अनुवाद

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

प्रधानमन्त्री जी बैठक तो बुलवाइए ?


दिनांक: 10 फरवरी 2014 

प्रति,
डॉ श्री मनमोहन सिंह 
माननीय प्रधानमंत्री जी, भारत सरकार
एवं 
अध्यक्ष, केन्द्रीय हिंदी समिति 
प्रधानमंत्री कार्यालय,
दक्षिणी खंड (साउथ ब्लाक),
नई दिल्ली -110011

विषय: केन्द्रीय हिन्दी समिति की बैठक अविलम्ब बुलाए जाने हेतु अनुरोध 

माननीय महोदय, 

प्रधानमंत्री जी! आप भी भारत की जनता को समझ नहीं सके और इन दस सालों में लोगों पर अंग्रेजी को बुरी तरह थोपा गया इसलिए आपकी योजनाओं का लाभ जनता को नहीं मिला। जब नागरिक को योजना की जानकारी उसकी भाषा में नहीं मिलती, वह चाहकर भी योजना का लाभ नहीं उठा पाता। आपने (सरकार ने) हिन्दी में नहीं बताया तो समझ लीजिए आपने कुछ भी नहीं बताया; आपकी एवं सरकार की सारी मेहनत बेकार चली जाएगी।

आपकी सरकार ने राजभाषा अधिनियम एवं संबंधित प्रावधानों के पालन के लिए पिछले दस वर्षों में एक भी ठोस कदम नहीं उठाया, स्थिति तो इतनी बुरी है आपके कार्यालय (प्रधानमंत्री कार्यालय) से आम नागरिकों के हिन्दी में लिखे पत्रों और आवेदनों के जवाब अंग्रेजी भेजे जाते हैं, फिर कुछेक बार कई दिनों बाद उसका हिंदी अनुवाद नागरिक को भेजा जाता है, यानी सरकारी धन और समय का इसमें दुरूपयोग होता है, जो अधिकारी हिन्दी पत्र अथवा आवेदन को पढ़कर समझकर उसका जवाब अंग्रेजी में लिख सकता है वही सीधे उसका जवाब हिन्दी में भी दे सकता है, जिससे समय और डाक-व्यय की बचत होगी. आपके कार्यालय में रबर की मुहरें तक केवल अंग्रेजी में बनी इस्तेमाल की जा रही हैं, हर काम में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जा रही है, 1999 में आपके कार्यालय से ही द्विभाषी वेबसाइट बनाने का आदेश जारी हुआ और आपके कार्यालय की खुद की वेबसाइट का हिन्दी संस्करण 201२ में शुरू हुआ,  जब आपके अर्थात केन्द्रीय हिंदी समिति के अध्यक्ष के कार्यालय में हिन्दी का यह हाल हो तो फिर सरकार के अन्य मंत्रालयों से जनता क्या उम्मीद कर सकती है? इतने अनिवार्य नियमों का उल्लंघन किस बात को दर्शाता है, यही कि सरकार राजभाषा के प्रति एकदम उदासीन है और उसे केवल अंग्रेजी में काम करना है, जनता को अंग्रेजी नहीं आती तो यह जनता की अपनी समस्या है, सरकार को इस बात से कोई सरोकार नहीं. आपके कार्यालय जैसी स्थिति अन्य मंत्रालयों की भी है. 

भारत सरकार राजभाषा अधिनियम एवं संबंधित प्रावधानों के पालन के लिए ना तो चिंतित है, ना ही उसे इस बात की चिंता है कि आम नागरिकों को अंग्रेजी में दी जाने वाली सुविधाएँ और जानकारियाँ केवल देश के २-४ प्रतिशत लोगों के काम आती हैं बाकी नागरिकों के किसी काम नहीं आती. सरकार को केवल चिंता है तो अंग्रेजी की और अंग्रेजी जानने वाले मुठ्ठी पर नागरिकों की, ऐसा होने से आम नागरिक की पहुँच सरकार तक ना हो पाई है और आगे भी नहीं होगी. 

सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को भी अंग्रेजी आसान है क्योंकि अंग्रेजी में कामकाज होने से नागरिक ज्यादा सवाल-जवाब नहीं कर सकते, जब कुछ जानेंगे नहीं तो सवाल कैसे करेंगे? दुनिया में जितने भी विकसित देश हैं वे सब अपनी भाषा के दम पर विकसित हुए हैं, फ़्रांस, चीन, जापान, कोरिया, स्पेन, जर्मनी आदि अनेक उदाहरण हैं. जनभाषा में कामकाज होने से लोकतंत्र में जनता की भागीदारी अपने-आप बढ़ जाती है और देश विकास के पथ पर तेजी से बढ़ता है जबकि भारत में इसका उल्टा है. सरकार में बैठे लोग कभी नहीं चाहते कि सरकारी कामकाज हिन्दी में हो. पिछले सडसठ सालों से राजभाषा के नाम पर केवल औपचारिकता की पूर्ति की गई है इसलिए देश अब भी अंग्रेजी का ही दास बना हुआ है और आज भी पिछड़े देशों में गिना जाता है. दुनिया में चीन-जापान जैसे देश हैं जो अपनी भाषा के दम पर बेहतर जन भागीदारी के दम पर आगे-ही आगे बढ़ रहे हैं और भारत अपनी भाषाओं की जड़ों को खोदकर आने वाली पीढ़ियों को पंगु बना रहा है. सरकार में बैठे लोगों ने अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त की है इसलिए उनको लगता है कि अंग्रेजी ही विकास की वाहक है और वे हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं को पिछड़ेपन की निशानी मानते हैं वर्ना क्या कारण है कि राजभाषा का पालन नहीं होता?

आप एक बार राजभाषा विभाग को मिलने वाली शिकायतों की रिपोर्ट देख लीजिए, आपको हँसी आ जाएगी कि ये क्या बेहूदगी है? लोग सडसठ साल बाद भी हिंदी में लिखे पत्र अथवा आरटीआई आवेदन का जवाब हिन्दी में ना मिलने पर राजभाषा विभाग को शिकायत करते हैं, अनुस्मारक भेजते हैं. जिस अधिकारी ने अंग्रेजी में जवाब लिखा, उसे राजभाषा विभाग का पत्र मिलता है, पर वो अधिकारी ध्यान ही नहीं देता अथवा उसे कूड़ेदान में डाल देता है क्योंकि उस अधिकारी को किसी का डर नहीं, कानून में दंड का कोई प्रावधान नहीं है!!! यह सचमुच बहुत शर्मनाक स्थिति है कि माँगने पर भी नागरिकों को उनकी भाषा में जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जाती.

केंद्रीय हिंदी समिति की पिछली बैठक 28 जुलाई 2011 को हुई थी इसलिए आपसे अनुरोध है केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक तुरंत बुलवाइए, जो ढाई वर्षों से नहीं हुई है। 

आपके द्वारा शीघ्र कार्यवाही अपेक्षित है.


भवदीय

प्रतिलिपि:
  1. राज्य मंत्री, गृह मंत्रालय 
  2. सचिव, राजभाषा विभाग 
  3. संयुक्त सचिव, राजभाषा विभाग 
  4. निदेशक (शिका/नी), राजभाषा विभाग 
  5. संसदीय राजभाषा समिति 
  6. नेता प्रतिपक्ष - राज्यसभा एवं लोकसभा 
  7. प्रमुख राजनीतिक दल 
  8. प्रमुख समाचार, मीडिया समूह 
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