अनुवाद

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

कौन हैं श्यामरुद्र पाठक : क्यों माँग रहे तमिल भाषा में न्याय

रिहा होते ही पाठक पहुंच जाते हैं सत्याग्रह करने 10 जनपथ 

नई दिल्ली। १ अप्रैल २०१३ 
आईआईटी की भाषा को बदल चुके श्याम रुद्र पाठक अब कानून की भाषा को बदलने के लिए सत्याग्रह कर रहे हैं। कोर्ट की भाषा देश की भाषा हो, इसके लिए वे 4 दिसंबर २०१२ से लगातार यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ के सामने धरना देने पहुंचते हैं, जहां से तुगलक रोड थाने की पुलिस उन्हें हिरासत में लेकर थाने पहुंचा देती है। इस प्रकार ११४ दिन से पुलिस पाठक को हिरासत में ले रही है और 23 घंटे बाद रिहा कर दे रही है। रिहा होने के बाद वे फिर लौटकर 10 जनपथ धरना देने पहुंच जा रहे हैं। श्याम रुद्र पाठक वह शख्सियत हैं जिन्होंने दिल्ली आईआईटी में अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट हिन्दी भाषा में लिखी थी, जिसे संस्थान द्वारा स्वीकार नहीं किया जा रहा था। 

भगवत झा आजाद द्वारा यह मामला संसद में उठाया गया। इसके बाद पाठक की प्रोजेक्ट रिपोर्ट स्वीकार की गयी और आईआईटी में अंग्रेजी के अलावा हिन्दी भाषा में भी प्रोजेक्ट रिपार्ट लिखने का कानूनी हक छात्रों को मिल गया। पाठक के आंदोलन की देन है कि आईआईटी की प्रवेश परीक्षा या प्रश्नपत्र से अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता खत्म हो गई और वर्ष 1990 से अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी भाषा में भी प्रश्नपत्र जारी होने लगा। अभियांत्रिकी में अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता को खत्म करा चुके पाठक अब कानून की भाषा को बदलने के लिए सत्याग्रह कर रहे हैं। 

अपने दो साथियों विनोद कुमार पांडेय और गीता मिश्रा के साथ तुगलक रोड थाने से रिहा होने के बाद सोनिया गांधी के निवास, 10 जनपथ धरना देने पहुंचने पर श्याम रुद्र पाठक को हर दिन पुलिस ने हिरासत में ले लेती है । औपचारिक बातचीत के दौरान पाठक ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-348 में न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है। 

वे न्यायालय की भाषा अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कराने के लिए सत्याग्रह कर रहे हैं और सरकार से संविधान में संशोधन की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं को अदालती कामकाज की भाषा बनाया जाए। जिससे वकीलों को अपनी भाषा में जिरह करने की छूट मिल सके और मुवक्किल को भी निर्णय की प्रति उसकी भाषा में मिल सके। ध्यातव्य है कि सत्याग्रह शुरू करने से पहले श्याम रुद्र पाठक तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा अध्यक्ष, भाजपा अध्यक्ष समेत 30 जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर इस हेतु अवगत करा चुके हैं। 

21 सितम्बर २०१२ को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आस्कर फर्नांडीस ने श्री पाठक को फोन कर बातचीत के लिए कांग्रेस मुख्यालय बुलाया था। इसके बाद 23 से 30 अक्टूबर के बीच पांच दौर की बातचीत कांग्रेस मुख्यालय में हुई। इस दौरान आस्कर ने बताया कि उन्होंने सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंप दी है। इसके अलावा तत्कालीन विधिमंत्री सलमान खुर्शीद को भी रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है।

बहरहाल कैबिनेट में संविधान संशोधन के लिए विधेयक लाया जाएगा या नहीं, इसको लेकर कोई आश्वासन नहीं मिला। पाठक ने फिर 14 नवम्बर को सोनिया गांधी को पत्र लिखकर ध्यान आकर्षित किया। लेकिन जवाब नहीं मिलने पर 28 नवम्बर को उन्होंने पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा आला नेताओं को पत्र लिखकर 4 दिसंबर २०१२ से सत्याग्रह करने का ऐलान कर दिया। न्याय एवं विकास अभियान संस्था के बैनर तले 4 दिसंबर २०१२ से वह लगातार अपने दो साथियों के साथ सोनिया गांधी के निवास के सामने धरना देने पहुंचते हैं और तुगलक रोड थाने की पुलिस उन्हें हिरासत में ले लेती है। महिला होने के नाते गीता मिश्रा को देर रात पुलिस अपनी जिप्सी में बैठाकर उनके घर छोड़ देती है और वह सुबह होते ही तुगलक रोड थाने आ जाती हैं।

चूंकि 24 घंटे तक पुलिस उन्हें कानूनी तौर पर थाने में नहीं रख सकती, लिहाजा 23 घंटे बाद रिहा कर दिया जाता है। मात्र तीन सत्याग्रही होने के नाते धारा 144 का उल्लंघन भी नहीं हो रहा है। ऐसे में पुलिस गिरफ्तार भी नहीं कर पा रही है। पाठक ने कहा कि उनका सत्याग्रह तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार ठोस आश्वासन नहीं दे देती। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी हमारे ऊपर शासन करने वाले विदेशियों की भाषा है। अभिजात्य वर्ग की इस भाषा को खत्म करने के लिए उनका सत्याग्रह चलता रहेगा।