अनुवाद

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

क्या आपको अपनी भाषा से कोई लगाव है? मेरी सहायता कीजिए

आदरणीय मान्यवर/ 
प्रिय मित्र


नमस्कार/जयहिंद/प्रणाम/सलाम/शत श्री अकाल/जयश्रीराम/जय जिनेंद्र .

जैसा कि आप जानते हैं, हम हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं. देशभर से हामरे ईमेल पर अनेक लोगों ने सहयोग का भरोसा दिलाया है. हम आप सभी के अत्यंत आभारी हैं. अब आपको पहला कार्य करना है.

आप सभी से अनुरोध है कि मेरे निम्नलिखित ईमेल का अवलोकन करें और उसमें अपने अनुसार परिवर्तन करते हुए, बिना देर किए डाक से अथवा ईमेल [secy-ol@nic.in] से राजभाषा सचिव को पत्र भेजें.संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के खण्ड - 9 पर राष्ट्रपति महोदय के आदेश शीघ्र ही जारी होने वाले हैं और राजभाषा सचिव उनको अंतिम रूप दे रहे है. ईमेल भेजने से पहले मेरा नाम पता अवश्य हटा दें.

ईमेल की गुप्त-प्रति (बीसीसी) में मेरा ईमेल आईडी अवश्य डालें ताकि मैं आवेदनों की संख्या के आधार पर आगे सचिव महोदय से बात कर सकूँ. हमें कम से कम एक हज़ार ईमेल की आवश्यकता है. क्या आप इस यज्ञ को सफल बनाएँगे.

आपका विनम्र आभारी :
प्रवीण 


---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: प्रवीण कुमार Praveen <cs.praveenjain@gmail.com>
दिनांक: 17 दिसंबर 2013 को 12:20 am
विषय: संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के खण्ड - 9 पर राष्ट्रपति महोदय के आदेश निर्गत किए जाने के सम्बन्ध में
प्रति: secy-ol@nic.in


प्रति,
श्री अरुण कुमार जैन 
सचिव महोदय
राजभाषा विभागगृह मंत्रालय
एनडीसीसी-II (नई दिल्ली सिटी सैंटर) भवन'बी' विंग
चौथा तलजय सिंह रोड,
नई दिल्ली - 110001

विषय: संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन (खण्ड -9) में राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के उल्लंघन पर दंडात्मक प्रावधान 

सन्दर्भ : संसदीय राजभाषा समिति प्रतिवेदन (खण्ड -9)  पृष्ठ 442 अनुशंसा क्रमांक: 110


महोदय,

भारत की स्वतंत्रता को आज सड़सठ वर्ष बीत गए हैं और हिन्दी आज भी भारत सरकार के कामकाज की भाषा नहीं बन पाई है, इन सड़सठ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है पर हिन्दी की स्थिति नहीं बदली बल्कि उसका ह्रास ही हुआ है.

भारत सरकार के ज़्यादातर कार्यालयों में हिन्दी के नाम पर केवल दिखावा चल रहा है, यह एक कड़वी सच्चाई है जिसे शायद भारत सरकार कभी भी स्वीकार नहीं करेगी और यही हमारे देश एवं देश के नागरिकों की सबसे बड़ी त्रासदी है क्योंकि यदि भारत ने अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त होकर भारतीय भाषाओं को अपनाया होता तो आज भारत भी चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, फ्रांस आदि स्वभाषा के दम पर विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा होता.

इससे अधिक शर्मनाक क्या होगा कि आज भी भारत के नागरिकों के द्वारा हिन्दी में लिखे पत्रों, अभ्यावेदनों एवं सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन लगाए गए आवेदनों के उत्तर अंग्रेजी में भेजे जा रहे हैं  और नागरिक इसकी शिकायतें राजभाषा विभाग को कर रहे हैं. ऐसी शिकायतों का ना तो कोई समाधान हो पाता है और होता भी है तो वह क्षणिक होता है. जो अधिकारी हिन्दी में आवेदन पढ़कर समझ सकता है क्या वह उसका उत्तर हिन्दी में नहीं दे सकता? ऐसा कब तक चलता रहेगा? क्या इसका अभी अंत होगा?

इन शिकायतों का अंत अगली कई सदियों तक भी नहीं हो पाएगा क्योंकि राजभाषा कानून में दंड का कोई प्रावधान नहीं है. दंड के बिना यह कानून प्रभावहीन है. यदि बिना दंड के कानून लागू हो पाता तो कम से कम सड़सठ सालों का इतना लंबा समय नहीं लगता और लक्ष्य दशकों पहले प्राप्त कर लिए जाते. दुनिया में कहीं भी बिना दंड के कानून की अवधारणा देखने में नहीं आई है क्योंकि बिना भय के बालक भी पिता की बात नहीं  मानता.

भारत के नागरिकों को उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय में न्याय आज भी एक विदेशी भाषा में दिया जा रहा है और सरकार ने इस कुप्रथा को रोकने की दिशा में सड़सठ वर्षों में कोई कदम उठाना तो दूर उसपर विचार तक नहीं किया, श्यामरुद्र पाठक जैसे आंदोलनकारियों द्वारा नौ-नौ महीनों भूख-प्यास में धरना दिया जाता है और उन्हें प्रतिदिन जेल भेजा जाता है.

संविधान निर्माताओं की आत्माएँ हिन्दी की वर्तमान स्थिति देखकर कितना दुखी होती होंगी इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. 

