- धर्मार्थ
अथवा धार्मिक न्यास की कर योग्य आय का पता लगाना :-
- न्यास
की आय की परिकलना करना। यहां, ''आय'' में
धर्मार्थ अथवा धार्मिक उद्देश्यों से पूर्णतया अथवा अंशतय सृजित किसी
न्यास/संस्था द्वारा प्राप्त किया गया स्वैच्छिक अंशदान होता है।
किसी न्यास/संस्था की आय की आयकर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार
परिकलना करना अपेक्षित है।
- इस
अधिनियम की धारा 11 और धारा 12 के
अधीन आय छूट के भाग का पता लगाना न्यासों/संस्थानों से यह अपेक्षा की
जाती है कि वे छूट प्राप्त करने के लिए धारा 12 ए ए के
अधीन स्वयं को पंजीकृत कराए। इसको न्यास/संस्था स्थापित करने की
तारीख से एक वर्ष के भीतर फॉर्म 10 ए में
लिखित रूप में आवेदन प्रस्तुत करके किया जाएगा। मुख्य रूप से, छूट
से संबंधित प्रावधानों की योजना का निम्नानुसार सार प्रस्तुत किया
जाएगा :-
- न्यास को पूरी तरह से धर्मार्थ उद्देश्यों
से सृजित किया जाएगा और न्यास का उद्देश्य धर्मार्थ उद्देश्य के लिए
होना चाहिए, जैसा कि इस अधिनियम के अधीन परिभाषित किया
गया है।
- न्यास को किसी विशेष धार्मिक समुदाय अथवा
जाति के लाभ के लिए सृजित नहीं किया जाएगा।
- न्यास को लाभ हेतु व्यवसाय करने के लिए
सृजित नहीं किया जाएगा।
- न्यास में लगाई गई संपत्तियों को न्यास
में लगाया जाएगा। न्यास में केवल आय लगाए जाने की स्थिति में, यह पर्याप्त नहीं होगा।
- न्यास विलेख में यह प्रावधान होगा कि न्यास
की आय अथवा न्यास में धारित संपत्ति को इस्तेमाल भारत में धर्मार्थ
उद्देश्यों से किया जाएगा।
- यह सुनिश्चित किया जाएगा कि न्यास की आय
अथवा संपत्ति न्यासकर्ता अथवा उसके संबंधियों/अवस्थापकों के लाभ को
सुनिश्चित नहीं करती है।
- धर्मार्थ
अथवा धार्मिक न्यास, जो
कर छूट के लिए अन्यथा पात्र होगा, इस
अधिनियम कीधारा 13 के
अधीन इस छूट को छोड़ने के लिए दायी है। यह निम्नलिखित परिस्थितियों में
लागू है :-
1. जहां न्यास को 31 मार्च, 1962 के बाद सृजित किया गया है, वहां न्यास की आय का कोई भाग
न्यास विलेख की शर्तों के अनुसार सीधे अथवा प्रत्यक्ष रूप से विशिष्ट
श्रेणियों के व्यक्तियों जैसे कि न्यासकर्ता, न्यासी अथवा न्यास के प्रबंधक, न्यास के पर्याप्त अंशदाता
और ऐसे कर्ता के कोई संबंधी, न्यासी आदि के लाभ को सुनिश्चित करता है।
2. (ख) न्यास की किसी संपत्ति अथवा आय के किसी भाग
का इस्तेमाल किया जाता है अथवा उसे विशिष्ट श्रेणियों के व्यक्तियों के लाभ
के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संबद्ध वर्ष के दौरान लागू किया
जाता है।
3. (ग) न्यास की निधियों (कुछ अपवादों सहित) को ऐसी
निधियों के निवेश पैटर्न का उल्लंघन करते हुए निवेश किया जाता है।
जहां कोई धर्मार्थ अथवा
धार्मिक न्यास उपर्युक्त (क) से (ग) में उल्लिखित परिस्थितियों में कर छूट
छोड़ता है तो न्यास की अधिकतम सीमांत दर पर कर में प्रभारित किया जाएगा। न्यास
आय के केवल उस भाग पर, जिस पर उसने उपर्युक्त
परिस्थितियों के अधीन, न कि न्यास की सम्पूर्ण आय
पर, छूट छोड़ी है। अधिकतम सीमांत
कर दर लगाएगा।
- इसके
अतिरिक्त, इस
अधिनियम के अन्य प्रावधान है, जो
धर्मार्थ अथवा धार्मिक न्यासों की आय की कर योग्यता से संबंधित है। इन
प्रावधानों का निम्नानुसार सार प्रस्तुत किया गया है :-
- यदि
न्यास की कुल आय धारा 11 और
धारा 12 के
प्रावधानों का आशय दिए बिना, आयकर
