प्राप्तकर्ता: rrsingh@rbi.org.in
दिनांक : १७ अक्तूबर २०१३
प्रति,
श्री आर.आर. सिंह,
उप महाप्रबंधक
भारतीय रिज़र्व बैंक
मुम्बई
विषय: भारत में बैंक ग्राहकों को अपनी भाषा में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया जाए, अंग्रेजी थोपना बंद किया जाए .
माननीय महोदय,
मेरे पास स्टेट बैंक का वीज़ा रेलवे क्रेडिट कार्ड जिसका नंबर 4317 **** **** 8182 है. मैं काफी दिन से कंपनी से निवेदन कर रहा हूँ कि मुझे कार्ड के मासिक विवरण एवं अन्य पत्राचार हिंदी में भेजा जाए पर बैंक ने साफ़ मना कर दिया है, उनका कहना है कि हम मासिक विवरण, वेबसाइट एवं अन्य पत्राचार की सुविधा हिंदी में नहीं दे सकते. आपको अंग्रेजी नहीं आती है तो ये आपकी समस्या है, उक्त दस्तावेज हिंदी में उपलब्ध करवाने का कोई क़ानूनी नियम नहीं है.
कंपनी के अधिकारी का १३ अगस्त २०१३ को दोप. को आया था. उनका कहना है कि ऐसी कोई सुविधा हम आपको नहीं दे सकते. आपको जिससे भी शिकायत करनी हो कर लीजिए.
देश में अच्छी अंग्रेजी जानने वाले केवल ३% लोग हैं यानी लगभग ४ करोड़, कामचलाऊ अंग्रेजी जानने वाले ६-७ करोड़ यानी बचे बाकी एक सौ पंद्रह करोड़ लोग. जनगणना २०११ के अनुसार देश में हिंदी को अच्छे से जानने वाले ७० करोड़ से भी ज्यादा हैं (जिसमें ५७ करोड़ की तो मातृभाषा हिंदी है). यह ईमेल मैं देश के उन करोड़ों नागरिकों की ओर से लिख रहा हूँ जो अंग्रेजी नहीं जानते पर बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करना चाहते हैं. सभी बैंकिंग कामकाज अंग्रेजी में होने से करोड़ों लोग या तो इन सेवाओं से दूर हैं अथवा उनका शोषण हो रहा है क्योंकि उन्हें अपनी भाषा में जानकारी नहीं दी जा रही है.
आपसे आग्रह है कि व्यापक जनहित में सभी सरकारी और निजी बैंको को निर्देश दें कि ग्राहकों को सभी बैंक अथवा कार्ड विवरण, पासबुक, नेटबैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, पत्राचार आदि अनिवार्य रूप से ग्राहक की चुनी हुई भारतीय भाषा अथवा द्विभाषी रूप में भेजे जाएँ. अहिन्दी भाषी राज्यों में लोगों को अपनी भाषा में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया जाए.
वर्ष २००८ में संसदीय राजभाषा समिति की संस्तुति पर मा. राष्ट्रपति महोदय ने भी सभी सार्वजनिक बैंकों को आदेश जारी किया था कि बैंक विवरण अथवा क्रेडिट/डेबिट कार्ड विवरण,पासबुक, नेटबैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, पत्राचार आदि की सुविधा अनिवार्य रूप से द्विभाषी रूप (हिंदी-अंग्रेजी ) में उपलब्ध करवाई जाए पर आज तक किसी भी सरकारी बैंक ने ग्राहकों के हित में ऐसी कोई भी सुविधा हिंदी में देना प्रारंभ नहीं किया है. इस आदेश को ५ वर्ष बीत गए हैं.
सभी बैंक और क्रेडिट कार्ड अंग्रेजी में लिखी ऊल जलूल शर्तों के दम पर आम ग्राहकों को लूट रहे हैं.
विनम्रता के साथ आप से निवेदित है :
· बैंक द्वारा ग्राहक को उसकी भाषा में जानकारी ना देना, ग्राहक के अधिकारों का खुला उल्लंघन हैं. क्या रिज़र्व बैंक भारत के उन तीन प्रतिशत लोगों के हित की रक्षा करता जो अंग्रेजी जानते हैं? क्या हिंदी अथवा अन्य भारतीय भाषा जानने वाले ग्राहकों के कोई अधिकार नहीं है?
· क्या भारत सरकार केवल 'अंग्रेजी' जानने वालों की सुनवाई करती है, जो भारत सरकार ने आज तक बैंक ग्राहकों के व्यापक हित में ग्राहक की भाषा में जानकारी देने का कोई नियम नहीं बनाया? ये अन्याय कब तक चलेगा?
· क्या भारत की आम जनता पर इसी तरह अंग्रेजी थोपी जाती रहेगी और बैंको के हाथ में अंग्रेजी आम जनता के शोषण का महत्वपूर्ण औजार बनी रहेगी?
· क्योंकि जब तक ग्राहक बैंकों के कार्ड/खाते/ऋण करार की शर्तें ना तो पढ़ सकेगा और ना ही समझ सकेगा ऐसे में वह ग्राहक कभी भी इनके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा सकेगा. यदि जानकारी एवं शर्तें उसे हिंदी अथवा उसकी अपनी भाषा में मिलने लगेंगी तो वह सवाल जवाब करने लगेगा, जो कि बैंकों को मजूर नहीं. सब कुछ अंग्रेजी में देते रहो, ग्राहक कभी आवाज़ नहीं उठा सकेगा और पिसता रहेगा, बैंक मजे करते रहेंगे.
· क्या ग्राहक को उसकी भाषा में जानकारी ना देना, "ग्राहक सेवा में कमी" का मामला नहीं है?
· बैंकों के लिए ग्राहक सेवा और ग्राहक देखभाल का कोई अर्थ भी है या ये सिर्फ ब्रांड इक्विटी अवार्ड जीतने का जुमला भर है?
आपसे शीघ्र कार्यवाही की अपेक्षा.
निवेदक
भारत का आम नागरिक
प्रवीण जैन