अनुवाद

बुधवार, 6 मार्च 2013

सुषमा स्वराज को पत्र: राष्ट्रभाषा हिंदी की घोर उपेक्षा जारी है


---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: प्रवीण जैन <cs.praveenjain@gmail.com>
दिनांक: 23 जनवरी 2013 11:37 am
विषय: Re: आप जैसे लोगों के होते हुए हिंदी की उपेक्षा क्यों ?
प्रति: sushmaswaraj@hotmail.com


आदरणीय महोदया,
 
मैं आपके लोकसभा क्षेत्र 'विदिशा' के रायसेन जिले के छोटे से ग्राम सुल्तानगंज का निवासी हूँ. मेरे परिवार के भाजपा के प्रति लगाव के कारण मुझे भी भाजपा में हमेशा से रूचि रही. अटलजी जब विदिशा से चुनाव लड़े थे उस समय मैं ८-९ वर्ष का था पर मैं उस छोटी आयु में भी  अन्य गांवों में जाकर बहुत प्रचार करता था. 
 
अब बात मुद्दे की: राष्ट्रभाषा हिंदी की घोर उपेक्षा जारी है 
 
१. भाजपा का आधिकारिक जालस्थल (वेबसाइट) का हिंदी संस्करण भी नहीं उपलब्ध है- यह एक गंभीर मामला है, स्वयं को बदलाव की वाहक कहने वाली भाजपा ने भी हिंदी का दामन छुड़ा लिया लगता है, बैनरों/झंडों में भी अब भाजपा के स्थान पर BJP लिखा दिखाई देने लगा है. उम्मीद करता हूँ आप स्थिति पर ध्यान देंगी. वरिष्ठ नेता आडवाणीजी संसद में हिंदी में नहीं अंग्रेजी बोलते हैं तो निराशा होती है, अपने ब्लॉग भी वे हिंदी में नहीं लिखते. जब आप लोग ऐसा करेंगे तो किस्से आशा रखें हिंदी की वकालत की. कांग्रेस का जालस्थल हिंदी में उपलब्ध है.
 
२. भारत के महामहिम राष्ट्रपति का जालस्थल http://presidentofindia.nic.in/ सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी में ही है. जब देश के राष्ट्रपति ही अपनी भाषा के प्रति उदासीन हों तो आप  उस देश में उस भाषा की वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं. राष्ट्रपति भवन से सारी प्रेस विज्ञप्तियां केवल अंग्रेजी में ही जारी होती हैं. बड़ी सोचनीय दशा है जबकि दुनिया के लगभग सभी देशों में सभी सरकारी/सांविधिक वेबसाइटें उनकी अपनी भाषा में होती हैं. चाहे जापान, चीन, सिंगापूर, जर्मनी हो या फिर फ़्रांस, बल्गारिया या अरब देश.
 
मैं पिछले १ वर्ष से लगातार  राष्ट्रपति भवन से गुहार लगा रहा हूँ कि हिंदी वेबसाइट उपलब्ध करवाएं पर राष्ट्रपति  सचिवालय  ने कोई कदम आज तक नहीं उठाया गया.
३. राजनीतिक दलों ने हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओँ के मुद्दे को अपने संविधान से ही निकाल फेंका है. भाजपा भी हिंदी को भूल चुकी है.
४. पैनकार्ड हो या फिर पारपत्र (पासपोर्ट) हर राष्ट्रीय पहचान से हिंदी को धीरे-२ विलीन किया रहा है. 
५. चीन ने  चीनी भाषा के अख़बारों/चैनलों में अंग्रेजी शब्दों के  इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगा दिया है  पर भारत में हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओँ के चैनलों /अखबारों में अंग्रेजी शब्द तो ठीक अब रोमन लिपि की घुसपैठ तेज हो गई है, भारत सरकार की सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता पर विपक्ष तो इन मुद्दों को उठा सकता है. हिंदी के समाचार चैनल तो खुलेआम हिंदी की अर्थी सजा रहे हैं और कोई नहीं बोल रहा. http://hindi-draft.blogspot.in/2012/06/blog-post.html
६. स्वतंत्रता के ६५ वर्ष बाद केंद्र सरकार और संसद के कामकाज में हिंदी का विलोप सा हो गया है और कोई इस बात को लेकर चिंतित नहीं है.
 
आपसे एक सकारात्मक उत्तर की आशा रखता हूँ कि हिंदी के प्रति भाजपा अपने पुराने संकल्पों को पुनः पारित करेगी और सरकार से राजभाषा अधिनियम का  सख्ती से  पालन करवाएगी .
 
आपके उत्तर की प्रतीक्षा में,
 
प्रवीण कुमार जैन


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