यह सारणी स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वीर निर्वाण संवत् समस्त प्रचलित कालगणना प्रणालियों से अधिक प्राचीन और भारतीय मूल का है।


निष्कर्ष

इस प्रकार सभी ऐतिहासिक, ग्रंथीय और अभिलेखीय प्रमाण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि—

1.   वीर निर्वाण संवत् भारतवर्ष का प्रथम और सर्वाधिक प्राचीन संवत् है।

2.  इसका आरंभ ईसा पूर्व 527 वर्ष में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण अवसर से हुआ।

3.   इसका वैज्ञानिक, अभिलेखीय और पारंपरिक उपयोग आज भी जैन समाज में निर्विवाद रूप से विद्यमान है।

4.  अजमेर (भिनाय तहसील) के वडली शिलालेख और तिलोय पण्णत्ति  के उल्लेख इसके निर्विवाद प्रमाण हैं।

अतः “वीर निर्वाण संवत्” केवल जैन धर्म का नववर्ष नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतभूमि की सबसे प्राचीन, प्रमाणित और स्वदेशी कालगणना प्रणाली है, जिसने भारतीय इतिहास में समय-गणना की आधार-रेखा स्थापित की।

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