देश के करोड़ों नागरिकों की ओर से सुझाव:
  1. महोदय, आपके पास अवसर है और हमें आपसे आशा है कि अनुशंसा 110 को यथावत रखा जाएगा और सूचना कानून की भांति राजभाषा अधिनियम में भी 'क' एवं 'ख' क्षेत्र के लिए दंड का प्रावधान किया जाए ताकि हिन्दी के साथ हो रही घोर उपेक्षा, अनादर और उल्लंघन का अंतहीन सिलसिला रुक जाए. आपसे आशा है कि इस बार आप कोई कोर कसर शेष नहीं रखेंगे और इस प्रावधान पर राष्ट्रपति महोदय आदेश को लागू करवाएंगे. 
  2. हिन्दी में लिखे पत्रों, अभ्यावेदनों एवं सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन लगाए गए आवेदनों के उत्तर अंग्रेजी में देने वाले अधिकारियों पर अर्थदंड का प्रावधान किया जाए.
  3. भारत के नागरिकों को सभी उच्च न्यायालयों में संबंधित प्रादेशिक भाषाओं में एवं उच्चतम न्यायालय में हिन्दी में याचिकाएँ लगाने एवं न्याय पाने का अधिकार दिया जाए और  हर दस्तावेज का अंग्रेजी अनुवाद दाखिल करने की क़ानूनी बाध्यता को हटाया जाए. संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन किया जाए. 
  4. पासपोर्ट की भांति 'पैनकार्ड'/वाहन चालन अनुज्ञा (ड्राइविंग लाइसेंस)/वाहन पंजीयन पत्रक (व्हीकल रजिस्ट्रेशन कार्ड)/मतदाता पहचान-पत्र को पूर्णरूपेण द्विभाषी बनाने हेतु आयकर विभाग/राजमार्ग परिवहन मंत्रालय/भारत निर्वाचन आयोग को निर्देशित किया जाए कि इनमें नाम/पिता का नाम/ निगम/कम्पनी का नाम अथवा उम्र/पता आदि की प्रविष्टियों को भी हिन्दी में लिखा जाए. 'पैनकार्ड'/वाहन चालन अनुज्ञा (ड्राइविंग लाइसेंस)/वाहन पंजीयन पत्रक (व्हीकल रजिस्ट्रेशन कार्ड) आदि फिलहाल केवल अंग्रेजी में स्मार्टकार्ड रूप में बनाए जा रहे हैं और गैरहिन्दी भाषी राज्यों हेतु मतदाता पहचान-पत्र प्रादेशिक भाषा एवं अंग्रेजी में बनाए जा रहे हैं उनमें हिन्दी कोई कोई भी स्थान नहीं है. (पारपत्र की द्विभाषिकता पर संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के खण्ड - 8 पर राष्ट्रपति महोदय के आदेश क्रम संख्या 77 आदेश दिनांक 2 जुलाई 2008 को देखें)
  5. भारत सरकार के सभी स्मार्ट कार्ड अनिवार्य रूप से 100% द्विभाषी रूप में तैयार हों. भारत सरकार के ऑनलाइन फॉर्म/पीडीएफ़ फॉर्म अनिवार्य रूप से 100% द्विभाषी रूप में तैयार हों और उनमें एकसाथ दोनों भाषाएँ प्रदर्शित हों. उपयोगकर्ता को भाषा चुनने का विकल्प नहीं दिया जाना चाहिए जैसा कि कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय ने कर रखा है. पीडीएफ़ फॉर्म/ऑनलाइन फॉर्म में हिन्दी को अंग्रेजी से आगे/ऊपर रखा जाना चाहिए.
  6. भारत सरकार की सभी वेबसाइटें राजभाषा विभाग की वेबसाइट की तरह 100% द्विभाषी बनाई जाएँ अथवा दायें (अंग्रेजी) और बायें (हिन्दी) को रखते हुए 100% द्विभाषी रूप में तैयार हों ना कि हिन्दी-अंग्रेजी की अलग -२ वेबसाइटें. भारत सरकार की लगभग सभी वेबसाइटें पूर्व निर्धारित रूप से अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हुए अंग्रेजी में खुलती हैं जो संविधान एवं सन 1992 के आदेश का उल्लंघन है.
  7. आयकर विभाग/ केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग के सभी ऑनलाइन फॉर्म एकसाथ 100%द्विभाषी बनाए जाना का प्रबंध किया जाए और करदाताओं को भेजे जाने वाले सभी निश्चित ईमेल 100%द्विभाषी रूप में जारी किए जाएँ.
  8. राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के उल्लंघन के लिए भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों/सरकारी बैंकों/आयोगों आदि में 'राजभाषा शिकायत अधिकारी' नामित किए जाएँ और शिकायतों के निपटारे के लिए समय-सीमा तय की जाए. और उसकी जानकारी हर वेबसाइट पर उपलब्ध करवाई जाए.
  9. सभी सरकारी बैंकों को तीन महीने के भीतर ऑनलाइन नया खाता खोलना,ऑनलाइन शिकायत, नेटबैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, मोबाइल अनुप्रयोग 100%द्विभाषी रूप में बनाने हेतु निर्देशित किया जाए, उक्त सेवाएँ अभी केवल 100 % अंग्रेजी में हैं
आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी.

भवदीय 
प्रवीण जैन 
वाशी, नवी मुम्बई - ४००७०३
ईमेल: cs.praveenjain@gmail.com