में प्रमार्य न्यूनतम राशि से अधिक है, तो
धर्मार्थ अथवा धार्मिक न्यासों के न्यासियों द्वारा आय विवरणी [धारा 139(4 ए के अधीन)] दायर
करना। इसके साथ ही, न्यास/संस्थाओं
जिनकी आय को धारा 11 और धारा 12 के
अधीन छूट प्राप्त है, से
विवरणी दायर करने की अपेक्षा भी की जाती है क्योंकि छूट हेतु
निर्धारिती के दावे का निर्धारिती से संबद्ध सामग्री प्राप्त होने के
पश्चात ही,आयकर
विभाग द्वारा निर्णय लिया जाएगा।विभिन्न न्यासों/संस्थाओं के लेखाओं
की लेखा परीक्षा करने के पश्चात फॉर्म 10 बीमें
सनदी लेखाकारों द्वारा प्रस्तुत लेखा परीक्षा रिपोर्ट सहित आय विवरणी
दायर की जाएगी।
- ‘’प्रतिनिधित्व
निर्धारिती’’ के
रूप में न्यासियों की देयता [धारा 161 के अधीन] जिसमें
वे न्यास की आय के संबंध में उनकी प्रतिनिधित्व क्षमता में कर के लिए
दायी है।
- धारा 80 जी के
अधीन, कुछ
निधियों, धर्मार्थ
संस्थाओं आदि को दान के संबंध में कटौती (विशेष छूट) की जाती है। इस
धारा के अधीन पात्र बनने के लिए, धर्मार्थ
न्यासों/संस्थाओं को फॉर्म 10 जी में
उनको योगदान प्रस्तुत करके वैध प्रमाणपत्र प्राप्त करने की जरूरत होती
है। इस फॉर्म के साथ निम्नलिखित दस्तावेज संलग्न किए जाएंगे :-
i. धारा 12 ए के अधीन प्रदान किए गए पंजीकरण
की प्रति;
ii. उसे शुरू करने के समय से अथवा
पिछले तीन वर्षों के दौरान, जो भी कम हो, संस्थाओं/निधि/न्यासों की गतिविधियों पर टिप्पणियां
और
iii. उसे शुरू करने के समय से अथवा
पिछले तीन वर्षों के दौरान, जो भी कम हो, न्यास/संस्था के लेखाओं की प्रतियां।
- संपदा
कर अधिनियम की धारा 5 (i) के
अधीन धार्मिक अथवा धर्मार्थ प्रकृति के सार्वजनिक उद्देश्यों से अन्य
कानूनी बाध्यता अथवा न्यास के अधीन धारित सम्पत्तियों पर भी संपदा कर
प्रभारित नहीं किया जाता है। तथापि, कुछ
मामलों में, संपदा
के अधिनियम की धारा 21 ए में
यह प्रावधान है कि न्यास की संपदा उस स्थिति में कर में प्रमार्य है, यदि
संपत्ति किसी निजी व्यक्ति द्वारा धारित की गई है, जो
अधिनियम को उद्देश्य से भारत का नागरिक है और भारत में आवासी है।
- धर्मार्थ
उद्देश्य से भारत में स्थापित संस्थाओं को किए गए दान के संबंध में, दानकर्ताओं
को आयकर से राहत दी गई है।
- ये
इस अधिनियम की धारा 10 के
अधीन सार्वजनिक धर्मार्थ/धार्मिक न्यासों से संबंधित विशिष्ट प्रावधान
है। इन न्यासों की आय कुल आय का भाग नहीं है अथवा ऐसे न्यासों की आय
को आयकर से छूट है।
- धर्मार्थ
अथवा धार्मिक न्यास के न्यासियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे आयकर
अधिनियम की धारा 139 ए के
प्रावधानों के अधीन स्थायी लेखा संख्या (पीएएन) आबंटित करने के लिए
निर्धारित प्राधिकारी को आवेदन प्रस्तुत करें।
- कुछ
मामलों में, धर्मार्थ
न्यास की आय, जिस
पर धारा 11 और धारा 12 के
अधीन छूट नहीं है, कर
के अंतर्गत प्रमार्य होगी, मानो
कि वह व्यक्तियों के संघ (ए ओ पी) की आय हो :-
- धर्मार्थ
अथवा धार्मिक उद्देश्यों से पूरी तरह से न्यास के अधीन धारित संपत्ति
से आय;
- बिना
किसी निवेश के कि वे न्यास समूह का भाग होंगे, स्वैच्छिक
अंशदान; अथवा
- व्यवसाय
का लाभ व नफ़ा प्राप्त करने वाले न्यास अथवा संस्था की आय, जो
न्यास का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए प्रासंगिक हैं और अलग वही
खाते का रखरखाव किया जाता है।
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