भारत में कम्पनी जगत और अमीर कारोबारी भले ही हमारी भाषा के प्रति दोयम
दर्जे का व्यवहार करते हों पर विदेशियों की दृष्टि में यह भाषा भारतीय लोगों के
प्रति अपनत्व दिखाने का प्रमुख माध्यम है।
अमेरिकी
विदेश मंत्री जॉन केरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी नारे 'सबका साथ सबका विकास' का उल्लेख पिछले सप्ताह हुई
वॉशिंगटन के एक विचारशील समूह की एक महत्वपूर्ण बैठक में
किया था।
अमेरिकी निजी इक्विटी निवेश संस्था “डब्ल्यूएल रॉस” के निदेशक डेविड वैक्स अपने कारोबारी लेनदेनों के सिलसिले में कई बार भारत आ चुके
हैं। पिछले सप्ताह अपनी ताज़ा भारत यात्रा में वैक्स ने अपने आगंतुक-पत्र में एक ओर
अपना परिचय हिन्दी में छपवाया परन्तु आप किसी भी भारतीय कंपनी के अधिकारी के
आगंतुक-पत्र पर हिन्दी की कल्पना भी नहीं कर सकते, अंग्रेजी उनके रुतबे की प्रतीक
बनी हुई है; वैक्स भारत में कठिनाई से गुजर रही कंपनियों में निवेश करना चाहते
हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी का यह प्रयोग छोटा, परन्तु
महत्वपूर्ण संकेत है। वैक्स ने बताया, 'इसका उद्देश्य भारतीय
लोगों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता को प्रकट करना था।'
इसी
प्रकार जर्मन विमानन सेवा “लुफ्थांसा” का टीवी विज्ञापन भारतीय यात्रियों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने का प्रयास करता है। कंपनी
ने पहली बार केवल भारत के लिए विज्ञापन तैयार किया है और इस विज्ञापन में उड़ान के
दौरान भारतीय भोजन और फिल्मों को दिखाया गया है। लुफ्थांसा
की प्रबन्धक (विपणन एवं संचार) संगीता शर्मा ने बताया,
'एक ब्रांड के तौर पर हम काफी समय से भारत में हैं...हालांकि,
इस बार हम भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न करना चाहते थे।'
दिल्ली
में कई दूतावासों ने कर्मियों को हिन्दी कक्षाओं में प्रवेश दिलवाया है। ऐसे विद्यार्थियों के अतिरिक्त कंपनियों के शोधकर्ताओं
की ओर से भी हिन्दी भाषा सीखने की मांग
दिख रही है। हिन्दी गुरु लैंग्वेजेस
इंस्टीट्यूट के संस्थापक चंद्रभूषण पांडे के अनुसार, नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद पश्चिमी देशों और यहां तक कि
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के लोगों ने भी भारत
में हिन्दी के बढ़ते महत्त्व के बारे में बात करना शुरू किया है। पांडे ने बताया,
'चीन के कई लोगों ने हाल में मुझसे संपर्क कर कहा कि वे हिन्दी में उन्नत पाठ्यक्रम करना चाहते हैं, क्योंकि इससे उन्हें व्यावसायिक और कूटनीतिक रिश्ते बेहतर बनाने में मदद
मिलेगी।' पांडे अभी मित्सुबिशी और मित्सुई जैसी कंपनियों में
काम करने वाले लोगों को हिन्दी सिखा रहे
हैं। उन्होंने बताया, 'गर्मी छुट्टी समाप्त होने और लोगों के
छुट्टियों से वापस आने के बाद हिन्दी सीखने से जुड़ी पूछताछ काफी आ रही है।'
जानकारों
का कहना है कि ‘देश की भाषा में बात करना और उसकी संस्कृति का सम्मान’, न केवल दोस्ती
दिखाने का तरीका है,
बल्कि इसका उद्देश्य सामाजिक, राजनीतिक और व्यावसायिक
मोर्चों पर संबंधित देश से सक्रिय जुड़ाव है । भारतीय प्रबन्ध संस्थान (भाप्रस- आईआईएम)
अहमदाबाद के प्राध्यापक अब्राहम के कहते हैं, 'अंतरराष्ट्रीय
पहचान बनाने के बजाय स्थानीय लोगों से जुड़ना अधिक महत्वपूर्ण है।' इसलिए, जब जर्मन पर्यटन संस्थान अपनी पेशेवर सामग्री लगभग 10 भारतीय भाषाओं में जारी करता है, तो इसमें बिल्कुल
भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
सौजन्य:
श्री विजय कुमार मल्होत्रा
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