सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के अधीन गठित केन्द्रीय सूचना आयोग अपनी स्थापना के नौ वर्षों बाद भी राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमावली का निरन्तर उल्लंघन कर रहा है. ना तो प्रेस-विज्ञप्ति, नियम और निर्देश हिन्दी में जारी हो रहे हैं और ना ही आयोग ने आज तक अपनी दो वेबसाइट http://cic.gov.in/ एवं rti.gov.in द्विभाषी रूप में बनाई हैं.
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (जो प्रधानमंत्री जी के अधीन आता है) ने आरटीआई ऑनलाइन http://rtionline.gov. in/
वेबसाइट तैयार करवाई है, इस पर भारत के नागरिक भारत की राजभाषा हिन्दी में यूनिकोड फॉण्ट में आवेदन नहीं लगा सकते क्योंकि सिस्टम में हिंदी के अक्षरों को प्रतिबंधित किया गया है. इस तरह कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने भारत के सत्तानवे प्रतिशत नागरिकों को हिन्दी में ऑनलाइन आवेदन लगाने से रोक रखा है. क्या यही लोकतंत्र है?
राजभाषा अधिनियम की धारा ३ (३) के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण दस्तावेज भी केवल अंग्रेजी में जारी कर रहा है और संसाधनों के अभाव की दुहाई दे रहा है, जनता की भाषा में काम करने में भी यही रोना. अखबारों में बार-२ पढ़ने को मिलता है कि आयोग सूचना कानून के आरटीआई आवेदनों के सम्बन्ध में हिन्दी में लगाई गई शिकायतों एवं प्रथम अपील के विरुद्ध लगाई जाने वाली द्वितीय अपीलों का निबटारा केवल अंग्रेजी में करता है.
क्या आयोग में बैठे आयुक्तगणों में से किसी को भी हिन्दी का ज्ञान नहीं है, जो वे अपना शत-प्रतिशत काम केवल अंग्रेजी में निबटा रहे हैं, ऐसा कब तक चलेगा? केन्द्रीय सूचना आयोग संविधान द्वारा आम जनता को दिए गए अधिकारों का निरंतर उल्लंघन कर रहा है और आम जनता पर जबरन अंग्रेजी थोप रहा है और कोई इनके विरुद्ध हल्ला नहीं बोलता.
यदि केन्द्रीय सूचना आयोग ही राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमावली का इस तरह उल्लंघन करेगा तो सूचना कानून के तहत द्वितीय अपील लगाने वाले अंग्रेजी ना जानने वाले भारत के प्रताड़ित नागरिक किस की शरण लेंगे? क्या आरटीआई आवेदनों के सम्बन्ध में हिन्दी में लगाई गई शिकायतों एवं प्रथम अपील के विरुद्ध लगाई जाने वाली द्वितीय अपीलों के निर्णय अंग्रेजी में भेजे जाते रहेंगे ताकि आम नागरिक को और प्रताड़ित किया जा सके. आयोग स्वयं जानते बूझते हुए राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है.
केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों से आप पूछिए कि क्या वे ऐसी भाषा में लिखी अपीलों का निर्णय कर सकते हैं जो भाषा उनको ना आती हो (जैसे जर्मन-फ्रेंच). यदि नहीं, तो फिर भारत के आम एवं गरीब नागरिकों द्वारा अपनी भाषा में लगाई जाने वाली अपीलों का निपटारा आयोग अंग्रेजी में किसलिए कर रहा है? यदि आयुक्त हिंदी में लिखी अपील समझ सकता है, पढ़ लेता है तो वह उसका निर्णय/आदेश हिन्दी में क्यों नहीं लिखता? द्वितीय अपील के विरुद्ध अंतिम विकल्प के रूप में केवल 'उच्च न्यायालय' का सहारा होता है तो क्या हिन्दी में द्वितीय अपील लगाने वाले आवेदकों को हिन्दी में उत्तर पाने के लिए हर बार उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा?
केन्द्रीय सूचना आयोग के द्वारा राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के निरंतर और जानबूझ कर किए जा रहे उल्लंघन के सम्बन्ध में पिछले तीन वर्षों में यह मेरा 15वां ईमेल/अनुस्मारक है. केन्द्रीय सूचना आयोग को मैंने सबसे पहला ईमेल 2 नवम्बर 2012 को लिखा था उसके बाद मैं निम्नलिखित ईमेल/ईमेल अनुस्मारक राजभाषा विभाग एवं केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों को लिख चुका हूँ:
i. 2 नवम्बर 2012
ii. 23 नवम्बर 2012
iii. 15 दिसंबर 2012
iv. 27 फरवरी 2013
v. 15 मार्च 2013
vi. 19 मार्च 2013
vii. 22 मार्च 2013
viii. 26 मार्च 2013
ix. 19 अप्रैल 2013
x. 10 मई 2013
xi. 23 मई 2013
xii. 17 अगस्त 2013
xiii. 21 सितम्बर 2013
xiv. 14 दिसंबर 2014
4 सितम्बर 2013 को एक आर टी आई आवेदन लगाया था, आयोग ने इसमें माँगी गई जानकारी नहीं दी थी. बाकी किसी भी ईमेल अथवा मेरे ईमेल शिकायत को राजभाषा विभाग द्वारा अग्रेषित करने के बाद भी आयोग के आयुक्तों/सचिवों अथवा अधिकारियों ने हमारी शिकायतों पर अब तक कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की है और न ही एक बार भी कोई जवाब दिया. हमारे मित्र तुषार कोठारी एवं अन्य लोग केन्द्रीय सूचना आयोग को राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के उल्लंघनों के बारे सैकड़ों ईमेल लिख चुके हैं.
केन्द्रीय सूचना आयोग के अधिकारियों/आयुक्तों/सचिवों की कार्यप्रणाली का सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि आयोग ने आम जनता से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर तीन साल बाद निरंतर लिखने के बाद राजभाषा कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए कदम उठाना तो दूर की बात है, आज तक एक भी ईमेल का उत्तर नहीं दिया. वस्तुतः केन्द्रीय सूचना आयोग अपने कार्यालय में हिन्दी का प्रयोग जानबूझ कर रोक रहा है ताकि आम जनता को सूचनाओं और अपीलों के नाम पर उलझाए रखा जा सके.
हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा “सिर्फ अंग्रेजी” में करना, एक सोची समझी चाल है:
केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा “सिर्फ अंग्रेजी” में करना, एक सोची समझी चाल है ताकि आम जनता को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा सके. अंग्रेजी में निपटारा होने से शिकायतकर्ता और अपीलकर्ता दूसरों का मुंह ताकते रहते हैं. आयोग के हाथ में‘अंग्रेजी’ शोषण करने का सबसे बड़ा और आसान हथियार है. क्या आयोग के आयुक्त किसी ऐसी अपील का निपटारा कर सकते हैं जो चीनी भाषा “मंदारिन”में लगाई गई हो? फिर आयोग हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा “सिर्फ अंग्रेजी” में किसलिए कर रहा है? यह हिन्दी में द्वितीय अपीलों और शिकायतों को दर्ज करवाने वालों के खिलाफ षड्यंत्र है, अन्याय है, इस पर तुरंत रोक लगायी जानी चाहिए.
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