अनुवाद

बुधवार, 27 अगस्त 2014

भारत में अंग्रेजी की अनिवार्यता कब समाप्त होगी?

मुकेश कुमार जैन आईआईटी के ऐसे विद्यार्थी हैंजो आपकी मुख्यधारा की आकांक्षाओं में बिल्कुल समाविष्ट नहीं होंगे। इनके अपने सपने भी हैं। सिविल सेवा परीक्षाओं में नयी सी-सैट पद्धति के विरोध की आंधी के पीछे आईआईटी रुड़की से स्नातक 52 साल के जैन का भी हाथ है। वह अखिल भारतीय अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी मंच के मुख्य कर्ताधर्ता हैं। यह संगठन उत्तर हो या दक्षिणदेश के हर हिस्से से अंग्रेजी का सफाया करके उसकी जगह हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए काम कर रहा है। 


इसका संचालन राजधानी के ऐतिहासिक बिड़ला मंदिर परिसर के निकट हिंदू महासभा कार्यालय  से होता है। इस कार्यालय का अपना ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  की शुरुआती शाखाएं लगाई जाती थीं। जैन के स्वयंसेवकों में से एक ने बताया कि निश्चित तौर पर एक बार नाथुराम विनायक गोडसे ने इसके कमरों का इस्तेमाल किया था। 1986 से ही जैन और उनके दोस्त एकजुट होकर अंग्रेजी की जगह हिंदी को लागू करने के लिए विरोध-प्रदर्शन करते आ रहे हैं। वह चाहते हैं कि आईआईटी-जी की परीक्षा हो या फिर एनडीए-सीडीएसबैंक परीक्षा  हो या फिर किसी सरकारी कंपनी की परीक्षाहर जगह अंग्रेजी के बजाय हिंदी को जगह मिले। 

कार्यालय में वीर सावरकर की प्रतिमा से सटे कमरे में बैठे जैन ने अपना छात्र जीवन याद करते हुए बताया कि उन्हें अधिकारियों को यह समझाने में काफी लंबा वक्ता लगा कि उन्हें हिंदी में परीक्षा देने की अनुमति दी जाए। विनिर्माण व्यवसाय चलाने वाले जैन ने कहा, 'ऐसा इसलिए नहीं था कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती बल्कि मुझे यह बहुत शर्मनाक लगता है कि हमारे ज्ञान और परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी है। छात्र  मेरा मजाक उड़ाते थेलेकिन मैं उन्हें कहता था कि वे पश्चिमी देशों के चक्कर में अपनी मातृभाषा का अपमान कर रहे हैं। हमें चीनजर्मनी और फ्रांस से सीखना चाहिए कि वे किस तरह अपनी भाषा का सम्मान कर रहे हैं।जैन 1984 आईआईटी रुड़की बैच के इंजीनियर हैं। 


जैन ने बताया कि उन्हें पहली कामयाबी उस वक्त मिली जब आईआईटी कानपुर परिसर में हिंसात्मक विरोध के बाद संस्थान को मजबूर होकर 1986 में हिन्दी में प्रपत्र जारी करने पड़े। उन्होंने कहा, 'हमने एक साल पहले से ही अंग्रेजी के प्रश्न-पत्र जलाना शुरू कर दिया था, जिसके बाद संस्थान का रवैया नरम पड़ा।' जैन की अंग्रेजी-विरोधी गतिविधियों का दायरा उस वक्त बढ़ा जब उन्हें कई हिंदू संगठनों का समर्थन मिला। जैन के संगठन में 1,200 कार्यकर्ता हैं, जिनमें से ज्यादातर दिल्ली और उप्र से हैं।

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