अनुवाद

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

शेयरबाजार में पैसा लगाने वाले ज़रा ध्यान दें !!!

प्रति: 
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प्रति,
श्री मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री 
भारत सरकार 
नई दिल्ली

विषय: कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा राजभाषा की घोर उपेक्षा, अंग्रेजी को थोपना और संविधान के अनुच्छेद 351 की अवहेलना

महोदय,

कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा राजभाषा की घोर उपेक्षा की जा रही है, जबरन अंग्रेजी को थोपना जारी है और इस तरह संविधान के अनुच्छेद 351 की अवहेलना भी हो रही है आपसे विनम्र अनुरोध है कि शीघ्र कठोर कार्यवाही करें.

मेरी शिकायत के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा एमसीए 21 जो २००६ में आरंभ हुआ था उसकी वेबसाइट अब तक हिंदी में नहीं बनाई है. इस वेबसाइट पर कोई भी जानकारी हिंदी में नहीं दी गई.
  2. एमसीए 21 का प्रतीक-चिह्न आज तक अंग्रेजी में है और उसमें हिंदी को शामिल नहीं किया गया.
  3. मंत्रालय की मुख्य वेबसाइट के हिंदी संस्करण में अंग्रेजी की जानकारी ही भरी पड़ी है नियम,कानून एवं अधिनियम भी केवल अंग्रेजी में डाले गए हैं.
  4. मंत्रालय की मुख्य वेबसाइट के हिंदी संस्करण को अंग्रेजी से पीछे रखा गया है और हमेशा अंग्रेजी वेबसाइट ही खुलती है इसतरह मंत्रालय ने राजभाषा के बदले अंग्रेजी को प्राथमिकता दी है और संविधान के अनुच्छेद 351 की अवहेलना की है साथ ही 1992  के उस निर्देश का भी खुला उल्लंघन किया है जिसमें कहा गया है कि जहाँ कहीं भी हिंदी-अंग्रेजी का एकसाथ इस्तेमाल होगा उसमें हिंदी को अंग्रेजी से पहले/आगे और ऊपर इस्तेमाल किया जाएगा.
  5. नया कंपनी अधिनियम २०१३ अभी तक हिंदी में अधिसूचित नहीं किया गया.
  6. नए कम्पनी अधिनियम के लिए बनाए जा रहे सारे नियम भी केवल अंग्रेजी में ही जारी किए जा रहे हैं और उन पर जनता के सुझाव माँगे गए हैं और ऑनलाइन सुझाव जमा करने की सुविधा भी केवल अंग्रेजी में दी गई जिससे मंत्रालय ने देश के करोड़ों लोग जो हिंदी में सुझाव दे सकते थे उन्हें इस प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित किया गया.
  7. कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा एमसीए 21 से सम्बन्धी सभी कार्यालयीन आदेश, ज्ञापन, अधिसूचना, परिपत्र, नियम, दिशानिर्देश, निविदा-सूचना, भारती-सूचना, टीसीएस एवं इनफ़ोसिस के साथ हुए करार केवल और केवल अंग्रेजी में करके राजभाषा अधिनियम का खुला उल्लंघन किया जा रहा है. आज तक कोई भी परिपत्र, नियम, दिशानिर्देश  द्विभाषी रूप में नहीं देखा गया.
  8. निदेशक पहचान संख्या (डिन), कंपनी/ एलएलपी के नाम उपलब्धता से संबंधित पत्र, पेशेवरों को मंत्रालय द्वारा भेजे जाने वाले पत्र/ईमेल/ फाइलिंग के एसएमएस अलर्ट, एलएलपी के निगमन प्रमाणपत्र आदि सभी केवल अंग्रेजी में जारी किए जा रहे हैं. मंत्रालय ने आज तक इनको द्विभाषी बनाने की दिशा में कोई काम नहीं किया जबकि ये सभी पूर्व-निर्धारित ड्राफ्ट में भेजे जाते हैं उनमें व्यक्ति/संस्था काम पता बस बदल जाता है बाकी मैटर एकसमान होता है.
  9. एमसीए 21 के सभी ई- फॉर्म अनिवार्य रूप से अंग्रेजी में ही तैयार किए गए हैं. 
  10. कुछ ई-फॉर्म में हिंदी चुनने का विकल्प दिया है और अंग्रेजी पूर्व-निर्धारित भाषा के रूप में सेट की गई है, यह सब केवल दिखावे के लिए किया गया है जबकि इ-फॉर्म है तो इसे पूर्ण रूप से द्विभाषी होना चाहिए जिसमें सभी प्रविष्टियाँ दोनों भाषाओं में एकसाथ प्रदर्शित हों, जब छपे हुए फॉर्म द्विभाषी हो सकते है तो ई-फॉर्म के द्विभाषी होने में क्या अड़चन है.
  11. इन इ-फॉर्म को भरने के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य किया गया है, आज़ादी के ६५ साल बाद भी लोगों को क्या भारत में फॉर्म को हिंदी की सुविधा नहीं मिलेगी और अंग्रेजी का वर्चस्व कायम रहेगा? महाराष्ट्र राज्य का एक विभाग जब अपने नागरिकों को मराठी में ई-फॉर्म भरने के सुविधा दे सकता है तो भारत सरकार अपनी राजभाषा से क्यों रूठी हुई है.
  12. मंत्रालय ने निदेशकों अथवा प्रवर्तकों  द्वारा दिए जाने वाले (निदेशक पहचान संख्या (डिन) एवं कम्पनी निगमन हेतु) शपथ-पत्र, घोषणा-पत्र के प्रारूप भी केवल अंग्रेजी में ही जारी किए हैं ताकि कोई भी उन्हें हिंदी अथवा द्विभाषी रूप में फ़ाइल ना कर सके.
  13. कम्पनी निगमन हेतु पार्षद सीमानियम अथवा संगम ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ़ असोसिएशन), पार्षद अंतर्नियम अथवा संगम अनुच्छेद(आर्टिकल्स ऑफ़ असोसिएशन) के मसौदे केवल अंग्रेजी में ही फाइल किए जा सकते हैं, मंत्रालय हिंदी में लिखे प्रपत्र  स्वीकार नहीं नहीं करता.
  14. नए कंपनी अधिनियम में भी जहाँ -२ भाषा के इस्तेमाल की बात आई है वहाँ -२ केवल अंग्रेजी को वरीयता/प्राथमिकता दी गई है और संबंधित प्रावधानों में कंपनियों को अंग्रेजी एवं स्थानीय भाषा के अख़बारों में अंग्रेजी विज्ञापन छपवाने के लिए अनिवार्य नियम बनाए गए हैं जबकि आज पूरे देश से हिंदी के अखबार प्रकाशित होते हैं पर हिंदी एवं हिंदी अखबार की चर्चा भी नहीं की गई.यह केवल अंग्रेजी अखबारों को फायदा पहुँचाने और अंग्रेजी को बढ़ावा देने के लिए किया गया लगता है, बेहतर होता कि विज्ञापनों को हिंदी एवं स्थानीय भाषा में तैयार करके हिंदी-स्थानीय भाषा अखबारों में छापने का निर्देश दिया जाता ताकि आम जनता को कम्पनी जगत के बारे में जागरुक किया जा सके. अंग्रेजी के दम पर कम्पनियाँ अपने ग्राहकों और निवेशकों का अहित करती हैं उनका शोषण करती हैं. (अनुलग्नक देखें)
  15. कम्पनी विधि बोर्ड एवं भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग भी हिंदी में कोई काम नहीं करते  हैं और वेबसाइट भी केवल अंग्रेजी में बनाई गई है.
  16. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का प्रतीक-चिह्न भी राजभाषा नियमों का उल्लंघन करते हुए केवल अंग्रेजी में बनाया गया है.
  17. मंत्रालय द्वारा आयोजित कार्यक्रमों/ बैठकों की कार्यवाही केवल अंग्रेजी में होती है, भाषण अंग्रेजी में होते हैं, बैनर-पोस्टर अंग्रेजी में छपवाए जाते हैं और पठन सामग्री भी केवल अंग्रेजी में तैयार की जाती है.
  18. पिछले कई वर्षों में मंत्रालय द्वारा एक भी विज्ञप्ति हिंदी में जारी की गई हो ऐसा देखने में नहीं आया.
  19. मंत्रालय द्वारा एमसीए 21 पर शिकायत/सुझाव और प्रतिक्रिया के लिए ऑनलाइन फॉर्म केवल अंग्रेजी में तैयार करवाए हैं और उनमें हिन्दी में शिकायत/सुझाव और प्रतिक्रिया देने की सुविधा नहीं दी गई है जिससे देश के करोड़ों लोग जो अंग्रेजी नहीं जानते हैं वे इस सेवा का लाभ लेने से वंचित हैं.
  20. मंत्रालय के अधीनस्थ कई कार्यालयों (जिसमें प्रमुख हैं कंपनी समापक, नेशनल फ़ौंडेशन फॉर कॉर्पोरेट गवर्नेंस, निवेशक शिक्षा एवं संरक्षण कोष आदि) की वेबसाइट भी केवल अंग्रेजी में बनाई गई हैं.                                                                                                                          
 मंत्रालय के उक्त व्यवहार से लगता है कि मंत्रालय कॉर्पोरेट जगत में अंग्रेजी का वर्चस्व हमेशा कायम रखना चाहता है.

