पिता का पत्र पुत्र के नाम
चि. बसंत,
यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढे होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात करता हूँ. संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है. यह सच बात है. और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया वह पशु है. तुम्हारे पास धन है, अच्छे साधन हैं,उनका सेवा के लिये उपयोग किया तब तो साधन संभव है अन्यथा वे शैतान के औज़ार हैं.
तुम इतनी बातों का ध्यान रखना:
1. धन को मौज़ शौक में कभी उपयोग ना करना. रावण ने मौज शौक किया था जनक ने सेवा की थी . धन सदा रहेगा भी नहीं , इसलिये जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिये करो. अपने ऊपर कम खर्च करो, बाकी दुखियो के दुःख दूर करने में व्यय करो.
2. धन शक्ति है. इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अनर्थ हो जाना सम्भव है, इसका ध्यान रखो.
3. अपनी संतान के लिये यही उपदेश छोड़कर आओ, यदि बच्चे ऐश आराम वाले होंगे, तो पाप करेंगे और व्यापार को चौपट करेंगे. ऐसे नालायकों को धन कभी ना देना. हम भाइयों ने व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे.
4. सदा यह ध्यान रखना कि तुम्हारा धन यह जनता की धरोहर है. तुम उसे अपने स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते.
5. भगवान को कभी मत भूलना, वह हम अच्छी बुद्धि देता है.
6. इन्द्रियों को काबू में रखना वर्ना ये तुम्हें डुबो देंगी.
7. नित्य नियम से व्यवसाय करना.
8. भोजन को दवा समझकर खाना जो स्वाद के वश में होकर खाते हैं वे जल्दी मर जाते है और काम नहीं कर पाते.
***श्री घनश्यामदास बिड़ला (जन्म-1894, पिलानी, रा जस्थान, भारत, मृत्यु.- 1983, मुंबई) भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे, जिसकी परिसंपत्तियाँ 195 अरब रुपये से अधिक हैं।
बहुत ही उत्कृष्ट और प्रेरणास्पद
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