अनुवाद

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

तकनीकी प्रश्न: अब तक कितने सार्वजनिक बैंकों ने नेटबैंकिंग हिंदी में शुरू की है ?

 सम्मानीय सदस्यगण 

जानकारी हो बताने का कष्ट करें:

१. अब तक कितने सार्वजनिक बैंकों ने नेटबैंकिंग हिंदी में शुरू की है?
२. अब तक कितने सार्वजनिक बैंकों ने पासबुक और माँग ड्राफ्ट की १००% छपाई हिंदी में शुरू की है?
३. क्या ऑनलाइन आयकर विवरणी हिंदी में भरी जा सकती है?
४. क्या पैनकार्ड का ऑनलाइन आवेदन हिंदी में किया जा सकता है?
५. क्या ऑनलाइन रेलवे टिकट की बुकिंग हिंदी में की जा सकती है?
६. भारत सरकार के किस मंत्रालय में १००% सॉफ्टवेयर द्विभाषी प्रयोग में लाये जा रहे हैं?  
7. भारत सरकार की कौन सी वेबसाइट शत-प्रतिशत हिंदी अथवा शत-प्रतिशत द्विभाषी रूप में उपलब्ध है? (जिसमें हिंदी वेबसाइट पर हर सामग्री केवल हिंदी में हो एक शब्द-अक्षर भी रोमन में ना लिखा गया हो)  

प्रतिक्रियाएं व्यक्त करें 

 तकनीकी प्रश्न: अब तक कितने सार्वजनिक बैंकों ने नेटबैंकिंग हिंदी में शुरू की है ?

    अभी ये सभी लक्ष्‍य दूर की कौड़ी हैं। जब सामान्‍य पत्राचार ही 100 प्रति‍शत
    हिंदी में नहीं हो पाया है तो कंप्‍यूटर पर शतप्रति‍शत कैसे होगा।
     
     
     
     
    -- 
    *Dr. Paritosh Malviya*
    *Gwalior*
 

    असल में देखा जाये तो कंप्यूटरों के माध्यम से भाषा-लिपि का प्रयोग अधिक आसान
    है, कारण कि कंप्यूटरों की अपनी कोई भाषा नहीं होती और वे किसी भाषा विशेष के
    प्रति लगाव नहीं रखते। यह तो मानव संकल्प पर निर्भर करता है कि वह उसे अपनी
    मूल भाषा के लिए प्रयोग में लेता है कि नहीं। चीन पहला राष्ट्र है जिसने
    वेबसाइटों के नाम तक चीनी लिपि में लिखने की शुरुआत की थी। चीन नहीं चाहता कि
    उसके हर नागरिक को अंगरेजी सीखनी पड़े, क्योंकि हर नागरिक को विदेशियों के साथ
    संपर्क नहीं साधना होता है। हमारी स्थिति भिन्न नहीं होनी चाहिए, किंतु लंबी
    गुलामी के कारण हम अंगरेजी मोह से बाहर निकल ही नहीं सकते। फलतः वह काम भी अब
    हिंदी में नहीं होते जो पहले होते थे। विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी शब्दों के
    साथ तैयार फ़ार्मेट में फ़ॉर्म आदि भले ही मिल जायें, उनमें प्रविष्टियां
    अंगरेजी में ही मिलेंगी। चाहे रेलगाड़ी टिकट हो या बैंक ड्राफ़्ट सब जगह हाल यही
    है। कहने के लिए हिंदी भी रहती है, लेकिन उसकी उपयोगिता शायद ही कभी हो।
    भारतीयों की मानसिकता उपर वाला शायद बदल सके, धरती पर आप-हम जैसे कुछ नहीं कर
    सकते हैं।
     
     
    23 जुलाई 2013 9:12 am को, Dr. Paritosh Malviya
 
    "डॉ एम एल गुप्ता (Dr. M.L. Gupta)" <mlgdd123@gmail.com> Jul 23 10:55PM +0530  

    हम सब की चिंता एक जैसी है, पर चिंता किसको है..।
     
     
    से: Dr. Bishwanath Jha <bishwjha@gmail.com>
    को: "डॉ एम एल गुप्ता (Dr. M.L. Gupta)" <mlgdd123@gmail.com>
    प्रतिलिपि: hindianuvaadak@googlegroups.com,
     राजभाषा विभाग RajbhashaVibhag - भाषायी कंप्यूटरीकरण <rajbhashavibhag-itsolution@googlegroups.com>,
     Dr ved partap Vaidik <dr.vaidik@gmail.com>,
     pradeep sharma <pspradeep3@gmail.com>,
     Jay prakash Manas <srijangatha@gmail.com>,
     jmsingla <jmsingla@yahoo.com>,
     RAJESHWAR UNIYAL <uniyalrp@yahoo.com>
    दिनांक: 24 जुलाई 2013 11:53 am

प्रवीण जी,

हातिम ताई के इन सातों सवालों के  जवाब नीचे दिए हैं-

1. किसी भी सार्वजनिक बैंक ने नेटबैंकिंग हिंदी में शुरू नहीं की है ( जब प्राइवेट बैंक नहीं कर रहे तो वे क्यों करें, वे भी तो उन्हीं की तरह बिजनेस कर रहे हैं)।

2. किसी भी सार्वजनिक बैंक ने पासबुक और माँग ड्राफ्ट की 100% छपाई हिंदी में शुरू नहीं की है (जरूरत क्या है अंग्रेजी है ना)।

3. ऑनलाइन आयकर विवरणी हिंदी में बिल्कुल नहीं भरी जा सकती है (आयकर विभाग तो भारत सरकार का कमाऊ पूत है, इस पर कौन उंगली उठाने की हिमाकत कर सकता है भला)।

4. सवाल ही नहीं उठता, आपको मालूम नहीं ? भारत 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुका है, वो भी 13 साल पहले ही ।

5. जरूरत ही क्या है, भारत में कंप्यूटर पर तो केवल अंग्रेजी में ही काम हो सकता है ना ।

6. किसी भी मंत्रालय में नहीं (गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग को छोड़कर)- और भी गम हैं जमाने में हिंदी के अलावा।

7. संभवतः कोई भी नहीं (गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग को छोड़कर - मजबूरी है, इन्हें तो हिंदी के लिए ही पगार मिलती है न)।