आप से विनम्र अनुरोध है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए कड़े कदम उठाएं और मंत्रालय द्वारा जहाँ-२ अंग्रेजी को अनिवार्य बनाया गया है उस अनिवार्यता को समाप्त करवाया जाए.

मंत्रालय को कहा जाए कि हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा दे और धारा ३ के अंतर्गत सभी दस्तावेज अनिवार्य रूप से द्विभाषी रूप में जारी हों एवं मंत्रालय द्वारा जारी होने वाले अंग्रेजी दस्तावेजों पर रोक लगाई जाए.सभी ऑनलाइन सेवाएँ अनिवार्य रूप से हिंदी में उपलब्ध करवाई जाएँ.



देश में आम जनता को आम जनता की भाषा में जानकारी मिलेगी तभी सच्चा लोकतंत्र स्थापित होगा, उनके हितों की रक्षा होगी, कंपनियों के कामकाज में पारदर्शिता आएगी, निवेशकों के हितों को संरक्षण मिलेगा.


माननीय प्रधानमंत्री जी, 

हमारा देश भारत है और हमारी राजभाषा हिंदी है फिर भारत सरकार सारे कामकाज अंग्रेजी में क्यों करती है? आजादी के ६५ वर्षों बाद भी अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है. लोकतंत्र में लोकभाषा को पीछे क्यों धकेला जा रहा है?

आशा करता हूँ शिकायत पर नागरिक चार्टर में निर्धारित समयावधि के अनुसार कार्यवाही होगी.

भवदीय 
प्रवीण कुमार