रुड़की: अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौस) रुड़की में पढ़ने वाले विदेशी छात्र भी हिन्दी पढ़ेंगे। विदेशी छात्र हिन्दी को बोलचाल की भाषा बनाएंगे। अफ्रीकी देशों के कई छात्र विभिन्न पाठ्यक्रमों में पढ़ाई के लिए रुड़की भाप्रौस में दाखिला लेते हैं। इस दौरान विदेशी छात्र पढ़ाई के साथ ही बोलचाल में अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग करते हैं, जिसके चलते भारतीय छात्रों से अधिक मेलमिलाप नहीं हो पाता है। सबसे अधिक परेशानी विदेशी छात्र-छात्राओं को बाजार में खरीदारी के दौरान आती है। खासकर किताबें खरीदना, बस में सफर करना हो या फिर खानपान की चीजें खरीदनी हों तो अंग्रेजी न समझने के कारण दुकानदार को भी दिक्कतें पेश आती हैं। ऐसे में भाप्रौस रुड़की प्रबंधन ने निर्णय लिया है कि अब विदेशी छात्रों को भी हिन्दी पढ़ायी जाएगी।
भाप्रौस हिन्दी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. नागेंद्र ने बताया कि विदेशों में डिग्री लेने के लिए जाने से पहले वहां की भाषा सीखनी पड़ती है। इसी तरह भाप्रौस में दाखिला लेने वाले विदेशी छात्रों को भी हिन्दी पढ़ाई जाएगी। इससे विदेशी छात्र भारतीय संस्कृति, साहित्य को जानेंगे व समझेंगे। कई छात्र सिविल इंजीनियरी के क्षेत्र में पढ़ाई व शोध कर रहे हैं और हिन्दी में कुछ किताबें बेहतर हैं तो उसे पढ़ने के लिए हिन्दी को जानना आवश्यक है। इससे ज्ञान भी बढ़ेगा। साथ ही स्थानीय क्षेत्रों में बोलचाल की भाषा हिन्दी है, लेकिन दुकानदारों को अंग्रेजी नहीं आती है। हिन्दी जानने से आसानी से विदेशी छात्र खरीददारी कर सकेंगे। शुक्रवार व शनिवार को भाप्रौस में कक्षाएं लगेंगी, जिसमें भाप्रौस प्रोफेसर के अलावा अतिथि शिक्षक भी बुलाए जाएँगे । छह महीने से अधिक समय भाप्रौस में रहने वाले विदेशी छात्रों को हिन्दी सीखना अनिवार्य होगा।
इन देशों के आते हैं छात्र
भाप्रौस हिन्दी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. नागेंद्र ने बताया कि भाप्रौस में युगांडा, तंजानिया, जर्मनी, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मलेशिया आदि देशों के छात्र पढ़ाई व शोध के लिए आते हैं। इनकी संख्या करीब साठ है।
हिन्दी सिखाने का यह भी है प्रमुख कारण
जानकारों की मानें तो अगर भारतीय छात्र को जर्मनी में पढ़ाई एवं प्रोफेसर को शोध व डिग्री के लिए विदेश जाना पड़ता है तो वहां की भाषा अनिवार्य रूप से सीखनी पड़ती है, जबकि भारत में ऐसा नहीं था। ऐसे में अब भाप्रौस प्रबंधन ने भी हिन्दी को अनिवार्य कर दिया है।
सौजन्य- जागरण
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