हाल ही में कलमकार ने हिन्दी विश्व भाषा नाम का सम्मेलन किया, जिसका मकसद हिन्दी को 2050 तक दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बनाना है। इसमें हिन्दी के कई लेखक और पत्रकार शामिल हुए।
तसलीम में डॉयचे वेले से कहा, 'इस समय सोशल मीडिया सबसे बड़ी ताकत है। हमें उसके जरिए लोगों को हिन्दी भाषा के महत्व का एहसास कराना होगा। देश भर में जागरूकता पैदा करने के लिए बैठकें करनी होंगी।'
तसलीम ने यह भी बताया कि उनका समूह बड़े शहरों में बाजारों तक पहुंचेगा और लोगों को हिन्दी बोलने के लिए प्रोत्साहित करेगा, 'एक आसान काम स्टिकर से किया जा सकता है, जैसे वीजा और मास्टर कार्ड के स्टिकर दुकानों में लगे होते हैं, वैसे ही हम एक स्टीकर हिन्दी के इस्तेमाल का भी लगा सकते हैं।'
क्या है उपाय : चीनी के बाद हिन्दी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, लेकिन चीनी की तरह यह दुनिया के सिर्फ एक हिस्से तक सीमित है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषा में जगह नहीं मिल पाई। हालांकि कम बोली जाने वाली रूसी और अरबी को वहां जगह मिल गई है।
पंकज रामेन्दु कहते हैं देश को जरूरत है ऐसे हिन्दी लेखकों की, जो प्रगतिशील और जिद्दी हों, 'किताबें छपवाने में तो दिक्कतें आएंगी, लेकिन मैंने भी ठान लिया है लिखना तो सिर्फ हिन्दी में ही है। हमें ऐसी जिद्दी मानसिकता वाले लेखकों को बढ़ावा देना है।' उनके अनुसार जिस तरह की रॉयल्टी अंग्रेजी किताबों पर मिलती है वैसी हिन्दी पर नहीं मिलती।
इस मामले में सरकार की दखलंदाजी के साथ हिन्दी भाषा की मार्केटिंग की भी जरूरत है।