९ जुलाई २०१४ को पुणे में एक अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में मराठी बोलने पर छात्रों को दी गई अमानवीय शारीरिक और मानसिक यंत्रणा संबंधी निंदनीय घटना के समाचार-पत्रों में छपी खबरों प्रतियाँ अवलोकनार्थ संलग्न हैं।
इस तरह की छोटी-मोटी घटनाओं को हमारे समाचार-चैनलों/मीडिया में जगह नहीं मिलती और स्थानीय समाचार-पत्रों का दायरा सीमित होता है, इस कारण हो सकता है बहुतों को इसकी ख़बर न हो, पर देश के विभिन्न भागों में ऐसी शर्मनाक घटनाएँ घट रही हैं ।
मामला बढ़ता देख विद्यालय प्रशासन द्वारा इस पाशविक पिटाई के संदर्भ में अन्य कारण बता कर और छात्रों को ही बिगड़ा हुआ व अनुशासनहीन बता कर, मामले को दूसरी दिशा में मोड़ने और स्वयं को ठीक साबित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, जिसका उल्लेख व संकेत समाचार-पत्रों में भी है।
आइए, हम सभी (शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार-समर्थक और भारतीय-भाषा-प्रेमी) मिलजुल
कर निंदा-निंदा का खेल खेलें और अगली किसी बड़ी घटना की प्रतीक्षा करें। (क्योंकि पिछले 60 वर्षों से हम यही तो करते आए हैं)
इस तरह की छोटी-मोटी घटनाओं को हमारे समाचार-चैनलों/मीडिया में जगह नहीं मिलती और स्थानीय समाचार-पत्रों का दायरा सीमित होता है, इस कारण हो सकता है बहुतों को इसकी ख़बर न हो, पर देश के विभिन्न भागों में ऐसी शर्मनाक घटनाएँ घट रही हैं ।
मामला बढ़ता देख विद्यालय प्रशासन द्वारा इस पाशविक पिटाई के संदर्भ में अन्य कारण बता कर और छात्रों को ही बिगड़ा हुआ व अनुशासनहीन बता कर, मामले को दूसरी दिशा में मोड़ने और स्वयं को ठीक साबित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, जिसका उल्लेख व संकेत समाचार-पत्रों में भी है।
आइए, हम सभी (शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार-समर्थक और भारतीय-भाषा-प्रेमी) मिलजुल
सौजन्य: लोचन मखीजा, पुणे, महाराष्ट्र
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