अनुवाद

बुधवार, 6 मार्च 2013

बैंकिंग कामकाज में एक विदेशी भाषा अंग्रेजी को बढ़ावा क्यों ?


आज भी देश की 98 % जनता अँग्रेज़ी नहीं समझ पाती है ! ग्रामीण व आदिवासियों के लिए तो यह एक अजूबे से कम नहीं है ! जब हिन्दी कदम-दर-कदम भारत की संपर्क भाषा के रूप स्थापित हो चुकी है. निजी और कुछ स्थानों पर सार्वजनिक बैंको के खाता खोलने के फार्म, उनकी शर्तें, वेबसाइटें, नेटबैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग आज केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध है जिन्हें पढ़ने-सुनने-समझने के लिए सहायक मिलना चाहिए अन्यथा अंग्रेजी के नाम पर पूरे देश में बैंकिंग ग्राहकों को ठगा जा रहा है.


बैंकों में कामकाज अपनी भाषा में हो तो काफी समस्याएं कम हो सकती हैं लेकिन विडम्बना है कि भारत के केन्द्रीय बैंक ने देश में बैंकों के कामकाज में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्राथमिकता के आधार पर प्रयोग के लिए अनिवार्य कानून नहीं बनाया. अंग्रेजी कठिन भाषा है, जिसे अच्छी तरह सीखने में समय लगता है। जो लोग अंग्रेजी माध्यम से पढ़े-लिखे हैं या दूसरे क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त हैं, उन्हें भी अंग्रेजी के लिहाज से बैंकिंग की भाषा की यथेष्ट जानकारी नहीं होती। देश की करीब 50 प्रतिशत जनता हिन्दी भाषी है तथा शेष 30-40 प्रतिशत हिन्दी समझ सकती है और सीखना चाहे तो 2-3 वर्षो में भाषा पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर सकती है क्योंकि उसके चारों तरफ का वातावरण (बातचीत, फिल्में, टी.वी. आदि) हिन्दी सीखने में सहायक है। गैर-हिन्दी भाषी अधिसंख्य लोगों की मातृभाषा का आधार भी हिन्दी की तरह संस्कृत है अत: वे कम समय में हिन्दी पर अधिकार पा सकते हैं। रही बात इंटरनेट की तो इस माध्यम में तुरंत अनुवाद की सुविधा से अनुवाद की समस्या नहीं के बराबर होगी। 


पर देशभर में फ़ैल रहे निजी बैंकों ने देशी भाषाओं का सफ़ाया करने का बीड़ा उठा रखा है. इनका हर कामकाज सिर्फ अंग्रेजी में ही किया जाता है, सूचना-पटल, वेबसाइट, (पत्र-शीर्ष) लेटरहेड आदि सबकुछ केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं. इनकी सेवाएँ आप तभी ले सकते हैं जब आपको अंग्रेजी आती हो, वर्ना आप अपनी जोखिम पर बैंकिंग लेनदेन करें क्योंकि बैंकों में हिन्दी, तमिल, मराठी, गुजराती आदि भारत की अपनी भाषाओं का कोई वजूद नहीं हैं. इन भाषाओं का इस्तेमाल केवल प्रदर्शन पटल(साइनबोर्ड) पर बैंक का नाम भर लिखने के लिए किया जाता है और उसमें भी अंग्रेजी बड़े और प्रभावी अक्षरों में लिखी जाती है, हिन्दी अथवा अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ अछूत भाषाओं की तरह अंग्रेजी के नीचे और गैर जरूरी रूप से इस्तेमाल की जाती हैं जिसमें भी ढेरों त्रुटियाँ होती हैं. यहाँ यह कह देना जरूरी है कि देशभर में हर राज्य में अंग्रेजी को थोपने का काम जारी है.

भारत में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को 'अंग्रेजी' के नीचे क्यों रखा जा रहा है? भारत की भाषाओं को दबाकर अंग्रेजी क्यों थोपी जा रही है?

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