११ जुलाई २०१३
प्रति,
माननीय
सचिव, राजभाषा
विभाग,
माननीय संयुक्त सचिव, राजभाषा विभाग
गृह
मंत्रालय, भारत सरकार,
नई दिल्ली
विषय:
राजभाषा की उपेक्षा पर सरकार मौन क्यों?
महोदय/महोदया,
चूँकि
भारत की राजभाषा हिन्दी है उसके उपरांत भी भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों /विभागों/ निकायों/
कंपनियों/ संस्थानों/ सार्वजनिक बैंकों की ९९% वेबसाइटें पूर्व-निर्धारित रूप से (बाई
डिफॉल्ट) अंग्रेजी में ही खुलती हैं और 'हिन्दी में' का विकल्प अंग्रेजी वेबसाइट के
मुखपृष्ठ पर दिया जाता है.
यह
भारतीय संविधान, राजभाषा
अधिनियम, नियम एवं भारत सरकार की राजभाषा नीति का खुला
उल्लंघन है. कोई इस पर बोलने को तैयार नहीं है. मैंने आर टी आई के माध्यम से
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर विभिन्न
मंत्रालयों में आवेदन लगा कर इस बारे में पूछा है और सबके उत्तर अलग-२ प्राप्त
हुए. जैसे राष्ट्रपति सचिवालय का कहना है कि इस बारे में कोई नियम नहीं है,
प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि विदेशी लोग भारी संख्या में
प्रधानमंत्री की वेबसाइट देखते हैं, राजभाषा विभाग तो आरटीआई
में पूछे गए प्रश्न का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं देना चाहता, भारतीय
विशिष्ट पहचान प्राधिकरण कहता है सभी सरकारी वेबसाइटें पहले अंग्रेजी में ही खुलती
हैं इसलिए हमारी वेबसाइट भी अंग्रेजी में खुलती है. इसी तरह और मंत्रालयों/विभागों
के अस्पष्ट उत्तर प्राप्त हुए हैं. [सूका (सूचना कानून) के आवेदन पर मिले उत्तर की
प्रतियाँ संलग्न हैं]
भारत
सरकार की वेबसाइटों का अंग्रेजी में पहले खुलना राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ३(३) के अंतर्गत जारी कार्यालय ज्ञापन क्र. 12024/2/92-रा.भा. (बी-II), दिनांक ६ अप्रैल १९९२ का सीधा और
स्पष्ट उल्लंघन है पर कोई इसे स्वीकार नहीं करता.
भारत
की आम जनता का विचार
है कि भारत सरकार के
मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों/सार्वजनिक बैंकों की वेबसाइटें पूर्व-निर्धारित
रूप से अंग्रेजी में खुलना, संविधान के अनुच्छेद
३४३-३५१, राजभाषा अधिनियम, राजभाषा नियम,
एवं राजभाषा नीति स्पष्ट उल्लंघन है, जो कई
वर्षों से निरंतर जारी है उसे रोकने के लिए राजभाषा विभाग को अब समय रहते स्पष्ट
और ठोस नियम-निर्देश जारी कर देना चाहिए कि संविधान के
अनुच्छेद ३४३-३५१, राजभाषा अधिनियम, राजभाषा
नियम, एवं राजभाषा नीति के समुचित पालन सुनिश्चित करने के
लिए सभी सरकारी वेबसाइटें पहले हिन्दी में पहले खुलें या फिर राजभाषा विभाग की
वेबसाइट की तरह १००% द्विभाषी रूप में बनें, जिसमें हिन्दी
की पाठ्य सामग्री अनिवार्य रूप से अंग्रेजी के ऊपर/आगे रहे.
माना
कि राजभाषा कानून प्रोत्साहन, पुरस्कार
पर आधारित है पर संविधान की भावना को देखते हुए कम से कम राजभाषा विभाग स्पष्ट
नियम और नीति निर्देश तो जारी करे और उनका अनिवार्य पालन करवाए. दुनिया भर में
सैकड़ों देशों (फ़्रांस, बुल्गारिया, कोरिया, ब्राजील, डेनमार्क,
कनाडा, जापान, थाईलेण्ड,
जर्मनी, अरब देश, तुर्की
आदि) में जो भारत से क्षेत्रफल और जनसंख्या के आधार पर काफी छोटे हैं,
इनकी सभी वेबसाइटें उनकी अपनी राजभाषा में खुलती हैं. दुनिया में
भारत को छोड़कर ही शायद कोई देश होगा जहाँ कि सरकार द्वारा अपनी राजभाषा को
प्राथमिकता ना दी जाती हो. हर छोटे बड़े देश की सरकारें अपनी-२ राजभाषा के मान
-सम्मान और उसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कतिबद्ध हैं. चीन और कोरिया ने तो
पिछले ३-४ वर्षों में ऐसे कंप्यूटर और अन्य उपकरण विकसित किए हैं जिनपर सबकुछ उनकी
अपनी भाषा में होगा और अंग्रेजी का एक भी शब्द नहीं.
आजादी के ६५ वर्षों बाद भी भारत के नागरिकों द्वारा
सरकारी विभागों/अधिकारियों को हिन्दी में भेजे हुए पत्रों और आरटीआई आवेदनों के
उत्तर तक अंग्रेजी में भेजे जाते हैं जो सचमुच बेहद लज्जास्पद है. क्या भारत सरकार नागरिकों को उनकी अपनी भाषा में पत्रोत्तर प्राप्त करने का अधिकार भी सुनिश्चित
नहीं कर सकती?
अगस्त
१९९९ से हिन्दी वेबसाइटें बनाने का नियम बना हुआ है पर आज १४ वर्षों के बाद भी भारत सरकार के एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों मंत्रालयों/विभागों/निकायों/कंपनियों/संस्थानों ने अपनी हिन्दी वेबसाइटें चालू नहीं कीं! जनगणना
आयुक्त -भारत के महारजिस्ट्रार कार्यालय ने तो हिन्दी वेबसाइट उपलब्ध ना करवा पाने
के लिए संसाधनों का अभाव बताया है, और गूगल अनुवादक जोड़ दिया
है, उनके अनुसार गूगल अनुवादक सटीक (?) अनुवाद कर रहा है. ऐसे में हिन्दी ही अकेली
क्यों अब उनकी वेबसाइट २५-३० विदेशी भाषाओं में भी बिना किसी कठिनाई के उपलब्ध हो
गई है. (आर टी आई आवेदन का जवाब संलग्न है).
शीघ्र
उत्तर की अपेक्षा के साथ.
प्रार्थी,
प्रवीण
प्रति:
1. माननीय राष्ट्रपति महोदय माननीय
2. माननीय उपराष्ट्रपति महोदय
3. माननीयप्रधानमंत्री महोदय
4. माननीय लोकसभा अध्यक्षा
5. माननीय महासचिव, लोकसभा सचिवालय
6. माननीय महासचिव, राज्यसभा सचिवालय
7. माननीय अध्यक्ष, संसदीय राजभाषा समिति
8. माननीय सदस्य, संसदीय राजभाषा समिति
9. विश्व हिन्दी सचिवालय
10. माननीय निदेशक, नीति- राजभाषा विभाग
11. माननीय उपनिदेशक, नीति-राजभाषा विभाग